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नवगीत--(उदासी गर्इ भौंरा फिर गुनगुनाया)

हॅसी रूप कलियों का जब मुस्कुराया,

उदासी गर्इ भौंरा फिर गुनगुनाया।।

बहारों की रानी,

राजनीति पुरानी।

नर्इ-नर्इ कहानी,

जवानी-दीवानी।

महगार्इ बढ़ाकर,

नववधू घर आती।

दिशाएं भी छलती,

गरीबी की थाती।

अमीरों का राजा, अल्ला-राम आया।। 1

सजाते हैं संसद,

समां बर्रा छत्ता।

परागों को जन से,

चुराती है सत्ता।

अगर रोग-दु:ख में,

पुकारे भी जनता।

शहर को जलाकर,

कमाते हैं भत्ता।

चुनावों…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 3, 2014 at 10:30pm — 14 Comments

मीरा छोड़ सब तेरी गली मोहन चली आयी

शेर -

"प्रीत  की लगन है ये , किसी ने न जानी है ।

सबकी समझ में आती  नही ये कहानी है ।"

मीरा छोड़ सब तेरी गली मोहन चली आयी ।

न आया तू तो तेरे द्वार पर जोगन चली आयी ।

कि इकतारे की सरगम पर विरह के गीत गाती है ।

दीवानी बावरी बेसुध तुम्हारी और आती है ।

जर्जर तन निगाहों में लिए सावन चली आयी ।

न आया तू तो तेरे द्वार पर जोगन चली आयी ।

देह भी चूर है थक कर और पैरों में छाले हैं ।

सूखते लब…

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Added by Neeraj Nishchal on February 3, 2014 at 10:30pm — 10 Comments

कैसा है यह जीवन मेरा !

कैसा है यह जीवन मेरा !

रोटी की खातिर मैं भटकूँ

नदियों नदियों , नाले नाले ।

अधर सूखते सूरत जल गयी

पड़े  पाँव मे  मेरे छाले ।

लक्ष्य कभी क्या मिल पाएगा , मिल पाएगा रैन बसेरा ?

कैसा है यह जीवन मेरा !                                         

 

मैंने तो सोचा था यारो

भ्रमण करूंगा उपवन-उपवन

जाने कैसे राह बदल गयी

बैठा सोचे आज व्यथित मन !

मेरा मन बनजारा बनकर ,  नित दिन अपना बदले डेरा ।

कैसा है…

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Added by S. C. Brahmachari on February 3, 2014 at 9:30pm — 12 Comments

कविता (कल्पना मिश्रा बाजपेई)

बाबुल,मेरा मन आज भयो जैसे पाखी

जो मैं होती बाबा तेरे घर गौरैया

नित आंगन तेरे आती

जो मैं होती बाबा तेरी खरक की गैया 

नित खरक में दर्शन तेरे पाती

जो मैं होती बाबा तेरे द्वार निमरिया

नित शीतल छाँव बिछाती

जो मैं होती बाबा तेरे सिर का साफा

नित धूप से तुम्हें बचाती

जो मैं बाबा शगुन चिरैया

नित मीठे गीत सुनाती

मेरा मन आज भयो जैसे पाखी

मैं तो भई बाबा बेमन बिटिया

दूर देश जाके ब्याही 

मन ही मन…

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Added by kalpna mishra bajpai on February 3, 2014 at 9:00pm — 11 Comments

माँ सरस्वती

[वसंतपंचमी के पावन अवसर पर माँ सरस्वती के श्रीचरणों में श्रद्धा स्वरुप ये कविता-सुमन]

हे माँ सरस्वती!

तुमसे है मेरी विनती।

सदा करूँ तुम्हारी भक्ति,

यही वर दो भगवती।

हे माँ सरस्वती!

मेरे मनमंदिर में सदा

रहो, इसी तरह से माँ।

मुझे कभी छोड़ न देना,

किसी तरह से, हे माँ !

