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मौत आती है पर मरते-मरते

कोई कैसे सुने दास्ताँ मेरी

खुद को भूल जाते सुनते-सुनते.

 

वो भी साथ होते मेरे लेकिन

पांव थक जाते हैं चलते-चलते.

 

याद आती मुझे जब कभी उसकी

आँसू बहाते हैं चुपके-चुपके.

 

दिल बहुत चाहता आज हँसने को

आँख भर आती है हँसते-हँसते.

 

मर गये होते चाहत में उसके

मौत आती है पर मरते-मरते.

 

(मौलिक व अप्रकाशित )

अनिल कुमार 'अलीन'

Added by अनिल कुमार 'अलीन' on February 5, 2014 at 11:30pm — 11 Comments

कहानी : कटहल के पेड़ की आत्मकथा

(१)

जब मैंने होश सँभाला तो मेरी और राजू की लंबाई बराबर थी। मुझे आँगन के बीचोबीच राजू के दादाजी ने लगाया था। राजू के पिताजी अपने सभी भाइयों में सबसे बड़े हैं। पिछले पंद्रह वर्षों से घर में कोई छोटा बच्चा नहीं था। ऐसे में जब राजू का जन्म हुआ तो वह स्वाभाविक रूप से परिवार में सबका दुलारा बन गया, विशेषकर अपने दादाजी का। राजू की देखा देखी मैं भी उसके दादाजी को दादाजी कहने लगा। मेरे बारे में लोगों की अलग अलग राय थी। कुछ कहते थे कि आँगन में कटहल का पेड़…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2014 at 10:00pm — 4 Comments

एक तरही गजल (रमेश कुमार चौहान)

(बहर - 2122,2122,212)

पैर में क्यो गुदगुदी होने लगी
याद तेरी बेबसी होने लगी

वक्त काफी हो गया तुम से मिले
तेरी सूरत अजनबी होने लगी

अपने हाथो घाव ताजा कर रहा
जख्म स्याही लेखनी होने लगी

ये इबारत प्यार का है चेहरा
हर नए गम से खुशी होने लगी

तू नही तेरी निशानी ही सही
देख लो संजीवनी होने लगी
------------------------
मौलिक एवं अप्रका‍शित

Added by रमेश कुमार चौहान on February 5, 2014 at 10:00pm — 7 Comments

गीत -- कुछ पात ही अब शेष रहे !!

आँगन की नीम कहे 

कुछ पात ही अब शेष रहे 

 

प्रिय बसंत तुम आना 

नव मधुमास ले आना 

निज कर तुम सजाना 

प्रीतम की राह तके 

आँगन की ..................

 

पत्तों पर से  ओस हटी 

मण्डल मे छायी धुंध हटी

अंतस मे कोंपल सजी 

नवजीवन ही आस रहे 

आँगन की नीम ...................

शरद शिशिर सब  है गए

सज धज ऋतुराज है आए

आहट पा नीम लहराये

चिर बसंत ही  शेष रहे

आँगन की…

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Added by annapurna bajpai on February 5, 2014 at 8:30pm — 8 Comments

नवगीत : पड़े रहेंगे बंद कहीं पर शादी के गहने

घूमूँगा बस प्यार तुम्हारा

तन मन पर पहने

पड़े रहेंगे बंद कहीं पर

शादी के गहने

 

चिल्लाते हैं गाजे बाजे

चीख रहे हैं बम

जेनरेटर करता है बक बक

नाच रही है रम

 

गली मुहल्ले मजबूरी में

लगे शोर सहने

 

सब को खुश रखने की खातिर

नींद चैन त्यागे

देहरी, आँगन, छत, कमरे सब

लगातार जागे

 

कौन रुकेगा दो दिन इनसे

सुख दुख की कहने

 

शालिग्राम जी सर पर बैठे

पैरों…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2014 at 7:59pm — 18 Comments

फिर याद आई !!

लो,फिर याद आई
आँसुओं की बाढ़ आई
थी उनके करीब इतने
वो थे मुझमे मै थी उनमे |

कहा था कभी
चली जायेगी ससुराल  
कैसे रहूँगा तुम बिन,
खुद छोड़ गये साथ
ये भी ना सोचा  
कैसे रहूँगी उन बिन |

बरसों बीत गये
निहारते हुए राह
ना कोई सन्देश ना कोई तार
खड़ी हूँ अब भी वहीं
संभाले दर्द का सैलाब  
छोड़ गये थे पापा जहाँ |

मीना पाठक 

मौलिक/अप्रकाशित 
  
 
   

Added by Meena Pathak on February 5, 2014 at 3:00pm — 16 Comments

गहराइयाँ .... (विजय निकोर)

गहराइयाँ

 

 

घड़ी की दो सूइयाँ

काली गहराइयाँ

समय के कन्धों पर

उन्मुक्त

फिर भी बंधी-बंधी

पास आईं, मिलीं

मिलीं, फिर दूर हुईं

कोई आवाज़ .. टिक-टिक

बींधती चली गई

 

था भूकम्प, या मिथ्या स्वप्न

अब वह घड़ी पुरानी रूकी हुई

उखड़े अस्तित्व की छायाओं में

लटक रही है बेजान ।

समय की दीवार

रूकी धड़कन का एहसास ...

