For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,927)

काम का आदमी ( लघुकथा )

" मंजू के यहाँ आज बडी़ वाली एल ई डी भी आ गई । पिछले ही महिने उसने गाड़ी भी ली थी । और एक आप है ...!!!"

" मै क्या ....? क्या कहना चाहती हो तुम ?"

वहीं पास के विडियो गेम में लगे बेटे ने भी कंधे को उचका कर पिता की ओर देख फिर अपने गेम में व्यस्त हो गया ।

" मै क्या कहूँगी भला आपसे .! आपकी ही आॅफिस का बाबू है वो ..और आप अधिकारी होकर भी किसी काम के नहीं ..! "

" किसी काम का नहीं मै ....? "- मन में रह - रह कर एक ही बात अब घुम रही थी कि वे क्या किसी काम के नहीं है सच में ..? कल…

Continue

Added by kanta roy on June 17, 2015 at 1:30pm — 22 Comments

भाभी माँ

“क्या बना रही है रूपा” बगल वाली चाची की आवाज़ सुन कर रुपाली ने सिर उठा कर ऊपर देखा और मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा . “आइये चाची जी ..बस धूप मे बैठी थी तो सोचा कुछ काम ही कर लूँ. आप बैठिए मै माँ को बुलाती हूँ.” “नही बेटा तू अपना काम कर मै भीतर जाकर मिल लेती हूँ.” और चाची प्यार से रूपा के सर पर हाथ फेर कर अंदर चली गई. सामने से रूपा की माँ आती दिखी. पड़ोसन से रहा न गया खुश होते हुए बोली “जीजी ! बड़ी गुणी है अपनी रूपा जिस घर जायेगी स्वर्ग बना देगी” रूपा की माँ कुछ न बोली बस हँस कर सर हिला दिया. “नही जीजी… Continue

Added by Seema Singh on June 17, 2015 at 12:59pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
फिल बदीह ग़ज़ल(राज)

२१२२ २१२२ २१२   

 

चाँद को जो गुनगुनाना आ गया

चाँदनी को मुस्कुराना आ गया

 

 दीप राहों में जले कुछ इस कदर

 याद इक  मंजर पुराना आ गया

 

देख कर अठखेलियाँ वो अब्र की

 पंछियों को चहचहाना आ गया

 

मौतं से भी हो गई थी आशिकी

, जंग में जब जाँ लुटाना आ गया

 

पड़ गई कुछ जान उस मासूम में,

 पेट में जब एक दाना आ गया

 

जिंदगी की देखकर जद्दोजहद  ,

जोश हमको आजमाना…

Continue

Added by rajesh kumari on June 17, 2015 at 10:30am — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - फिल बदीह -- अब ज़रा सा मुस्कुराना आ गया ( गिरिराज भंडारी )

 2122    2122    212

क्या वही फिर से ज़माना आ गया ?

आदमी को दोस्ताना आ गया

 

शर्म उनकी आँखों मे दिखने लगी

इसलिये नज़रें चुराना आ गया

 

फ़िक्र अब करते नहीं यादों की हम

अब हमें उनको भुलाना आ गया

 

ऊब कर रोने से दिल को देखिये  

अब…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 17, 2015 at 9:00am — 22 Comments

ग़ज़ल -- कश्तियाँ बरसात में

2122-2122-2122-212

.

मुस्कुरा कर कह रही कुछ झुर्रियाँ बरसात में

देखीं थीं हमने कभी रंगीनियाँ बरसात में

.

आज का बचपन न जाने कौन सी चिन्ता में गुम

अब नहीं कागज़ की दिखतीं कश्तियाँ बरसात में

.

ज़ेह्न में रच बस गया है अब तो उनका ज़ायका

माँ खिलाती थी हमें जो पूरियाँ बरसात में

.

आज घर में शाम को चूल्हा जलेगा किस तरह

कह रही मजदूर की मजबूरियाँ बरसात में

.

