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तेरे कूंचे से यूं खामोश गुजरकर मैंने

2122   1122   1122  22

तेरे कूंचे से यूं खामोश निकलकर  मैंने 

तेरे दीदार किये रूप बदलकर मैंने 

इक हिमालय  की तरह तुमसे मिला था लेकिन

 पाँव  अब चूम लिए तेरे पिघलकर मैंने 

 भौरों कलियों कि कभी  बात न मुझसे करना 

उम्र अब तक तो है काटी यूं बहलकर मैंने 

आजमाया है हुनर आज किसी बच्चे का

उनसे दिल मांग लिया उनका मचलकर मैंने  

दिल की चाहत तो है इजहारे मुहब्बत करना 

बात पर तुझसे सदा ही कि संभलकर मैंने 

क्या है परवानो का अंजाम पता है मुझको

फिर भी लव चूम लिए खाक में मिलकर मैंने 

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2014 at 1:26pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी ..आपका स्नेह हमेशा इसी तरह मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2014 at 1:26pm

आदरणीय विजय सर ..आप के उत्साह भरे शब्दों से मुझे सतत नूतन उर्जा मिलती है सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2014 at 1:25pm

आदरणीया मीना जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे धन्यवाद सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 12, 2014 at 11:22pm

बहुत सुंदर भावपूर्ण गजल. दिली बधाई स्वीकारें आदरणीय डा. आशुतोष जी

Comment by vijay nikore on October 12, 2014 at 12:55pm

गज़ल के भाव बहुत अच्छे लगे।  हार्दिक बधाई, आदरणीय  आशुतोष जी।

Comment by Meena Pathak on October 12, 2014 at 11:59am

बहुत सुन्दर गज़ल ..बधाई आदरणीय आशुतोष जी | सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2014 at 10:14pm

आदरणीया राज जी ..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2014 at 6:34pm

इक हिमालय  की तरह तुमसे मिला था लेकिन

 पाँव  अब चूम लिए तेरे पिघलकर मैंने ---------वो मुहब्बत ही क्या जो घमंडी  का सर झुका न सके ,बेहतरीन शेर 

सुन्दर ग़ज़ल हुई आ० आशुतोष जी दिल से दाद कबूलें 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 10, 2014 at 2:33pm

आदरणीय सोमेश जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 10, 2014 at 2:33pm

आदरणीय विजय सर ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

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