For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,927)

यह जीवन महावटवृक्ष है

यह जीवन महावटवृक्ष है।

सोलह संस्‍कारों से संतृप्‍त

सोलह शृंगारों से अभिभूत है

देवता भी जिसके लिए लालायित

धरा पर यह वह कल्‍पवृक्ष है।

यह जीवन महावटवृक्ष है।।

सुख-दु:ख के हरित पीत पत्र

आशा का संदेश लिए पुष्‍प पत्र

माया-मोह का जटाजूट यत्र-तत्र

लोक-लाज, मर्यादा,

कुटुम्‍ब, कर्तव्‍य, कर्म,

आतिथ्‍य, जीवन-मरण

अपने-पराये, सान्निध्‍य, संत समागम,

भूत-भविष्‍य में लिपटी आकांक्षा,

जिस में छिपा…

Continue

Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 26, 2014 at 8:00am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दर सारे दीवार हो गए ( गीत ) गिरिराज भंडारी

दर सारे दीवार हो गए

**********************

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गये

 

भौतिकता की अति चाहत में

सब सिमटे अपने अपने में

खिंची लकीरें हर आँगन में  

हर घर देखो , चार हो गये

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गए

 

पुत्र कमाता है विदेश में

पुत्री तो ससुराल हो गयी

सब तन्हा कोने कोने में

तनहा सब त्यौहार हो गए

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 25, 2014 at 8:30pm — 34 Comments

बस बात करें हम हिन्‍दी की

बस बात करें हम हिन्‍दी की।

न चंद्रबिन्‍दु और बिन्‍दी की।

ना बहसें, तर्क, दलीलें दें,

हम हिन्‍दुस्‍तानी, हिन्‍दी की।।

हों घर-घर बातें हिन्‍दी की।

ना हिन्‍दू-मुस्लिम-सिन्‍धी की।

बस सर्वोपरि सम्‍मान करें,

हम हिन्‍दुस्‍तानी, हिन्‍दी की।।

पथ-पथ प्रख्‍याति हो हिन्‍दी की।

ना जात-पाँत हो हिन्‍दी की।

बस जन जाग्रति का यज्ञ करें,

हम हिन्‍दुस्‍तानी, हिन्‍दी की।

एक धर्म संस्‍कृति हिन्‍दी…

Continue

Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 25, 2014 at 7:44pm — 6 Comments

...गुनगुनाने दो पीर को...

गुनगुनाने दो पीर को...



गुनगुनाने ..दो पीर को

प्यासे अधर अधीर को

नयनों के .इस नीर को

मधुर स्मृति समीर को

हाँ , गुनगुनाने दो पीर को ….



रांझे की …उस हीर को

भूखे ..इक ..फकीर को

मरते .हुए …जमीर को

प्यासे नदी के .तीर को

हाँ , गुनगुनाने दो पीर को ….



घायल नारी के चीर को

पंछी के बिखरे नीड़ को

शलभ की ..तकदीर को

घुट घुट मरती भीड़ को

हाँ , गुनगुनाने दो…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 25, 2014 at 7:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल ..तालीम-ओ-तरबीयत ने यूँ ख़ुद्दार कर दिया

गागा लगा लगा /लल /गागा लगा लगा 



तालीम-ओ-तरबीयत ने यूँ ख़ुद्दार कर दिया,

चलने से राह-ए-कुफ़्र पे इनकार कर दिया.

.

मै ज़ीस्त के सफर में गलत मोड़ जब मुड़ा,

मेरी ख़ुदी ने मुझको ख़बरदार कर दिया.

.

इज़हार-ए-इश्क़ में वो नज़ाकत नहीं रही, …

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on August 25, 2014 at 6:00pm — 33 Comments

राह चले शादी हो जाती |

अजीब बात  है ये प्यार  की    , भूले वो सारा  संसार |

सारा यौवन   बर्बाद   करे , मिल गया बेवफा जो यार | 

शादी बंधन अपवित्र करे  , रिश्ते  को गड्ढे में डाल | 

जिंदगी  ही  डूबे  नर्क में , आगे का अब कौन हवाल |

माता पिता जब करे  शादी , जा कर ही देखे घर बार |

जान पानी  छान कर पीते , तब  कहीं करते  ऐतबार |

शादी पावन है  जीवन में ,   इसी से   चलता संसार |

राह चले शादी हो जाती ,   दूसरे  दिन पड़ता दरार |

गोद में जब बालक आये , आशिक हो जाता  फरार  | 

मुँह…

Continue

Added by Shyam Narain Verma on August 25, 2014 at 5:00pm — 8 Comments

सिसकियाँ (लघुकथा)

माँ सोनी के कमरे से खूब रोने चीखने की आवाजें आ रही थी, १४ साल की राधा भयभीत हो रसोई में दुबकी रही, जब तक पिता के बाहर जाने की आहट ना सुनी ! बाहर बने मंदिर से पिता हरी की दुर्गा स्तुति की ओजस्वी आवाज गूंजने लगी! भक्तों की "हरी महाराज की जय" के नारे से सोनी की सिसकियाँ दब गयी! पिता के बाहर जाते ही माँ से जा लिपट बोली "माँ क्यों सहती हो?" सोनी घर के मंदिर में बिराजमान सीता की मूर्ति देख मुस्करा दी! अपने घाव पर मलहम लगाते हुए बोली, "मेरा पति और तेरा पिता…

