आज पूरे दो वर्ष बाद बेटा घर आया था, माँ कि पथराई आँखों में जैसे खुशियों का शैलाब उमड़ पड़ा हो। रमेश अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था। शादी होने के बाद पत्नी को लेकर शहर में ही रहने लगा था। घर पर पैसा बराबर भेजता रहता था, पर पैसो में वो आत्मसुख कहा जो अपने आँख के तारे के पास होने में है। दो दिन किसी तरह रहने के बाद ही वह वापस जाने की जिद करने लगा। नौकरी छोड़ के आया हूँ, बीबी अकेली है, छुट्टी कम ही मिली है, फिर जल्दी ही आ जाऊँगा, तमाम बहाने बनाने लगा। माँ बाप भी बेबस थें, बेचारे क्या करतें,…
ContinueAdded by Pawan Kumar on September 4, 2014 at 5:00pm — 13 Comments
२१२२/११२२/22 (११२)
.
यूँ वफ़ाओं का सिला मिलता रहा,
ज़ख्म हर बार नया मिलता रहा.
.
एक छोटी सी मुहब्बत का गुनाह,
और इल्ज़ाम बड़ा मिलता रहा.
.
मै तुझे दोस्त मेरा कैसे कहूँ,
तू भी तो बन के ख़ुदा मिलता रहा..
.
कोई मंज़िल न मिली मंज़िल पर,
सिर्फ मंज़िल का पता मिलता रहा.
.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on September 4, 2014 at 4:30pm — 27 Comments
1-
मोबाइल की क्रांति से, सम्मोहित जग आज।
वैसी ही इक क्रांति की, बहुत जरूरत आज।
बहुत जरूरत आज, देश समवेत खिलेगा।
कितनी है परवाज, तभी संकेत मिलेगा।
आए वैसा दौर, अब हिन्दी की क्रांति से।
आया जैसे दौर, मोबाइल की क्रांति से।…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 4, 2014 at 3:00pm — No Comments
समस्त गुरुओं को सादर प्रणाम के साथ
2122 2122 2122 22/112
रास्ता रब का हमें जिसने दिखाया यारों
कह गुरु उसको है सर हमने झुकाया यारों
ज्ञान दीपक से किया जिसने जहाँ को रोशन
फन भी जीने का हमें उसने सिखाया यारों
भेद मजहब में कभी उसने किया ही है नहीं
पाठ उल्फत का ही कौमों को पढ़ाया यारों
नाम चाहे हो जुदा सब का है मालिक इक ही
गूढ़ बातों को सहज उसने बताया यारों
हाथ अन्दर से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 4, 2014 at 12:46pm — 12 Comments
1-मेरी अधूरी कहानी
बस इतनी सी है,
मैं ढूढता रहा
वो मिला ही नही।
2-बंद आँखों से
सिर्फ वो नजर आता है,
एकदम खुशनुमा,
सुबह की पहली किरण की तरह।
3-प्यार में उससे,
सबकुछ मिला,
सिर्फ
प्यार के सिवा।
4-तुम्हे
याद करना,
पास होने जैसा ही तो है,
फर्क बस इतना है कि,
यादों में तुम साथ होते हो,
और पास होने पर दूरी बनी रहती है।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Pawan Kumar on September 4, 2014 at 11:00am — 1 Comment
मिलन
.
क्या मिलन परिणाम यही है ?
.
संध्या मिलन के हित वासर
निज अस्तित्व को खो देता
नद नदी में ,नदी उदधि में
मिल खोते स्वनाम सभी हैं |
क्या मिलन परिणाम यही है ?
.
जब जब मिले धनुष से तीर
पलटे वो खाकर दुत्कार
लक्ष्य से मिल जाये यदि तो
करता घायल प्राण यही है |
क्या मिलन परिणाम यही है ?
.
