दें बिदाई आज तुम्हे, है परीक्षा की घड़ी ।
सीख सारे जो हमारे, तुम्हरे मन में पड़ी ।।
आज तुम्हे तो दिखाना, काम अब कर के भला ।
नाम होवे हम सबो का, हो सफल तुम जो भला ।।
हर परीक्षा में सफल हो, दे रहे आशीष हैं।
हर चुनौती से लड़ो तुम, काम तो ही ईश है ।।
कर्म ही पूजा कहे सब, कर्म पथ आगे बढो ।
जो बने बाधा टीलाा सा, चीर कर रास्ता गढ़ो ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 8:00am — 12 Comments
हमारी अंटार्कटिका यात्रा – 12 वह अनोखा आतिथ्य
पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि रोमांचकारी 58 घंटे की समाप्ति के बाद हम सभी सुरक्षित अपने स्टेशन के अंदर थे. अगले दिन से ही हम लोग फिर से मंसूबे बनाने लगे रूसी स्टेशन जाने के लिए. सौभाग्य से दो दिन बाद मौसम कुछ अनुकूल होता दिखने लगा. हमने बाहर जाकर अपनी गाड़ियों का हाल देखा तो दंग रह गए. पिस्टन बुली के ऊपर ढेर सारा बर्फ़ तो था ही, भीतर भी पाऊडर की तरह बर्फ़ के बारीक कण हर कोने में…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on February 10, 2014 at 3:03am — 9 Comments
उनके आते ही यहाँ,खिले ह्रदय में फूल!
कोयल भी गानें लगी,पवन हुआ अनुकूल!!
मंद मंद चलने लगी,देखो प्रेम बयार!
कानों में आ कह रही,कर लो थोड़ा प्यार!!
अधरों के पट खोलकर,की है ऐसी बात !!
शब्द शब्द में बासुँरी,फिर मधुमय बरसात!!
कह न सका जब मैं उन्हें,तुम हो मन के मीत!
शायद तब से कवि बना,लिख लिख गाता गीत!!
फिर से मै घायल हुआ,पता नहीं वह कौन!
मुझे व्यथित करके सदा,हो जाती है मौन!!
बजा बाँसुरी प्रेम की,डालो…
Added by ram shiromani pathak on February 9, 2014 at 5:30pm — 24 Comments
क्या तुम्हें उपहार दूँ,
प्रिय प्रेम के प्रतिदान का.
तुम वसंत हो, अनुगामी
जिसका पर्णपात नहीं.
सुमन सुगंध सी संगिनी,
राग द्वेष की बात नहीं.
शब्द अपूर्ण वर्णन को
ईश्वर के वरदान का.
विकट ताप में अम्बुद री,
प्रशांत शीतल छांव सी,
तप्त मरू में दिख जाए,
हरियाली इक गाँव की.
कहो कैसे बखान करूँ
पूर्ण हुए अरमान का.
मैं पतंग तुम डोर प्रिय,
तुम बिन गगन अछूता…
ContinueAdded by Neeraj Neer on February 9, 2014 at 4:41pm — 33 Comments
तेरे फड़फड़ाते पंखों की छुअन से
ऐ परिंदे!
हिलोर आ जाती है
स्थिर,अमूर्त सैलाब में
और...
छलक जाता है
चर्म-चक्षुओं के किनारों से
अनायास ही कुछ नीर.
हवा दे जाते हैं कभी
ये पर तुम्हारे
आनन्द के उत्साह-रंजित
ओजमय अंगार को,
उतर आती है
मद्धम सी चमक अधरोष्ठ तक,
अमृत की तरह.
विखरते हैं जब
सम्वेदना के सुकोमल फूल से पराग,
तेरे आ बैठने…
ContinueAdded by Vindu Babu on February 9, 2014 at 2:00pm — 32 Comments
2122 2122 2122 2122
राज की बात कहता हूँ समझ अब तक न तू पाया ।
सुकूँ देकर किसी को ही आदमी ने सुकूँ पाया ।
दौलतें शोहरतें जिनको कमानी हैं क़मा लें वो ,
मुझे इतना बहुत है जो किसी के दिल को छू पाया ।
बढ़ाये हाथ जब मैंने किसी को थाम लेने को ,
ख़ुशी का सिलसिला दिल में अचानक ही शुरू पाया ।
यहाँ हर शै से हर शै का एक अनबूझ रिश्ता है ,
जब दिल में चुभा काँटा तो आँखों में लहू आया ।
ढूँढ़ने ज़िन्दगी का राज मै…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on February 9, 2014 at 11:30am — 8 Comments
लो ....
