For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल---उमेश कटारा

मुहब्बत का ज़ला हूँ मैं,पिघलता ही रहा हूँ मैं
ख़ुदा से माँगकर तुझको,भटकता ही रहा हूँ मैं
................
समन्दर के किनारों ने समेटा है बहुत मुझको
मगर आँखों की कोरों से निकलता ही रहा हूँ मैं
................
अगर सच बोलता हूँ तो,समझते हैं मुझे पागल
मगर सच्चाई को लेकर ,उबलता ही रहा हूँ मैं
................
सितारों की कसम ले ले,नजारों की कसम ले ले
तेरे दीदार की ख़ातिर मचलता ही रहा हूँ मैं
.................
मेरी किस्मत के सौदागर ,मुझे इन्साफ तो दे दे
मेरी तनहाई को लेकर, सिमटता ही रहा हूँ मैं
................
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 641

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on December 10, 2014 at 8:26pm

somesh kumar जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on December 10, 2014 at 8:26pm

योगराज प्रभाकर जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on December 10, 2014 at 8:25pm

Meena Pathak जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on December 10, 2014 at 8:25pm

गिरिराज भंडारी जी शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 11:35am

आदरणीय उमेश भाई , बढ़िया ग़ज़ल कही है ,

समन्दर के किनारों ने समेटा है बहुत मुझको
मगर आँखों की कोरों से निकलता ही रहा हूँ मैं -- वाह ! बहुत बधाइयाँ ।

Comment by Meena Pathak on December 9, 2014 at 8:00pm

उम्दा गज़ल ..बहुत बहुत बधाई आप को 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 11:51am

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० उमेश कटारा जी. दिली बधाई।

Comment by somesh kumar on December 9, 2014 at 10:27am

समन्दर के किनारों ने समेटा है बहुत मुझको
मगर आँखों की कोरों से निकलता ही रहा हूँ मैं

बहुत सुंदर ,भावपूर्ण प्रेम के अहसास में सराबोर गज़ल 

Comment by umesh katara on December 8, 2014 at 8:22pm

शुक्रियाgumnaam pithoragarhi जी

Comment by umesh katara on December 8, 2014 at 8:21pm

शुक्रियामिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
23 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service