कल कल कल कल नदियाँ बहती, झरने गीत सुनाते हैं,
तरु शाखाओं पर छिपकर खग, पंचम सुर में गाते हैं.
गिरि, नद, जंगल, अवनि, पशु सब, सृष्टि के अनमोल रतन,
मानव सबसे बुद्धि शील बन, अपनी राह बनाते हैं.
नदियों की धारा को रोकी, शिखरों को भी ध्वस्त किया,
काटके जंगल, भवन बनाते, अब क्यों वे पछताते हैं.
सीख नहीं कुछ लेते मानव, प्रकृति सब कुछ देख रही,
कभी केदार, कभी कश्मीर में, मानव ही दुःख पाते हैं.
सेना सीमा की रक्षक है, आपद में करती…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on September 11, 2014 at 5:27pm — 10 Comments
काशी की दुनिया हो
या काबा की बस्ती हो
यूँ ही न उजड़े चाहे
फ़कीर बाबा की बस्ती हो।।
साहिल से बिछड़ी हुई
मुक़ाम-ए-पास हो जाए
लहरों में फँसती चाहे
केवट की कश्ती हो।।
शोहरत की मस्ती हो
या माले की हस्ती हो
यूँ ही न टूटे कोई चाहे
मुफ़लिसी में घरबां गिरस्ती हो।।
मातहतों की मस्ती…
Added by anand murthy on September 11, 2014 at 4:00pm — 8 Comments
कौआ एक बार फिर प्यासा था। बहुत ढूंढने पर उसे फिर एक घड़े में थोड़ा सा पानी दिखाई दिया। एक बार फिर उसने पास पड़े कंकड़-पत्थर उठा उसमें डाले और जैसे ही पानी उसकी पहुँच तक आया तभी कुछ ताकतवर कौऐ एक झुंड में उस पर टूट पड़े और उसे वहां से खदेड़ कर उस पानी पर कब्जा कर लिया। बेचारा प्यासा कौआ एक बार फिर से पानी की तलाश में जुट गया।
.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Ravi Prabhakar on September 11, 2014 at 12:00pm — 8 Comments
हमें भी जिन्दगी से प्यार हो जाता।।।
हमारे प्यार मे गर कोई खो जाता
शिकायत भी नहीं उनसे दोष मेरा है
निभाते प्यार गर हम तो न वो जाता
तड़पता ही रहूँगा रात भर क्या मैं
मिलन की अास गर भी होती सो जाता
न पाये रूह उसकी चैन जन्नत में
दिखा सपने सुहाने छोड़ जो जाता
बहे जो आज नफरत की हवा जग में
मिटा मैं काश नफरत प्यार बो जाता
मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी
Added by Akhand Gahmari on September 11, 2014 at 3:45am — 5 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 10, 2014 at 7:07pm — 11 Comments
तेरी मेरी बात पर फँस जाता इन्सान,
धन दौलत को देखकर, खो देता ईमान |
अग्नि परीक्षा दे रही कितनी सीता आज,
दुष्ट दुशासन लूटते, नित श्यामा की लाज |
रिश्ते नातो में भरो मधुर प्रेम का सार
प्यार भरे व्यवहार से मिटते कष्ट हजार |
संस्कारी परिवार में, बच्चें ही जागीर,
ह्रदय प्रेम उमड़े सदा, दिल से रहे अमीर |
भावुकता वरदान हो, समझे मन की पीर,
गलत काम का खौफ हो, खुशियों में हो सीर |
(मौलिक व…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 10, 2014 at 6:00pm — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 10, 2014 at 4:13pm — 12 Comments
१.
