उसका सपना था कि वो अंतरिक्ष में जाये , उस धवल और खूबसूरत चाँद को छुए जिसके बारे में वो पढ़ती रही थी | आखिरकार उसे दाखिला मिल गया विदेश की एक यूनिवर्सिटी में |
लेकिन पैसों का इंतज़ाम , ऐसे में याद आया वो |
" तुझे चाँद छूने से कोई नहीं रोक सकता ", वादे पर ऐतबार करके उसके साथ निकल गयी बत्तियों से जगमगाते महानगर की ओर |
अब उस सीलन भरे कोठे में रातों को चांद , सपनों की तरह बहुत मटमैला दिखता था |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 8, 2015 at 3:46pm — 22 Comments
Added by shree suneel on June 8, 2015 at 2:01pm — 22 Comments
Added by Samar kabeer on June 8, 2015 at 11:09am — 36 Comments
दिया गया मिसरा -"चिलचिलाती धूप में जब मोम से रिश्ते मिले।"
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2122 2122 2122 212
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 7:30am — 30 Comments
रात में धमाका हुआ , पूरा ट्रक उड़ गया , कोई नहीं बचा ।
सारी टोली अगले दिन टी वी पर चिपकी थी , अपने विजय का दृश्य और उसका असर देखने के लिए ।
उन समाचारों में बस उसी विस्फ़ोट की गूँज थी और सारे देश में उसी पर चर्चा हो रही थी । लेकिन फिर टी वी पर आये उस दृश्य को देखकर वो सब निशब्द रह गए जिसमे तीन साल की बच्ची विस्फोट में मृत अपने पिता के शरीर से लिपट कर रो रही थी ।
उसने कोई सवाल नहीं पूछा लेकिन उसके सवालों का उनके पास कोई ज़वाब नहीं था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 7, 2015 at 11:58pm — 29 Comments
"सुनो! आजकल न्यूज चैनल पर अदालती कार्यवाही की खबर सुनकर, यूँ लगता है कि क़ानून तेज और सबसे ऊपर है"
"हाँ! बिलकुल सही कह रही हो. यार! रिमोर्ट कहाँ है..? थोड़ा वाल्यूम कम करना, वकील साहब का फोन आ रहा है "
"नमस्ते वकील साहब! कहाँ तक पहुंचा मामला..? अगली तारीख कब है..? "
"उन लोगों ने कहीं से कुछ साक्ष्य प्रस्तुत किये है हम कमजोर पड़ सकते हैं. और अगली तारीख इसी माह है..?
"इसी माह्ह्ह.. वकील साहब! इतनी गर्मी पड़ रही है. मेरा परिवार के साथ सैर-सपाटे पर जाने का प्लान है. आप…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2015 at 3:30am — 19 Comments
"अरे मिश्रा जी ,इतना सामान कहाँ ले जा रहे हैं "-पड़ोस के एक सज्जन ने पूछा |
"कुछ नही ,भाई रमेश ,मेरे बेटे का बी.टेक में सिलेक्शन हो गया है न ,उसे हास्टल छोड़ने जा रहा हूँ"-मिश्रा जी ने बड़े गर्व से कहा |
"देखो ,बेटे ,वहां सभी गन्दी चीज़ों से दूर रहना ,अब तक तो हम तेरे साथ थे ,अब तुझे खुद ही सब कुछ करना होगा "-बेटे को समझाते हुए मिश्रा जी ने कहा |
बेटा जो अभी कच्ची मिटटी था ,अपने माँ बाप से कभी दूर नही हुआ आँखों में आंसू भरकर बोला "जी,पिता जी"
इतना कह कर बेटा…
ContinueAdded by maharshi tripathi on June 6, 2015 at 8:00pm — 16 Comments
२२२२ २२२२ २२२२
दुनिया ने तो काँटे बोये कैसे कैसे
चुन-चुन कर हम कितना रोये कैसे कैसे
काँटों तक ही दर्द नहीं सीमित था अपना
बातों- बातों तीर चुभोये कैसे कैसे
तुमको देखा तो जाने क्यों आया जाला
मल-मल कर आँखों को…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 6, 2015 at 6:00pm — 27 Comments