मेरे घर की छत गिरी थी या गिरा था आसमाँ

जो हुईं उस रात थीं दुश्वारियाँ बरसात…

Continue

Added by दिनेश कुमार on June 17, 2015 at 8:34am — 14 Comments

गजल //// इश्क में हूँ जांबलब

2122  2122 2122 2  

फाईलातुन  फाईलातुन  फाईलातुन फा  

हम किसी से मिलने उसके घर नहीं जाते

आप भी  है जिद  में मेरे दर नहीं आते

 

बेबसी  महबूब  की किस भाँति  समझाऊँ  

आज भी  उनको   मेरे  चश्मेतर नहीं भाते

 

जिन्दगी  बीती  है उनकी  सूफियाना सी   

मस्त तो है  रहते   साजो पर नहीं गाते

 

इश्क  में हूँ  जांबलब  मेरा  भरोसा क्या

फ़िक्र उनको  कब है  चारागर  नहीं लाते

 

एक साया उसका   बांटी  जिन्दगी…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 16, 2015 at 9:30pm — 34 Comments

गजल-सुख की भी दोस्त गम सी तासीर बन गयी है।

221 2122 221 2122



नाकामयाबी मेरी तकदीर बन गयी है।

अब जिन्दगी ये गम की तस्वीर बन गयी है।।



मरहम समय का भी कुछ आराम दे न पाया।

ये चोट अब जिगर की जागीर बन गयी है।।



उलझी पडी है उल्फत की बेडियों में साँसें।

यादों से मिल के धडकन भी तीर बन गयी है।।



सुनती है गर कहीं तू इक बार आ के मिल ले।

रो रो के मेरी हालत गम्भीर बन गयी है।।



हँसता हुँ तब भी चहरा छोडें नहीं उदासी।

सुख की भी दोस्त गम सी तासीर बन गयी है।।



आँखों ने… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on June 16, 2015 at 7:30pm — 26 Comments

मेरी बेटी( तीसरी कविता)___मनोज कुमार अहसास

आज दोपहरी जब कमरे पर

पहुँचा थका थकाया सा

सबसे पहले पहुँच गया था

वहाँ कोई भी अभी नहीं था

चला के पँखा लेट रहा था

चीं चीं की आवाज़ सुनी तो

बाहर जाकर देखा मैंने

दो चिड़ियाएँ फुदक रही है

चीं चीं चीं चीं

पास गया तो उड़ जाती थी

फुदक फुदक फिर आ जाती थी

पहले कभी नहीं देखा था

आज यें पहली बार मिली है

याद तुम्हारी दिला रहीं है

मेरी बिटिया

चिड़िया सी बिटिया

तेरी बोली इन चिड़ियों में मिल सी गयी है

घुल सी गयी है

इनके आजाने पर… Continue

Added by मनोज अहसास on June 16, 2015 at 5:48pm — 20 Comments

बारिश की पहली बूँदें (मुक्त कविता)

बारिश की पहली पहली फुहार

और सिग्नल का ये इंतज़ार

नजरें बरबस विंड स्क्रीन पर अटक गयीं

बारिश की बूँदें ढल रही थीं

एक एक कर बड़ी कठिनाई से बूँद सरकती

धीरे से दूसरी बूँद से जा मिलती

फिर थोड़ी सी रफ़्तार बढती

दोनों मिलकर तीसरी बूँद से मिलती

और फिर तेज़ रफ़्तार से ढुलक जाती

 

सोचें सरकने लगीं यूँ ही

कारवां भी ऐसे ही बनता है

किसी नए इंसान से मिलना

काफी कठिन लगता है पहली बार

दो मिलकर तीसरे से मिलने…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on June 16, 2015 at 12:30pm — 11 Comments

''खुशबू ओढ़ कर निकलता है''

२१२   १२१२   २२

 

खुशबू ओढ़ कर निकलता है

फूल जैसे कोई चलता है

..

 

रास्ते महकते हैं सारे

जिस भी सिम्त वो टहलता  है

..

 

हुस्न आफ़रीं कि क्या कहने 

जो भी देखे हाथ मलता  है

..

 

गो धनुक है पैरहन उसका       (धनुक=इन्द्रधनुष)

सात रंग में वो ढलता है

..

