For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है (एक हिंदी ग़ज़ल 'राज')

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २  

.

दूजे  में हमको जो अक्सर दोष दिखाई देता है 
अपने में तो वो खूबी का कोष दिखाई देता है

 

उथला पथली हो लहरों की, चाहे समझो अँगडाई 
हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है

 

कितना टूटा होगा बादल खुद की हस्ती को खोकर

लेकिन नभ के मुख दर्पण में तोष दिखाई देता है

 

जिसके मन में खोट नहीं है उसको लगता सब अच्छा             

 पतझड़ में भी जीवन का उद्धोष  दिखाई देता है

 

खुशियाँ हो तो नैनों की झीलों में है उगता सूरज

बदली छाई हो तो बिम्ब प्रदोष दिखाई देता है 

जीवन की आपा धापी में खुश रहना वो सीख गये   

थोड़ा पाकर भी जिनमे संतोष दिखाई देता है 

 

ओढ़े आखर तानों के या कोष्ठ भरे फरमानों के

पर बेचारा कागज़ तो निर्दोष दिखाई देता है 

.

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 752

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 9:43am

प्रिय प्रतिभा पाण्डेय जी ,आपकी इन तीन वाह ने दिल लूट लिया ये बहुत है मेरे लिए दिल से बहुत बहुत, बहुत, आभार आपको इस ग़ज़ल का मान बढ़ाने के लिए .

Comment by pratibha pande on July 14, 2015 at 6:42pm

कविता  के  technical  पहलू  का ज्यादा  ज्ञान मुझे नहीं है क्योंकि  हिंदी साहित्य कभी मेरा विषय नहीं रहा फिर भी ये ही कहूँगी आ० राजेश कुमारी जी कि आपकी कविता वाह  वाह और बस वाह 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 10:36am

आ० गिरिराज जी,आप जैसे ग़ज़लकारों से प्रतिक्रिया ,सराहना पाना बहुत मायने रखता है कुछ सुधारुप्रांत ये ग़ज़ल पाठकों को आश्वस्त कर पाई तो लिखना सार्थक हुआ हाँ ये सही है काफ़िया में ऑप्शन कम थे फिर भी ढूँढ- ढूँढ कर  काम चल ही गया| आपका दिल से बहुत बहुत आभार  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 10:31am

आ० मोहन सेठी जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई इस उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभार आपका  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 14, 2015 at 10:19am

आदरणीया राजेश जी , बहुत कठिन काफिया चुन कर आपने सरलता से निभा लिया है ॥ क्या बात है ! आदरणीया सभी अश आर लाजवाब हुये हैं , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

उथला पथली हो लहरों की, चाहे समझो अँगडाई 
हम को तो सागर का लेकिन रोष दिखाई देता है

 

कितना टूटा होगा बादल खुद की हस्ती को खोकर

लेकिन नभ के मुख दर्पण में तोष दिखाई देता है    -- इनका जवाब नहीं , बहुत बहुत बधाई ।

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 10:02am

आदरणीया rajesh kumari जी इस उम्दा ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाई सभी शेर बढ़िया लगे ....सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 9:13am

आ० वीनस जी,ग़ज़ल पर आकर बहुत सी बातें स्पष्ट की आपने जिस और ध्यान ही नहीं गया था इस त्रुटी को अभी ठीक कर रही हूँ बहुत बहुत आभार आपका  तथा मिथिलेश भैय्या का | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 9:11am

सावित्री मिश्रा जी ,दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 14, 2015 at 9:10am

आ० धर्मेन्द्र जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से शुक्रिया |मिसरों में संशोधन तो करना ही पड़ेगा |

Comment by वीनस केसरी on July 14, 2015 at 4:04am

शानदार ग़ज़ल है
सुन्दर सलाह है

अंगड़ाई २२२ से अँगड़ाइयाँ २२१२ बनता है ....
जैसे लड़की २२  से लड़कियां २१२  बनता है लड़कीयां २२२  नहीं बनता
यह भाषा व्याकरण का सामान्य सा नियम है आप व्याकरण की किसी भी किताब में देख सकती हैं

चाहे २२ को गिरा कर २१ कर के पढ़ा जाए तो मिसरा बहर में है बस आप अँगड़ाईयाँ की वर्तनी शुद्ध कर लें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service