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मोक्ष की अभिलाषा

मोक्ष की अभिलाषा

क्या मेरा जीवन निर्धारण
करेगी मेरी जन्म कुंडली
कर्म बंधेगा नव ग्रहों से
होगा भाग्य चक्र निर्धारित इनसे
मुझे नहीं जिज्ञासा
क्या लिख चुका
क्या लिख रहा विधाता
मैं अनंत का पंछी
मुझे नहीं मोक्ष की अभिलाषा

© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 904

Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 9:54am

 आपका हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी' जी

Comment by Hari Prakash Dubey on November 12, 2014 at 9:50am

आदरणीय  डा. प्राची सिंह जी प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 12, 2014 at 9:27am

अनंत के पंछी के लिए तो मोक्ष की अभिलाषा भी एक बंधन ही है.... उसे तो बस उड़ना है उन्मुक्त, हर पल, भूत भविष्य के लेखे जोखे से परे

.......बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बहुत कम शब्दों में सान्द्र्तम कथ्य को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आदरणीय हरिप्रकाश दूबे जी 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 11, 2014 at 9:16am

बहुत सुन्दर ! दिली बधाइयाँ ।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 10, 2014 at 7:53pm

आदरणीय श्री गणेश जी , श्री डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,श्री राम शिरोमणि पाठक जी ,श्री सोमेश कुमार जी ,श्री राहुल डांगी जी,  श्री  जितेन्द्र पस्टारिया जी, श्री योगराज प्रभाकर, सुश्री पूजा जी ,श्री विजय निकोर जी एवं  श्रीयुत श्री सुनील जी आप सभी का सादर अभिवादन, आपका हार्दिक आभार, आशा है आप सभी से भविष्य में भी  प्रोत्साहन मिलता रहेगा।

Comment by shree suneel on November 10, 2014 at 7:05pm
Kya baat hai ! "Mujhe nahin jigyasa/
kya likh chuka, kya likh raha vidhata..
Main anant ka panchhi...

sundar kavita..
^^^^^^^^^^^^
Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 4:36pm

अच्छी रचना के लिए बधाई, आ० हरिप्रकाश जी।

Comment by pooja yadav on November 10, 2014 at 1:39pm
Mai anant ka panchi mujhe nahi moksh ki abhilaasha. . .sundar

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 10, 2014 at 11:38am

शब्द संयोजन और भाव सम्प्रेषण उम्दा है आ० हरिप्रकाश दुबे जी, बधाई स्वीकारें।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 10, 2014 at 9:49am

बहुत ही प्रभावशाली रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय हरिप्रकाश जी

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