Added by Abhinav Arun on January 6, 2014 at 7:47pm — 33 Comments
मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल
22- 22- 22- 22- 22- 2
सच्चाई को जब अपना ईमान किया
सारी दुनिया को उसने हैरान किया
मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं
किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया
चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ
बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया
छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी
अपने छोटे से घर को ऐवान किया
मायूस हुआ तेरी तीखी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 9:00am — 34 Comments
बाप के जूते
***********
जब से
बाप के जूते
बच्चों के पैरों में
आने लगे हैं ,
वो सही ग़लत
बाप को ही
समझाने लगे हैं ।…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 6, 2014 at 8:00am — 42 Comments
दिन उगे का तो पहर लगता है
यों अभी थोड़ी कसर, लगता है..
साँस लेना भी दूभर लगता है
क्या ये मौसम का असर लगता है
क्या हुआ साथ चलें या न चलें…
Added by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:00am — 22 Comments
गुरुकुल बहुत याद आता है
.
नटखट बचपन छूटा मेरा
गुरुकुल के पावन आँगन मे ,
वो अतीत अब भी पलता है
बंजारे अंजाने मन मे ।
निधि जो गुरुकुल से ले आया, छटा नयी नित बिखराता है
गुरुकुल बहुत याद आता है !
अब भी क्या गुरुकुल प्रांगण मे
गूँजे मंत्रों की प्रतिध्वनियाँ ?
निर्मल हो पावन हो जाए
परम ब्रह्म की सारी दुनिया ।
चन्दन सी खुशबू इस जग मे, पावन गुरुकुल बरसाता है
गुरुकुल बहुत याद आता है ।…
Added by S. C. Brahmachari on January 5, 2014 at 10:30pm — 13 Comments
जो पीने को दिल के पैमाने में मिलता है ।
वो जाम मोहब्बत के मैखाने में मिलता है ।
ना होश न खबर कोई मस्ती है खुमारी है ,
ये इल्म फकीरों के अफ़साने में मिलता है ।
सब झूठ ही कहते हैं कि शम्मा जलती है ,
जलने का हुनर फकत परवाने में मिलता है ।
कुछ मज़ा दीवाने को आता है तड़पने में ,
कुछ लुत्फ़ उन्हें भी तो तड़पाने में मिलता है ।
ये समझ ले जो तूने दिल में ही नही पाया ,
वो मन्दिर मस्जिद ना बुतखाने में मिलता है…
Added by Neeraj Nishchal on January 5, 2014 at 9:00pm — 7 Comments
1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
कभी जीवन में अपने कुछ दुखद से पल भी आते हैं
सभी अपने हमेशा के लिए तब छोड़ जाते हैं /
समय अपना बुरा आया,तमस भी साथ ले आया
करीबी जो रहे अपने वही नजरें चुराते हैं /
किसे फुर्सत हमें देखे हमारा हाल वो जानें
हमें रुसवाइओं में तन्हा अक्सर छोड़ जाते हैं /
मिले ढूंढे नहीं कोई सहारा बन सके जो तब
मुसीबत में कहाँ अब लोग यूँ रिश्ते निभाते हैं /
भला कर तू भला होगा बुरा मत सोचना मन…
Added by Sarita Bhatia on January 5, 2014 at 8:30pm — 20 Comments
वज़न २२१२ २२१२ २२१२ १२
उसने दिया इनकार का पैग़ाम उम्र भर
हाँसिल नहीं कुछ बस हुआ बदनाम उम्र भर
ये मुद्दतों की प्यास है मिटती अबस तभी
अपनी नज़र से जब पिलाती जाम उम्र भर
आग़ाज़ मोहब्बत का था जब दर्द से भरा
लाज़िम मुझे सहना ही था अंजाम उम्र भर
बस एक तिरी ख्वाहिश में खोया वजूद तक
ये ज़िन्दगी भी रह गई बे-नाम उम्र भर
दिल की तिजारत दर्द से बिस्मिल किया किये
उल्फत में बस ये ही रहा एक ख़ाम…
ContinueAdded by Ayub Khan "BismiL" on January 5, 2014 at 8:30pm — 11 Comments
गंगा चुप है ...................
