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हर रास्ता दुश्वार होगा ( ग़ज़ल ) गिरिराज भन्डारी

2122    2122   2122  2122

गर यक़ीं ख़ुद पर नहीं हर रास्ता दुश्वार होगा

ख़्वाब मे भी फूल देखोगे वहाँ पर खार होगा

 

बात बाहर जब गई है तो कोई गद्दार  होगा

कल्पनाओं से ही तो छपता नही अखबार होगा

 

चौक में जो रात को चिल्ला रहा था बात सच्ची

आज लोगों ने कहा, पागल या बादाख़्वार होगा

 

जब सियासत खूब दंगों की यहाँ होने लगी है                             

अब किताबों की जगह बम हाथ मे स्वीकार होगा  

 

साफ तो करना ही होगा तुमको अपना आइना, तब

ख़्वाहिशें जब भी करोगे , हर समय दीदार होगा

                                                            

आज सुनता हूँ कि यारों वो सड़क पर मर गया कल

साल पैंसठ ख़्वाब देखा जो मेरा घर बार होगा

 

तुम जहाँ की सभ्यता से आज बचपन सींचते हो  

हर जवाँ में ज़ह्र होगा , मुल्क ये बीमार होगा

 

साहिलों पे बैठ के तूफाँ के किस्से क्या लिखोगे ?

अब लिखेगा वो ही जिसके हाथ मे पतवार होगा

*************************************

 बादाख़्वार = शराबी

*************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 23, 2014 at 10:34am

आदरणीया वन्दना जी , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिके से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 23, 2014 at 10:33am

आदरणीय सौरभ भाई ,आपकी सराहना ने मेरा हौसला दोगुना कर दिया है , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 23, 2014 at 10:31am

आदरणीया प्राची जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by vandana on March 23, 2014 at 6:55am

बात बाहर जब गई है तो कोई गद्दार  होगा

कल्पनाओं से ही तो छपता नही अखबार होगा

तुम जहाँ की सभ्यता से आज बचपन सींचते हो  

हर जवाँ में ज़ह्र होगा , मुल्क ये बीमार होगा

बहुत खूब आदरणीय बहुत बढ़िया ग़ज़ल 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 3:30am

जय जय ..

किस एक की बात करूँ, आदरणीय गिरिराजभाईजी ! सारे शेर ग़ज़ब की सचबयानी करते हुए सामने आते हैं. हालिया दौर पर आपकी बहुत ही सशक्त गज़ल से दो-चार हो रहा हूँ. हृदय से बधाई स्वीकार करें. इस ग़ज़ल को साझा करने के लिए धन्यवाद.

शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 10, 2014 at 10:36am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० गिरिराज भंडारी जी 

बात बाहर जब गई है तो कोई गद्दार  होगा

कल्पनाओं से ही तो छपता नही अखबार होगा........वाह! वाह! क्या शानदार बात कही है 

आज सुनता हूँ कि यारों वो सड़क पर मर गया कल

साल पैंसठ ख़्वाब देखा जो मेरा घर बार होगा............इसमें कहन कुछ स्पष्ट नहीं हुआ 

कई शेर बहुत पसंद आये 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 2:55pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , आपकी सराहना ने ग़ज़ल का मान बढ़ा दिया !! आपकी सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥ आपने सही कहा है , साहिलों पर या पे कहना चाहिये था , आपका बहुत शुक्रिया , मै सुधार कर लूंगा ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 2:50pm

आदरणीय बड़े भाई अखिलेश जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 5, 2014 at 11:41am

जब सियासत खूब दंगों की यहाँ होने लगी है                             

अब किताबों की जगह बम हाथ मे स्वीकार होगा  ----जबरदस्त शेर 

साहिलों मे बैठ के तूफाँ के किस्से क्या लिखोगे ?----बहुत सुन्दर शेर ,साहिलों पर कर लीजिये (किनारों/तटों  पर   होता है   ...नाकि किनारों में )

अब लिखेगा वो ही जिसके हाथ मे पतवार होगा

बहुत सुन्दर ग़ज़ल ....दाद कबूले आ० गिरिराज जी  

********

 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 4, 2014 at 10:44pm

छोटे भाई गिरिराज 

हार्दिक बधाई इस गज़ल पर।

साफ तो करना ही होगा तुमको अपना आइना, तब

ख़्वाहिशें जब भी करोगे , हर समय दीदार होगा......... बहुत सुंदर 

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