और वह सूइयाँ

कोई पुरानी भूली हुई…

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Added by vijay nikore on February 5, 2014 at 10:00am — 24 Comments

बसंत

'लो'

फिर आ गया बसन्त,

प्रेम का उन्माद लिए,

प्रियतम की याद लिए,

'बसन्त' तो मेरे

मन का भी था,

रह गया उम्र के

उसी मोड़ पर,

लौटा ही नहीं,

जिंदगी उस

फफोले की मानिंद है,

जो रिसता है

आहिस्ता आहिस्ता,

बेइंतहां दर्द के साथ,

परन्तु सूखता नहीं,

नहीं खिलता

मेरे चेहरे पर,

सरसों के फूल का

पीला रंग,

पलाश के फूल

हर बार की तरह

इस बार भी

मुझे रिझाने में

नाकामयाब…

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Added by Anita Maurya on February 5, 2014 at 9:25am — 10 Comments

मजदूर हूँ मैं किसान हूँ

मजदूर हूँ मैं किसान हूँ

सबके करीब सबसे दूर हूँ

तपती लू के थपेड़ों ने

झुलसाया मुझे बहुत

अनवरत करता रहा भूख प्यास से व्याकुल

होकर भी अपना काम

कभी पाला कभी कोहरा प्रकति…

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Added by Pragya Srivastava on February 4, 2014 at 11:00pm — 5 Comments

कविता (बेटी के दिल से)

खड़ी-खड़ी देखती हूँ जब मैं पिता की ओर

मन हुलसाती बाबा हांथ न बढ़ाते हैं



भैया को मंगाया गया चन्दन का पालना

मेरे लिए बांस का खटोला बिछाते हैं



भैया के खेलने को मोटर कार और बाजा

मेरे लिए खेलने को लाले रोज पड़ते हैं



भैया के खाने को दूध और बताशा खीर

मेरे लिए रोटी दाल बहुत बताते हैं



भैया के पढ़ने को विदेश पठाया गया

मेरे लिए अक्षर ज्ञान बहुत बताते हैं



भैया को बना के दिये महल-दुमहला खूब

मेरे लिए छोटी सी पालकी मंगाते… Continue

Added by kalpna mishra bajpai on February 4, 2014 at 10:15pm — 10 Comments

हे शारदे मां.....! हे शारदे मां !

हे शारदे मां.....! हे शारदे मां !



जगत की जननी

कल्याणकारी

संयम उदारी

अति धीर धारी

व्याकुल सुकोमल, बालक पुकारे।..... हे शारदे मां.....!



हंसा सवारी

मंशा तुम्हारी

तू ज्ञान दाती

लय ताल भाती

है हाथ पुस्तक, वीणा तु धारे।... हे शारदे मां.....!



संसार सारं

नयना विशालं

हृदयार्विन्दं

करूणा निधानं

अखण्ड सुविधा, सरगम उचारे।.... हे शारदे मां.....!



माता हमारी

बृहमा कुमारी

है मुक्तिदाती

यश कीर्ति…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 4, 2014 at 9:41pm — 4 Comments

बनो दिनमान से प्रियतम..

!!! बनो दिनमान से प्रियतम !!!

बनो दिनमान से प्रियतम,

नित्य ही नम रहे शबनम।।

उजाला हो गया जग में,

रंग से दंग हुर्इ सृष्टि।

लुभाता रूप यौवन तन,

गंध के संग हुर्इ वृष्टि।

समां भी हो गया सुन्दर, जलज-अलि का हुआ संगम।। 1

पतंगी डोर सी किरनें,

बढ़ी जाती दिशाओं में।

मधुर गाती रही चिडि़या,

नाचते मोर बागों में।

कल-कल ध्वनि करें नदिया, लहर पर नाव है संयम।। 2

किनारों पर बसी बस्ती,

सुबह औ शाम की…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 4, 2014 at 8:00pm — 8 Comments

वो पलकों की चिलमन …

वो पलकों की चिलमन …

वो पलकों की  चिलमन  उठा के गिराना

वो आँचल  के  कोने  को  मुंह में दबाना

ज़हन में  है  ज़िंदा  वो मंज़र मिलन का

भला   कैसे   भूलूं  मैं  उसका   मनाना

मुहब्बत की   रूदाद क्यूँ अश्कों में भीगी

क्यूँ होता है मुहब्बत का दुश्मन ज़माना



गुजरती है करवट में तमाम शब हमारी

सलवटों में सिसकता है दिल का फ़साना

रंज होता है क्या ये न जाने थे अब…

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Added by Sushil Sarna on February 4, 2014 at 7:30pm — 15 Comments