यही आशीष दो भगवती।

हे माँ सरस्वती !

सदा रखना मेरे मस्तक पर,

अपना हाथ,हे आदिशक्ति।

लीन रहूँ तुम्हारी साधना में,

करती रहूँ…

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Added by Savitri Rathore on February 3, 2014 at 8:00pm — 19 Comments

मदिरापान (दोहावली)

मदिरा सेवन जो करे, तन मन करते खाक ।

मान सम्मान बेचकर, बोल रहे बेबाक ।।



धर्म कर्म जाया करे, करते मदिरा पान ।

बीबी बच्चें रो रहे, देखो खोटी शान ।।



सुख दुख का साथी कहे, मदिरा को सम्मान ।

सुख में दुख पैदा करे, उसे कहां है भान ।।



पार्टी सार्टी है करे, जो हैं अप टू डेट ।

बाटली साटली रखे, कुछ करते अपसेट ।।



गरीब अमीर दास है, मदिरा है भगवान ।

वंदन करते शाम को, लगा रहे जी जान…

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Added by रमेश कुमार चौहान on February 3, 2014 at 8:00pm — 7 Comments

मंगल गीत सुनाओ सखी री

मंगल गीत सुनाओ सखी री…

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Added by sanju shabdita on February 3, 2014 at 8:00pm — 6 Comments

कविता : यंत्र युग

राष्ट्रपति बनने के लिए अब एकमात्र शर्त है

रोबोट होना

 

चाबी से चलने वाले खिलौनों को

प्रधानमंत्री पद के लिए प्राथमिकता दी जाती है

 

प्राणवान और बुद्धिमान बंदूकें बनाई जा रही हैं

गोलियों पर कारखानों में ही लिख दिये जाते हैं मरने वालों के नाम

 

इंसान विलुप्त हो चुके हैं

धरती पर रह गई है

मानव और यंत्र के समागम से बनी एक प्रजाति

 

सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में

शिक्षा के नाम पर…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 3, 2014 at 7:46pm — 5 Comments

बदलता परिवेश - लघुकथा

कितना कहा था कि घरेलू लड़की लाओ...पर मेरी कोई सुने तब ना...सब को पढ़ी-लिखी बी-टेक लड़की ही चाहिए थी...अब ले लो कमाऊ बहू...मुंह पर कालिख मल के चली गई, अरे...उसे किसी और से प्रेम था तो मेरे बेटे की जिंदगी क्यों खराब की ...पहले ही मना कर देती तो ये दिन तो ना देखना पड़ता हमें..अब मै किसी को क्या मुंह दिखाऊँगी...सब तो यही कहेंगे ना कि सास ही खराब होगी ..उसी के अत्याचार से तंग आ कर बहू ने घर छोड़ा होगा..हे राम ! अब मै कहाँ जाऊँ...क्या करूँ...अरे...कोई उसे समझा-बुझा के घर ले आओ...मै उसके पाँव पकड़ लेती…

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Added by Meena Pathak on February 3, 2014 at 7:00pm — 6 Comments

स्वागत तव ऋतुराज

ऋतुराज के स्वागत में पांच दोहे



स्वागत तव ऋतुराज



चंप पुष्प कटि मेखला, संग सुभग कचनार।

गेंदा बिछुआ सा फबे, गल जूही का हार।१।

.

बेला बाजूबंद सा, कंगन हरसिंगार।

गुलमोहर भर मांग में, करे सखी श्रृंगार ।२।

.

पहन चमेली मुद्रिका, नथिया सदाबहार।

गुडहल बिंदी भाल दे, मन मोहे गुलनार।३।

.

जूही गजरा केवडा, सजे सखिन के बाल।

तन मन को महका रही, मौलश्री की माल।४।

.