क्षिति मिलन के हित से अम्बर
झुकने पर बाध्य नित्य हुआ
दिशा मिलन की असीम दौड़
कि दौड़ा पवमान नहीं है ||
क्या मिलन परिणाम…
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on September 4, 2014 at 7:47am — 1 Comment
अब खतरनाक हो गया बादल
या कहें बेलगाम है पागल
कोई तो इन्द्र को ये समझाये,
कर रहा है किसान को घायल
आसमाँ ने कहा शराबी है,
मेघ नाचे है बाँध कर पायल
ओ रे मूर्ख खडी फ़सल को देख,
बालियों में है धूधिया चावल
गडगडाहट करे, डराये है,
बिजलियाँ हो रही तेरी कायल
.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on September 4, 2014 at 12:00am — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 3, 2014 at 8:50pm — 8 Comments
अपने ही घर में दासी हिंदी
हिंदी धीरे- धीरे समृद्ध हुई और फली फूली है। संस्कृत के सरल शब्दों, क्षेत्रीय बोलियाँ / भाषाओं को लेकर आगे बढ़ी, पवित्र गंगा की तरह लगातार कठिनाईयों को पार करते हुए । उर्दू , अरबी, फारसी आदि भी छोटी नदियों की तरह इसमें शामिल होती गईं जिससे हिंदी और मधुर हो गई। आज हिंदी के पास विश्व की किसी भी भाषा से अधिक शब्द हैं। लेकिन आजादी के बाद से सरकार की नीति से हिंदी निरंतर उपेक्षित होती गई। हिंदी के शब्द कोष में…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 3, 2014 at 8:30pm — 10 Comments
1222/1222/122
खुदा से पूछता ये बात कब तक।
कि सुधरेंगे मिरे हालात कब तक।।
मैं शर्मा हूँ कि वर्मा हूँ कि क्या हूँ
भला पूछोगे मेरी ज़ात कब तक।।
ज़माने कम से कम ये तो बता दे।
मुझे मिलती रहेगी मात कब तक।।
उजालों से हमेशा पूछता हूँ।
रहेगी ये अँधेरी रात कब तक।।
मेरे आकाश से होती रहेगी।
सुनो तेज़ाब की बरसात कब तक।।
वो देखेगा मुझे मुड कर कभी क्या।
वो समझेगा मिरे जज़्बात कब…
ContinueAdded by Ketan Kamaal on September 3, 2014 at 7:30pm — 17 Comments
2222 2222 2222 222
*******************************
रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों को मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं
***
अपना हो या बेगाना हो सुख में ही अपना होता
जब भी मिलना हॅसके मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
चाहे भाये कुछ पल लेकिन आगे चलकर दुख देगा
उम्मीदों से जादा मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
***
दुख से सुख का सुख से दुख का मौसम जैसा नाता है
हर मौसम को अपना कहना सच कहता हूँ यारो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2014 at 12:00pm — 13 Comments
जन निनाद से ही
मंजिल तय हो
निश्चय ही।
विश्वभाषाओं संग हो
हिंदी निश्चय ही।
हिन्दी विश्वपटल पर चर्चित
पर्व मनायें
अब समवेत स्वरों में
गौरवगाथा…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 3, 2014 at 8:41am — 6 Comments
रदीफ़- रही
काफ़िया -चलती , ढलती
अर्कान -२१२२,२१२२,२१२२,२१२
दायरों में ही सिमट कर जिंदगी ढलती रही
तुम फलक थे मैं जमीं औ कश्मकश चलती रही।
मायने थे रौशनी के रात भर उनके लिये
लौ दिये की थरथराती ताक में जलती रही।
दे रहा दाता मुझे खुशियाँ हमेशा बेशुमार
फिर कमी किस बात की जाने हमें खलती रही।
ज़िद ज़माने को दिखाने की रही थी बेवजह
जानि - पहिचानी मुसीबत कोख में पलती रही।
हौसला रखकर फ़तह का जंग हम…
ContinueAdded by dr lalit mohan pant on September 3, 2014 at 1:30am — 9 Comments
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम....
जैसा लिखते हैं वैसा उच्चारण,
इसलिये हिन्दी को करें धारण
विश्व को आओ सच बतायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम.....
सभ्यता लिप्त हिन्दी भाषा में
एक इतिहास जिसकी गाथा में
अपनी गाथायें मत भुलायें हम...
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम.....
संस्कृत रक्त में समायी है
देव भाषा वही बनायी है
अपने सम्मान को बढायें हम..
