For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्त हो गयी आत्मा

मुक्त हो गयी आत्मा !

अपने शरीर के बन्धनों से !!

स्तब्ध रह गयी निशा

मृत शरीर के क्रन्दनो से

मुक्त हो गयी आत्मा !

अपने शरीर के बन्धनों से !!

दूर हो गयी आत्मा

अतीत के स्पन्दनो से

राख हो  गया शरीर

जलते हुये चन्दनों से

मुक्त हो गयी आत्मा !

अपने शरीर के बन्धनों से !!

शरीर आसक्त हो गया

प्रिया में अंतर्नयनों से

आत्मा छल गयी उसे

अनासक्ति के प्रपंचों से

मुक्त हो गयी आत्मा !

अपने शरीर के बन्धनों से !!

हृदय मस्तिष्क और प्रार्थना

ध्यान योग और साधना

रोक सकी न प्रयत्नों से

बांध सकी न बन्धनों से

मुक्त हो गयी आत्मा !

अपने शरीर के बन्धनों से !!

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

Views: 459

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on November 11, 2014 at 9:19pm

आदरणीय श्री गणेश जी"बागी" , श्री डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,श्री सोमेश कुमार जी ,श्री सुशील सरना  जी,  श्री  मोहिंदर कुमार जी, आप सभी का सादर अभिवादन, सुझावों के लिए  आपका हार्दिक आभार, सत्य तो यह है की यह कुछ पुरानी डायरी के पन्नों से निकली रचनायें हैं ,बहुत श्रेष्ठ नहीं हैं ,मगर इस मंच पर एक अपनापन महसूस हो रहा है ,आप सभी विद्वान साथियों से संवाद का मौका मिल रहा है ,इस रचना मैं शरीर पुरुष और आत्मा स्त्री के रूप मैं अभिव्यक्त है तथा शरीर रूपी प्रेमी जब अशक्त हो जाता है तो आत्मा अपने अनासक्त स्वभाव के कारण उसे छोड देती है ,किसी और को अपना लेती है ,भारतीय दर्शन इसीलिए अनासक्त होने पर जोर देता है ,आप सभी को प्रणाम !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 11, 2014 at 8:06pm

//स्याह पड गया शरीर

जलते हुये चन्दनों से//

स्याह पड़ेगा या राख हो जाएगा


भावों का सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई आदरणीय।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 11, 2014 at 4:16pm

आत्मा चिर मुक्त है  i शरीर धारण करना और छोड़ना और धारण करना उसकी चर्या है i जीव ब्रह्म का अंश  होकर भी कई मायने में ईश्वर से भिन्न भी  है i ऐसे भारतीय दर्शन कहते है तभी मुक्ति पाने तक वह भव चक्र में फंसा रहता है i आपकी कविता आपकी शैली में अच्छी बन पडी है i  स्वागत है i

Comment by somesh kumar on November 11, 2014 at 3:47pm

ye mukti hi chi aur shshvt sty hai ,baki sb ek bhrmjaal,ek khela ,sunder kavita ke lie saadhuvaad

Comment by Sushil Sarna on November 11, 2014 at 12:10pm

आदरणीया  Hari Prakash Dubey   जी सुंदर,भावपूर्ण और एक दार्शनिक रचना ।आदरणीय क्षमा सहित प्रथम दो बंध सुंदर और प्रवाहपूर्ण लगे पर आगे के दो बंधों में प्रवाह उतना सहज प्रतीत नहीं हुआ जितना प्रथम दो में।  फिर भी इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई।  

Comment by Mohinder Kumar on November 11, 2014 at 11:29am

आदरणीये दूबे  जी  आत्मा तो सदा मुक्त रहती है  बस हमारा यह नश्वर शरीर ही साँसारिक भोगोँ मेँ विलप्त रहता है, मोह पाश मेँ बधाँ रहता है और आत्मा की आवाज को दबा देता है.  भावपूर्ण रचना के लिये बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
23 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service