भूख(लघु कथा)
आखिरी बस जा चुकी।सन्नाटा पसर चला।उसे चूल्हे की आग बुझती-सी लगी,पर यूँ ही बैठी रही।अचानक उसका ध्यान भंग हुआ,
--बस छूट गयी क्या?
दूकान बंद करते पानवाले ने पूछा।
-नहीं,बस यूँ ही---उसने मुड़कर पीछे देखा।पानवाला उसे अंदर तक घूरता-सा लगा।
--अब कोई नहीं आयेगा,चल न मेरे यहाँ आज।
--नहीं,घर में बच्चे भूखे होंगे,और फिर तेरी घरवाली.........?
-मैके चली गयी है।बगल के…
Added by Manan Kumar singh on June 23, 2015 at 3:52pm — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on June 23, 2015 at 1:20pm — 8 Comments
बूँद बूँद बरसो
मत धार धार बरसो
करते हो
यूँ तो तुम
बारिश कितनी सारी
सागर से
मिल जुलकर
हो जाती सब खारी
जितना सोखे धरती
उतना ही बरसो पर
कभी कभी मत बरसो
बार बार बरसो
गागर है
जीवन की
बूँद बूँद से भरती
बरसें गर
धाराएँ
टूट फूट कर बहती
जब तक मन करता हो
तब तक बरसो लेकिन
ढेर ढेर मत बरसो
सार सार…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 23, 2015 at 12:08pm — 8 Comments
1212 1122 1212 22 /112
फ़लक पे जो मुझे अक्सर दिखाई देता है
वो आम लोगों में तनकर दिखाई देता है
अभी हैं बदलियाँ चारों तरफ से घेरी हुईं
तभी तो चाँद भी बदतर दिखाई देता है
जो तोप ले के चले साथ अपनें , वो हमको
कहें हैं हाथ में ख़ंजर दिखाई देता है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 23, 2015 at 9:00am — 22 Comments
विरह-हंसिनी हवा के झोंके
श्वेत पंख लहराए रे !
आज हंसिनी निठुर, सयानी
निधड़क उड़ती जाए रे !
अब तो हंसिनी, नाम बिकेगा
नाम जो सँग बल खाए रे !
होके बावरी चली अकेली
लाज-शरम ना आए रे !
धौराहर चढ़ राज-हंसनी,
किससे नेह लगाए रे !
कोटर आग जले धू-धूकर
क्यों न उसे बुझाए रे !
ओरे ! हंसिनी, रंगमहल से
कहाँ तू नयन उठाए रे !
जिस हंसा के फाँस-फँसी
कोई उसका सच ना पाए रे…
ContinueAdded by Santlal Karun on June 22, 2015 at 7:00pm — 11 Comments
विश्व पटल पर अगणित होकर
कोटि कोटि नव योगी बनकर
वसुधैव कुटुंबकम रूपम
स्वप्न हमारा योग दिवस की
शुभ प्राची में सच सा ही प्रतीत होता है ।
भारत स्वयं ही जनक योग का
करे निवारण रोग रोग का
निज संस्कृति घोतक स्वरुप
आरोग्य प्रदायक विश्व शांति के हित
अर्पण करने का श्रेय लेने को मनोनीत होता है
विश्व गुरु वाली वह संज्ञा
केवल संज्ञा भर न रह कर
ज्ञान ज्योति जवाजल्यमान हो
पुनः विश्व तम को हरने का दम भरकर
भारत अपना परचम…
Added by Aditya Kumar on June 22, 2015 at 12:50pm — 9 Comments
Added by kanta roy on June 22, 2015 at 10:00am — 24 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
ये हैं मरासिम उसकी मेरी ही निगाह के
तामीरे-कायनात है जिसका ग़वाह के
..
सजदा करूँ मैं दर पे तेरी गाह गाह के
पाया खुदा को मैंने तो तुमको ही चाह के
..
हाँ इस फ़कीरी में भी है रुतबा-ए-शाह के
यारब मै तो हूँ साए में तेरी निगाह के
..