देश की शान है अपनी हिंदी
फिर भी हल्कान है अपनी हिंदी
एक डोरी से जुड़ जाए भारत
एक अभियान है अपनी हिंदी
घर में अपने ही होकर पराई
आज हैरान है अपनी हिंदी
अपना सिर क्यूं झुके जग में यारों
अपना अभिमान है अपनी हिंदी
सारी दुनिया में फहराया परचम
हिन्द की आन है अपनी हिंदी
हिंदी से हैं सभी हिन्दवासी
अपनी पहचान है अपनी हिंदी
जितना सीधा सरल मन है…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 10, 2014 at 1:30pm — 6 Comments
मौत का सघन साया
अनुभूति बनकर आया
मेरे अंतिम क्षणों में I
*
यह आत्मीयता प्रदर्शन
करुणा का कलित क्रंदन
चीत्कार आर्त्त रोदन
या नाट्य अभिनय मंचन
.
इसे देख जी में आया
छोडूं न अभी काया
मेरे अंतिम क्षणों में I
*
सर्वांग व्यथित परिजन
सूने उदास से मन
इतना असीम कम्पन
तब था न जब था जीवन
.
यह मोह है या माया
कुछ कुछ समझ में आया
मेरे अंतिम क्षणों में…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 10, 2014 at 1:30pm — 23 Comments
शहरों की भीड़ भाड़ में
बस आदमी ही आदमी।
चलता ही जा रहा है
थकता नहीं है आदमी।
वाहनों की दौड़ भाग से
नहीं इसे परहेज
न है इसे प्रतिद्वंद्विता
न द्वेष रखता है सहेज
इसका तो अपना ध्येय है
पीढ़ियों से अपराजेय है
फिर भी देवताओं सा
लगता नहीं है आदमी।
इसकी अभिलाषाओं का
अभी न अंत होना है
अभी न तृप्त होगा यह
अभी न संत होना है
अभी इसे विकास के
सोपानों पर चढ़ना है…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 10, 2014 at 9:40am — 1 Comment
देर हो रही है
जागो-जागो
आओ रे भगाओ रे भेडिए
इधर व्यवस्था के पालने में
सोया हे प्रजातंत्र
और सत्ता के गलियारे तक…
Added by rawal rajesh on September 9, 2014 at 11:00pm — 2 Comments
भारतीय या किसी अन्य देश व प्रांत की भाषा,संस्कृति,धर्म व जीवन शैली वंहा की अपनी मौलिक व प्राकृतिक होती है । जिसका स्वतः विकास होना अति आवश्यक होता है। परंतु अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा दूसरे राज्य,संस्कृति,धर्म,पर अनावश्यक दबाव मानवीय मूल्यों को क्षति तो पहुंचाता है साथ ही अनैतिक है। किसी भी सच्चे अर्थों में जो मानव होते हैं उन्हें यह अनैतिक दबाव सहन नहीं होता , जिसके कारण मानव आपस में लडते हैं और मानवीय मूल्यों का ह्रास होता है। सच्चे अर्थों में मानव के लिये ऐसा कार्य निंदनीय होता है। भारतीय…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 8, 2014 at 10:27pm — No Comments
हौंठ सीं गर्दन हिलाना आ गया.
दोस्त ! जीने का बहाना आ गया.
जिन्दगी में गम मुझे इतने मिले,
अश्क पीकर.. मुस्कुराना आ गया.
ख्वाब सब आधे अधूरे रह गए,
दर्द सीने में ...बसाना आ गया.
दर्द के किस्से सुनाऊँ किस तरह,
गीत गज़लें गुनगुनाना आ गया.
साथ रहने का असर भी देखिये,
आप से बातें छिपाना आ गया.
हादसों ने पाल रख्खा है मुझे.
मौत से बचना बचाना आ…
Added by harivallabh sharma on September 8, 2014 at 9:10pm — 18 Comments
Added by Poonam Shukla on September 8, 2014 at 8:24pm — 8 Comments
“ शाम ढले परबत को हमने सौंपे बंदनवार नए “
22 22 22 22 22 22 22 2
लगे कमाने जब भी बच्चे बना लिए घर बार नए
मगर बुढ़ापे को क्या देंगे उस घर में अधिकार नए ?
