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ग़ज़ल - सच को अपनाने का जब ऐलान किया !

ग़ज़ल –

फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा

२२ २२ २२ २२ २२ २



सच को अपनाने का जब ऐलान किया ,

सबने मुझ पर बाणों का संधान किया |



जागो रण में नींदें भारी पड़ती हैं ,

अभिमन्यू ने प्राणों का बलिदान किया |



आंसू की दो बूँदें टपकी पन्नो पर ,

मैंने अपने किस्से का उन्वान किया |



सोने की अपनी अपनी लंकाएं गढ़ ,

हमने ख़ुद में रावण को मेहमान किया |



देश निकाला देकर सारे पेड़ों को ,

हमने अपने शहरों को वीरान किया |



भूख… Continue

Added by Abhinav Arun on January 6, 2014 at 7:47pm — 33 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक तरही ग़ज़ल- शिज्जु

मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल

22- 22- 22- 22- 22- 2

सच्चाई को जब अपना ईमान किया

सारी दुनिया को उसने हैरान किया

 

मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं

किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया

 

चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ

बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया

 

छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी

अपने छोटे से घर को ऐवान किया

 

मायूस हुआ तेरी तीखी…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 9:00am — 34 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बाप के जूते - अतुकांत (गिरिराज भंडारी)

बाप के जूते

***********

जब से

बाप के जूते

बच्चों के पैरों  में

आने लगे हैं ,

वो सही ग़लत

बाप को ही

समझाने लगे हैं  ।…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on January 6, 2014 at 8:00am — 42 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
ग़ज़ल- पर सुगम होगा सफ़र, लगता है // --सौरभ

दिन उगे का तो पहर लगता है

यों अभी थोड़ी कसर, लगता है..



साँस लेना भी दूभर लगता है

क्या ये मौसम का असर लगता है



क्या हुआ साथ चलें या न चलें…

Continue

Added by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:00am — 22 Comments

गुरुकुल बहुत याद आता है

गुरुकुल बहुत याद आता है

.

नटखट बचपन छूटा मेरा

गुरुकुल के पावन आँगन मे ,

वो अतीत अब भी पलता है

बंजारे अंजाने मन मे ।

निधि जो गुरुकुल से ले आया, छटा नयी नित बिखराता है

गुरुकुल बहुत याद आता है !

अब भी क्या गुरुकुल प्रांगण मे

गूँजे मंत्रों की प्रतिध्वनियाँ ?

निर्मल हो पावन हो जाए

परम ब्रह्म की सारी दुनिया ।

चन्दन सी खुशबू इस जग मे, पावन गुरुकुल बरसाता है

गुरुकुल बहुत याद आता है ।…

Continue

Added by S. C. Brahmachari on January 5, 2014 at 10:30pm — 13 Comments

खुदा तुम्हारे ही खो जाने में मिलता है

जो पीने को दिल के पैमाने में मिलता है ।

वो जाम मोहब्बत के मैखाने में मिलता है ।

ना होश न खबर कोई मस्ती है खुमारी है ,

ये इल्म फकीरों के अफ़साने में मिलता है ।

सब झूठ ही कहते हैं कि शम्मा जलती है ,

जलने का हुनर फकत परवाने में मिलता है ।

कुछ मज़ा दीवाने को आता है तड़पने में ,

कुछ लुत्फ़ उन्हें भी तो तड़पाने में मिलता है ।

ये समझ ले जो तूने दिल में ही नही पाया ,

वो मन्दिर मस्जिद ना बुतखाने में मिलता है…

Continue

Added by Neeraj Nishchal on January 5, 2014 at 9:00pm — 7 Comments

कभी जीवन में अपने कुछ दुखद से पल भी आते हैं

1 2 2 2   1 2 2 2   1 2 2 2   1 2 2 2



कभी जीवन में अपने कुछ दुखद से पल भी आते हैं

सभी अपने हमेशा के लिए तब छोड़ जाते हैं /



समय अपना बुरा आया,तमस भी साथ ले आया 

करीबी जो रहे अपने वही नजरें चुराते हैं /



किसे फुर्सत हमें देखे हमारा हाल वो जानें 

हमें रुसवाइओं में तन्हा अक्सर छोड़ जाते हैं /



मिले ढूंढे नहीं कोई सहारा बन सके जो तब

मुसीबत में कहाँ अब लोग यूँ रिश्ते निभाते हैं /



भला कर तू भला होगा बुरा मत सोचना मन…

Continue

Added by Sarita Bhatia on January 5, 2014 at 8:30pm — 20 Comments

ग़ज़ल - (अय्यूब खान "बिस्मिल")