Added by मनोज अहसास on June 6, 2015 at 5:00pm — 24 Comments
लघु कथा - ऊंचाई
''पापा पापा जल्दी आओ, आफिस में देर हो रही है। ''
'' ओफ्फो ! एक मिनट तो रुको। ज़रा चप्पल तो पहन लूँ। द्वारका प्रसाद ने घर भीतर से आवाज़ दी। ''
''आ गया आ गया मेरे बेटे। ''
''इतनी देर कहाँ लगा दी पापा आपने। "
''वो बेटे पहले तो चप्पल नहीं मिली और मिले तो पहनते ही उसका स्टेप निकल गया बस इसी में थोड़ी देर हो गयी। द्वारका प्रसाद ने आँखों के चश्मे को ठीक करते हुए कहा। ''
''राहुल ने चमचमाती नयी गाड़ी का दरवाजा खोला और कहा चलो जल्दी बैठो। ''
वृद्ध…
Added by Sushil Sarna on June 6, 2015 at 4:00pm — 40 Comments
जब से पता चला है कि रत्ना एक समय धन्धा करती थी, तब से पूरे समूह की दूसरी औरतों के चेहरे पर उसके प्रति नपंसदगी और तनाव साफ देखा जा सकता है. पर किसी में हिम्मत नहीं थी कि उसका विरोध कर सके क्योंकि सबको दीदी का डर सता रहा था. मै ये बात एक स्वयं सहायता समूह “उदया” की कर रही हूँ जो हस्तशिल्प का काम एक एन.जी.ओ. के लिए करता है, जिसे विभा दीदी संचालित करती हैं. समूह की अध्यक्षा सरला से जब रहा नहीं गया तो उसने सबसे सलाह कर दीदी से बात करने की ठानी.
आज जब विभा आई तो उसने सबके बीच पसरे…
ContinueAdded by Veena Sethi on June 6, 2015 at 2:00pm — 7 Comments
मुतदारिक मुसम्मन सालिम
212 212 212 212
आपकी थी हमें भी बहुत कामना
आज संयोग से हो गया सामना
आँख से आँख अपनी मिली इस तरह
रस्म भर ही रहा हाथ का थामना
मयकशीं जो करूं तो नशा यूँ चढ़े
और आये कभी हाथ में जाम ना
इश्क आँखों में जब से लगा नाचने
हो गयी पूर्ण …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 6, 2015 at 12:30pm — 20 Comments
ये मेरे दिल में जो तूने
एक भांग का पौधा
बो दिया था
अब वो बड़ा हो गया है
और लत लग गई है मुझे
रोज़ दो पत्ती खाने की...
प्यार के नशे में तेरे
डूबना बड़ा अच्छा लगता है
कहते हैं कि नशा गुनाह है
मगर यहाँ किसे परवाह है
अगर मैं मुजरिम हूँ
तो सिर्फ़ तेरा
तू चाहे जो सज़ा दे दे
मंज़ूर है सब
मगर शर्त ये है कि
कभी कभी इसे सींच देना
अपने एहसासों की बौछार से…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 6, 2015 at 5:46am — 20 Comments
सभा कक्ष में सन्नाटा था , औचक़ मीटिंग बुलाई गयी थी । सभी कयास लगा रहे थे कि क्या वज़ह हो सकती है इसकी । इतने में जिलाधिकारी महोदय ने प्रवेश किया , पीछे पीछे मुख्य विकास अधिकारी और अन्य अधिकारीगण भी अंदर आये । बिना समय जाया किया जिलाधिकारी साहब मुद्दे पर आ गए ।
" अभी अभी मुख्यमंत्री सचिवालय से फोन आया है कि मुख्यमंत्री महोदय परसों पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण के लिए अपने जिले में आ रहे हैं । किस जगह पर ये कार्यक्रम करवाना ठीक रहेगा , आप लोग अपनी राय दें "।
अभी उनकी बात ख़त्म भी नहीं…
Added by विनय कुमार on June 6, 2015 at 2:28am — 16 Comments
हीरा - क्या ज़माना आ गया , लोगों को बताना पड़ता है , मैं हीरा हूँ , हीरा। बड़ा महंगा होता ही हीरा।
मेरी चमक दूर दूर तक जाती है. कभी राज के राज तबाह हो जाते थे हमारे लिए.
