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सूरज

 

जब छाए मन में निराशा,

तब सोचो उस सूरज को,

जो रोज डूबता है पर,

उगता फिर नई सुबह है ।

 

नई ऊर्जा ,नए उत्साह से,

बाँटता है खुशी अपनी,

मिट जाए दुनिया का अंधकार,

प्रकाश इसीलिये फैलाता है ।

 

तेज आभा ,प्रसन्न मुख ,

मजबूती की शिक्षा देते हैं,

खड़े हो जाओ,डटकर के,

कर्म का पाठ पढ़ाता है ।

 

न हारो और न रुको कभी,

संघर्ष करो तुम लगातार ,

टिक पाये नहीं सामने कोई,

तेज ऐसा पाने को कहता है ।

 

बाँटो सिर्फ खुशी अपनी,

कष्ट छिपाने को कहता है,

दुःख सुख हैं सबके जीवन में,

स्वीकार करने को कहता है ।

 

सूरज का अंश हो तुम,

तेज अपना प्रकट करो,

हल्के हवा के झोंको से,

पत्ते की भाँति मत हिला करो ।

 

(मौलिक  और  अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by akhilesh mishra on February 14, 2014 at 6:40pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी,भंडारी जी,मुखर्जी मैडम,पाठक मैडम,श्याम नारायण वर्मा जी,प्राची सिंह मैडम , आप सभी का बहुत-बहुत आभार |प्राची सिंह मैडम, आपकी सलाह भविष्य के लेखन के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 13, 2014 at 6:02pm

आ० अखिलेश जी 

एक अरसे बाद आपकी प्रस्तुति मंच पर दीख रही है...

निराशा को दूर हटा हौसला रख आगे बढने का सन्देश देती आपकी रचना का कथ्य सुन्दर है प्रभावी है ..जिसके लिए आपक हृदयतल से बधाई ..

पर शिल्प !!!

शिल्प का क्या किया भाई जी? इस प्रस्तुति में गद्यात्मकता बहुत हावी लगी मुझे और तुकांतता पर भी बहुत ध्यान देने की ज़रुरत है.. सजग पाठन और सतत लेखन अभ्यास बहुत कुछ स्वतः ही साधता चलता है.

शुभेच्छाएं 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 11, 2014 at 7:33pm

सुन्दर और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 9:01pm

आदरणीय , सुन्दर सदेश देती आपकी रचना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by coontee mukerji on February 10, 2014 at 3:27pm

 

सूरज का अंश हो तुम,

तेज अपना प्रकट करो,

हल्के हवा के झोंको से,

पत्ते की भाँति मत हिला करो ।.....बहुत ही सुंदर विचार है. शुभकामनाएँ.

Comment by Meena Pathak on February 10, 2014 at 2:54pm

सुन्दर रचना .. बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on February 10, 2014 at 1:24pm
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ....

कृपया ध्यान दे...

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