Continue

Added by savitamishra on August 25, 2014 at 2:00pm — 20 Comments

किससे क्‍या शिकवा

किससे क्‍या है शिकवा

किसको क्‍या शाबाशी।

नहीं कम हुए बढ़ते

दुष्‍कर्मों को पढ़ते

बेटे को माँ बापों पर

अहसाँ को गढ़ते

नेता तल्‍ख़ सवालों पर

बस हँसते-बचते

देख रहे गरीब-अमीर

की खाई बढ़ते

कितनी मन्‍नत माँगे

घूमें काबा काशी।

 

फि‍र जाग्रति का

बिगुल बजेगा जाने कौन

फि‍र उन्‍नति का

सूर्य उगेगा जाने कौन

आएगी कब घटा

घनेरी बरसेगा सुख,

फि‍र संस्‍कृति की

हवा बहेगी…

Continue

Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 24, 2014 at 7:00pm — 3 Comments

क्षणिकाएँ

वो मेरा कुछ नहीं लगता

और मैं कोई महान व्यक्ति भी नहीं

फिर भी बार बार वो

मेरे पैर पकड़ रहा था  

पता है क्यों ?

मैंने सिर्फ दो रोटी दी उसे

**************************

बहुत दुश्मन है उसके

गलती ?

बहुत अच्छा आदमी है वो

*******************************

सिसकियाँ मत लो ग़म-गीं हवाओ

चुप हो जाओ

पता है क्यों?

वो आ रहीं है

*********************************

लोग कहते है उनकी आँखों में

प्यार का समंदर है

फिर भी मैं क्यों ?

प्यासा…

Continue

Added by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 6:00pm — 14 Comments

दोहावली

द्वेष,बुराई,दुष्टता ,ना ही हो अनाचार

भेदभाव नफरत मिटे ,करो सभी से प्यार ||



आजादी के बाद भी, ख़त्म हुई ना जंग

गुंडागर्दी है बढ़ी ,दानव फिरें दबंग ||



काम ,मोह, मद, लालसा,फैला भ्रष्टाचार

मानव दानव है बना ,करता अत्याचार ||



देश प्रेम की भावना, होगी तब साकार

दूर हटे जब दीनता ,सपने लें आकार ||

बिजली पानी झोंपड़ी ,इसकी है दरकार

पेट भरे हर एक का, तभी सफल सरकार…

Continue

Added by Sarita Bhatia on August 24, 2014 at 1:29pm — 10 Comments

खुद का भी अहसास लिखो

खुद का भी अहसास लिखो!
एक मुकम्मल प्यास लिखो!!

उससे इतनी दूरी क्यों !
उसको खुद के पास लिखो !!

खाली गर बैठे हो तुम!
खुद का ही इतिहास लिखो !!

 गलती उसकी बतलाना !
खुद का भी उपहास लिखो!!

हे ईश्वर ऊब गया हूँ!
मेरा भी अवकाश लिखो!!
***************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
 

Added by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 1:11am — 28 Comments

एक मैं ही तो गैर था -- डा० विजय शंकर

बाँट दीं खुशियाँ तमाम हमने

कोई दुआएं दे के ले गया

कोई दबाव बना के ले गया

सब अपने ही थे ,कोई गैर नहीं था ||

बाँट दीं खुशियाँ तमाम हमने

कोई आँखें झुका के ले गया

कोई आँखें दिखा के ले गया

सब अपने ही थे कोई गैर नहीं था ||

कोई हंस के मिलता था ,

कोई जल के मिलता था ,

कोई मिल के छलता था ,

कोई छल के मिलता था ,

सब अपने लिए मिलते थे ,

कोई मुझसे नहीं मिलता था ||

लोग , सच कुर्सी पसंद होते हैं

हर मिलने वाला मुझसे नहीं

कुर्सी से… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 23, 2014 at 10:16pm — 21 Comments

केले में

मिला कंधा नहीं हमको पड़ी है लाश ठेले में

खिलाया क्यों ज़हर तुमने मिला कर हम को केले में

चली आ तू बहाने से मिलेगें आज हम दोनो

न आई तो समझ लेना फसा देगें झमेले में

न आती थी हमें नीदें कहें जब तक न गुडनाइट

किये हम रात भर बाते दिया जो फोन मेले में

पहन कर लाल जोड़ा तुम चली हो साथ क्‍याे उनके

करे हम ये दुआ रब से रहे तू तो तबेले में

सजाई मॉंग क्‍यों अपनी तड़पता छोड़…

Continue

Added by Akhand Gahmari on August 23, 2014 at 8:17pm — 22 Comments

नव गीत ////आबाद होंगे कब जीवन मरुस्थल !

