For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कव्वा चला शायर की चाल ......

2 2 2 1 / 2 2 2 2 / 2 1 222


दिल में शायरी का जब भी दोर उट्ठेगा
सबसे पहले तेरे नाम का शोर उट्ठेगा !!

पहली बारिश की रिमझिम शुरू क्या हुई
देख आज बगिया में नाच मोर उट्ठेगा !!

तेज हवाएँ तेरे इश्क़ में कुछ चलीं ऐसी

दिल में एहसासों का बबंडर जोर उट्ठेगा !!

जब आयेगा धुवाँ पड़ोस के घर के चुल्हे से
तभी मेरे हाथ से ये खाने का कोर उट्ठेगा !!

बचा कर रखना ये दिल मेरी तीरंदाजी से
वर्ना लूटने 'इंतज़ार' के दिल का चोर उट्ठेगा !!

*************************************************

मौलिक व अप्रकाशित

बे-बहर लाज़मी है  कृपया सुझाव दें

Views: 1017

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 16, 2015 at 2:41am
सुन्दर, भावपूर्ण, बधाई, आदरणीय मोहन सेठी जी, सादर।
Comment by Sushil Sarna on July 14, 2015 at 8:01pm

सुंदर भावों की सुंदर ग़ज़ल   … बाकी गुणीजनों के सुझाव अवश्य निखार लाएंगे   .... हार्दिक बधाई आदरणीय जी। 

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 14, 2015 at 6:08pm
अब काफिया ठीक है। सादर
Comment by विनय कुमार on July 14, 2015 at 6:04pm

// जब आयेगा धुवाँ पड़ोस के घर के चुल्हे से
तभी मेरे हाथ से ये खाने का कोर उट्ठेगा !! // , बहुत सुन्दर भाव , बधाई आदरणीय मोहन सेठी इंतज़ार जी..

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 3:32pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रोत्साहन की लिये हार्दिक आभार ....कोशिश जारी रहेगी सीखने की ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 3:30pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी हार्दिक आभार आप की टिप्पणी हेतु  ..अगली कोशिश में आप के सुझाव अनुसार ही कोशिश करता हूँ ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 14, 2015 at 3:24pm

आदरणीय Rahul Dangi जी आभार आपने फिर से सोचने के लिये प्रोत्साहित किया तो कुछ शेर बदल दिये हैं ...अब काफ़िया और रदीफ़ तो ठीक होने चाहिये ...बाकी अगली ग़ज़ल में कोशिश जारी रहेगी ...सादर 

दिल में शायरी का जब भी जोर उट्ठेगा
सबसे पहले तेरे नाम का शोर उट्ठेगा !!

पहली बारिश की रिमझिम शुरू क्या हुई
देख आज बगिया में नाच मोर उट्ठेगा !!

तेज हवाएँ तेरे इश्क़ में कुछ चलीं ऐसी
दिल को एहसासों का पल झकझोर उट्ठेगा !!

तेरे जाने पे बेरौनक है ये महफ़िल सारी
बादल तन्हाईयों का अबके घनघोर उट्ठेगा !!

बचा कर रखना ये दिल मेरी तीरंदाजी से
वर्ना लूटने 'इंतज़ार' के दिल का चोर उट्ठेगा !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 14, 2015 at 1:33pm

आदरणीय मोहन जी बढ़िया प्रयास हुआ है गुनीजनों द्वारा साझा किये गए सुझाव पर अवश्य अमल करेंगे ऐसी आशा है. इस संभावनाओं भरे प्रयास पर बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 14, 2015 at 11:28am

आदरणीय मोहन भाई , ग़ज़ल के प्रयास के लिये बहुत बधाइयाँ ! आ. राहु भाई की बातों से सहमत हूँ , काफिया बन्दी सही नही है , दूसरी बात आप शुरुवात मे सामान्य सरल और मान्य बहों पर कोशिश करें  ।

1222   1222   1222   1222  या 2122   2122   2122   2122   ये आपको सरल लगेगा , अपने मन से बहर बनाना उचित नही है ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 14, 2015 at 10:22am
आदरणीय शब्दों को गलत लिखने से उनका अर्थ बदल जाता है। दौर व दोर, कौर व कोर शब्दों के अर्थ दूर तलक समान नहीं है। कौर- निवाला,कोर-मुँह, किनारा अगर आपने अर्थ मुँह लिया है तो भी शे'र ठीक नहीं बैठता। दौर- समयावधी, दोर- फीता होता है देख लिजिएगा। सादर सन्रम।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service