वेगवती गंगा प्रचंड प्रबल
लहराती, बल खाती जाए
रूप चाँदी सा दूधिया धवल
जनमानस तारती जाए
वो गंगा !! आज चुप है ..............
हे ! मानस किञ्च्त जागो
भागीरथी की व्यथा सुनो
तुमको तो जीवन दिया है
किन्तु तुमने क्या दिया है
व्यथित गंगा !! आज चुप है ................
आंचल मैला किए देते हो
मुख मे भी विष दिये देते हो
चाँदी सा रूप हुआ क्लांत
सौम्यता भी हुई…
ContinueAdded by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 4:30pm — 9 Comments
दोस्ती
देखता हूँ सहचर मीत मेरे
सहसा, दोस्ती की निगाहें हैं झुकी हुई
पलकें भीगी
घिरते आए संत्रस्त ख़यालों पर
खरोंचते-उतरते संतप्त ख़याल ...
फिसलते भीगे गालों पर
दोस्ती के वह सुनहले रंग
बिखरते गीले काजल-से
कहाँ हैं दोस्ती की रोश्नी की
वह अपरिमय चिनगियाँ
बनावटी थीं क्या ? नहीं, नहीं,
चमकती थीं वह अपेक्षित आँखों में ...
रुको, माप लूँ मैं बची हुई थोड़ी-सी
उस चमक की…
ContinueAdded by vijay nikore on January 5, 2014 at 9:00am — 24 Comments
खुश हो जाते हैं वे
पाकर इत्ती सी खिचड़ी
तीन-चार घंटे भले ही
इसके लिए खडा रहना पड़े पंक्तिबद्ध ...
खुश हो जाते हैं वे
पाकर एक कमीज़ नई
जिसे पहनने का मौका उन्हें
मिलता कभी-कभी ही है
खुश हो जाते हैं वे
पाकर प्लास्टिक की चप्पलें
जिसे कीचड या नाला पार करते समय
बड़े जतन से उतारकर रखते बाजू में दबा...
ऐसे ही
एक बण्डल बीडी
खैनी-चून की पुडिया
या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर
फूले नही समाते…
Added by anwar suhail on January 4, 2014 at 9:33pm — 9 Comments
जुल्फ़ के पेंचों में कमसिन शोख़ियों में
मुब्तला हूँ हुस्न की रानाइयों में/१
आसमां के चाँद की अब क्या जरूरत
चाँद रहता है नजर की खिड़कियों में/२
दिल पे भरी पड़ती है दोनों ही सूरत
हो कहीं वो दूर या नजदीकियों में/३
सोचता हूँ अब उसे माँ से मिला दूँ
छुप के बैठी है जो कब से चिठ्ठियों में/४
वो अदाएं दिलवराना क़ातिलाना…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on January 4, 2014 at 9:00pm — 25 Comments
आज गहरे अंतस में
न जाने कैसी
अजीब सी
छाया बन रही है
लगातार जारी है
समझने की नाकाम कोशिश ....
मगर छाया नहीं सुलझती
दौड़ रहा हूँ ...
बीते हुये कल के
हर एक के जानिब को
शायद वो हो ...
नहीं वो नहीं है ...
अच्छा वो हो सकता है
मगर कहाँ भागूँ
कितना भागूँ ...
