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ग़ज़ल--उमेश कटारा

क्या पता किस ख़ुदा ने बनायी मोहब्बत
पत्थरों से मुझे फिर करायी मोहब्बत

उसकी आँखों में सारा जहाँ मिल गया था
उसने हँसके ज़रा सा ज़तायी मोहब्बत

वो मेरा हा गया ,हो गया मैं भी उसका
हमने बर्षों तलक फिर निभायी मोहब्बत

रोज मिलने लगे ,सिलसिला चल पड़ा था
चाँद तारों से मैंने सजायी मोहब्बत

पर खुदा हमसे नाराज रहने लगा तो
दिलजलों की तरह फिर जलायी मोहब्बत

हो गये हम दिवानों से मशहूर दोनों
दुश्मनों ने बहुत फिर सतायी मोहब्बत

ख़ाक में मिल गयी ,पल में बर्षों की चाहत 
फ़िरतो हँस हँसके सबने उड़ायी मोहब्बत

उमेश कटारा 
मौलिक व अप्रकाशित



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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2014 at 10:45am

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० उमेश कटारा जी, बधाई प्रेषित है। कृपया ग़ज़ल के साथ वज़न भी लिख दिया करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2014 at 1:29pm

आदरणीय मुकेश भाई , बढ़िया गज़ल हुई है ! हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 5, 2014 at 11:16am
हो गये हम दिवानों से मशहूर दोनों
दुश्मनों ने बहुत फिर सतायी मोहब्बत. वाह बहुत सुन्दर वाह!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 9:16pm

रोज मिलने लगे ,सिलसिला चल पड़ा था
चाँद तारों से मैंने सजायी मोहब्बत--------बहुत खूब 'मुहब्बत' सही शब्द 

अंतिम शेर में तकाबुले रदीफ़ दोष बन रहा है    देख लें 

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर आ० उमेश जी 

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 4, 2014 at 8:15pm

गजल पर आपको दिल से बधाई

Comment by umesh katara on December 4, 2014 at 6:30am

Hari Prakash Dubey जी शुक्रिया

Comment by umesh katara on December 4, 2014 at 6:30am

Neeraj Mishra "प्रेम"जी शुक्रिया

Comment by Neeraj Nishchal on December 3, 2014 at 8:04pm
वाह वाह उमेश भाई बहुत लाजवाब ।
Comment by Hari Prakash Dubey on December 3, 2014 at 7:38pm

सुंदर ग़ज़ल ,आपको हार्दिक बधाई  श्री उमेश कटारा जी !

Comment by umesh katara on December 3, 2014 at 6:36pm

शुक्रिया  Shyam Narain Verma जी

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