खुद ज़रा गर्दन झुकाकर रूबरू हम हो गए.
बंद करली आँख अपनी गुफ़्तगू में खो गए.
वस्ल की जो थी तमन्ना किस क़दर हावी हुयी.
ख्व़ाब में आयेंगे वो इस जुस्तजू में सो गए.
कौन जाने थी नज़र या वो बला जादूगरी.
देख मुझको बीज दिल में इश्क का वे बो…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 16, 2014 at 1:30pm — 16 Comments
नए ज़हनों को छूने दो अदब के अनछुए पहलू
इन्हे मीरास में उलझी हुई ज़न्जीर मत देना
लबों को सी लिया मैने,खुदा ये बस में था मेरे
जो आहें दिल से उठ जाएं उन्हें तासीर मत देना
नई है नस्ल नई जंगें नए हथियार भी होंगे
क़लम दो मुल्क के हाथों में अब शमशीर मत देना
मचल जाए ना मेरी रूह फिर दुनिया में आने को
जिया गुमनाम हूँ तो मौत को तशहीर मत देना
रहूँ मैं मुन्हसिर दीदार…
ContinueAdded by saalim sheikh on September 16, 2014 at 1:30pm — 13 Comments
चारसू आइने लगाना भी
और ख़ुद से नज़र चुराना भी
बैठकर साये में मेरे रहरौ
चाहता है मुझे गिराना भी
मेरी मौजूदगी भी नादीदा
सुर्ख़ियों में तेरा न आना भी
शौक आवारगी का किसको है
हो कहीं अपना आशियाना भी
बस्तियों को उजाड़ने वालों
सीख लो बस्तियाँ बसाना भी
हो गया एक जंग के जैसा
आजकल रोटियाँ जुटाना भी
आज ‘खुरशीद’ बालता है दिल
साथ देगा कभी ज़माना भी
मौलिक व…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 16, 2014 at 10:30am — 5 Comments
घर-चमन में झिलमिलाती, रोशनी तुमसे पिता
ज़िंदगी में हमने पाई, हर खुशी तुमसे पिता
छत्र-छाया में तुम्हारी, हम पले, खेले, बढ़े
इस अँगन में प्रेम की, गंगा बही तुमसे पिता
गर्व से चलना सिखाया, तुमने उँगली थामकर
ज़िंदगी पल-पल पुलक से, है भरी तुमसे पिता
याद हैं बचपन की बातें, जागती रातें मृदुल
ज्ञान की हर बात जब, हमने सुनी तुमसे पिता
प्रेरणा भयमुक्त जीवन की, सदा हमको मिली
नित नया उत्साह भरती, हर घड़ी…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on September 15, 2014 at 9:30pm — 10 Comments
" भाई! रामौतार.. यह साल तो खेती के हिसाब से बहुत ही बढ़िया रहा. काश! ऐसा हर साल ही होता रहे " दिनेश ने अपनी हथेली पर तंबाकू मे चूना लगाकर , रगड़ते हुए कहा
" हाँ भाई! दिनेश.. सच इस बार, हर साल की तुलना मे अतिवृष्टि से थोड़ी कम फसल ज़रूर हुई लेकिन लोक-सभा और विधान- सभा चुनाव के रहते सरकारों ने खूब मुआवज़ा भी दिया और फसल बीमा को भी मंज़ूरी दिलवाई , तो देखो न! दोगुने से भी ज्यादा बचत हो गई " रामौतार ने दिनेश की हथेली पर से मली हुई तंबाकू अपने मुंह में दबाते हुए…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2014 at 8:30pm — 12 Comments
Added by seemahari sharma on September 15, 2014 at 7:00pm — 14 Comments
आदमी खुद को बनाता आदमी है आदतन
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२१२२ २१२२ २१२२ २१२
आदमी में जानवर भी जी रहा है फ़ित्रतन
आदमी में आदमी को देखना है इक चलन
साजिशें रचतीं रहीं हैं चुपके चुपके बदलियाँ
सूर्य को ढकना कभी मुमकिन हुआ क्या दफअतन ?
पर ज़रा तो खोलने का वक़्त दे, ऐ वक़्त तू
फिर मेरी परवाज़ होगी और ये नीला गगन
बाज, चुहिया खा …
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 15, 2014 at 4:30pm — 28 Comments
धन प्रभुता ना मिले विद्वान् जो ना हो साथ |
कर्म यज्ञ में दे आहुति विद्वान् ही का हाथ ||
विद्वता का उपयोग कर धनवान धन कमाए|
विद्वान् इस राह चले तो धनी निर्धन बन जाए||
धनवान को वाहन मिले संग्रह करके धन |
विद्वान वाहन में घूमे निग्रह करके मन ||
धन की करे चौकीदारी हर रात धनवान |
ज्ञान का सृजन करे हर रात विद्वान् ||
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 15, 2014 at 11:30am — 5 Comments
संताप और क्षोभ
इनके मध्य नैराश्य की नदी बहती है, जिसका पानी लाल है.
जगत-व्यवहार उग आये द्वीपों-सा अपनी उपस्थिति जताते हैं
यही तो इस नदी की हताशा है
कि, वह बहुत गहरी नहीं बही अभी
या, नहीं हो पायी…
Added by Saurabh Pandey on September 15, 2014 at 3:00am — 41 Comments
1-
संस्कार होंगे
राम राज्य के स्वप्न
साकार होंगे !
2-
बेच ज़मीर
बनता है तब ही
कोई अमीर !
