For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत - स्वीकार हैं मुझे तुम्हारे पत्थर ( गिरिराज भंडारी )

अतुकांत - स्वीकार हैं मुझे तुम्हारे पत्थर

*****************************************

स्वीकार हैं मुझे आज भी

कल भी थे स्वीकार , भविष्य मे भी रहेंगे

तुम्हारे फेके गये पत्थर

तब भी फल ही दिये मैनें

आज भी दे रहा हूँ , और मेरा कल जब तक है देता रहूँगा

मैं जानता हूँ  और मानता हूँ , इसी में तो मेरी पूर्णता है

यही मेरी नियति है , और उद्देश्य भी

चाहे मेरी जड़ों को तुमने पानी दिया हो या नहीं

मैं अटल हूँ , अपने उद्देश्य में

पर आज मना करने का जी कर रहा है , पत्थरों के लिये

इसलिये नहीं कि , मुझे अब पीड़ा होती है

इसलिये , केवल इस लिये कि,

अब तुम्हारे फेके पत्थर फलों तक नहीं पहुँच रहे

मेरे अनुभवों से पके बहुत से फल ऊपर हैं

बहुत ऊपर ,

पत्थरों की पहुँच और तुम्हारे निशाने से दूर  

तो, चढ़ जाओ ,

मेरे घुटनों पर पैर रख के, खड़े हो जाओ मेरे कन्धों पर , सर पर

और तोड़ लो , मेरे अनुभवों से पके मीठे फल

इससे पहले कि समय मेरी जड़ों को कमज़ोर कर दे 

और मै गिर पड़ूँ धरती पर

भरभरा के ।

*****************

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 672

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 12, 2014 at 11:45am

आदरणीय भाई गिररिराज जी इस बेहतरीन कविता के लिए कोटि कोटि बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2014 at 9:49pm

आदरणीय गिरिराज सर अपने अनुभवों को क्या खूब शब्द दिया है आपने बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2014 at 9:49pm

आदरणीय गिरिराज सर अपने अनुभवों को क्या खूब शब्द दिया है आपने बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 11, 2014 at 9:26pm

जीवन के अनुभव को बुनती हुई रचना वृक्ष का बिम्ब बहुत ही सार्थक हुआ ,बहुत बहुत बधाई आ० गिरिराज जी| 

Comment by कंवर करतार on December 10, 2014 at 10:27pm

भाई गिरिराज,

जीवन की  गूढ़ता को बहुत बढिया ढंग से सजाया है इस रचना में ,बहुत बहुत बधाई I  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 11:02am

आदरणीय सौरभ भाई , कथ्य के अनुमोदन और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

शिल्प सुधारने का एक और प्रयास करूंगा और पोस्ट करूँगा ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 10, 2014 at 11:01am

बहुत सुंदर.  जीवन में  अच्छे -बुरे अनुभवों को बहुत ही गहरे मनन से साझा किया है आपने आदरणीय गिरिराज जी. बहुत बहुत बधाई आपको  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 10:57am

आदरणीय राहुल भाई , आपकी सदाशयता का बहुत शुक्रिया !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 10:55am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी सराहना ने मेरी मेहनत सफल कर दी , आपका दिली आभार ।

एक बात --एक निवेदन -  मेरे( अनुज ) के लिये आदरणीय न लगाया कीजिये ।  वैसे भी अनुज के साथ आदरणीय से अच्छा प्रिय लगता है ।सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 10:50am

आदरनीय योगराज भाई , आपकी सराहना ही मेरा संबल है , आपका दिली शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service