Added by विवेक मिश्र on June 11, 2015 at 8:46pm — 10 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २
पैसा जिसे बनाता है
उसको समय मिटाता है
यहाँ वही बच पाता है
जिसको समय बचाता है
चढ़ना सीख न पाये जो
कच्चे आम गिराता है
रोता तो वो कभी नहीं
आँसू बहुत बहाता है
बच्चा है वो, छोड़ो भी
जो झुनझुना बजाता है
चतुर वही इस जग में, जो
सबको मूर्ख बनाता है
-----------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 11, 2015 at 6:54pm — 16 Comments
2212 1212 221 122
दर्पण को देख हुस्न यूं शर्माने लगा है
लगता खुमारे इश्क उस पे छाने लगा है
उंगली में चुनरी लिपटी है दांतों से दबे ओंठ
इक दिल धड़क धड़क के नगमे गाने लगा है
जगते हैं पहरेदार भी आँखों के निशा में
ख्वावो में उनके जबसे कोई आने लगा है
रुक-रुक के सांस चलती है नजरों में उदासी
सीने से दिल निकल के जैसे जाने लगा है
कलियों के साथ देख के भंवरों को वो तन्हा
कुछ कुछ समझ…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 11, 2015 at 2:00pm — 12 Comments
रमल मुसम्मन सालिम
2122 2122 2122 2122
खो गए जो मीत बचपन के सिकंदर याद आते
ध्यान में आह्लाद के सारे समंदर याद आते
गाँव की भीगी हवा आषाढ़ के वे दृप्त बादल
और पुरवा के उठे मादक बवंडर याद आते
आज वे वातानुकूलित कक्ष में बैठे हुए हैं
किंतु मुझको धूप में रमते कलंदर याद आते
नित्य गोरखधाम में है गूँजती ‘आदित्य’ वाणी
देश को…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2015 at 11:00am — 19 Comments
नन्हा यश अंग्रेजी के शब्द जैसे गुड-बैड, स्माल-बिग ,ब्यूटीफुल-अग्ली(ugly) सीख रहा था .एक दिन स्कूल से आते ही उसने अंग्रेजी की पुस्तक निकाली और बोला
“माँ,ये देखो ये फोटो बिलकुल तुम्हारी जैसी है ,मैंने इसे ही ब्यूटीफुल लिखा तो टीचर ने गलत कर दिया .उन्होंने इस फ्रॉक वाली को ब्यूटीफुल बताया और इसे अग्ली,ऐसा क्यों? “
“बेटा,जिसे तुम मेरी जैसी समझ रहे हो वह तो सांवली है जबकि ये गोरी –चिट्टी है,इसलिए सुंदर वही हुई ना “
यश माँ को ध्यान से देखने लगा , रंग भेद की पहली कक्षा में उसकी…
ContinueAdded by Rita Gupta on June 11, 2015 at 10:30am — 25 Comments
Added by shashi bansal goyal on June 11, 2015 at 8:30am — 26 Comments
2122 1212 22 / 112
"क्या ज़माने से डर गया कोई
एह्द क्यूँ तोड़ कर गया कोई"
ख़्वाब मेरे कुतर गया कोई…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 6:30am — 23 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 6:00am — 22 Comments
" क्यों नहीं हो सकता ये , मैं रह सकती हूँ तुम्हारे घर तो तुम क्यों नहीं रह सकते मेरे घर शादी के बाद "|
" लेकिन लोग क्या कहेंगे , घर जमाई बन गया | मेरे घरवाले भी तो तैयार नहीं होंगे "|
" जब मुझसे शादी का फैसला किया था , तब क्या लोगों की परवाह की थी तुमने | और तुम्हारे घर तो भैया का परिवार है ही , मैं तो एकलौती लड़की हूँ अपने पेरेंट्स की , उनको कैसे अकेला छोड़ दूँ "|
" ठीक है , मैं घर में बात करता हूँ | क्या हम लोग आते जाते नहीं रह सकते "|
" आते जाते तो हम लोग यहाँ से भी रह सकते…
Added by विनय कुमार on June 11, 2015 at 2:29am — 20 Comments
Added by somesh kumar on June 10, 2015 at 9:02pm — 4 Comments
“जज साहब, पहले ही मैं उस पहिये के नटबोल्ट टाईट करके रखता तो आज तलाक तक नौबत नहीं आती और गाड़ी सही चलती.. गलती मेरी ही है” “तुम पेशे से मकेनिक हो क्या”?जजसाहब ने चुटकी ली| “जी साहब,मेरा गैरेज है”|
अगला केस ...
“आपको ये तो पता ही होगा मैडम कि पति पत्नी गाड़ी के दो पहियों के समान”...”जी जी अच्छे से पता है पर जंग लगे स्क्रू फिट हों पहिये में तो धोखा तो देंगे ही न!! पहले ही उसके स्क्रू टेस्ट कर लेती तो आज नौबत तलाक तक न पँहुचती और जब पहिया कंडम हो जाता है तो बदलना भी पड़ता…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 10, 2015 at 12:30pm — 8 Comments
2122-1122-22.
अपनी मंज़िल की जो हसरत करना
घर से चलने की भी हिम्मत करना
.