एक नज़र हमें देख कर लोग अपने नसीब को सराहते थे।
रानी - राजकुमारियों को हमारे हार ही सुहाते थे।
( आह भर कर ) अब तो जैसे कोई हमें चाहता ही नहीं। पहचानता भी नहीं.
कोयला - हाँ भाई , बात तो सही है, पर मेरे भाई , वक़्त वक़्त की बात होती है,…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on June 5, 2015 at 7:30pm — 18 Comments
“अरे गुप्ता जी, ये क्या कर रहे हैं आप ?”
“बेटे के स्कूल में पर्यावरण दिवस पर एक नाटक है.. और उसको एक पेड़ बनना है.. इसीलिये ये डालियाँ काट-काट कर उसे दे रहा हूँ.”
“आपने तो इसे पूरा ही काट डाला.. अब तो ये कायदे का पेड़ बनने से रहा. अभी-अभी तो वन विभाग वालों ने इसे लगाया था..”
“भाईजी, सामने से घर का लुक भी खराब कर रहा था, इसी बहाने इसका काम तमाम करूँ..” - बुदबुदाते हुये गुप्ता जी के हाथ और तेज चलने लगे.
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Shubhranshu Pandey on June 5, 2015 at 6:57pm — 19 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२
वक़्त ये चलता है चलते हुए सूरज की तरह
तन मेरा जलता है जलते हुए सूरज की तरह
रोशनी इल्म की दुनिया में तभी बिखरेगी
तम को निगलोगे निगलते हुए सूरज की तरह
जुल्फ की छांव तले शाम गुजारो अपनी
अब्र में छुप के बहलते हुए सूरज की तरह
राह मुश्किल है जवानी की संभलकर चलना
कितने फिसले हैं फिसलते हुए सूरज की तरह
अब्र की छांव में हर रोज छुपाकर खुद को
इक कमर ने छला…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 5, 2015 at 10:49am — 15 Comments
२२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२
मुद्दत से जिसने दुनिया वालों से मेरा नाम छुपा रक्खा है
जलने वालों ने ज़माने में उसका ही नाम बेवफा रक्खा है
**
रातों-रातों उठ उठ कर हमने आँसू बोयें हैं दिल की जमीं पर
तुम क्या जानोंगे कैसे हमने बाग़-ए-इश्क ये हरा रक्खा है
**
वो मेहरबां है तो कुछ और न सुनाई दे,गर हो जाय खफा तो
चूड़ी ,कंगन, पायल, बादल..कासिद कायनात को बना…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 5, 2015 at 10:30am — 25 Comments
2122 2122 2122 2122
जब कहेगी तब करेंगे नाम तेरे जिंदगी री।
कब रहेगी जो चलेगी साथ घेरे जिंदगी री?
माँगता हूँ मैं हमेशा जिंदगी से जिंदगी पर,
दे कहाँ पायी अभी जो बात टेरे जिंदगी री।
आ गयी थीं तब सलोनी ऊँघती कैसी घटाएँ,
दे गयी थी देख तब भी उष्ण फेरे जिंदगी री।
बैठकर मैं शांत कैसा देखता था बूँद जल का
आग जैसा फिर जलाया रे घनेरे जिंदगी री।
कब लगी मैं सोचता हूँ रे लगी कैसे भला…
Added by Manan Kumar singh on June 5, 2015 at 10:00am — 2 Comments
2122 2122 2122 212
है कोई क्या इस जहाँ में जो कभी हारा नहीं
"सिर्फ़ पाया हो यहाँ पर और कुछ खोया नहीं"
पत्थरों के बीच रह के मै भी पत्थर की तरह
दर्द की बस्ती में रह कर, देखिये रोया नहीं
ख़्वाब की बातें कहूँ क्या, नींद जब दुश्मन हुई
माँ का साया जब से रूठा , तब से मैं सोया नहीं
बादलों में खेमा बन्दी भी हुई क्या ? आज कल
क्यों मेरे घर से गुज़रते वक़्त वो बरसा नहीं
मरहले के और पहले थक गया था काफिला
आबला पा था…
Added by गिरिराज भंडारी on June 5, 2015 at 9:30am — 32 Comments
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