२१२२ १२१२ २२
इससे बढ़कर कोई अनर्गल क्या ?
पूछिये निर्झरों से - "अविरल क्या ?"
घुल रहा है वजूद तिल-तिल कर
हो रहा है हमें ये अव्वल क्या ?
गीत ग़ज़लें रुबाइयाँ.. मेरी ?
बस तुम्हें पढ़ रहा हूँ, कौशल क्या ?
अब उठो.. चढ़ गया है दिन कितना..
टाट लगने लगा है मखमल क्या !
मित्रता है अगर सरोवर से
छोड़िये सोचते हैं बादल क्या !
अब नये-से-नये ठिकाने हैं..
राजधानी चलें !.. ये चंबल क्या ?
चुप न…
Added by Saurabh Pandey on October 25, 2014 at 12:00pm — 40 Comments
एक दीप तुम द्वार पर, रख आये हो आज ।
अंतस अंधेरा भरा, समझ न आया काज ।।
आज खुशी का पर्व है, मेटो मन संताप ।
अगर खुशी दे ना सको, देते क्यों परिताप ।।
पग पग पीडि़त लोग हैं, निर्धन अरू धनवान ।
पीड़ा मन की छोभ है, मानव का परिधान ।।
काम सीख देना सहज, करना क्या आसान ।
लोग सभी हैं जानते, धरे नही नादान ।।
मन के हारे हार है, मन से तू मत हार ।
काया मन की दास है, करे नही प्रतिकार ।।
बात ज्ञान की है बड़ी, कैसे दे अंजाम ।
काया अति सुकुमार…
Added by रमेश कुमार चौहान on October 24, 2014 at 9:35pm — 8 Comments
मस्जिद के स्पीकर से उठने वाले शोर से वो परेशान थे |सुबह सोते वक्त ,दोपहर में रामायण पढ़ते समय या फ़ोन पे गम्भीर हिंदूवादी चर्चा करते हुए उनके कामों में वो स्पीकर से उठने वाली आवज़ उनके कामों को बाधित कर देती |रिटायर्मेंट की पूंजी से यही एक आशियाना लिया था एक महीने पहले पर अब बेटा-बहू और वे स्वयं उलझन में थे कैसे बाहर निकले |कई बार मन हुआ कि अपने मत के संगठनों में शिकायत कर प्रशासनिक दबाब बनाएँ पर हाल के दिल दहला देने वाले दंगों की यादों ने उनकी हिम्मत छीन ली |इतना पैसा तो था नहीं कि कहीं और…
ContinueAdded by somesh kumar on October 24, 2014 at 4:00pm — 10 Comments
चमकती, फैलती, दीपावली की रोशनी देखो
जो फैलाई है तुमने इक नजर वो गन्दगी देखो
हमेशा दूसरों में तो निकाली हैं कमी लाखों, ...
पता चल जाएगा सच, जब कभी अपनी कमी देखो
खुशी अपनी जताने के तरीके तो हजारों हैं,
किसी की मुस्कुराती आँखों के पीछे नमी देखो
मसीहा ही समझता है हमारे दर्द के सच को
वो सबके दर्द लेकर खुश हुआ, उसकी खुशी देखो
वो कुदरत की तबाही, बेघरों के दर्द जाने है,
फरिश्ता ही मना सकता है यूँ दीपावली देखो।
^^^^^^^^^सूबे सिंह सुजान…
Added by सूबे सिंह सुजान on October 23, 2014 at 10:47pm — No Comments
आओ मिलकर दीप जलायें
अंधकार को दूर भगायें
जगमग जगमग हर घर करना
अन्धकार है सबका हरना
अम्बर से धरती पर तारे
साथ चाँद को नीचे लायें
अंतर्मन का तमस हरेंगे
कलुषित मन में प्रेम भरेंगे
द्वेष,बुराई और वासना
मिलकर सारे दूर हटायें
उत्सव है यह दीवाली का
सुख समृद्धि और खुशहाली का
भेदभाव आपस के भूलें
मन में शांति दीप जलायें
दीपों की पंक्तियाँ जगाई
धरती अपनी है चमकाई
सद्ज्ञान के दीप…
Added by Sarita Bhatia on October 23, 2014 at 10:29pm — 4 Comments
कर दिया आम मिरे इश्क़ का चर्चा देखो
देखो ज़ालिम कि मुहब्बत का तरीक़ा देखो