झुमका लटके कान में, अमलतास का आज।

इस अनुपम श्रृंगार…

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Added by Satyanarayan Singh on February 3, 2014 at 5:30pm — 23 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
मन कार्यालय हुआ : पाँच दशा // --सौरभ

1)

मन उदास है

पता नहीं, क्यों..



झूठे !

पता नहींऽऽ, क्योंऽऽऽ..?



2)

कितना अच्छा है न, ये पेपरवेट !

कुर्सी पर कोई आये, बैठे, जाये…

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Added by Saurabh Pandey on February 3, 2014 at 5:30pm — 12 Comments

बहुत कुछ खो चुके हैं हम (ग़ज़ल)

अना की कब्र पर जबसे, गुलों को बो चुके हैं हम,

हमें लगने लगा है, फिर से जिंदा हो चुके हैं हम।



उगेंगे कल नए पौधे, यकीं कुछ यूँ हुआ हमको,

ज़मीं नम हो गयी है, आज इतना रो चुके हैं हम।



उतारे कोई अब तो, इन रिवाजों के सलीबों को,

छिले कंधे लिए, सदियों से इनको ढो चुके हैं हम।



मेरे सपने अभी तक डर रहे हैं, सुर्ख रंगों से,

हथेली से लहू यूँ तो, कभी का धो चुके हैं हम।



बची है अब कहाँ, मुँह में जुबाँ औ ताब आँखों में,

बहुत पाने की चाहत में,…

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Added by Arvind Kumar on February 3, 2014 at 12:30pm — 7 Comments

बसंत के दोहे : अरुन अनन्त

बदला है वातावरण, निकट शरद का अंत ।

शुक्ल पंचमी माघ की, लाये साथ बसंत ।१।



अनुपम मनमोहक छटा, मनभावन अंदाज ।

ह्रदय प्रेम से लूटने, आये हैं ऋतुराज ।२।



धरती का सुन्दर खिला, दुल्हन जैसा रूप ।

इस मौसम में देह को, शीतल लगती धूप ।३।



डाली डाली पेड़ की, डाल नया परिधान ।

आकर्षित मन को करे, फूलों की मुस्कान ।४।



पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।

मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग ।५।



गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।…

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Added by अरुन 'अनन्त' on February 3, 2014 at 12:00pm — 29 Comments

“ डंकी” क्रिकेटर नाक कटाय ( आल्हा छंद - प्रथम प्रयास)अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

मनुज रूप इंग्लैंड गये थे, वहाँ पहुँच “ डंकी ” कहलाय।

घुटने टेके, सिर भी झुकाय, गुलाम जैसा खेल दिखाय।

जब उपाधि डंकी की पाये, सब बेशर्मों सा मुस्काय।

वह रे क्रिकेटर हिन्दुस्तानी, अपनी इज़्ज़त खुद ही गवांय।

आस्ट्रेलिया में हाल खराब, सभी मैंच में हमें हराय।

अरबों रुपय कमाने वालों, दो कौड़ी का खेल दिखाय।

अफ्रीका में मैच भी हारे,  उस पर हाथ पैर तुड़वाय।                   

खेल दिखाये बच्चों जैसा , रोते गाते वापस…

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Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 3, 2014 at 12:00pm — 12 Comments

कुण्डलिया छन्द

(1)
झेला   हमने   इसलिए,  हर  काँटे   का  दंश । 
ताकि चमन में खिल सकें, फूलों के सब वंश ॥ 
फूलों  के   सब   वंश,  महक   वे   सारे  पाएँ । 
गुलशन का हर द्वार, प्यार से जो  खटकाएँ ॥ 
कहें  'शून्य' कविराय, लगे खुशियों का मेला । 
पाएँ  सब  आनंद,  कष्ट  इस  कारण  झेला ॥ 
 
(2)
सपनों  में  यह  गगन भी, तभी बजाए शंख । 
दीप  जला  हो  आस का, हों  साहस के पंख ॥
हों…
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Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on February 2, 2014 at 11:00pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दोहावली-1

