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All Blog Posts (18,926)

एकलव्य का अंगूठा

संस्कृति का क्रम अटूट

पांच हज़ार वर्षों से

अनवरत घूमता

सभ्यता का

क्रूर पहिया.

दामन में छद्म ऐतिहासिक

सौन्दर्य बोध के बहाने

छुपाये दमन का खूनी दाग,

आत्माभिमान से अंधी

पांडित्य पूर्ण सांस्कृतिक गौरव का

दंभ भरती

सभ्यता.

मोहनजोदड़ो की कत्लगाह से भागे लोगों से

छिनती रही

अनवरत,

उनके अधिकार, 

किया जाता रहा वंचित,

जीने के मूलभूत अधिकार से,

कुचल कर  सम्मान

मिटा दी…

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Added by Neeraj Neer on January 16, 2014 at 9:58am — 11 Comments

कर लो कुछ विचार (दोहावली)

दिल पर रख कर हाथ तुम, कर लो कुछ विचार ।

देश धर्म के रक्षण पर, करते निज उपकार ।।



समय अभाव सभी कहे, समय साथ ना कोय ।

साथ समय का जो चले, निर्धनता ना होय ।।



समय बहुमूल्य रत्न है, मिले सदा बेमोल ।

पर्स रखे जो वक्त को, मगन रहे दिल खोल ।।



हल्ला भ्रष्‍टाचार का, करते हैं सब कोय ।

जो बदलें निज आचरण, हल्ला कैसे होय ।।



घुसखोरी के तेज से, तड़प रहे सब लोग ।

रक्तबीज के रक्त ये, मिटे कहां मन लोभ ।।



मिट रहा अपनापन अब, नही बचा चितचोर…

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Added by रमेश कुमार चौहान on January 16, 2014 at 9:04am — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बहुत गुमसुम सी लगती है ( ग़ज़ल ) गिरिराज भन्डारी

1222  1222  1222   1222

बहुत गुमसुम सी लगती है

 

ज़बाँ खामोश रहती है, निगाहें कुछ नही कहतीं

अगर जज़्बा न हो दिल में, तो बाहें कुछ नही कहतीं

यहाँ के हादसों का सच,…

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Added by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 8:30am — 32 Comments

लेकिन....

तुम क्या जानो जी तुमको हम 

कितना 'मिस' करते हैं...



तुम्हे भुलाना खुद को भूल जाना है 

सुन तो लो, ये नही एक बहाना है 

ख़ट-पद करके पास तुम्हारे आना है 

इसके सिवा कहाँ कोई ठिकाना है...



इक छोटी सी 'लेकिन' है जो बिना बताये 

घुस-बैठी, गुपचुप से, जबरन बीच हमारे 

बहुत सताया इस 'लेकिन' ने तुम क्या जानो 

लगता नही कि इस डायन से पीछा…

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Added by anwar suhail on January 15, 2014 at 9:01pm — 5 Comments

तुम्हारी प्रेरणा

आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,

अब उन्हें मुझे पूरा करना है।

माना बहुत दूर है किनारा मेरा,

पर उस तक मुझे पहुँचना है।  



कुछ भूल रहा था मेरा हृदय,

कुछ ध्यान भटक गया था।

थी घोर निराशा मुझे घेरे हुए,

जिसमें जीवन अटक गया था।

तुमने मुझे आगे बढ़ाकर कहा,

नहीं,अभी तुम्हें ऐसे रूकना है।

आँखों में जो स्वप्न बसाये तूने,

अब उन्हें मुझे पूरा करना है।



मेरे टूटे हुए विश्वास को जगाया,

तुमने आशा से प्रकाशित किया।

दूर कर मेरे हृदय की निराशा…

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Added by Savitri Rathore on January 15, 2014 at 8:47pm — 21 Comments

समझ ये क्यूँ नहीं आती..

है क्यूँ खामोश दरिया ये जो कल तक शोर करता था,
उदासी झील की शायद इसे देखी नहीं जाती.
तेरी खामोशियों के लफ्ज जब कानों में पड़ते हैं.
ये सांसें रोक लूं पर धडकनें रोकी नहीं जातीं.
अँधेरी रात से मिलना उजाले की भी ख्वाहिश है,
मगर किस्मत यहाँ ऐसी कभी शय ही नहीं लाती.
तमन्ना रह गई हर बार उसके पास जाने की,
कभी हम खुद नहीं जाते कभी वो ही नहीं आती.
मेरा जब नाम उसके लब को छूता है तो मत पूछो,
धडकता…
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Added by atul kushwah on January 15, 2014 at 8:30pm — 9 Comments

वंदना

वंदना

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ

विद्द्या का मुझको भी वरदान दे माँ

करूँ मै भी सेवा तेरी उम्र भर

मुझमे भी ऐसा कोई ‘भाव’ दे माँ

हे शारदे माँ , .......

चलूँ मै भी हरदम सत्यपथ पर

कभी भी न मुझसे कोई चूक हो माँ

हे शारदे माँ ,...........

दिखें जो दुखी-दीन आगे मेरे

कुछ सेवा उनकी भी मै कर सकूं माँ

हे शारदे माँ ,...............