कोई तुझको जो अमानत सौंपे
जान देकर भी हिफ़ाजत करना
.
कहना आसान है करना मुश्किल
दुश्मनों से भी मुहब्बत करना
.
आज बचपन में है वो बात कहाँ
वक़्त बे-वक़्त शरारत करना
.
तेरे भीतर का ख़ुदा जाग उठे
इतनी शिद्दत से इबादत करना
.
सिर्फ कहने को ही तेरा न हो वो
उसके दुख दर्द में शिरक़त करना
.
फ़र्ज़ औलाद का यह होता 'दिनेश'
अपने माँ बाप की…
Added by दिनेश कुमार on June 10, 2015 at 10:46am — 16 Comments
Added by Manan Kumar singh on June 9, 2015 at 10:52pm — 3 Comments
इतने कांटे
कि उनसे बचते-बचते
गुलाब क्या
हर फूल से हम
दूर हो गए .......... 1.
पेड़ कहीं जाते नहीं
फल पक जाएँ
तो रुक पाते नहीं....... 2 .
तुम क्या गये
मेरी तन्हाई
भी ले गये .......…… 3.
और यह भी , यूँ ही,
उनका लिखा शेर खूब चला, खूब चला, खूब चला,
चलना ही था , ट्रक के पीछे जो लिखा था ॥
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2015 at 9:30pm — 23 Comments
टूट टूट के अपना दिल कुछ जाली सा हो गया
अंतरमन का वो कोना कुछ खाली सा हो गया
वस्ल की निगाहें हो गयी, दोस्ती की आड़ में
नारी होकर जीना अब कुछ गाली सा हो गया
नजरों में घुली शराब, चाचा मामा भाई की
आँखों में हर रिश्ता, अब कुछ साली सा हो गया
गर्दिश में लिपटी कनीज़, सहारे की तलाश में
मन अकबर शज़र का भी, कुछ डाली सा हो गया
शोर में दब के रह गयी आबरू की आवाज
चीखती ललना का स्वर, बस ताली सा हो…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on June 9, 2015 at 3:30pm — 13 Comments
आओ न !
मेरे शब्दों को सांसें दे दो
हर क्षण तुम्हारी स्मृतियों में
मेरे स्नेहिल शब्द
तुम्हें सम्बोधित करने को
आकुल रहते हैं
गयी हो जबसे
मयंक भी उदासी का
पीला लिबास पहन
रजनी के आँगन में बैठ
तुम्हारे आने का इंतज़ार करता है
न जाने अपने प्यार के बिना
तुम कैसे जी लेती हो
यहाँ तो हर क्षण तुम्हारी आस है
तुम बिन हर सांस अंतिम सांस है
तुम नहीं जानती
तुम्हारी न आने की ज़िद क्या कहर ढायेगी
जिस्म रहेंगे मगर
जिस्मों से…
Added by Sushil Sarna on June 9, 2015 at 2:44pm — 16 Comments
१२१२-११२२-१२१२-२२
निग़ाहे नाज़ से देखो, करो शिकार मेरा
तुम आजमाओ सनम दिल ये एक बार मेरा
.
तू आरज़ू है मेरी और तू है प्यार मेरा
तेरी वफ़ा पे है अब जीने का मदार मेरा
.
तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने
तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा
.
मुआमलात-ए-जवानी कहे नहीं जाते
न पूछ कौन है हमदम, कहाँ क़रार मेरा
.
वो मुझसे बात तो करता है, पर वो बात नहीं
" बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा "
.
वो बदगुमाँ है जो, कमज़र्फ़ मुझको…
Added by दिनेश कुमार on June 9, 2015 at 2:21pm — 20 Comments
रुकी-रुकी सी इक ज़िन्दगी –सिक्वेल 2
25 साल का सोनू मुझसे चार साल बाद मिल रहा था |इससे पहले जब मिला था तो उसकी शादी नहीं हुई थी |यूँ तो उसका मेरे घर पर बराबर आना-जाना है |पर दिल्ली में रहने और एकाध दिन के लिए ही गाँव में ठहरने के कारण उससे चार सालों से नही मिला था |जाति से लुहार और पेशे से ट्रक-ड्राईवर |पर मेरे पिताजी से उसके पिताजी और उसके आत्मीय सम्बन्ध थे |बस पिताजी की एक छोटी सी मदद के बदले पूरा परिवार मेरे पिता के लिए हमेशा खड़ा रहता था |जब उसकी शादी तय हुई तो पिताजी दिल्ली…
ContinueAdded by somesh kumar on June 9, 2015 at 1:12pm — 3 Comments
रमल मुरब्बा सालिम
2122 2122
क्या ज़माने आ गये हैं ?
बेशरम शर्मा गये हैं I
था भरोसा बहुत उनका
वे मगर उकता गये हैं I
पोंछ लें आंसू कृषक अब
स्वर्ण वे बरसा गये हैं I
देखकर अंदाज तेरे
हौसले मुरझा गये है I
लाजिम है हो नशा भी
जाम जब टकरा…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 9, 2015 at 11:34am — 24 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 8, 2015 at 5:39pm — 22 Comments
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