दोहे लिखने की मेरी पहली कोशिश है

घूम - घूम के देश मे, बाँट रहा है ज्ञान।

बातें कड़वी बोलता, सत्य उसे ना मान।।

 

अपना सीना तान के, करे शब्द से वार।

अन्धे उसके भक्त हैं, करते जय जयकार।।

 

बाँटे अपने देश को, लेके प्रभु का नाम।

उसको आता है यही, अधर्म का ही काम।।

 

यही देश का भाग है, यही देश का सत्य।

कोई आगे आय ना, नाग करे सो नृत्य।।

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

संशोधन के पश्चात पुनः दोहे…

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Added by शिज्जु "शकूर" on February 2, 2014 at 10:30pm — 16 Comments

पूस की वो रात

ठिठुरते हुए तारे

शांत माहौल

आँख मिचौली खेलता

बादलों के पीछे छिपा चाँद

जिसे निहारते हुए

एकाएक खुशबु लिए

एक हवा का झोंका

तुम्हारे स्पर्श सा

छू गया मुझे

पूस की वो रात

लेटते हुए

कभी इस करवट

कभी उस करवट

ह्रदय में हुआ कंपन

आँखों से छलका प्रेम

भिगो गया

मेरा तन बदन

मेरा मन

तन्हा गुजारते हुए

पूस की वो रात

तुम्हारी छूअन से

पूस की वो रात

आत्मीय हो उठती…

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Added by Sarita Bhatia on February 2, 2014 at 12:00pm — 8 Comments

हुए पैदा सलीबों पर (ग़ज़ल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

1222 1222 1222 1222

मुहब्बत की  नहीं उससे , वफा भी फिर  निभाता क्या

खबर थी ये  उसे भी जब , मुझे  तोहमत लगाता क्या



सपन  में  रात  भर  था  जो , उसे  भी  ले गया सूरज

मिला साथी  मुझे भी  है , जमाने फिर  बताता   क्या



जिसे  डर  हो  सजाओं  का, उसे   यारों  सताता  डर

हुए  पैदा  सलीबों   पर ,  बता   डरता   डराता  क्या



न  हो  तू  अब  खफा  ऐसे , रहा  है   भाग  बंजारा

न था कोई  ठिकाना जब, पता तुझको लिखाता क्या…



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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2014 at 7:00am — 11 Comments

भोली आस्था

एक मासूम...

तल्लीनता से जोर-जोर पढ़ रहा था

क-कमल,ख-खरगोश,ग-गणेश।

शिक्षक ने टोका

ग-गणेश! किसने बताया?

बाबा ने...

माँ और पिता को सब कुछ माना

तभी तो सबसे बड़े देव हुए।

नहीं,गणेश नहीं कहते

संप्रदायिकता फैलेगी

जिसे तुम समझो झगड़ा. .विवाद

ग-गधा कहो बेटे।

आस्था भोली थी

बाबा के गणेश,मसीहा और अल्लाह से रेंग

'गधे' में शांति खोजने…

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Added by Vindu Babu on February 2, 2014 at 4:50am — 17 Comments

जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

 

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

कुहरा आया छाए बादल

टिप - टिप बरसा पानी ।

जाने कब मौसम बदलेगा

हार  धूप  ने   मानी ।

गौरइया भी दुबकी सोचे , जाने क्यूँ सकुचाई धूप !

माघ महीने सुबह सबेरे , जाने क्यूँ अलसायी धूप ?

बिजली चमकी , गरजा बादल

हवा   चली     पछुवाई ।

थर – थर काँपे तनवा मोरा

याद  तुम्हारी   आयी ।

घने बादलों मे घिर – घिर कर, लेती अब अंगड़ाई धूप !

माघ…

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Added by S. C. Brahmachari on February 1, 2014 at 8:40pm — 13 Comments

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