जिह्वा जो खोलूँ तू वाँणी मे हो

चले जो कलम तो तू शब्द दे माँ

हे शारदे…

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Added by Meena Pathak on January 15, 2014 at 5:00pm — 13 Comments

नित्यानंदम स्तयं निरूपम (विजय निकोर)

नित्यानंदम स्तयं निरूपम  !

 

श्यामल गंभीर रात्रि

सुनता हूँ संवेदनमय स्वर

"विचारों में गुँथे, वेदना से बिंधे

अस्वीकृत एकाकी मन

तू उदास न हो"

 

टूटे संबंधों के

वीरान प्रवहमान प्रसारों में

कल की पुरानी किसी की

प्यार भरी हँसी, स्नेहमयी आँखों में

देखो, शायद सुख-शांति मिल जाए

देखो उन आँखों में, इतना न देखो

कि तुम्हें अनजाने

अज्ञात दर्द कोई और मिल जाए

 

मानवीय…

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Added by vijay nikore on January 15, 2014 at 2:30pm — 20 Comments

बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ

बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ

शायद खिलने वाली हैं...



तुमने कल की सारी बातें

जल्दी जल्दी चुन चुन कर,

अपनी जेबों में भर ली हैं

कितनी बेतरतीबी से,

कुछ तो खोकर भूल गयी हैं,

पर कुछ गिरने वाली हैं...



उस दिन कितनी कोशिश करके

हमने धूप बिछायी थी,

अल्फ़ाज़ों की कुछ शाखों से

कुछ पत्ते भी टूटे थे,

उन पर ठहरी खामोशी की

बूँदें झरने वाली हैं...



अलसाये नाज़ुक होठों की

हिलती डुलती टहनी पर,

कोहरे वाले मौसम में भी

पीली… Continue

Added by अजय कुमार सिंह on January 15, 2014 at 2:04pm — 12 Comments

मेरे कान्हा

मुश्किल में हूँ कान्हा

कैसे तोहे नैनों में बसाऊँ

मेरे श्याम सांवरे

कैसे तोहे मीठे बैन सुनाऊं

कभी तेरे कुंडल मोहें मोहे  

कभी माथे की बिंदिया

कभी तेरी बंसी छेड़े मोहे 

कभी अँखियाँ छीने निंदिया

मुश्किल में हूँ कान्हा

कैसे तोहे नैनों में बसाऊँ

लाल-पीली पगड़ी पे कान्हा

मोती बन माथे पे लटक जाऊं

कभी होठों की लाली मोहे मोहे  

कभी भाल का चन्दन

कभी तेरी बतियां सोहे मोहे 

कभी राधिका…

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Added by Poonam Matia on January 15, 2014 at 1:30am — 12 Comments

स्वार्थ और प्यार

"स्वार्थ और प्यार "



मानव बिकाऊ है जमी पर , मानवता की आड़ में।

ईमान बिकता है यहाँ पर , धर्म जाए भाड़ में ।।

भ्रष्टाचार का खू लगा है ,हर मानव की दाड़ में।

ऐसा बिगाड़ा इंसा जैसे ,बच्चा बिगड़ता लाड़ में।।

स्वार्थ की खातिर बेचा देश , दुनियाँ के बाजार में।

वतन किया नीलाम देखो ,मानव के सरदार ने।।

प्यार कभी न बजता यारों ,खुदगर्जी के साज में।

और कभी न स्वार्थ टिकता ,दिलबर के दरबार में।।

इन दोनों का साथ तो जैसे ,जल पावक के साथ…

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Added by chouthmal jain on January 14, 2014 at 10:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल- अब राजनीति सबकी रगों में समा गई

2 2 1 2 1 2 1 1 2 2 1 2 1 2

अब राजनीति सबकी रगों में समा गई

विश्वास खो गया,तो कंही आस्था गई ।।

मैं देखता हूँ मेरे नगर में ये क्या हुआ, 

लडकी खुशी-खुशी से ही इज्जत लुटा गई।

हर मोड पर जो शहर के आवारगी खडी, 

मैं क्या करूँ बजुर्गों की चिन्ता बढा गई।

बादल न जाने किसके हवन पर गया कंही,

रूठी  हुई  सी  तन्हा  अकेली  हवा गई।

महफिल में ही किसी ने मेरी बात छेड दी,

सुनते ही इतना रूप की गागर लजा…

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Added by सूबे सिंह सुजान on January 14, 2014 at 10:30pm — 25 Comments

माल्थस का भूत

कितनी दूर से बुलाये गये 

नाचने वाले सितारे 

कितनी दूर से मंगाए गए 

एक से एक गाने वाले 

और तुम अलापने लगे राग-गरीबी 

और तुम दिखलाते रहे भुखमरी 

राज-धर्म के इतिहास लेखन में 

का नही कराना हमे उल्लेख 

कला-संस्कृति के बारे में...



का कहा, हम नाच-गाना न सुनते 

तो इत्ते लोग नही मरते...

अरे बुडबक...