सोचता रहता हूँ

उदासियो में घिरकर

प्रतिक्षण-प्रतिपल 

आबाद होंगे कब जीवन -मरुस्थल ?

 

काल की क्रूरता ने

मेरे प्रयासों को

आशा-उजासो को

जीवन-विकल्पों को  

कर डाला धूमिल

कर्म हुआ निष्काम

कार्य भी निष्फल

आबाद होंगे कब जीवन-मरुस्थल ?

 

सूने शून्य जीवन में

नियति के बंधन से

करुणा से क्रंदन से

पूरे जो न हो पायें

स्वप्न हुए चंचल  

पंगु प्रेरणा के पग

शान्त और…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 23, 2014 at 7:27pm — 20 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ज़िन्दगी के साथ चल कर देखिये-ग़ज़ल

2122/ 2122/ 212

घर से बाहर तो निकल कर देखिये

ज़िन्दगी के साथ चल कर देखिये

 

आपको अंधा न कर दे वो चमक

शम्स को थोड़ा सँभल कर देखिये

 

आजमाया है मुझे ही अब तलक

इक दफा खुद को बदल कर देखिये

 

चार सू बस आप ही होंगे जनाब

शम्अ की मानिन्द जल कर देखिये

 

आसमाँ के है मुकाबिल हस्ती क्या

देखना हो तो उछल कर देखिये

 

तर्क़े ताल्लुक तो बहुत आसान है

कालिबे निस्बत में ढल कर…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on August 23, 2014 at 7:00pm — 17 Comments

हे री ! चंचल

  • हे री ! चंचल

----------------

जुल्फ है कारे मोती झरते

रतनारे मृगनयनी नैन

हंस नैन हैं गोरिया मेरे

'मोती ' पी पाते हैं चैन

आँखें बंद किये झरने मैं

पपीहा को बस 'स्वाति' चैन

लोल कपोल गाल ग्रीवा से

कँवल फिसलता नाभि मेह

पूरनमासी चाँद चांदनी

जुगनू मै ताकूँ दिन रैन

धूप सुनहरी इन्द्रधनुष तू

धरती नभ चहुँ दिशि में फ़ैल

मोह रही मायावी बन रति

कामदेव जिह्वा ना बैन

डोल रही मन 'मोरनी'…

Continue

Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 23, 2014 at 6:14pm — 16 Comments

हाईकू

ताप प्रचण्ड
उफनाई नदियाँ
तपता भादों |

पथिक भूला
अंतर्मन व्यथित
तिमिर घना |

पथ ना सूझे
पिए नित गरल
कंठ भुजंग |

अल्हड़ नदी
मदमस्त लहरें
नईया डोले |

भजन राम
बसे छवि मन में
नित निहारू |

मनमोहिनी
चंदा सा मुख देख
खुशी मन में |
 
मीना पाठक 
मौलिक /अप्रकाशित 

Added by Meena Pathak on August 23, 2014 at 1:45pm — 25 Comments

अदाओं से उसका लुभाना गया - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

2122    1221     2212

************************

नीर पनघट  से  भरना, बहाना गया

चाहतों का वो दिलकश जमाना गया

***

दूरियाँ  तो  पटी  यार  तकनीक  से

पर अदाओं से उसका लुभाना गया

***

पेड़  आँगन  से  जब  दूर  होते गये

सावनों  का  वो मौसम सुहाना गया

***

आ  गये  क्यों  लटों  को बिखेरे हुए

आँसुओं  का  हमारे  ठिकाना  गया

***

नाम  उससे  हमारा  गली  गाँव  में

साथ  जिसके हमारा  जमाना  गया

***

गंद शहरी जो गिरने…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 10:00am — 25 Comments

हिन्दी ज़िन्‍दाबाद

ज़िन्‍दाबाद--ज़िन्‍दाबाद।

राष्‍ट्रभाषा-मातृभाषा हिन्‍दी ज़िन्‍दाबाद।।

ज़िन्‍दाबाद- जि़न्‍दाबाद।

हिन्द की है शान हिन्दी

हिन्द की है आन हिन्दी

हिन्द का अरमान हिन्दी

हिन्द की पहचान हिन्दी

इसपे न उँगली उठे रहे सदा आबाद।

ज़िन्‍दाबाद-ज़िन्‍दाबाद।

वक्‍़त जन आधार का है

हिन्दी पर विचार का है

काम ये सरकार का है

जीत का न हार का है

हिन्दी से ही आएगा…

Continue

Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 23, 2014 at 8:22am — 9 Comments

आज जो भी है वतन

आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।

क्या दिया हमने इसे, ये सोचने की बात है।

कितने शहीदों की शहादत बोलता इतिहास है।

कितने वीरों की वरासत तौलता इतिहास है।

देश की खातिर जाँबाज़ों ने किये फैसले,

सुन के दिल दहलता है, वो खौलता इतिहास है।

देश है सर्वोपरि, न कोई जात पाँत है।

आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।

आज़ादी से पाई है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।

सर उठा के जीने की, कुछ करने की प्रतिबद्धता।

सामर्थ्य कर…

Continue

Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 22, 2014 at 9:00pm — 7 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service