याद करना कि मिरे दर्द कि शिद्दत क्या थी
खुद को ज़र्रों में कभी तुम जो बिखरता देखो
खूं तमन्ना का मुसलसल यहाँ बहता है अब
मेरी आँखों में है इक दर्द का दरिया देखो
यूँ सुना है कि वो नादिम है जफ़ा पे अपनी
उसके चेहरे पे जफाओं का पसीना देखो
अपने हाथों से सजाके में करूँगा रुखसत
कर लिया है मेने पत्थर का कलेजा देखो
ये हिना सुर्ख ज़रा…
ContinueAdded by Ayub Khan "BismiL" on October 23, 2014 at 3:00pm — 7 Comments
एक पल की देरी किये बिना वो तेज़ क़दमों से बड़े-बड़े डग भरती हुई लक्ष्मी मंदिर में पूजा करने चली गयी| रास्ते में एक छोटी सी जिंदा बच्ची कचरे के डिब्बे में जो देख ली थी - शायद सात-आठ दिन पहले ही जन्मी थी|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 22, 2014 at 11:56pm — No Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 22, 2014 at 6:54pm — 8 Comments
आओ मिल कर दिए जलाएं,
आओ मिल कर दिए जलाएं।
भारत को तमलीन जगत में,
ज्योतिर्मय पुनः बनायें।।
आओ मिल कर करें सभी प्रण,
भारत के हित हों अर्पण।
अपने जीवन के कुछ क्षण,
भारत को स्वच्छ बनायें।।
आओ मिल कर दिए जलाएं,
आओ मिल कर दिए जलाएं।।
आओ मिल कर लड़ें एक रण,
अपने भीतर का रावण।
कभी स्वांस नहीं ले पाये,
हम भ्रष्टाचार मिटायें।।
आओ मिल कर दिए जलाएं,
आओ मिल कर दिए…
ContinueAdded by Aditya Kumar on October 22, 2014 at 1:48pm — 3 Comments
उल्टा सीधा बोल रही है दुनिया मेरे बारे में,
अखबारों ने छापा क्या कुछ, पढना मेरे बारे में.
.
इस दुनिया में मिल न सकेंगे अगली बार मिलेंगे हम,
अर्श को जो भी अर्ज़ी भेजो, लिखना मेरे बारे में.
.
उनकी ज़ात से वाक़िफ़ हूँ, वो बाज़ नहीं आने वाले,
सर पर लेकर घूम रहे हैं फ़ित्ना मेरे बारे में.
.
अपने दिल में एक दीया तुम मेरे नाम जला रखना,
आँधी जाने सोच रही है क्या क्या मेरे बारे में.
.
मज्लिस से बाहर कर बैठे, उनकी जान में जाँ…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on October 22, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
पुष्य नक्षत्र की शुभ बेला में, श्री लक्ष्मी का अवतार हुआ
महक फैलाती आई कमला, तो गुरु नक्षत्र भी धन्य हुआ|
दाता भी है रिद्धि सिद्दी के, सुख सम्रद्धि जो लेकर आये
माँ शारदे भी संग बैठी, ज्ञान पिपासू प्यास बुझायें |
बरकत करती धन वैभव की, जो धन धान्य से घर भरदें
दीपो का त्यौहार मनाते, आँगन माँड़ रँगोली सज दे |
घर लक्ष्मी प्रसन्न जब रहती, तब लक्ष्मी का वरदान मिले
बिन गणपति और ज्ञानेश्वरी, फिर उल्लू ही साक्षात् मिले…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2014 at 12:00pm — No Comments
ये दिये क्या भाव हैं अम्मा ?" गाडी में बैठी सभ्रांत महिला ने दीपक बेचने वाली बुढ़िया से पूछा I
"50 रुपये के 100 हैं बिटिया I" बुढ़िया ने उत्तर दिया I
"हे भगवान् ! इतने महेंगे ? अम्मा तुम तो लूट रही हो I"
"एक बात का जवाब दो बेटी, ये महंगाई क्या सिर्फ अमीरों के लिए ही है, हम गरीबों के लिए नहीं ?"
