For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिठाई ( लघुकथा )

नास्तिक बाबूजी को देर रात ,चुपके से पूजाघर से निकलते देख मानस की उत्सुकता जाग गई,और पुलिसिया मन शंकित हो उठा।वो चुपके से उनके पीछे चल पड़ा।

उन्होंने हाथ में पकड़ा लड्डू माँ की ओर बढ़ा दिया
" लो खा लो "
" ये कहाँ से लाए आप ?"
"पूजा घर से "उन्होंने निगाह चुराते हुए कहा।
उसकी आँखें भर आयीं अपनी लापरवाही पर। घर में सौगात में आये मिठाई के डिब्बों का ढेर मानो उसे मुँह चिढ़ा रहा था।


( मौलिक एवम अप्रकाशित )

Views: 732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 10:10am

आदरणीया , आपकी पोस्ट के ऊपर दाहिनी तरफ एक बटन है  आप्शन का , उसे दबायेंगे तो आपका एडिट पोस्ट का आप्शन दिखेगा उसे आप दबा कर अपनी पोस्ट मे सुधार कर सकते हैं , सुधार कर के फिर से नीचे  एक बटन उसे दबा दें । आपकी पोस्ट फिर से प्रकाशित की जायेगी प्रधान संपादक  द्वारा , कुछ समय लगेगा पुनः प्रकाशन में ।

Comment by jyotsna Kapil on July 16, 2015 at 9:11am
आपकी हृदयतल से आभारी हूँ आ.गिरिराज भंडारी जी की अपने कथा को पसन्द किया। आपका कथन की किसकी आँख भर आई स्पष्ट नहीं हुआ,मुझे भी अपनी त्रुटि का भान हुआ।आँख बेटे यानि मानस की भर आई।अल्पज्ञानी होने के कारण इस गलती को सुधारूँ कैसे मुझे नहीं पता। यदि यहाँ एडिट का ऑप्शन हो तो कृपया मुझे बतायें।
Comment by jyotsna Kapil on July 16, 2015 at 9:03am
सादर नमन एवम आभार आ. डॉ. विजय शंकर जी कथा को पसन्द करने एवम सराहना के लिए।आपके शब्दों ने मेरा मनोबल बहुत बढ़ाया है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 6:12am

आदरणीया , लघुकथा बहुत अच्छी लगी , आपको हार्दिक बधाई । किसकी आँख़ें भर आये ये मुझे साफ नही हुआ , मैने तीनो पात्र की आखों एक के भर के समझने की कोशिश की है ।मुझे लगता है उसकी की जगह पात्र का नाम आना चाहिये था । ये भी होसकता है कि कम पढा होने के कारण मै न समाझा  हो ऊँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2015 at 11:52pm
प्रेमचंद रचित " बूढ़ी काकी " आ गई , आदरणीय सुश्री ज्योत्स्ना जी , सादर।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:45pm
अन्तस् से आभार स्नेही अनुजा नेहा अग्रवाल जी कथा को पसन्द करने व् उसकी सराहना के लिए।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:44pm
आपका हर शब्द मेरे लिए अनमोल है आ.राजेश कुमारी जी।आज लग रहा है मानो लेखन सफल हो गया।आपको हृदयतल से आभार एवम नमन।
Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 9:42pm
कथा को पसन्द करने व अभिमत देने हेतु आपकी अति आभारी हूँ आ.प्रतिभा पांडे जी
Comment by neha agarwal on July 15, 2015 at 8:17pm
बहुत खूब दी आह से वाह तक की कथा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 10:34am

उफ्फ्फ हृदय कचोट गई ये लघु कथा ..इससे बड़ा तिरस्कार भला क्या होगा बुजुर्गों का ....अपना प्रभाव अपना सन्देश छोड़ने में कामयाब इस सशक्त लघु कथा के लिए दिल से ढेरों बधाई आपको ज्योत्स्ना जी|  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
13 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service