3-
स्वतंत्र हुए
बगल के नासूर
हैं पाले हुए !
4-
है नारी वो क्या
न सिर पे पल्लू न
आँखों में हया !
5-
क्या नाजायज
सत्ता, युद्ध, प्रेम में
सब जायज !
*मौलिक एवं अप्रकाशित*
Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 14, 2014 at 10:51pm — 4 Comments
कांटे जो मेरी राह में बोये बहार ने
छूकर बना दिया है उन्हें फूल यार ने
यारी है तबस्सुम से करी अश्क-बार ने
कुछ तो असर किया है खिजाँ की फुहार ने…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on September 14, 2014 at 10:00pm — 18 Comments
२१२२ २१२२ २1२२
जब भी सागर बनने इक दरिया चला है
पत्थरों को राह के हरदम खला है
जूझते दरिया पे जो कसते थे ताने
आज जलवे देख हाथों को मला है
यूं नहीं बढ़ता है कोई जिन्दगी में
बढ़ने वाला रात दिन हरदम चला है
अपने ही हाथों से रोका था हवा को
तब कहीं ये दीप आंधी में जला है
दोस्तों जिस को गले हमने लगाया
बस रहा अफ़सोस उसने ही छला है
मौलिक व…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2014 at 4:00pm — 14 Comments
कुण्डलिया छंद (हिंदी दिवस पर विशेष)
हिंदी निज व्यवहार में, भरती मधुर सुगंध,
देवनागरी में मिले, संस्कृति की चिरगंध |
संस्कृति की नवगंध, और सुगन्ध सी वाणी
सीखे नैतिक मूल्य, पढ़े जो हिंदी प्राणी ||
लक्ष्मण कर सम्मान, सजे माथे जो बिंदी
करती रहे प्रकाश, सरस यह भाषा हिंदी ||
(2)
आता है हिन्दी दिवस, जाने को तत्काल
अपनी भाषा का सदा उन्नत रखना भाल |
उन्नत रखना भाल,करे विकास तब भाषा
हिंदी में हो बात, रहे क्यों भाव…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2014 at 3:55pm — 5 Comments
Added by Neeraj Nishchal on September 14, 2014 at 1:42am — 17 Comments
Added by seemahari sharma on September 14, 2014 at 1:35am — 2 Comments
नफ़रतों का जवाब मैं रक्खूं
ख़ार तू रख गुलाब मैं रक्खूं
बीत जाये इसी में उम्र तमाम
ज़ख्मों का गर हिसाब मैं रक्खूं
मै ग़मों की रवाँ है रग रग में
होश कैसे जनाब मैं रक्खूं
सामने तेरे बेहिजाब हुआ
क्या बुतों से हिजाब मैं रक्खूं
दर्दे-उल्फ़त पलेगा क्या मुझसे
क्यूं कफ़स में उक़ाब मैं रक्खूं
शमा सी वो पिघलती है हर शब
कब सिरहाने किताब मैं रक्खूं
पेट में भूख का शरारा …
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 13, 2014 at 10:00pm — 5 Comments
हिन्दी दिवस पर विशेष
माँ तुझको याद नहीं करते तू तो धमनी में है बहती I
तू ह्रदय नही इस काया की रोमावली प्रति में है रहती I
अपने ही पुत्रो से सुनकर भाषा विदेश की है सहती I
पर माते ! धन्य नहीं मुख से कोई भी अपने दुःख कहती I
होते कुपुत्र भी इस जग में पर माता उन्हें क्षमा करती I
सुंदरता और असुंदर को जैसे धारण करती धरती I
जो सेवा-रत अथवा …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 13, 2014 at 8:44pm — 6 Comments
माँ के माथे की बिन्दी
गोल बड़ी सी बिन्दी
माथे पर कान्ति बन
खिलती है बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
सजाती सवाँरती
पहचान बनाती बिन्दी
मान सम्मान
आस्था है बिन्दी
शीतल सहज सरल
कुछ कहती सी बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
थकान मिटा,उर्जा बन
मुस्काती बिन्दी
पावन पवित्र सतित्व की
साक्षी है बिन्दी
परंपरा संस्कारों का
आधार है बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
अपनी हिन्दी भी…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on September 12, 2014 at 6:30pm — 5 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
हो रहा है मुझे ये वहम देखिये
आज क़ातिल की भी आँख नम देखिये
आधुनिकता के ऐसे नशे में हैं गुम
नौजवानों के बहके क़दम देखिये
पसरा है नूर सा कमरे में हर तरफ
आये हैं घर पे मेरे सनम देखिये
शहर लगता है शमशान सा इन दिनों
आस्तीनों में किसके है बम देखिये
नाम तेरा लिखा था मैंने इक ही बार
महके उस रोज से ही क़लम देखिये
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on September 12, 2014 at 8:27am — 11 Comments
आज फिर लड़खड़ाते कदमों से
गिरने की कोशिश की
यह लालच संजोये हुए कि
आप आ जाओगे
फिर से मुझे चलना सिखाने को
मेरी अंगुली पकड़ के
मुझे गिरने नहीं दोगे...
काश आपकी पदचाप फिर सुन पाता,
या काश, मेरे क़दमों को गिरते हुए
आपकी आदत ना होती..
साथ थे आप तो पैर अल्हड़ थे
घिसटते कदम थे चाल बेताल थी..
विश्वास था फिर भी ना गिरने का
आज आपकी याद है...
पैर तने हैं, कदम सधे हैं
चाल भी सीधी…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 11, 2014 at 9:00pm — 6 Comments
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