For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - चलो कर लें निकलने का बहाना अब ( गिरिराज भंडारी )

१२२२        १२२२       १२२२

अकेले पन को कर ले तू , ठिकाना  अब

क़सम ली है, तो उस चौखट न जाना अब

समय बदला तो वो बदले , नज़र बदली

चलो कर लें  निकलने का  बहाना अब

 

वही आंसू , वही आहें  , वही   ग़म है

कहीं  पे  ख़त्म हो जाये  फ़साना  अब

 

झिझक ये ही हरिक दिल में, यही डर है

कहेगा क्या जो  जानेगा  ज़माना  अब

 

सुनो तितली , सुने  पंछी  बहारें   भी

मेरे उजड़े  हुये घर में , न  आना अब

 

कबूतर  बच  के गुम्बद से  कहाँ जाएँ

कहाँ  ढूंढें,  कहाँ  कर लें  ठिकाना अब

     

वही ज्ज़्बा, वही  बातें , वही   दिल है

मगर चेह्रा  लगा मुझको  पुराना  अब

 

नक़ाब  उलटा अयाँ सच की  हुई शक़्लें

करोगे  क्या  बताओ तो  बहाना  अब

*******************

मौलिक अवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

Views: 910

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2014 at 1:33pm

बहुत शुक्रिया , आ. वीनस भाई , ऐसे ही आते रहा कीजिये सीखना रुक गया है ।

Comment by वीनस केसरी on December 24, 2014 at 1:25pm
मतला अब बहुत बेहतर है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2014 at 6:52am

आदरणीय वीनस भाई , बहुत दिनो बाद आपको मंच पर देख के बे हद  खुशी हुई , आपको रोज़ देखना कब से नसीब होगा ? 

मतले की कमी बताने के लिये दिली शुक्रिया । मै उसे इस तरह सुधारना चाहता हूँ  - 

अकेले पन को कर ले तू  ठिकाना अब

क़सम ली है, तो उस चौखट न जाना अब ---- मिसरा सही हुआ क्या बताइयेगा ।

 

Comment by वीनस केसरी on December 24, 2014 at 4:06am

अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें

मतले के साथ नाइंसाफी हुयी है :)))
कोई रब्त नहीं दिखा ... पहला मिसरा संतोषजनक नहीं है

ये मेरा दिल, चलो इतना तो माना अब
क़सम ले ली, उसी चौखट में जाना अब

ये मेरा दिल, चलो इतना तो माना अब
क़सम ली है, तो उस चौखट न जाना अब

ये मेरा दिल, चलो इतना तो माना अब
क़सम ले ली, तो है उसको निभाना अब



आप बहुत कुछ कर सकते थे ...कुछ भी जिसमें रब्त होता


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 10:48am

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी सराहना ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया । आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 10:47am

आदरणीय भुवन भाई , आपका आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 9, 2014 at 10:15pm

आदरणीय गिरिराजभाईजी, आपकी ग़ज़ल केलिए हार्दिक बधाई ..
निम्नलिखित दो शेर तो मोह गये हैं. बहुत खूब !
सुनो तितली , सुने  पंछी  बहारें   भी
मेरे उजड़े  हुये घर में , न  आना अब

कबूतर  बच  के गुम्बद से  कहाँ जाएँ
कहाँ  ढूंढें,  कहाँ  कर लें  ठिकाना अब

क्या बात, क्या बात !
सादर

Comment by भुवन निस्तेज on December 9, 2014 at 3:48pm

बड़े ही अच्छे अशआर हुए हैं आदरणीय... ह्रदयतल से बधाई स्वीकार करें,...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 9, 2014 at 9:34am

आदरणीय मिथिलेश भाई , ओ बी ओ मे कभी भी उचित सलाह या ग़लती बताने मे कोई संकोच न करें , हम सब एक दूसरे से सीखते आये हैं ।

उस शे र मे ऐसी  कोई बड़ी बात नहीं है , और न ही समझने में कोई मुश्किल बात है ! आपने जैसे शेर कहा है , वो भी सही है , बस मुश्किल के बाद से और आना चाहिये ऐसा मुझे लगता है , लेकिन मिसरा बेबहर हो जायेगा । इसी लिये मै -- पड़ी मुश्किल  लिया है । दोनो शे र एक ही बात कह रहे हैं लगभग । सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 9, 2014 at 9:25am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी उपस्थिति ही मेरा उत्साह वर्धन करती है , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service