मौलिक एवं अप्रकाशित
आलोक मित्तल
मथुरा
Added by Alok Mittal on October 22, 2014 at 12:00pm — 9 Comments
किया जो प्यार का वादा न जाने क्यों भुलाती है
अँधेरी रात में हमको नहीं राहें दिखाती है
छलक जाती न जाने क्यों कभी भी आँख ये मेरी
न जाती याद उसकी है मुझे हर पल रूलाती है
उसे दिल में बसाने की लिये चाहत मरेंगे क्या
बने अंजान वो यारो हमें पागल बताती है
मिले जब वो कभी हमसे बताये हाल दिल का क्या
न रहता होश अपना जब हमें नगमे सुनाती है l
शिकायत हम करें किससे बता दो जिन्दगी मुझको
बसी जो दिल में मेरे क्यों वही हमको सताती है
अखंड…
Added by Akhand Gahmari on October 21, 2014 at 8:53pm — No Comments
हाय राम क्या करे जी कोई ...जवाब चाहिए
उत्तर जहां से अब तो कुछ लाजवाब चाहिए
लौकी आलू भिण्डी टमाटर लड़ते हैं बाजार में
इस दिवाली हमको ही इक खिताब चाहिए
पटाखों फुलझड़ी को देख बच्चे मचल रहे हैं
टूटी आस लिए वो पूछें कितने बेताब चाहिए
मजबूरियों में निःशब्द बाप आंसू बहा रहे हैं
फीकी जेब तेज हाट में माथों पर आब चाहिए
लड्डू बर्फ़ी रसगुल्ला हमसे यूँ अब दूर हुए
मिश्री घोलें रिश्तों में मिठास बेहिसाब…
ContinueAdded by anand murthy on October 21, 2014 at 5:00pm — No Comments
किसी की सरफ़रोशी चीखती है
वतन की आज मिट्टी चीखती है
हक़ीक़त से तो मैं नज़रें चुरा लूँ
मगर ख़्वाबों में दिल्ली चीखती है
हुकूमत कब तलक ग़ाफिल रहेगी
कोई गुमनाम बस्ती चीखती है
भुला पाती नहीं लख्ते-जिगर को
कि रातों में भी अम्मी चीखती है
बहारों ने चमन लूटा है ऐसे
मेरे आंगन में तितली चीखती है
गरीबी आज भी भूखी ही सोई
मेरी थाली में रोटी चीखती है
महज़ अल्फ़ाज़ मत समझो इन्हें तुम
हरेक पन्ने पे स्याही चीखती…
Added by Samir Parimal on October 21, 2014 at 4:30pm — 13 Comments
वह रात भर छटपटाता रहता, रटी रटाई बातोँ के सिवाय वह कुछ और बोल भी तो नही सकता था । लेकिन पिंजरें के अन्दर ही सही उसे कभी भी भूखा नही रहना पडा था । उसने सोचा, मेरा मालिक भीखू जैसे भो हो, पर मेरा पसंदीदा आहार जुटाता है, और हर तरह से अब तक मेरी हिफाजत करता है । बन्धन मे पडना मेरा प्रारब्ध है और बिकना मेरी क्रूर नियति है । फिर भी मै अब तक जिंदा हूँ, कितना प्यार करता है भीखू मुझे ! वो गरीब है पर फिर भी उसका व्यवहार उत्तम रहा है । भीखू ने सदा मुझे दोस्त समझा है, इसी कारण मेरे दिल मे भी उसके लिए…
ContinueAdded by Bipul Sijapati on October 21, 2014 at 11:00am — 7 Comments
दीप जले हैं जब-जब
छँट गये अँधेरे।
अवसर की चौखट पर
खुशियाँ सदा मनाएँ
बुझी हुई आशाओं के
नवदीप जलाएँ
हाथ धरे बैठे
ढहते हैं स्वर्ण घरौंदे
सौरभ के पदचिह्नों पर
जीवन महकाएँ
क़दम बढ़े हैं जब-जब
छँट गये अँधेरे।
कलघोषों के बीच
आहुति देते जाएँ
यज्ञ रहे प्रज्ज्वलित
सिद्ध हों सभी ॠचाएँ
पथभ्रष्टों की प्रगति के
प्रतिमान छलावे
कर्मक्षेत्र में जगती रहतीं
सभी…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on October 21, 2014 at 10:47am — 2 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ २२
सहज लगाव हृदय में हिलोड़ जाते हैं ।
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं ॥
किसी उदास की पीड़ा सजल हृदय में ले
निशा निराश हुई, चुप वृथा पड़ी-सी थी
तथा निग़ाह कहीं दूर व्योम में उलझी…
Added by Saurabh Pandey on October 21, 2014 at 5:30am — 20 Comments
Added by किशन कुमार "आजाद" on October 20, 2014 at 10:50pm — 3 Comments
“तू लड़की होकर भी हमेशा गली में लड़कों के साथ खेलती रहती है, ये बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता |“
पड़ोसी अंकल ने रितिका को समझाते हुए कहा |
“हाँ अंकल जी ! मगर ये तो अच्छा लगता होगा न कि लड़के हमें देखकर छींटाकशी करें, और हमें चुप रहने और घर में रहने की नसीहत दी जाए ?”
अंकल जी चुपचाप बेटे को लेकर घर में चले गए |
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सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on October 20, 2014 at 10:30pm — 1 Comment
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