जो वो फ़रिश्ता गुजरे तो पा खुद-ब-खुद लें चूम
बिखरे पडे हैं फूल से हम उसकी राह के
..
छूटा चुराके दिलको…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 22, 2015 at 9:13am — 40 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on June 22, 2015 at 6:30am — 12 Comments
कुछ कहा भी नहीं कुछ सुना भी नहीं
वास्ता बीच अब कुछ रहा भी नहीं
वक्त मेरा समझिये हुआ है फ़िजूल,
प्यार उनकी नज़र में दिखा भी नहीं
कौन कहता यहाँ लोग मासूम हैं,
बात करते नहीं कायदा भी नहीं
है पड़ोसी मगर हाल तो देखिये
,बोलता भी नहीं जानता भी नहीं
फ़लसफ़े जिन्दगी के अजीबो गरीब,
अब कहो क्या लिखें कुछ नया भी नहीं
मुफ़लिसी से हुआ बेअसर ये सबू ,
जाम पर जाम पीकर नशा भी…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 21, 2015 at 10:00am — 12 Comments
समय छिपा जा सूर्य चक्र में ,जहां दुनिया सारी डोले
धरती से लेकर आसमान में ,नित नये रहस्य को खोले !
कली के अंदर छिपे फूल में, अपना नाना रूप छिपाये
घूम- घूम कर मधुकर उपवन में, सुंदर राग सुनाये !
फूल के अंदर छिपे सुगंध में , अमृत के कण घोले…
ContinueAdded by Ram Ashery on June 21, 2015 at 10:00am — 1 Comment
योग भगाये तन के सब रोग,
मन में सच्चा विस्वास जगाए।
जो नित करे जीवन में योग,
भव बाधा जीवन से मिट जाएँ ॥
मन मस्तिष्क का सुंदर संयोग
चुस्त और तंदुरुस्त शरीर बनाए…
ContinueAdded by Ram Ashery on June 21, 2015 at 9:47am — 2 Comments
योग वस्तुतः है क्या ?
===============
इस संदर्भ में आज मनोवैज्ञानिक, भौतिकवैज्ञानिक और विद्वान से लेकर सामान्य जन तक अपनी-अपनी समझ से बातें करते दिख जायेंगे. इस पर चर्चा के पूर्व यह समझना आवश्यक है कि कोई व्यक्ति किसी विन्दु पर अपनी समझ बनाता कैसे है…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 21, 2015 at 3:30am — 26 Comments
" भाईसाहब , आपका शुभनाम ?
" जी , राजेश कुमार "।
" और आगे ?
" बस इतना ही , क्यों ?
" मेरा मतलब था कि कोई टाइटल नहीं लगाते आप "।
" जरुरी है क्या ", लहज़ा तल्ख़ हो गया ।
" अब लोगों को पहचाने भी तो कैसे ", अजीब सी नज़रों से देखते हुए वो आगे बढ़ गया ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 21, 2015 at 1:00am — 16 Comments
“अरे, पेपर कहाँ है ?” - राजेश ने पूछा.
“तुम्हे भी नहीं पता ? मुझे लगा हमेशा की तरह ले कर चले गये होगे फ़्रेश होने. कितनी बार कहा है सबसे बाद में पढा करो. तुम्हारे बाद कोई छूना नहीं चाहता है उसे.”
“कान्ता बाईऽऽऽ.. पेपर आया था आज ?” - संगीता चीखी.
“हां, मैने पेपर ले कर बेड पर रख दिया है..”
उधर बेड पर नन्हा चुन्नू पेपर ’पढ़ने’ में लगा था.