आयातित हो गयी सभ्यता पच्छिम, उत्तर, दच्छिन की
बे समझे बूझे ले आये घर घर में त्यौहार नए
हाय बाय के अब प्रेमी सब, नमस्कार पिछडापन है
परम्पराएं आज पुरानी खोज रहीं स्वीकार नए
पत्ते - डाली ही काटे हैं , जड़ें वहीं की वहीं रहीं
इसी लिए तो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 8, 2014 at 6:30pm — 25 Comments
बन के अजनबी वो अक्सर मेरे दर से गुजरते हैं
फ़कत दीदार को खुद को रस्तों से जोड़ रक्खा हैं
दिल की दरियादिली दर्पण-सी सच्ची देखकर
घर के आईनों में तेरी तस्वीर को जोड़ रक्खा हैं
हकीकत की सतह से उस चाँद को देख रक्खा है..
खुदा के उस हसीं अजूबे से नाता जोड़ रक्खा है
कहने को तो उन्होने बहुत कुछ छोड़ रक्खा है...
चाहत की चिट्ठी को लिफाफों में मोड़ रक्खा है..
हवाओं के सहारे खुशबू कुछ इस तरफ़ आयी....
मैंने भी तेज नजरो…
ContinueAdded by anand murthy on September 8, 2014 at 6:00pm — 2 Comments
2122 2122 2122 2122
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हौसला देते न जो ये पाँव के छाले सफर में
हर सफर घबरा के यारो, छोड़ आते हम अधर में
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एक भटकन है जो सबको, न्योत लाती है यहाँ तक
कौन आता है स्वयं ही, यार दुख के इस नगर में
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एक वो है पालती जो, काजलों के साथ आँसू
कौन रख पाता भला अब, सौतने दो एक घर में
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आशिकी की इंतहाँ ये, खुदकुशी का शौक मत कह
हॅसते-हॅसते डाल दी जो किश्तियाँ उसने भवर में
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खो गया चंचलपना सब,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2014 at 12:00pm — 8 Comments
हमारे दर्द को दुनियाँ तमाशो में न गा जाये
बजा ताली सभी झूमें हमारा दर्द भा जाये
न आये है किनारे पर अभी ठहरा समुन्दर है।
बड़ी खामोश लहरे हैं कहीं तूफाँ न आ जाये।।
सहेगें जुल्म अब कितना बड़ा जालिम हुआ हाकिम।
पड़ी थी लाश सड़को पे कफन वो बेच खा जाये।।
सभालो अब वतन अपना तबाही का दिखे मंजर
घरों में आज खुशियाँ है कहीं मातम न छा जाये
जला कर आस का दीपक न जाओ छोड़ कर हमको '
कुचलने का हमारा सिर न दुश्मन मौका पा जाये
मौलिक…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on September 8, 2014 at 11:00am — 11 Comments
सर दाँव पे लगा के अब खेल खेल देखें ।
अपना नसीब देखें, उनकी गुलेल देखें ।
शायद उठे भड़क ही कोई दबी चिंगारी
चल राख हौसलों की परतें उधेल देखें ।
चेहरे सफ़ेद सबको कमज़ोर कर रहे हैं
इन बूढ़े नायकों को पीछे धकेल देखें ।
उद्दंड अश्व खाईं की ओर जा रहे हैं
हाथों में अपने लेकर इनकी नकेल देखें ।।
क्या सूखते दरख्तों का हाल पूछते हैं
हर ओर सर उठाये है अमरबेल देखें ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sulabh Agnihotri on September 7, 2014 at 6:00pm — 11 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
ख्वाब जब दिल में हसीं पलने लगे है
अजनबी दो साथ में चलने लगे हैं
इश्क कोई अनबुझी सी है पहेली
जब हुआ सावन में तन जलने लगे हैं
वक़्त के अंदाज बदले यूं समझ लो
हुश्न आते पल्लू भी ढलने लगे हैं
आप के शानो पे सर रखते कसम से
लम्हे मेरी मौत के टलने लगे हैं
जिस घड़ी ओंठो को गुल के चूम बैठा
उस घड़ी से भौरों को खलने लगे हैं
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Mishra on September 7, 2014 at 4:30pm — 11 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
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2010
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