Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on September 24, 2014 at 9:00pm — 12 Comments
यदि मैं आज हूँ
आज के बाद भी हूँ मैं
तो वह अवश्य होगा।
यदि जीवन की गूँज
जीने की अभिलाषा
लय भरा संगीत है, तो
वह अवश्य होगा।
यदि उसमें नदी का
कलकल नाद है
पंखियों का कलरव है
कोयल का कलघोष है, तो
वह अवश्य होगा।
यदि हम उत्तराधिकारी हैं
हमसे वंशावली है
हम योग का एक अंश हैं, तो
वह अवश्य होगा।
ब्रह्माण्ड की धधकती आग से
निकल कर शब्द ब्रह्म का
निनाद यदि है, तो
वह…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 24, 2014 at 8:24pm — 1 Comment
2122 2122 2122 २१२
आज ये महफ़िल सजाकर आप क्यूँ गुम हो गये
हमको महफ़िल में बुलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
पोखरों को पार करना भी न सीखा है अभी
सामने सागर दिखाकर आप क्यूँ गुम हो गये
लहरों से डरकर खड़े थे हम किनारों पर यहाँ
हौसला दिल में जगाकर आप क्यूँ गुम हो गये
तीरगी के साथ में तूफ़ान भी कितने यहाँ
इक दफा दीपक जलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
आपकी ये खामुशी चुभती है नश्तर सी हमें
हमको यूं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 24, 2014 at 3:01pm — 15 Comments
नवगीत..चलता सूरज रहा अकेला
घूमा अम्बर मिला न मेला,
चलता सूरज रहा अकेला.
--
गुरु मंगल सब चाँद सितारे,
अंधियारे में जलते सारे.
बृथा भटकता उनपर क्यों मन,
होगा उनका अपना जीवन.
कोई साथ नहीं देता जब,
निकला है दिनकर अलबेला.
..चलता सूरज रहा अकेला.
--
पीपल के थर्राते पात,
छुईमुई के सकुचाते गात.
ऊषा की ज्यो छाती लाली,
पुलकित हो जाती हरियाली.
सभी चाहते भोजन पानी,
जल थल पर है मचा…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 24, 2014 at 1:19pm — 8 Comments
फुसफुसाने की आवाज सुन काजल जैसे ही पास पहुँची सुना कि -तुम आ गये न, मैं जानती थी तुम जरुर आओगें, सब झूठ बोलते थे, तुम नहीं आ सकते अब कभी|
"भाभी आप किससे बात कर रही हैं कोई नहीं हैं यहाँ"
"अरे देखो ये हैं ना खड़े, जाओ पानी ले आओ अपने भैया के लिय बहुत प्यासे है|"
डरी सी अम्मा-अम्मा करते ननद के जाते ही भाभी गर्व से मुस्करा दी|
सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by savitamishra on September 24, 2014 at 11:34am — 19 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 24, 2014 at 9:44am — 23 Comments
1- शत्रु के सत्रह हार
काम1, क्रोध2, मद3, लोभ4, मोह5,
मत्सर6, रिपु के संचार।
द्वेष7, असत्य8, असंयम9, गल्प10,
प्रपंच11, करे संहार12।
स्तेय13, स्वार्थ14, उत्कोच15, प्रवंचना16,
विषधर अहंकार17।
जो धारें ये अवगुण सारे
सत्रहों हैं शत्रु…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 23, 2014 at 10:01pm — 5 Comments
" हरामखोर , काम पर ध्यान दे , जब देखो तब बातें करता रहता है " |
जमींदार की लिजलिजी नजर सुखिया पर गड़ी हुई थी , और एक प्रेम कहानी दम तोड़ चुकी थी |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on September 23, 2014 at 2:17am — 6 Comments
"अतुकांत"
_________
गली के मोड़ पर जब दिखती
वो पागल लडकी
हंसती
मुस्कुराती
कुछ गाती सकुचाती,
फिर तेज कदमो
से चल
गुजर जाती
चलता रहा था क्रम
अभ्यास में उतर आई
उसकी अदाएं
हँसा गईं कई बार कई बार
सोचने पर
विवश
विधाता ने सब दिया
रूप नख-शिख
दिमाग दिया होता थोडा
और सहूर
जीवन के फर्ज निभाने का,
वय कम न थी
मगर आज...........
दिखी न वो…
ContinueAdded by Chhaya Shukla on September 22, 2014 at 10:18am — 27 Comments
ग़ज़ल..टल लिया जाए.
२१२२ १२१२ २२
क्यों न चुपचाप चल लिया जाए.
बात बिगड़े न टल लिया जाए.
--
जर्द हालात हैं ज़माने के.
रास्ता ये बदल लिया जाये.
--
दायरे तंग हो गए दिल के.
घुट रहा दम निकल लिया जाए.
--
थक गए पाँव चलकर मगर सोचा.
साथ हैं तो टहल लिया जाए.
--
बर्फ सी जीस्त ये जमी क्यों थी.
खिल गयी धूप गल लिया जाए.
--
वारिशें इश्किया शरारों की.