वज़न २२१२ २२१२ २२१२ १२

उसने दिया इनकार का पैग़ाम उम्र भर

हाँसिल नहीं कुछ बस हुआ बदनाम उम्र भर

ये मुद्दतों की प्यास है मिटती अबस तभी

अपनी नज़र से जब पिलाती जाम उम्र भर

आग़ाज़ मोहब्बत का था जब दर्द से भरा

लाज़िम मुझे सहना ही था अंजाम उम्र भर

बस एक तिरी ख्वाहिश में खोया वजूद तक

ये ज़िन्दगी भी रह गई बे-नाम उम्र भर

दिल की तिजारत दर्द से बिस्मिल किया किये

उल्फत में बस ये ही रहा एक ख़ाम…

Continue

Added by Ayub Khan "BismiL" on January 5, 2014 at 8:30pm — 11 Comments

गंगा चुप है !!

गंगा चुप है ...................

वेगवती गंगा प्रचंड प्रबल  

लहराती, बल खाती जाए

रूप चाँदी सा दूधिया धवल

जनमानस  तारती  जाए

 वो गंगा !! आज चुप है ..............

हे ! मानस किञ्च्त जागो

भागीरथी की व्यथा सुनो

तुमको तो जीवन दिया है

किन्तु  तुमने क्या दिया है

व्यथित गंगा !! आज चुप है ................

आंचल मैला किए देते हो

मुख मे भी विष दिये देते हो

चाँदी सा रूप हुआ क्लांत

सौम्यता भी हुई…

Continue

Added by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 4:30pm — 9 Comments

दोस्ती .... (विजय निकोर)

दोस्ती

 

देखता हूँ सहचर मीत मेरे

सहसा, दोस्ती की निगाहें हैं झुकी हुई

पलकें भीगी

घिरते आए संत्रस्त ख़यालों पर

खरोंचते-उतरते संतप्त ख़याल ...

फिसलते भीगे गालों पर

दोस्ती के वह सुनहले रंग

बिखरते गीले काजल-से

 

कहाँ हैं दोस्ती की रोश्नी की

वह अपरिमय चिनगियाँ

बनावटी थीं क्या ? नहीं, नहीं,

चमकती थीं वह अपेक्षित आँखों में ...

रुको, माप लूँ मैं बची हुई थोड़ी-सी

उस चमक की…

Continue

Added by vijay nikore on January 5, 2014 at 9:00am — 24 Comments

खुश हो जाते हैं वे

खुश हो जाते हैं वे

पाकर इत्ती सी खिचड़ी

तीन-चार घंटे भले ही

इसके लिए खडा रहना पड़े पंक्तिबद्ध ...

खुश हो जाते हैं वे

पाकर एक कमीज़ नई

जिसे पहनने का मौका उन्हें

मिलता कभी-कभी ही है

खुश हो जाते हैं वे

पाकर प्लास्टिक की चप्पलें

जिसे कीचड या नाला पार करते समय

बड़े जतन से उतारकर रखते बाजू में दबा...

ऐसे ही

एक बण्डल बीडी

खैनी-चून की पुडिया

या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर

फूले नही समाते…

Continue

Added by anwar suhail on January 4, 2014 at 9:33pm — 9 Comments

ग़ज़ल- सारथी || जुल्फ़ के पेंचों में ||

जुल्फ़ के पेंचों में कमसिन शोख़ियों में

मुब्तला हूँ  हुस्न की रानाइयों  में/१ 

आसमां के चाँद की अब क्या जरूरत

चाँद रहता है नजर की खिड़कियों में/२ 

दिल पे भरी पड़ती है दोनों ही सूरत

हो कहीं वो दूर या नजदीकियों में/३ 

सोचता हूँ अब उसे माँ से मिला दूँ

छुप के बैठी है जो कब से चिठ्ठियों में/४ 

वो अदाएं दिलवराना क़ातिलाना…

Continue

Added by Saarthi Baidyanath on January 4, 2014 at 9:00pm — 25 Comments

उलझन ... उलझन है ...

आज गहरे अंतस में

न जाने कैसी 

अजीब सी 

छाया बन रही है 

लगातार जारी है 

समझने की नाकाम कोशिश .... 

मगर छाया नहीं सुलझती 

दौड़ रहा हूँ ... 

बीते हुये कल के 

हर एक के जानिब को 

शायद वो हो ... 

नहीं वो नहीं है ... 

अच्छा वो हो सकता है 

मगर कहाँ भागूँ 

कितना भागूँ ... 