 

रंगा मुझको जाफ़रानी यूँ         (जाफ़रानी=केसरिया)

रात-दिन चराग़ जलता है

..

 

इश्क मुझको भी है…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 16, 2015 at 10:00am — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - फिल बदीह -- फिर किसी सलमान को ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122    2122     212

***************************************

दें सहारा, लड़खड़ाते आ रहे नादान को

पूछ तो लें बोझ कितना है, भले इंसान को

 

तू समन्दर पास आँखें खोल के रखना नहीं

ठेस लग जाये न तेरे ज्ञान के अभिमान को  

 

ओ मेरे फुटपाथ पे सोये हुये मित्रों,  जगो !

क्यों बुलावा दे रहे हो फिर किसी सलमान को

 

कोशिशें तो खूब की आँसू गिरे, महफिल ने…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 16, 2015 at 8:00am — 16 Comments

किराए का घर--

किराए का घर--

शरीर,

लोभी और भोगी

सदैव आकर्षक, चकमक

किराए का घर

हवस की दीवारों पर टिकी

अहं - विकार की छत

बिखरी श्वेत चॉदनी पर चढा़ता

चाटुकारिता का रंग

टाड़-अलमारियों से झॉंकते

छल और कपट

सब मौन है।

ताख का टिमटिमाता दिया

किराएदार

आत्मा का वर्चस्व, संयमी-उद्यमी

र्निलिप्त कर्मो का प्रदाता

सॅवारता है सभी प्रकोष्ठ, सभ्य आचरण भी

बन्द खिड़कियो से चिपका

विवेक का वातानुकूलित सयंत्र

अनुरक्षण के दायित्व से…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2015 at 10:51pm — 6 Comments

सौदा ( लघुकथा )

"वाह बनर्जी साहब ! आपके बाग़ की खूबसूरती देख़ कर हृदय गदगद हो जाता है ।और हो भी क्यों न ? आपने जो अपने बच्चों की तरह इन्हें सजाने-सँवारने में जीवन लगा दिया ।"



"हाँ लालाजी ।जवानी में यही सोच के रोपे थे कि इनकी छाँव में अपनी जीवन संध्या गुजारूँगा ।सो बस वही कर रहा हूँ ।"



" पर मैंने सुना है , आप सारे पेड़ों के फल पड़ौसियों और रिश्तेदारों में मुफ़्त ही बाँट देते हैं।भला ये क्या मूर्खता हुई , जबकि आपको इन उन्नत किस्मों के बाज़ार में मुँह-माँगे दाम मिल सकते हैं।"



" लालाजी !… Continue

Added by shashi bansal goyal on June 15, 2015 at 9:30pm — 16 Comments

कोई बावफा कैसे दिखे

कोई हमनफस कैसे दिखे 

कोई हमनवा कैसे रहे 

बतलाए मुझको कोई तो

कोई बावफा कैसे दिखे...

तुम बदलते रूप इतने 

और बदलकर बोलियाँ 

खोजते रहते हो हममें 

वतनपरस्ती के निशाँ..

हम प्यार करने वाले हैं 

हम जख्म खाने वाले हैं 

हम गम उठाने वाले हैं 

हम साथ देने वाले हैं 

अकीदे का हर इम्तेहां 

हम पास करते आये हैं

किसी न किसी बहाने 

तुम टांग देना चाहते हो 

जबकि हमारे काँधे पे 

देखो…

Continue

Added by anwar suhail on June 15, 2015 at 8:07pm — 2 Comments

जिजीविषा

सड़क के बीचो –बीच नन्ही सी कोपल को पैर तले आते देख मनीष सिहर गया था .क्या करने जा रहा था .तपती धरा ,गर्म हवा ,पथरीली जमीन पर पसरा पिघला डामर,अंगुल बराबर हैसियत पर टक्कर इनसब से.सीना ताने उस हरीतिमा की जिजीविषा ने उसे हिम्मत से लबरेज कर दिया कि वह मजबूती से घर में सबसे बोल सके कि गर्भ में बेटी है तो क्या वह उसे पोषित करेगा .जिबह के लिए जाती बकरी सम उसकी पत्नी खिल गयी और कभी जुबान नहीं खोलने वाले बेटे के जुर्रत पर माता पिता थम गए .नेपथ्य में नन्हा अंकुर एक बड़े से फलदार पादप में…

Continue

Added by Rita Gupta on June 15, 2015 at 5:55pm — 21 Comments

उमस(सोमेश कुमार)

उमस(सोमेश कुमार )

“ आज तो चलना है ना, “सरोजनी नगर मार्किट ” पल्लवी ने थोड़ा नाराजगी भरे लहजे में कहा

”हाँ-हाँ बाबा,पक्का, कसम से ” आयाम बोला

“कब ?”