ये क्या मौसम बदलते ही
तुमने रिश्तों का स्वेटर
खोल दिया ...
एक एक फंदे
जो तुमने चढ़ाये थे
इतने जतन से
अचानक ही
उन्हे उतार दिया ....
इतने जल्दी तुम
भी बदल गए
इस मौसम की तरह
चलो ....
ऐसा करना
मेरी यादों की सलाईयों को
सहेज कर रख लेना
फिर कभी ठंड आएगी
और उस सलाईयों
पर अहसासों के ऊन से
फिर रिश्तों का स्वेटर
बना लेना ...
किसी…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on February 8, 2014 at 9:15pm — 10 Comments
आस बांधे खड़ा था
धूप से तन जल रहा था
जेष्ठ भी तो तप रहा था
आस थी बरसात की
प्यास थी एक बूंद की
आ गिरेगी शीश पर
तृप्त होगी देह तब
यह सोच कर उत्साह मन में हो रहा था
घन-घटा चहूँ ओर छाती जा रही थी
मलय शीतल उमड़-घुमड़ के बह रही थी
मेघ घिर-घिर आ रहे थे
मोर भी संदेश मीठा दे रहे थे
हर्ष दिल में हो रहा था
आनंद से छोटे बड़े सब घूमते
बाल मन से थे धरा को चूमते
एक दूसरे से मिल रहे जैसे गले
उल्लास…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on February 8, 2014 at 4:30pm — 6 Comments
दोहा-----------बसन्त
आम्र वृक्ष की डाल पर, कोयल छेड़े तान।
कूक कूक कर कूकती, बन बसंत की शान।।1
वन उपवन हर बाग में, तितली रंग विधान।
चंचल मन उदगार है, प्रीति-रीति परिधान।।2
क्षितिज प्रेम की नींव है, कमल भवन, अलि जान।
दिन भर गुन गुन गान है, सांझ ढले रस पान।।3
मन मन्दिर है प्रेम का, जिसमें रहते संत।
विविध रंग अनुबंध में, खिल कर बनों बसंत।।4
पुरवार्इ मन रास है, सकल बहार उजास।
किरनें जल…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 7, 2014 at 9:30pm — 9 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 7, 2014 at 7:52pm — 13 Comments
उमा-उमा मन की पुलकन है
शिव का दृढ़ विश्वास
मिले अब !
सूक्ष्म तरंगों में
सिहरन की
धार निराली प्राणपगी है
शैलसुता तब
क्लिष्ट मौन थी …
Added by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 6:30pm — 44 Comments
Added by anwar suhail on February 7, 2014 at 4:04pm — 5 Comments
डरना कैसा मौत से, यह तो सच्ची यार
धोखा देती जिन्दगी , मौत निभाए प्यार /
मौत निभाए प्यार , साथ है लेकर जाती
सबक जिंदगी रोज, नया हमको सिखलाती
नेक मौत का काम, सबकी पीर को हरना
सरिता कहे पुकार, मत तुम मौत से डरना //
.....................................................
................मौलिक व प्रकाशित ...........
Added by Sarita Bhatia on February 7, 2014 at 10:02am — 16 Comments
कवि
कौन कहता है
मैं कवि हूँ और वह नहीं ?
मैं पेट भर खाने के बाद
बरामदे की गुनगुनी धूप में बैठा हूँ
प्रकृति दर्शन के लिए –
वह,
भूखे पेट
एक कटी पतंग की डोर थामने
आसमान की ओर बेतहाशा भागा जा रहा है
मगर,
आसमान है कि
उससे दूर हटता जा रहा है –
बादल, क्षितिज और
एक कटी पतंग को
अपनी नीलिमा की ओढ़नी में छुपाकर,
कविता की लकीर खींचता हुआ !!!