बहुत दूर आ  चुका हूँ 

वापस जाना मुमकीन नहीं हैं 

अंतस में 

छाया और गहरी 

होती जा रही…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on January 4, 2014 at 7:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल : अरुन 'अनन्त'

बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22

इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,

भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,

वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,

पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,

नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by अरुन 'अनन्त' on January 4, 2014 at 4:12pm — 36 Comments

कहाँ जाऊँ

अंजान जिन्‍दगी से

उड़ती पतंगो की तरह

सोलह बसंत पार

चली साजन के घर

सजाये सपने प्‍यार के

चाहत के अरमान के

मगर तबाह हुई

जिन्‍दगी मेरी

उनके झूठ से

राम कृष्‍ण के वंशज

जमाना कर्जदार

बेटा परिवार का दिवाना

परदेश कमाता

परिवार का रखवाला

शर्मीला,शांत, सुशील

बड़े अरमान से पाला

सर्वगुण सम्पन्न है

क्‍या क्‍या सुनी कहानी

सपनो को मिली हवा 

हकीकत हकीकत थी  

ना छुट पायी…

Continue

Added by Akhand Gahmari on January 4, 2014 at 3:00pm — 13 Comments

उसका रुमाल..

उसका रुमाल …..

टप,टप

टप,टप

अंधेरी रात का

गहरा सन्नाटा

बारिश के बाद

पेड़ों से गिरती बूंदों के

जमीन पर गिरने की आवाजें

सन्नाटे को तोड़ने का

अनवरत प्रयास कर रही थीं

और साथ ही प्रयास कर रही थी वो

अनगिनित बारिशों में

भीगी रातों की भीगी यादें

कहर ढाती बारिश का

तूफ़ान तो रुक जाता है

लेकिन तबाही का मंजर

दूर तक साथ जाता है

जाने सावन…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 4, 2014 at 12:30pm — 28 Comments

महफ़िल तू आज फिर से सजाने की बात करे

ला ला ल ला    ल ला ला     ल ला ला   ला ला ल ला 

महफ़िल तू आज फिर से सजाने की बात कर

हसरत जवा है पीने पिलाने की बात कर 

चिलमन कहाँ से आया तेरे मेरे बीच में 

चिलमन हटा ये नजरें मिलाने की बात कर

चिलमन हटा तो मुखड़े को घूंघट में यूं छुपा 

गुल की कली न ऐसे जलाने की बात कर 

जलवे जो तेरे पहली दफा देखे थे कभी 

इक बार फिर वो जलवे दिखाने की बात कर 

हाथों में हाथ तेरे हों बस इतनी आरजू 

जन्मों की…

Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on January 4, 2014 at 10:00am — 25 Comments

गज़ल - जाग उठी सड़कें

जाग उठी सड़कें  उन्हें बस  सच बयानी चाहिए

कह  दो  संसद  से  न  कोई   लंतरानी  चाहिए

 

देख तो ! मैं बिक गया उसकी वफ़ा के नाम पर

ऐ  तिजारत ! अब  तुझे  नज़रें  झुकानी चाहिए

 

मैं  बना  दूँ  अपनी पेशानी पे सजदे  की लकीर

तू  बता तुझको  दिलों पर  हुक्मरानी  चाहिए ?

 

धूप  में जलना  पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक

जिद  है बच्चों  की उन्हें  कुछ जाफरानी चाहिए

 

प्यार है तो आ मेरे माथे पर अपना नाम लिख

जिक्र  जब  मेरा …

Continue

Added by Arun Sri on January 4, 2014 at 10:00am — 23 Comments

उसे डरा सकी न मौत, वो कभी मरा नहीं.

जो ज़िंदगी का भी समर , जीत कर रुका नहीं

उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं

(१)

जो ज़िंदगी जिया कि

जैसे हो किराए का मकान

रहा तैयार हर समय

जो साँस का लिए सामान

सुखों की कोई चाह नहीं

दुखों में कोई आह नहीं

डगर डगर मिली थकन वो , मगर कभी थका नहीं

उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं

(२)

जो चल दिया तो चल दिया

जिसे नहीं सबर है कुछ

नदी है क्या पहाड़ क्या ,

नहीं जिसे ख़बर है कुछ

जो नींद से बिका नहीं

थकन…

Continue

Added by ajay sharma on January 4, 2014 at 12:00am — 13 Comments

भारत और रेल का जनरल डब्बा

भारत और रेल का जनरल डब्बा

 

भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है,

जनरल के डब्बे में जीकर बचपन रोज पला करता है।

 

हो चाहे व्यवसाय दुग्ध का,

रोज रोज का ऑफिस…

Continue

Added by Neeraj Dwivedi on January 3, 2014 at 11:00pm — 8 Comments

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