आओ हिन्दी पढें…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 2, 2014 at 11:00pm — 12 Comments
बस सबको पीछे छोड़ रही थी, बिलकुल सरपट दौड़ रही थी।
कीर्तिमान कई तोड़ रही थी, दोनों में लग होड़ रही थी।
चालक- परिचालक दोनों में
बस के चारों ही कोनों में
मची हुई होड़ा-होड़ी थी
सब्र सभी ने छोड़ी थी
इंद्रजाल का पाश पड़ा था
या फिर कोई नशा चढ़ा था
जिसने एक झलक भी पा ली
रह गया ठिठक कर वहीँ खड़ा था
कसी हुई थी जींस कमर पर, थी कुर्ती ढीली-ढाली।
जिसमे छलक-छलक जाती थी,यौवन-मदिरा की प्याली।
हर एक कंठ में प्यास जगी, कुछ ऐसी बनी कहानी। …
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on September 2, 2014 at 10:00pm — 2 Comments
हैं अनेकों धर्म भाषा, ...एक हिंदुस्तान है l
मातृभाषा हिन्द की, हिंदी हमारी जान है ll
--
देश की संस्कृति रिवाजों पर हमें भी गर्व हो l
भारती की शान हिंदी, . विश्व में पहचान है ll
--
नृत्य शंभू ने किया, डमरू बजा, ॐ नाद का l
देववाणी के सृजन से ..विश्व का कल्यान है ll
--
पाणिनी ने दी व्यवस्था व्याकरण की विश्व को l
हम सनातन छंद रचते ...गीत लय मय गान है ll
--
सूर तुलसी जायसी, ......भूषण कवि केशव हुए l
चंद मीरा पन्त दिनकर, काव्य मय…
Added by harivallabh sharma on September 2, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
संस्कृत बृज अवधी
से सुवासित,
मैं हिंदी हूँ हिन्द
की शान।
बीते सात दशक
आजादी,
अब तक क्यों ना
मिली पहचान।
दुनियाँ के सारे
देशों में,
मातृभाषा का प्रथम
स्थान।
उर्दू, आंग्ल, फ़ारसी
सबको,
आत्मसात कर दिया
है मान।
हिंदी दिवस मनाता
अब भी,
मेरा लाडला हिन्दुस्तान
बीते सात दशक......
मैं हूँ स्वामिनी अपने
घर की,
भाषा पराई करती
राज।
लज्जा आती मुझे
बोलकर,
इंगलिश…
Added by seemahari sharma on September 2, 2014 at 3:30pm — 11 Comments
अमृता प्रीतम जी ... दर्द की दर्द से पहचान
स्मृतियों की धूल का बढ़ता बवन्डर ... पर उस बवन्डर में कुछ भी वीरान नहीं। कण-कण परस्पर जुड़ा-जुड़ा, कण-कण पहचाना-सा। प्रत्येक स्मृति से जुड़ी सुखद अनुभूति, बीते पलों को जीवित रखती उनको बहुत पास ले आती है, अमृता जी को बहुत पास ले आती है...कि जैसे बीते पल बारिश की बूंदों में घुले, भीगी ठँडी हवा में तैरते, लौट आते हैं, आँखों को नम कर जाते हैं...
आज ३१ अगस्त ... मेरी परम प्रिय अमृता जी का पुण्य जन्म-दिवस ... वह…
ContinueAdded by vijay nikore on September 1, 2014 at 5:00pm — 10 Comments
अच्छा ही करते हैं
कितना भी अपना हो
खून का हो या अपनाया हो प्यार से
मर जाने पर जला देते हैं
मुर्दा शरीर
न जलाएं तो सड़ने का डर बना रहता है
फिर इन्फेक्शन , बीमारी का भय
ज़िंदा लोगों के लिए खतरा ही तो है , किसी का मुर्दा शरीर
और फिर भूलने में भी सहायता मिलती है
कब तक याद करें
कब तक रोयें
जीतों को तो जीना ही है
अच्छा ही करते हैं जला के
कुछ रिश्ते भी तो मुर्दा हो जाते हैं / सकते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 1, 2014 at 4:30pm — 20 Comments
विक्रमादित्य ने वेताल को पेड़ से उतार कर कंधे पर लादा और चल पड़ा। वेताल ने कहा-‘राजा तुम बहुत बुद्धिमान् हो। व्यर्थ में बात नहीं करते। जब भी बोलते हो सार्थक बोलते हो। मैं तुम्हें देश के आज के हालात पर एक कहानी सुनाता हूँ।
विक्रमादित्य ने हुँकार भरी।
वेताल बोला- ‘देश भ्रष्टाचार के गर्त में जा रहा है। भ्रष्टाचार की परत दर परत खुल रही हैं। बोफोर्स सौदा, चारा घोटाला, मंत्रियों द्वारा अपने पारिवारिक सदस्यों के नाम जमीनों की खरीद फरोख्त, राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की वोट…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 1, 2014 at 3:00pm — No Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |