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शादी की ज्यामितीय परिभाषा

दो सरल रेखाएं

जब एक बिंदु पर आकर मिलती हैं

एक ऋजु कोण का निर्माण करती हैं

ऋजु कोण से अधिक कोण

क्रमश:

घटती दूरी

और

फिर न्यून कोण

न्यूनतम करती हुई   

दोनों रेखाएं एक दूसरे से मिल जाती है

तब उनके बीच बनता है- शून्य कोण

समय की चोट खाकर

दोनों रेखाएं

अलग होती हुई

सामानांतर बनती है

और

अनन्त पर जाकर मिलती हैं

या फिर विपरीत दिशाओं में

और दूर

और दूर

होती चली जाती है

क्या यह सच नहीं है ?

(मौलिक व अप्रकाशित)

-जवाहर लाल सिंह 

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Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 20, 2015 at 7:47pm

आदरणीया कांता रॉय जी, सादर अभिवादन ! आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार। ।योन ही मैं एक दिन बैठे बैठे सोच रहा था। और यह भी जानना चाह रहा था कि लोगों की क्या राय बनती है इसपर ! बस और कुछ नहीं। सादर!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 20, 2015 at 7:43pm

आदरणीय समर कबीर साहब, सादर अभिवादन! उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार!

Comment by kanta roy on July 20, 2015 at 5:27pm
शीर्षक पर नजर पडते ही कि शादी की ज्यामितीय परिभाषा मन में रचना को पढने की उत्कंठा जाग उठी । दो सरल रेखाओं का एकाकार हो शुन्य को पहुँच जाना और फिर शुन्यतासे दो अलग अलग विपरीत दिशाओं में ....... वाह !!!!बधाई इस सटीक चित्रण के लिये आदरणीय जवाहर लाल जी ।
Comment by Samar kabeer on July 20, 2015 at 2:46pm
जनाब जवाहर लाल सिंह जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 19, 2015 at 9:28am

हार्दिक आभार आदरणीय अग्रज तुल्य कुशवाहा जी! बस ऐसे ही मन में ख्याल आया ...कुछ प्रतिशत तो सच्चाई होगी कहीं न कहीं ....

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 19, 2015 at 9:26am

सराहना के लिए हार्दिक आभार अमन कुमार जी!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 18, 2015 at 11:36pm

वाह अनुज श्री आदरणीय सिंह साहब जी 

अब ये भी , सादर बधाई 

Comment by aman kumar on July 18, 2015 at 1:04pm

बहुत सुंदर भाई साहब !

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