सर्दी से नही मरते लोग तो 

रोड एक्सीडेंट से मर जाते 

बाढ़ से मर जाते 

सूखे से मर जाते 

मलेरिया-डेंगू से मर जाते …

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Added by anwar suhail on January 14, 2014 at 9:30pm — 8 Comments

क्षणिकाएं

१-मूक भाषा

उनसे बात करने के लिए

शब्दों कि आवश्यकता नहीं

पता है क्यूँ ?मेरा

सन्देश वाहक "मौन" है//

२-कोशिश

आज फिर से वो पकड़ा गया

कुछ नया करने कि चोर कोशिश में //

३-चैन कि नींद

शायद इस दुनियां से ऊब गया था

तभी तो

बड़ा सा पत्थर ओढ़कर सो गया है //

४-ऐसा भी

बड़े अज़ीब लोग है

पीट रहे हैं उसे

और उसी से ज़ुर्म भी पूछ रहे है //

५-नाकाम…

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Added by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 9:00pm — 16 Comments

रिश्तों का अलंकार बनूँगी माँ

रिश्तों का अलंकार बनूँगी माँ

 

इंद्र्धनुष के समाये हें मुझमें सातों रंग

हर कली में ममता का श्रंगार करूंगी माँ।

बंद कली खिल जाने दे, नई सृष्टि रच जाने दे,

इस जग में आकर प्रकृति का उपहार बनूँगी…

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Added by DR. HIRDESH CHAUDHARY on January 14, 2014 at 7:30pm — 8 Comments

"हाउसवाइफ कहलाने में शर्म क्यूँ ? यह तो गर्व की बात है"

विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत महिलाएं जिस तरह बड़े-बड़े पैकेज (हज़ारों ,लाखों में ) ले रही हैं उसे देख अधिकतर महिलाएं खुद को बहुत नीचा या कमतर समझती है  जब उनसे पूछा जाता है कि वे क्या करती हैं ........और शर्म महसूस करती हैं.यह बताने में कि वे केवल हाउसवाइफ हैं .



यह इसलिए कि हाउसवाइफ का मतलब अक्सर यह समझा जाता है कि या तो वह घर में चूल्हा-चौका करती है या फिर सिर्फ किट्टी पार्टियों में अपना समय व्यतीत करती हैं ....... जबकि वास्तविक स्थिति इसके बिलकुल विपरीत होती है ...अधिकांश महिलाएं…

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Added by Poonam Matia on January 14, 2014 at 5:30pm — 22 Comments

संकट मोचन ( लघु कथा ) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

  •                                                     #   संकट  मोचन  #

 

आदि बेटे, मैं बहू को लेकर अस्पताल जा रही हूँ साथ में रंजना (बेटी) और अदिति ( पोती) भी। तुम गुरूजी को लेकर वहीं आओ।

 

आइये गुरूजी, प्रणाम। पोती के जन्म के समय आपने पूरा समय दिया था इस बार भी.......।

 

ठीक है मैया, मिठाई खाकर ही जाऊँगा। बहू को आशीर्वाद देते हुए - चिंता मत करो बेटी श्रीराधेकृष्ण की कृपा से इस बार भी सब कुछ सामान्य और सुखद होगा। हर समय…

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Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 14, 2014 at 12:00pm — 15 Comments

"यार दौलत फिर कमा ली जाएगी"- ग़ज़ल

बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ़

2122/ 2122/ 212



जाँ तेरी ऐसे बचा ली जाएगी;

हर तमन्ना मार डाली जाएगी; ।।1।।



बंदरों के हाथ में है उस्तरा,

अब विरासत यूँ सँभाली जाएगी;।।2।।



इक नज़ूमी कह रहा है शर्तियः,

दिन मनव्वर रात काली जाएगी;।।3।।



जब सियासत ठान ली तो जान लो,

हर जगह इज़्ज़त उछाली जाएगी;।।4।।



कर के…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on January 14, 2014 at 10:00am — 32 Comments

भारत तुझे नमन

भारत तुझे नमन

 

जब-जब देखा यहाँ है पाया

एक अनोखा रंग

भारत तुझे नमन

कण-कण मे यहाँ प्यार है बसता

देखो कितनी है समरसता

चाहे हिंदू, चाहे…

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Added by Pragya Srivastava on January 13, 2014 at 10:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल

बह्र-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ

..

कभी मंज़िलों से शिकायतें,कभी रास्तों से गिला करूँ,

कहीं बदहवास चला चलूँ,कहीं बेसबब ही रुका करूँ।

..

ये दिनों-दिनों की उदासियाँ,ये तमाम रात का जागना,

मुझे इस क़दर भी न याद आ कि मैं भूलने की दुआ करूँ।

..

ये चिराग़ तेरी निगाह के यूँ ही रोशनी दें डगर-डगर,

ये सफ़र मेरा है तेरी नज़र यही नक़्शे-पा से लिखा करूँ।

..

तेरी आरज़ू मेरा हौंसला,तेरी जुस्तजू मेरी शायरी,

तू हो दूर या मेरे रूबरू तुझे हर्फ़-हर्फ़ पढ़ा… Continue

Added by Ravi Prakash on January 13, 2014 at 8:43pm — 13 Comments

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