“काम निपटा लो, फिर चलते हैं ११-१२ बजे तक”

१०.३० बजे नाश्ता करने के बाद बिस्तर पर उंघते हुए- “पल्लवी , कैंसिल करते हैं याsर, सोने का मन कर रहा है| उमस भी है|सारा बदन –चिपचिप-चिपचिप हो रहा है | “

“हाँs , ना तो ये उमस कम होगी और ना ही तुम्हारे मन की उमस जाएगी |अब भी तो वही है तुम्हारे ख्यालो में- - - - तुम्हें शीतल करती,… Continue

Added by somesh kumar on June 15, 2015 at 2:16pm — 13 Comments

सोशल-सिक्योरिटी -- डॉo विजय शंकर

  

  बच्चा करीब छह महीने का हुआ था ,लेटे - लेटे इधर उधर देखता और रोने लगता।  माँ - बाप उसे बहलाने की कोशिश करते पर वह चुप नहीं होता।  परेशान माँ - बाप उसे डॉक्टर के पास ले गए।  डॉक्टर ने उसे देखा और कहा, बच्चा बिलकुल ठीक है , इसे स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई समस्या नहीं है।  पर बच्चा था कि शांत ही नहीं होता , जो खिलौना दिया जाता उसे फेंक देता, गुस्सा दिखाता और रोने रोने को हो जाता। 



   परेशान माँ - बाप उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले गये. उसने परीक्षण किया, कहा बच्चा बिलकुल…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2015 at 1:41pm — 22 Comments

स्याह धब्बा

स्याह धब्बा

ढलते सूरज-से रिश्ते की बुझती लालिमा

सिकुड़ती सिमटती जा रही

अनकही बातों के अरमानों की

अप्राकृतिक अकुलाहट

अपने ही कानों में भयानक

दुर्घटना-सी…

Continue

Added by vijay nikore on June 15, 2015 at 8:41am — 24 Comments

अंतर्द्वंद ( लघुकथा )


" दिमाग ख़राब हो गया है इस लड़की का ", मम्मी बुरी तरह परेशान थीं । इतना अच्छा घर और वर था फिर भी मना कर दिया । अपने आप को कोस रही थीं कि क्यों सब बता दिया उसको ।
" आपको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता , इतने अस्पृह कैसे रह सकते हैं आप लोग "।
" अरे , घर में कौन काम करता है , इसमें तुम्हे क्या दिक़्क़त है "।
" माँ , जो इंसान अपने घर में एक बच्चे के काम करने पर इतना संवेदनहीन हो सकता है , वो मेरे प्रति संवेदनशील रह पायेगा "?
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on June 15, 2015 at 2:39am — 18 Comments

गज़ल,,,,,

                       

एक गज़ल,,,,

===========================

वज़्न = २१२२   २१२२  २१२२ २१२

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन

===========================



सूख जातॆ फ़ूल पत्तॆ शाख़ भी हिलती नहीं !!

क्यूँ ग़रीबी कॆ बगीचॆ मॆं कली खिलती नहीं !!(१)



बॆटियॊं का बाप हूँ दिल जानता है सच सुनों,

आज कॆ इस दौर मॆं बॆटी सहज पलती नहीं !!(२)



बात करतॆ हॊ यहाँ अच्छॆ दिनॊं की खूब तुम,

तीरग़ी सॆ है भरी यॆ रात क्यूँ ढलती नहीं !!(३)



दॆख लॊ मुझकॊ…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 15, 2015 at 12:16am — 12 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service