बहुत दूर आ चुका हूँ
वापस जाना मुमकीन नहीं हैं
अंतस में
छाया और गहरी
होती जा रही…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on January 4, 2014 at 7:30pm — 10 Comments
बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,
भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,
वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,
पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,
नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on January 4, 2014 at 4:12pm — 36 Comments
अंजान जिन्दगी से
उड़ती पतंगो की तरह
सोलह बसंत पार
चली साजन के घर
सजाये सपने प्यार के
चाहत के अरमान के
मगर तबाह हुई
जिन्दगी मेरी
उनके झूठ से
राम कृष्ण के वंशज
जमाना कर्जदार
बेटा परिवार का दिवाना
परदेश कमाता
परिवार का रखवाला
शर्मीला,शांत, सुशील
बड़े अरमान से पाला
सर्वगुण सम्पन्न है
क्या क्या सुनी कहानी
सपनो को मिली हवा
हकीकत हकीकत थी
ना छुट पायी…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on January 4, 2014 at 3:00pm — 13 Comments
उसका रुमाल …..
टप,टप
टप,टप
अंधेरी रात का
गहरा सन्नाटा
बारिश के बाद
पेड़ों से गिरती बूंदों के
जमीन पर गिरने की आवाजें
सन्नाटे को तोड़ने का
अनवरत प्रयास कर रही थीं
और साथ ही प्रयास कर रही थी वो
अनगिनित बारिशों में
भीगी रातों की भीगी यादें
कहर ढाती बारिश का
तूफ़ान तो रुक जाता है
लेकिन तबाही का मंजर
दूर तक साथ जाता है
जाने सावन…
Added by Sushil Sarna on January 4, 2014 at 12:30pm — 28 Comments
ला ला ल ला ल ला ला ल ला ला ला ला ल ला
महफ़िल तू आज फिर से सजाने की बात कर
हसरत जवा है पीने पिलाने की बात कर
चिलमन कहाँ से आया तेरे मेरे बीच में
चिलमन हटा ये नजरें मिलाने की बात कर
चिलमन हटा तो मुखड़े को घूंघट में यूं छुपा
गुल की कली न ऐसे जलाने की बात कर
जलवे जो तेरे पहली दफा देखे थे कभी
इक बार फिर वो जलवे दिखाने की बात कर
हाथों में हाथ तेरे हों बस इतनी आरजू
जन्मों की…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on January 4, 2014 at 10:00am — 25 Comments
जाग उठी सड़कें उन्हें बस सच बयानी चाहिए
कह दो संसद से न कोई लंतरानी चाहिए
देख तो ! मैं बिक गया उसकी वफ़ा के नाम पर
ऐ तिजारत ! अब तुझे नज़रें झुकानी चाहिए
मैं बना दूँ अपनी पेशानी पे सजदे की लकीर
तू बता तुझको दिलों पर हुक्मरानी चाहिए ?
धूप में जलना पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक
जिद है बच्चों की उन्हें कुछ जाफरानी चाहिए
प्यार है तो आ मेरे माथे पर अपना नाम लिख
जिक्र जब मेरा …
ContinueAdded by Arun Sri on January 4, 2014 at 10:00am — 23 Comments
जो ज़िंदगी का भी समर , जीत कर रुका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(१)
जो ज़िंदगी जिया कि
जैसे हो किराए का मकान
रहा तैयार हर समय
जो साँस का लिए सामान
सुखों की कोई चाह नहीं
दुखों में कोई आह नहीं
डगर डगर मिली थकन वो , मगर कभी थका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(२)
जो चल दिया तो चल दिया
जिसे नहीं सबर है कुछ
नदी है क्या पहाड़ क्या ,
नहीं जिसे ख़बर है कुछ
जो नींद से बिका नहीं
थकन…
Added by ajay sharma on January 4, 2014 at 12:00am — 13 Comments
भारत और रेल का जनरल डब्बा
भरी ठसी बोगी में अक्सर मेरा देश चला करता है,
जनरल के डब्बे में जीकर बचपन रोज पला करता है।
हो चाहे व्यवसाय दुग्ध का,
रोज रोज का ऑफिस…
ContinueAdded by Neeraj Dwivedi on January 3, 2014 at 11:00pm — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |