हजज मुसम्मन सालिम
1222 1222 1222 1222
तुम्हारी आँख का जादू ज़रा हमराज देखेंगे
भरा कैसा है सम्मोहन यही तो आज देखेंगे
कभी मैंने तुम्हें चाहा अभी तक दर्द है उसका
रहेगी कोशिशें मेरी तेरे सब काज देखेंगे
नहीं आसां मुहब्बत ये कलेजा मुख को आता है
यहाँ पर वश न था मेरा गिरेगी गाज देखेंगे …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 20, 2015 at 1:30pm — 5 Comments
शाम हो रही है
सूरज का तेज अब
मध्यम होता जा रहा है
शाम और खेल
का बड़ा अनूठा
सायोंग है
अब बस याद ही है
खेल और उसका खेला की
एक खेल था
ऊंच-नीच
समान्यतः यह खेल घर
के आँगन मे ही
खेलते थे, चबूतरे पर
नाली की पगडंडियों पर
हम सब ऊपर रहते थे
और चोर नीचे
हमे अपनी जगह बदलनी होती थी
और चोर को हमे छूना होता था
अगर छु लिया तो
चोर हमे बनना होता था
बड़ा…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on June 19, 2015 at 8:43pm — 4 Comments
हौसलों का पंछी(कहानी,सोमेश कुमार )
“हवा भी साथ देगी देख हौसला मेरा
मैं परिंदा ऊँचे आसमान का हूँ |”
कुछ ऐसे ही ख्यालों से लबरेज़ था उनसे बात करने के बाद |ये उनसे दूसरी मुलाकात थी|पहली मुलाक़ात दर्शन मात्र थी |सो जैसे ही बनारस कैंट उतरा तेज़ कदमों से कैंट बस डिपो के निकट स्थित उनके कोलड्रिंक के ठेले पर जा पहुँचा |जाने कौन सी प्रेणना थी कि 4 घंटे की विलंब यात्रा और बदन-तोड़ थकावट के बावजूद मैंने उनसे मिलने का प्रण नहीं छोड़ा |
“दादा,एक छोटा कोलड्रिंक दीजिए|” मैंने…
ContinueAdded by somesh kumar on June 19, 2015 at 7:52pm — 1 Comment
Added by shashi bansal goyal on June 19, 2015 at 5:00pm — 8 Comments
Added by Ravi Prakash on June 19, 2015 at 2:18pm — 6 Comments
बह्र : 22 22 22 22 22 22 22 22
ये प्रेम का दरिया है इसमें सारे ही कमल मँझधार हुए
याँ तैरने वाले डूब गये और डूबने वाले पार हुए
फ़न की खातिर लाखों पापड़ बेले तब हम फ़नकार हुए
पर बिकने की इच्छा करते ही पल भर में बाज़ार हुए
इंसान अमीबा का वंशज है वैज्ञानिक सच कहते हैं
दिल जितने टुकड़ों में टूटा हम उतने ही दिलदार हुये
मजबूत संगठन के दम पर हर बार धर्म की जीत हुई
मानवता के सारे प्रयास, थे जुदा जुदा, बेकार…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 19, 2015 at 12:50pm — 10 Comments
Added by neha agarwal on June 19, 2015 at 12:08pm — 10 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
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दोस्त निर्लिप्त है, टोकता भी नहीं
और पूछो अगर बोलता भी नहीं
बोलना जब मना, फाइदा भी नहीं
बे ज़ुबाँ कह सके रास्ता भी नहीं
रात तारीकियों से घिरी इस क़दर
मंज़िलें बेपता , रास्ता भी नहीं
तुम अभी तो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 5:30pm — 24 Comments
Added by Pari M Shlok on June 18, 2015 at 5:13pm — 18 Comments
- चच्चा , ई का वखत आय गयो , बेईमान बेईमानै की शिकायत कर रहा है , कहत है कि इका सजा देयो । चोरै चोर का पकड़ावाय देही का ?
हम तो यही जाने रहे कि सबै मौसेरे भाई होत हैं।
- अब का कींन जाए , जब सब भले मनई मुह बांधे बैठे रहिये , सबै बुराईयन पे आँखें मूंदें रहिये , कान बंद किये रहिये तब और का होई, यही होई , बुराइयै बुराई का मार डाली , चोरै चोर का पकड़वाए देई। …………बुराई फलत नाइ है बचवा, ज्यादा दिन चलत नाई है, नाही तो दूनियाँ तो कब्बै खत्म हुई गई होत.
अच्छाई अच्छाई का कब्बो…
Added by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2015 at 3:32pm — 4 Comments
चेहरे की रेखाओं में …
जाने कैसी बेरहम हो तुम
सिसकने की वजह देकर
खामोशी से चली जाती हो
चेहरे की रेखाओं में
दर्द के रंग भर जाती हो
स्मृति के किसी कोने में कुछ दृश्य
मेरे अन्तःमन को विचलित कर जाते हैं
और मैं बेबस निरीह सा
अपने सर को झुकाये
काल्पनिक लोक के दृश्यों से
स्वयं को जोड़ने का
बेवजह प्रयत्न करता हूँ
जानता हूँ कि उन दृश्यों से
एकाकार असंभव है
फिर क्योँ तेरी प्रतीक्षा करूं
क्योँ तुझसे स्नेह करूं
ऐ नींद…
Added by Sushil Sarna on June 18, 2015 at 3:30pm — 6 Comments
"क्या हुआ माते ?"