पहला पन्ना फ़्लिपकार्ट का ऐड था, जो बिस्तर के एक कोने में पडा़ था. हेड लाइन.. . सरकार ने भ्रष्टाचारियों पर… इसके आगे सुबह…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on June 20, 2015 at 10:30pm — 17 Comments
रात रानी क्यों नहीं खिलती हो तुम
भरी दुपहरी में
जब किसान बोता है
मिट्टी में स्वेद बूंद और
धरा ठहरती है उम्मीद से
जब श्रमिक बोझ उठाये
एक होता है
ईट और गारों के साथ
शहर की अंधी गलियों में
जहां हवा भी भूल जाती है रास्ता ।
तुम्हारी ताजा महक
भर सकती है उनमें उमंग
मिटा सकती है उनकी थकान
दे सकती है उत्साह के कुछ पल
कड़ी धूप का अहसास कम हो सकता है ।
पर तुम महकते हो रात में
जब किसान और श्रमिक
अंधेरे की चादर ओढ़े…
Added by Neeraj Neer on June 20, 2015 at 8:11pm — 8 Comments
हौसलों का पंछी -2(गतांक से आगे )
उनके बैठने के बाद मैं फिर पूछता हूँ-सारी कहानी क्या है ?और बस प्रकाश के नाम से ?
“उस समय काम अच्छा चल रहा था |उसे नासिक पढ़ने के लिए भेज दिए |सोचा कुछ बन जाएगा |पर- - - -वो साला चार साल तक पढ़ाई के नाम पर ऐययासी करता रहा |फिर सुधारने के लिए शादी कर दी |पर साला कुत्ता का पोंछ | सब चौपट करता गया |हम खून जला-जलाकर जोड़ते रहे वो दारू और रंडीबाजी में उड़ाता रहा | ”
“इसका मतलब आप ने अन्धविश्वास किया ?”
“बड़ा था मैं तो अपना फर्ज़ समझकर…
ContinueAdded by somesh kumar on June 20, 2015 at 7:30pm — 3 Comments
हजज मुसम्मन सालिम
1222 1222 1222 1222
तुम्हारी आँख का जादू ज़रा हमराज देखेंगे
भरा कैसा है सम्मोहन यही तो आज देखेंगे
कभी मैंने तुम्हें चाहा अभी तक दर्द है उसका
रहेगी कोशिशें मेरी तेरे सब काज देखेंगे
नहीं आसां मुहब्बत ये कलेजा मुख को आता है
यहाँ पर वश न था मेरा गिरेगी गाज देखेंगे …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 20, 2015 at 1:30pm — 5 Comments
शाम हो रही है
सूरज का तेज अब
मध्यम होता जा रहा है
शाम और खेल
का बड़ा अनूठा
सायोंग है
अब बस याद ही है
खेल और उसका खेला की
एक खेल था
ऊंच-नीच
समान्यतः यह खेल घर
के आँगन मे ही
खेलते थे, चबूतरे पर
नाली की पगडंडियों पर
हम सब ऊपर रहते थे
और चोर नीचे
हमे अपनी जगह बदलनी होती थी
और चोर को हमे छूना होता था
अगर छु लिया तो
चोर हमे बनना होता था
बड़ा…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on June 19, 2015 at 8:43pm — 4 Comments
हौसलों का पंछी(कहानी,सोमेश कुमार )
“हवा भी साथ देगी देख हौसला मेरा
मैं परिंदा ऊँचे आसमान का हूँ |”
कुछ ऐसे ही ख्यालों से लबरेज़ था उनसे बात करने के बाद |ये उनसे दूसरी मुलाकात थी|पहली मुलाक़ात दर्शन मात्र थी |सो जैसे ही बनारस कैंट उतरा तेज़ कदमों से कैंट बस डिपो के निकट स्थित उनके कोलड्रिंक के ठेले पर जा पहुँचा |जाने कौन सी प्रेणना थी कि 4 घंटे की विलंब यात्रा और बदन-तोड़ थकावट के बावजूद मैंने उनसे मिलने का प्रण नहीं छोड़ा |
“दादा,एक छोटा कोलड्रिंक दीजिए|” मैंने…
ContinueAdded by somesh kumar on June 19, 2015 at 7:52pm — 1 Comment
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |