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फिर बसंत आया (गीत) - कल्पना रामानी

रंग-रँगीले रथ पर चढ़कर।

रस-सुगंध की झोली भरकर। 

फिर बसंत आया।

 

आज नई फिर धूप खिली है।

दिशा दिशा उजली उजली है।

कुहरे वाली बीती रातें।

नया सूर्य है, सुबह नई है।

 

नई इबारत फिर गढ़ने को   

परिवर्तन लाया।

 

गाँव गाँव में झूल पड़ गए।

अमराई के भाग्य खुल गए।  

अँबुआ पर नव अंकुर फूटे।

कुहू कुहू के बोल घुल गए।

 

मृदुल तान मृदु साज़ छेड़कर

कुंज-कुंज गाया। 

 

देख-देख…

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Added by कल्पना रामानी on February 17, 2014 at 10:30am — 17 Comments

वो मिल ही गयी.......

वो मिल ही गयी.......

जिंदगी के हर मोड़ पर

बरसों से मै उसे देख रहा था

और वो मुझे देखती रहती थी

वक्त ही ना मिला जो उससे पूछता

क्यूँ वो मेरा इंतज़ार कर रही थी

अब थक सा गया था

धीरे धीरे दोड रहा था

आज मुझे वो ज्यादा करीब लगी

पूछ ही लिया रुक कर

मुद्दतों से देख रहा हूँ

तुम यूँ ही खड़ी हो

क्यूँ मुझसे मिलने की जिद्द पर अड़ी हो

मुस्कुरा कर बोली बस

तुम्हारा ही इंतज़ार था

मेरी भी मज़बूरी है,

इसलिए कंही नहीं…

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Added by pawan amba on February 16, 2014 at 1:30pm — 10 Comments

ऐ जिन्‍दगी मुझ पे भरोसा ना करना गीत

ऐ जिन्‍दगी मुझ पे भरोसा ना करना

हमें तो है किसी की चाहत पे मरना

 

सवाँर पाओ ना तु बिखर जायेगे हम

आपकी दुनिया से चले जायेगें हम

हँसते रहेगें वो तुम रोते रहना

हमें तो है किसी की चाहत पे मरना

ऐ जिन्‍दगी मुझ पे भरोसा ना करना



आँख मे अश्‍क उसके दे जायेगें हम

तड़पते रहो तुम चले जायेगें हम

हमे हैं जमाने से कभी कुछ न कहना

हमें तो है किसी की चाहत पे मरना

ऐ जिन्‍दगी मुझ पे भरोसा ना करना

 

बैठा करे हम कभी नदीया किनारे

लेकर वो…

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Added by Akhand Gahmari on February 16, 2014 at 12:18pm — 12 Comments

जिन्दगी

ज़िंदगी कसौटियों पर कस कर

निखरती सी गई

जितनी ये तबाह हुई

उतनी संभरती सी गई

आदमियत और गद्दारी में आकर

घुलती सी गई

कभी ये राम,रहीम ,नानक

में बँटती सी गई…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 16, 2014 at 10:25am — 12 Comments

जमीं पर आसमां उतर आया...

मेरे जब वो करीब आती है
सांस रुककर हमें सताती है
बात दिल की जो कहना चाहूं तो
बात कुछ और निकल जाती है।।

ये जो चिट्ठी किसी की आई है
अब वो अपनी नहीं पराई है
खाक मिलता है मुझे जिंदगी से
जिंदगी जून है जुलाई है।।

उनका चेहरा जब नजर आया
मेरी बातों में तब असर आया
करने इजहार अपनी प्रेयसी से
जमीं पर आसमां उतर आया।।

- मौलिक व अप्रकाशित

Added by atul kushwah on February 15, 2014 at 11:30pm — 13 Comments

ताँका

1-

हुआ प्रभात

उपासना मे लीन

ऋषी तल्लीन

कर जल अर्पण

हुआ प्रशन्न चित

2-

ऋतु बसंत

खिले कमल दल

स्वर्णिम धरा

पुष्प-पुष्प भ्रमर

करते रसपान

3-

रति-अनंग

नृत्य प्रेम मगन

शिव प्रचंड

भष्मित तन-मन

भयभीत हैं गण

४-

पाँव पखारें

कृष्ण गोपियों संग

देखते रास

शूल विधे असंख्य

नारी वेश में शिव

५-

कर श्रृंगार

नाग,देव,असुर

हरी में हर

नृत्य हुआ…

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Added by Meena Pathak on February 15, 2014 at 7:55pm — 6 Comments

“ गुनाहों से सुकून है मुझे “

तन्हा क्यूँ हूँ मैं

तेरे होने के बाद भी,

प्यासी क्यूँ है सांस

इतना पीने के बाद भी..

