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बताओ जरा क्या तुम इतने बड़े हो?(ग़ज़ल 'राज' )

१२२ १२२ १२२ १२२

नहीं पाँव दिखते जहाँ पर  खड़े हो

बताओ जरा क्या तुम इतने बड़े हो?

 

उड़ाया जिसे ठोकरों से हटाया

उसी ख़ाक के तुम छलकते घड़े हो

 

जमाना नया है नयी नस्ल आई

पुराने चलन पर अभी तक अड़े हो

 

झुकी कायनातें झुका आसमां तक

न सोचो खुदी को फ़लक पे जड़े हो

 

वही रास्ते हैं वही मंजिलें हैं

वही कारवाँ है मगर तुम छड़े हो 

 

जहाँ है मुहब्बत वहीँ हैं उजाले

निहाँ तीरगी है जहाँ गिर पड़े हो  

 

कभी आके लेलो जरा साँस बाहर

कहीं घुट न जाए गुमाँ में गड़े हो 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 11:05am

इतनी सुन्दर न्याय् संगत समीक्षा आपके द्वारा पाकर उत्साहित हूँ आपका तहे दिल से शुक्रिया मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 15, 2014 at 11:37pm

नहीं पाँव दिखते जहाँ पर  खड़े हो

बताओ जरा क्या तुम इतने बड़े हो?..........बेहतरीन 

 

 

झुकी कायनातें झुका आसमां तक

न सोचो खुदी को फ़लक पे जड़े हो .............. उम्दा लाखो दिली बधाइयाँ 

 

 

जहाँ है मुहब्बत वहीँ हैं उजाले

निहाँ तीरगी है जहाँ गिर पड़े हो  ...क्या बात है बहुत ही बेहतरीन मुझे ऐसे पढने में अलग लुत्फ़ आ रहा है -जहाँ तीरगी है वही गिर पड़े हो 

 

बहुत ही अच्छे, खुबसूरत और बेहतरीन अशआर से सजी उम्दा ग़ज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 10, 2014 at 8:54pm

आ० विजय निकोर जी आपकी सराहना से लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभार आपका सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 10, 2014 at 8:53pm

राम शिरोमणि पाठक जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया. 

Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 4:58pm

बहुत ही मनभावन, सुन्दर गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश जी।

Comment by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 2:39pm

सुन्दर ग़ज़ल आदरणीया //बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको //सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 5, 2014 at 7:30pm

तहे दिल से शुक्रिया आ० उमेश कटारा जी, सादर  

Comment by umesh katara on November 5, 2014 at 9:00am

बहुत उत्कृष्ठ ग़ज़ल है बहुत पसन्द आयी आदरणीया राजेश जी बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2014 at 7:39pm

आ० डॉ० आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका |आपका संशय जिस बात को लेकर है तो मैं यही कहूँगी कि में आप या  तुम के साथ (सम्मान सूचक )आप/तुम  घड़ा हो नहीं कहा जाता घड़े हो ही कहा जाता है दुसरे यहाँ तुम या आप किसी एक विशेष के लिए संबोधित नहीं किया गया. है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2014 at 7:33pm

प्रिय प्राची जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका | 

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