"कुछ नहीं हुआ लक्ष्मण, तुम अयोध्या में ही रहोगे।"
"मुझ से कोई भूल हो गई क्या ?"
"भूल तुमसे नहीं श्री राम से हो गई थी, जिसे सुधारने का प्रयास कर रही हूँ।"
"भूल और मर्यादा पुरुषोत्तम से ? मैं कुछ समझा नहीं माते।"
"उर्मिला के हृदय…
Added by योगराज प्रभाकर on June 18, 2015 at 1:00pm — 20 Comments
"तुमने जन्म देकर कोई एहसान नहीं किया है ..! क्या हमनें कहा था कि हमें इस दुनिया में लाओ ..? एक ब्रांडेड टी - शर्ट के लिए तो तरसते है हम .... अगर परवरिश करने की ताकत नहीं थी तो पैदा करने से पहले सोचना था ना ... अब हमारा क्या ...? "
"इसलिए तो सब घरबार बेचकर तुम्हारा एडमिशन इतने बडे़ काॅलेज में करवाया है कि तुम अपने बच्चों को वो सब दो जो हम ना दे सकें तुम्हें । "
"कितना शर्मिंदा होता हूँ वहाँ कालेज में इन साधारण कपडों में ... कितना अच्छा होता कि मै पढ़ाई ही नहीं करता ..! "…
Added by kanta roy on June 18, 2015 at 11:00am — 14 Comments
प्यार - एक वैचारिक अतुकांत --'' हाँ , आपसे ही कह रहा हूँ ''
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वाह !
किसने कह दिया ?
आपके दिल में प्यार भरा है, सागर सा
खुद ही दे दिये सर्टिफिकेट , खुद को ही
वाह ! क्या बात है
बिना जाने सच्चाई क्या है ? कैसी है ?
प्यार है भी कि नहीं दुनिया में
प्यार नाम की चीज़ होती कैसी है ?
रहता कहाँ है प्यार ?
किन शर्तों में जी पाता है ?…
Added by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 10:00am — 10 Comments
" आज के बाद ये सब खेल मत खेलना " और उसने सारे गुड्डे , गुड़िया को उठा कर फेंक दिया । बेटी सहम गयी , कुछ महीने पहले मम्मी ने ही इतने प्यार से ख़रीदे थे उसके लिए !
अगले दिन वो खिलौनों में बाइक्स और कार के अलावा कुछ गन भी ले आई थी और तलाक़ के नोटिस का ज़वाब भी भिजवा दिया था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on June 18, 2015 at 2:03am — 12 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 11:00pm — 18 Comments
सम्प्रदायिक दंगा...
चौराहों पर भीड़ अकड़ कर
भड़ास निकालती
दूकानें घबराकर छिप जाते बन्द डिब्बों में
जनानी खिड़कियां दुबक जातीं
देर सुबह तक.....शायद अनि-िश्चत काल के लिए
बिना पंख की हवाएं बिखेरतीं, सौरभ-अफवाहें
अर्ध्द खुली मर्द खिड़कियां, अवाक!
शहर की गली, सड़क सब सॉय-सॉय
...फुफकारते काले नाग
शोक में, सब्जियां - फल सब दॉए-बॉए
नालियों में अपनी सूरतें देखतीं
सड़कों के मध्य चप्पलें दहाड़े मार कर रोती
जूते फटेहाल…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 8:30pm — 14 Comments
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 8:11pm — 12 Comments
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन
एक मिसरे में इधर मैंने मेरा दिल बाँधा
दूसरे में तेरे रुख़्सार का ये तिल बाँधा
यूँ लगा जैसे हुवा सारा ज़माना रौशन
मैंने दौरान-ए-ग़ज़ल जब महे कामिल बाँधा
ख़ून आँखों से टपकता है तो हैरत कैसी
तूने क्यूँ कस के बदन से ये सलासिल बाँधा
मुनकशिफ़ हो गया दुनिया पे मेरा फ़न आख़िर
उसने साफ़ा मेरे सर पे सर-ए-महफ़िल बाँधा
उस से अल्फ़ाज़ की कुछ भीक थी दरकार मुझे
इस लिये मैंने मियाँ शैर…
Added by Samar kabeer on June 17, 2015 at 7:00pm — 31 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
लोग समझे कि शाइरी होगी
बात तो सिर्फ़ आप की होगी
.
रोज़ साहिल पे आ के रुकती है
शाम की कोई बे-बसी होगी
.
तेरे जाने का ग़म रहा मुझ को
ग़म को कितनी खुशी हुई होगी.
.
अपने जादू से जीत लेती है
ये कज़ा भी कोई परी होगी.
.
ले चलूँ बेटी के लिए गुडिया
मुँह फुलाए वो अनमनी होगी.
.
मेरे दर पे ख़ुशी है आने को
आती होगी!! कहीं रुकी होगी.
.
दर्द की चींटियाँ लिपटती हैं
दिल में यादों की चाशनी…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on June 17, 2015 at 4:30pm — 19 Comments
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