 

दर दर की शराब

उतारी है हलक से,

तर…

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Added by DRx Ravi Verma on February 15, 2014 at 4:00pm — 6 Comments

वो होठ दांत से यूं अपने दबाता क्यूँ है

१२१२    १२१२     ११२२    २२

 

वो मुझसे पेश रोज रोज यूं आता क्यूँ है

चरागे दिल जला जला के बुझाता क्यूँ है

 

निगाह से ही बात दिल की बताता क्यूँ है

वो बज्म में नजर यूँ हमसे चुराता क्यूँ है

 

निगाहों में छुपी है कोई पहेली उसके

घरौंदा मुझ को देखकर वो बनाता क्यूँ है

 

है बात कुछ,  नही पता है मुझे खुद जिसका

 वो मुझको देख नजरें अपनी झुकाता क्यूँ है

 

रचा हिना से नाम मेरा हथेली पर वो

ज़माने से…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on February 15, 2014 at 3:00pm — 12 Comments

संसद की गरिमा घटी (कुंडलिया छंद)

चुन गुण्डे संसद गये, करते हैं उत्पात।

लोकतंत्र के माथ पर, यह कलंक की बात॥

यह कलंक की बात, लात घूँसा चलता है।

मिर्च पाउडर फेंक, नोंच माइक देता है॥

देना हमें जवाब, आज गुण्डों को सुन।

भेजें सज्जन लोग, देश हित में हम चुन॥



भारत के इतिहास में, है काला अध्याय।

संसद में फेंका गया, जूता चप्पल हाय॥

जूता चप्पल हाय, नहीं क्यों उनको मारे।

चुनकर नमक हराम, गये संसद जो सारे॥

करते हैं खिलवाड़, तनिक न आये लज्जत।

पापी पामर नीच, कलंकित करता… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 15, 2014 at 12:56pm — 7 Comments

रपट - बनारस को मिला ''मेरा शहर मेरा गीत''

            दैनिक जागरण के राष्ट्रीय आयोजन ‘’ मेरा शहर मेरा गीत ‘’ के लिए गत वर्ष अप्रैल २०१३ में वाराणसी शहर से प्राप्त करीब पांच सौ प्रविष्टियों में से बॉलीवुड के प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी के नेतृत्व वाली ज्यूरी द्वारा चयनित गीत की दिनांक ०९ फरवरी २०१४ को वाराणसी के संपूर्णानंद स्टेडियम में समारोहपूर्वक भव्य लॉन्चिंग की गयी | इस गीत को दिल्ली एन. सी. आर.…

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Added by Abhinav Arun on February 15, 2014 at 7:16am — 13 Comments

ग़ज़ल - बारिश के ख़त लाते हैं , बादल बंद लिफ़ाफे हैं

ग़ज़ल –

फैलुन फैलुन फैलुन फा

२२ २२ २२ २

 

बारिश के ख़त लाते हैं |

बादल बंद लिफ़ाफ़े हैं |

 …

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Added by Abhinav Arun on February 15, 2014 at 7:08am — 19 Comments

तड़प रहा मन

बासंती बयार

होले होले

बह रही है



तड़प रहा मन

दिल पर

लिये एक गहरा घाव

यादो का झरोखा

खोल रही किवाड़

आवरण से ढकी भाव



इस वक्त पर

उस वक्त को

तौल रही है



नयन तले काजल

लबो पर लाली

हाथ कंगन

कानो पर बाली



तेरे बाहो पर

मेरी बदन

झूल रही है



ईश्‍वर की क्रूर नियति

सड़क पर बाजार

कराहते रहे तुम

अंतिम मिलन हमारा

हाथ छुड़ा कर

चले गये तुम



तन पर… Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on February 14, 2014 at 10:54pm — 9 Comments

खुशियों का तोहफा

आज सुबह पूजा कर के कल्याणी देवी कमरे मे बैठ गयीं | ठण्ड कुछ ज्यादा थी तो कम्बल ओढ़ कर आराम से कमरे मे गूंज रही गायत्री मन्त्र का आनंद ले रही थी | आँखे बंद कर के वो पूरी तरह से गायत्री मन्त्र मे डूब चुकी थीं तभी अचानक खट-खट की आवाज से उन्होंने आँखे खोली | कोई दरवाजा खटखटा रहा था | बहू रसोई मे थी और पतिदेव पूजा कर रहे थे सो उनको ही मन मार कर कम्बल से निकलना पड़ा | अच्छे से खुद को शाल मे लपेटते हुए उन्होंने गेट खोला तो चौंक गईं | एक मुस्कुराता हुआ आदमी सुन्दर सा गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा…

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Added by Meena Pathak on February 14, 2014 at 5:18pm — 15 Comments

ग़ज़ल- रंग हैं क्यों सात मत पूछो - पूनम शुक्ला

2122. 2122 2



कहनी क्या थी बात मत पूछो

कब ढ़लेगी रात मत पूछो



जिन्दगी ने खेल है खेला

किसने दी है मात मत पूछो



थाम कर तुम को चले थे हम

कब थमेगी रात मत पूछो



बैठ हँसते हर तरफ जाबिर

देश के हालात मत पूछो



देखना तासीर भी उनकी

आदमी की जात मत पूछो



जौफ़ ही है हर तरफ बरहम

रंग हैं क्यों सात मत पूछो



है यहाँ हर राह सरगश्ता

क्यों नहीं प्रभात मत पूछो



तासीर- गुण ,प्रभाव

जाबिर -…

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Added by Poonam Shukla on February 14, 2014 at 10:00am — 9 Comments