भींगते ही फिसल लिया…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 22, 2014 at 1:30am — 17 Comments
212 212 212 212 212 212 212 212
दिल के आँसू पे यों फ़ातिहा पढ़ना क्या वो न बहते कभी वो न दिखते कभी
तर्जुमा उनकी आहों का आसाँ नहीं आँख की कोर से क्या गुज़रते कभी |
खैरमक्दम से दुनिया भरी है बहुत आदमी भीड़ में कितना तनहा मगर
रोज़े-बद की हिकायत बयाँ करना क्या लफ़्ज़ लब से न उसके निकलते कभी |
बात गर शक्ल की मशविरे मुख्तलिफ़ दिल के रुख़सार का आईना है कहाँ
चोट बाहर से गुम दिल के भीतर छिपे चलते ख़ंजर हैं उसपे न…
ContinueAdded by Santlal Karun on September 21, 2014 at 5:00pm — 9 Comments
है अपनी नस्ल पे भी फख्र अपने गम की तरह से
दिलों में घर किये हुए किसी वहम की तरह से
बहारें छोड़ती गईं निशान कदमों के मगर
उजाड़ मंदिरों के भव्य गोपुरम की तरह से
खरा है नाम पर नसीब इसका खोटा है बड़ा
ये मेरा देश बन के रह गया हरम की तरह से
बचे हैं गाँठ-गाँठ सिर्फ गाँठ भर ही रिश्ते सब
निभाये जा रहे हैं बस किसी कसम की तरह से
सजा गुनाह की उसे अगर दें, कैसे दें बता ?
हमारी रूह में बसा है वो धरम की तरह…
Added by Sulabh Agnihotri on September 21, 2014 at 4:30pm — 10 Comments
गीत
___
“है मधुर जीवंत बेला”
_______________
नैन में सपने पले हैं अब नहीँ हूँ मैँ अकेला ।
फिर जहां मुस्कान लाया, है मधुर जीवन्त बेला |
झूठ झंझट जग के सारे , हैं सभी तो ये हमारे ,
दीप आशा के जले हैं नेह से सारे सजाये
सत्य का निर्माण होगा, फिर सजेगा एक मेला ||
फिर जहाँ मुस्कान लाया, है मधुर जीवंत बेला..............
स्वप्न भी पूरे करूँ मैं, इस जगत को घर बना के,
और खुशियों से सजा…
ContinueAdded by Chhaya Shukla on September 21, 2014 at 3:48pm — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 21, 2014 at 2:00pm — 21 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
तुम मेरे नाम की पहचान बन गए
मेरे लिए ख़ुदा रब भगवान बन गए
दहशत के कारबार का सामान बन गए
लगता है सारे लोग ही हैवान बन गए
तेरे सभी ख़तों को रखा था सँभाल के
अब वो मेरे हदीस ओ क़ुरआन बन गए
हालात आज शहर के अब देखिये ज़रा
हँसते हुए थे शहर जो शमशान बन गए
ख़त आंसू सूखे फूल रखे थे सँभाल के
ज़ाहिर हुए जहां पे तो दीवान बन गए
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on September 21, 2014 at 12:40pm — 8 Comments
अरे चाचा !
तुम तो बिलकुल ही बदल गये
मैंने कहा – ‘ तुम्हे याद है बिरजू
यहाँ मेरे घर के सामने
बड़ा सा मैदान था
और बीच में एक कुआं
जहाँ गाँव के लोग
पानी भरने आते थे
सामने जल से भरा ताल
और माता भवानी का चबूतरा
चबूतरे के बीच में विशाल बरगद
ताल की बगल में पगडंडी
पगडंडी के दूसरी ओर
घर की लम्बी चार दीवारी
आगे नान्हक चाचा का आफर
उसके एक सिरे पर
खजूर के दो पेड़
पेड़ो के पास से…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2014 at 12:14pm — 19 Comments
मन
भटकता है इधर- उधर,
गली- गली,नगर- नगर
करता नहीं अगर-मगर
प्रेम खोजता डगर-डगर
झेलता जीवन का कहर
व्यस्त रहता आठों प्रहर
घंटी के नादों में घुसकर
पांचों अजानो को सुनकर
गीता ,कुरआन पढकर
माटी की मूरत गढ़कर
कथा -कीर्तन सजाकर
संतों-महंतों से मिलकर
आज भी मानव मन
क्यों भ्रमित है निरंतर?
मौलिक व अप्रकाशित
विजय प्रकाश शर्मा
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 21, 2014 at 11:32am — 4 Comments
चूड़ियाँ
एक दिन
कॉफी हाउस में
दिखा
कलाई से कोहनी तक
कांच की चूड़ियों से भरा
हीरे के कंगन मढ़ा
एक खूबसूरत हाथ.
गूँज रही थी
उसकी हंसी चूड़ियों के
हर खनक के साथ.
फिर एक दिन
दिखा वही हाथ
कलाईयाँ सूनी थीं
चूड़ियों का कोई निशान
तक नहीं था
सूनी संदल सी
उस कलाई
के साथ
जुडी थी एक
खामोशी .
देर तक सोंचता रहा
क्या चूड़ियाँ
चार दिन की चांदनी
होती हैं.?
मौलिक व…
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 20, 2014 at 8:32pm — 12 Comments
रखे मुझको भी हरदम बाख़बर कोई मेरे मौला
बड़े भाई के जैसा हो बशर कोई मेरे मौला
हुआ घायल बदन मेरा हुए गाफ़िल कदम मेरे
मेरे हिस्से का तय करले सफ़र कोई मेरे मौला
मुझे तड़पा रही है बारहा क्यूं छाँव की लज्ज़त
बचा है गाँव में शायद शजर कोई मेरे मौला
उदासी के बियाबाँ को जलाकर राख कर दे जो
उछाले फिर तबस्सुम का शरर कोई मेरे मौला
खड़ा हूं आइने के सामने हैरतज़दा होकर
इधर कोई मेरे मौला उधर कोई मेरे…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 20, 2014 at 6:00pm — 6 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 20, 2014 at 4:30pm — 32 Comments
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