गंगा जमुनी तहज़ीब है बसंत

गंगा जमुनी तहज़ीब है बसंत

पलकों की छांव में आकर जो खामोश हुये बैंठे हैं ।

दिल की चौखट पर हजारों सवालात लिए बैंठे हैं ।

पीले फूलों की तरह हर तरफ खिलता रहे बसंत,…

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Added by DR. HIRDESH CHAUDHARY on February 4, 2014 at 7:30pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सूर्य को तुम देखना अब ओट में होते हुये ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122    2122     2122     212 

सच को देखा आँख मूंदे दिन चढ़े सोते हुये 

आँसुओं से भीगते , बस झींकते रोते हुये

देख भाई बचपनों से, खो न जाये,सादगी   

मैने देखा अनुभवी को धूर्त ही होते हुये

ठीक है अब खूब रोशन आज दिन लगता है…

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Added by गिरिराज भंडारी on February 4, 2014 at 6:00pm — 22 Comments

सरस्वती वंदना (गीतिका छंद)

हे भवानी आदि माता, व्याप्त जग में तू सदा ।
श्‍वेत वर्णो से सुशोभित, शांत चित सब से जुदा ।।
हस्त वीणा शुभ्र माला, ज्ञान पुस्तक धारणी ।
ब्रह्म वेत्ता बुद्धि युक्ता, शारदे पद्मासनी ।।

हे दया की सिंधु माता, हे अभय वर दायनी ।
विश्‍व ढूंढे ज्ञान की लौ, देख काली यामनी ।।
ज्ञान दीपक मां जलाकर, अंधियारा अब हरें ।
हम अज्ञानी है पड़े दर, मां दया हम पर करें ।।
---------------------------
मौलिक अप्रकाशित

Added by रमेश कुमार चौहान on February 4, 2014 at 6:00pm — 11 Comments

मिलन (अतुकांत)

ऐ आसमान

इन सर्द रातों के

घने कोहरे में

तेरा दीदार नही होता

तेरी गर्म छुअन महसूस होती है

मुझे पता है, तू भी तपड़ता है

तरसता है, व्याकुल है मेरे शुष्क अधरों

को नमी देकर

खुद  नमी पाने को

अपने  शुष्क  अधरों के लिए

 गुनगुनी सी  धूप में

मैं जल रही हूँ

ठंडी  सर-सराती हवाएं

मेरे प्यार के दामन को चीर देती हैं

इतने बड़े दिन की, न जाने कब होगी ?

शीतल शाम

तू आएगा न मेरे…

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Added by जितेन्द्र पस्टारिया on February 4, 2014 at 10:45am — 16 Comments

नीड़ का निर्माण फिर फिर टल रहा है (गजल) - कल्पना रामानी

212221222122

बल भी उसके सामने निर्बल रहा है।

घोर आँधी में जो दीपक जल रहा है।

 

डाल रक्षित ढूँढते, हारा पखेरू,

नीड़ का निर्माण, फिर फिर टल रहा है।

 

हाथ फैलाकर खड़ा दानी कुआँ वो,

शेष बूँदें अब न जिसमें जल रहा है।

 

सूर्य ने अपने नियम बदले हैं जब से,

दिन हथेली पर दिया ले चल रहा है।

 

क्यों तुला मानव उसी को नष्ट करने,

जो हरा भू का सदा आँचल रहा है।

 

मन को जिसने आज तक शीतल रखा…

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Added by कल्पना रामानी on February 4, 2014 at 10:00am — 19 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
अनकही बातें...(नवगीत) - डॉ० प्राची

अनकही बातें धड़कतीं

मुस्कुराती

पल रही हैं.

 

थाम यादों की उँगलियाँ

स्वप्न जो

गुपचुप सजाये

शब्द आँखों में उफनते

क्या हुआ जो

खुल न पाये

 

भाव लहरें

तलहटी में

व्यक्त हो अविरल बही हैं.

 

रच गए जब

स्वप्न पट पर

नेह गाथा चित चितेरे

रंग फागुन से चुरा कर

कल्पनाओं में बिखेरे...

 

श्वास में

घुल कर बहीं जो

वो हवाएँ निस्पृही…

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Added by Dr.Prachi Singh on February 4, 2014 at 9:30am — 23 Comments

मधुमास दोहावली

शुक्ल पंचमी माघ से ,शुरू शरद का अंत

पवन बसंती है चली, आया नवल बसंत /



ले आया मधुमास है, चंचल मस्त फुहार

पीली चादर ओढ़ के, धरा करे शृंगार /



रात सुहानी हो गई उजली है अब भोर

डाली डाली फूल हैं ,हरियाली चहुँ ओर /



निर्मल अम्बर है हुआ, पाया धरा निखार

जर्रे जर्रे में बसा , कुदरत में है प्यार /



रंग बिरंगी तितलियाँ , मन में भरें उमंग

प्यार हिलोरें ले रहा , अब प्रीतम के संग /



पेड़ आम के बौर से, इतरायें हैं आज

मन को है…

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Added by Sarita Bhatia on February 3, 2014 at 11:06pm — 12 Comments

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