(मौलिक तथा अप्रकाशित रचना)
Added by sharadindu mukerji on February 6, 2014 at 10:52pm — 10 Comments
२१२२ २१२२ २२२२ २१२
ला ल ला ला ला ल ला ला ला ला ला ला ला ल ला
भेदने जब तम फलक का रवि आमादा हो गया
चाँद पीकर चांदनी अपनी ही नभ में खो गया
हाथ हम रखते रहे जलते अंगारों पर यूं ही
एक फरिस्ता जिन्दगी में ख्वाबे गुल ही बो गया
बज्म में वो गीत गाये झूमे पीकर मस्त हो
और नन्हा लाल घर पे रोके भूखा सो गया
घिर के नफरत में जहाँ की सूझा जब कुछ भी नहीं
चौखटों पे मंदिरों की…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2014 at 1:30pm — 12 Comments
“ पिताजी, वो अपनी नदी के पास वाली जमीन लगभग कितनी कीमत रखती होगी, अगर उसे बेच दिया जाय तो कैसा रहेगा ?
“क्यों..? बेटा क्या जरुरत आ पड़ी है ? खुली तिजौरी को बंद करने की..”
“ पिताजी..! ऐसे ही एक प्लान बनाया है, जिससे भविष्य संवर सकता है”
“ अरे बेटा..भविष्य संजोये रखने से संवरता है खोने से नही, वैसे मैंने अपनी नौकरी के रहते तुम्हारी पढाई पर बहुत खर्च किया, यहाँ तक की तुम्हारा घर बसाने में अपना पी.एफ. का पैसा भी झोंक दिया, , मैं तो यहाँ छोटे शहर में अपनी पेंशन से अपना और…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2014 at 12:05pm — 16 Comments
ढांचा सुधरे देश का ,सुदृढ़ हो आकार
खुशियाँ बसती हैं जहां ,छोटा हो परिवार
छोटा हो परिवार ,प्रेम से आँगन महके
पुत्री हो या पुत्र ,नीड़ में खुशियाँ चहके
बूढों का सम्मान ,भरे जीवन का सांचा
हो जाए उत्थान , देश का सुधरे ढांचा
**************************
(२)|
पहले दो टुकड़े हुए ,और हुए फिर चार
टूक-टूक रोटी बटे,बढ़े अगर परिवार
बढ़े अगर परिवार, लड़ाई गुत्थम गुत्थी
खिचे बीच दीवार, रोज की माथापच्ची
रिश्तों बीच…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 6, 2014 at 11:00am — 16 Comments
मन के जीते जीत है ,मन के हारे हार
मन को समझा ना अगर जीना हो दुश्वार /
जीना हो दुश्वार अगर मन दुख से भारी
सुख से पल संवार, कर के मन संग यारी
मन से कर लो प्रीत ,छोड़ो मोह अब तन के
मन की ना हो हार ,प्यार के फेरो मनके //
..........मौलिक व अप्रकाशित ..............
Added by Sarita Bhatia on February 6, 2014 at 10:00am — 10 Comments
2122 2122 2122 2122
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दीप को जलना नहीं है भूल से भी द्वार मेरे
आप नाहक कोशिशें क्यों कर रहे हो यार मेरे
खून हाथों पर लगा है किन्तु कातिल मैं नहीं हूँ
फूल से अठखेलियों में चुभ गये थे खार मेरे
छा गया है आजकल जो इस मुहब्बत में कुहासा
क्या बताऊँ आपको मैं देवता बीमार मेरे
दीन में रखना मुझे क्यों आप फिर भी चाहते हो
मयकदे में भेज बदले जब सदा आचार …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2014 at 8:00am — 8 Comments
परिश्रम है पारस पत्थर , जीवन को सोना बनाता है।
मेहनत करता जो जीवन में, सबकुछ वह पा जाता है।।
परिश्रम से एक ही पल में ,भाग्य दास बन जाता है।
लक्ष्मी उसके चरण है छूती ,जो मेहनत की खाता है।।
परिश्रम के बल पे टिकी है ,ये दुनियाँ तो सारी।
मेहनत से जिसने आँख चुराई ,ठोंकर उसने खाई।।
गीता के उपदेश ने भी तो ,कर्म की रीत सिखाई।
पाया उसने सभी है जिसने ,कर्म से प्रीत लगाई।।
मेहनत जो भी करता है वो , दुःख नहीं कभी पाता है।
पत्थर खाये यदि मेहनती ,वो भी हजम कर…
Added by chouthmal jain on February 6, 2014 at 3:00am — 3 Comments
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