है मुहब्बत चीज ऐसी (ग़ज़ल ) -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    2122    2122    2122



राह  में  अवरोध  जितने, ओ!  जमाने  तूँ  लगा  ले

है  मुहब्बत  चीज  ऐसी, रास्ता  फिर  भी  बना  ले



हर जुनूँ  कमतर  है इसको, आग इसकी  कौन रोके

आशिकी  पीछे  हटी  कब, इम्तहाँ  गर  जो खुदा ले 



कैश  की  हर  पीर  लैला,  खीच  लेती  ओर  अपनी

है मुहब्बत को बहुत कम, जुल्म जग जितने बढ़ा ले

इस मुहब्बत की बदौलत, शिव फिरे ले शव सती का

अंध   देखे  रंग  दुनिया, नेह  में  जब  मन  रमा  ले

खत्म …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2014 at 7:00am — 13 Comments

हाशिये में प्रेम

जाने क्या सोचकर 

.......उसने भेजा 

एक गुलाब 

एक मुस्कान 

एक चितवन 

एक सरगोशी 

एक कामना 

एक आमंत्रण 



और मैंने पलटकर 

उसकी तरफ देखा भी नही 

भाग लिया 

उस तरफ 

जहां काम था 

चिंताएं थीं 

अपूर्णताये थीं 

सुविधाएं थीं 

अनुकूलताएँ थीं 

थकन और 

स्वप्न-हीन निद्रा…

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Added by anwar suhail on February 13, 2014 at 8:43pm — 6 Comments

अपने हाथों के लकीरों को बदल जाऊंगा.............

अपने हाथों के लकीरों को बदल जाऊंगा

यूँ लगा है की सितारों पे टहल जाऊंगा ll



जर्रे-जर्रे में इनायत है खुदाया अब तो

तू है दिल में बसा मैं खुद में ही ढल जाऊंगा ll



रो लिया चुपके जरा हस लिया हमनें ऐसे

ज़ख्म तो दिल के दबाकर मैं बहल जाऊंगा ll



प्यार में गम है मिला दिल हो गया ये घायल

ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा ll



है कशिश तीरे नज़र टकरा गयी हमसे जो

इक छुवन से ही जरा उसके मचल जाऊंगा ll



तू खुदा, बंदा मैं हूँ , हाथ जो सर पे रख…

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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on February 13, 2014 at 5:30pm — 8 Comments

धुंए का गुबार : नीरज नीर

मेरी आँखों के सामने

रूका हुआ है

धुएं का एक गुबार 

जिस पर उगी है एक इबारत ,

जिसकी जड़ें

गहरी धंसी हैं

जमीन के अन्दर.

इसमें लिखा है

मेरे देश का भविष्य,

प्रतिफल , इतिहास से कुछ नहीं सीखने का .

उसमे उभर आयें हैं ,

कुछ चित्र,

जिसमे कंप्यूटर के की बोर्ड

चलाने वाले , मोटे चश्मे वाले

युवाओं को

खा जाता है,

एक पोसा हुआ भेड़िया,

लोकतंत्र को कर लेता है ,

अपनी मुठ्ठी में…

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Added by Neeraj Neer on February 13, 2014 at 9:00am — 21 Comments

अभिलाषा - कविता !!

देवदार के पत्ते पर 

बर्फ के कतरे जितनी

मेरी अभिलाषा |

उस पर भी दुनिया की सौ-सौ शर्तें

सौ-सौ पहरे

तीक्ष्ण-तल्ख भाषा |

पलकों की ड्योढ़ी पर बैठे स्वप्न

कुछ नेपथ्य में टूट-फूट

करते विलाप

सभी प्रतीक्षारत, कब छँटे

घना कुहासा |

प्रस्वेदित तन

म्लानता का प्रचण्ड सूरज

जीवन नभ पर

और सिद्धि की

शून्य सदृश आशा |

भिक्षुक द्वार खड़ा आशीष लिए

दानी परदे में बैठा

यहाँ कौन भिक्षुक…

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Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 13, 2014 at 12:51am — 8 Comments


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पहचानो आवाज-दोहे

इक गुलदस्ते की तरह, सजा हमारा देश।

तरह-तरह के लोग हैं, तरह-तरह के वेश।।

 

जाति धर्म के फेर में, उलझ गया इंसान।
प्रेम शांति का मार्ग है, सत्य यही लो जान।।

 

तुम अपनी पूजा करो, औ मैं पढ़ूँ नमाज।

बस इतना ही फर्क है, अपना एक समाज।।

 

मक्कारी औ झूठ से, जो ना आये बाज।

उसकी भाषा लो समझ, पहचानो आवाज।।

(मौलिक व अप्रकाशित)* संशोधित

Added by शिज्जु "शकूर" on February 12, 2014 at 9:30pm — 22 Comments

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