For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नारीनामे का सफ़र

पीहर के आँगन छूटी उस मिट्टी का रंग पीला था

गाँव से संदेसा लायी उस चिट्ठी का रंग पीला था

 

जनक ने विदा किया दहेज़ का हर सामान देकर 

पीठ पर निशान किये उस पट्टी का रंग पीला था 

 

बहुत मन से बनाया साग नमक जियादा हो गया

थाली से जो फेंक मारी उस लिट्टी का रंग पीला था

 

गाँव बाहर पुल पर मजदूरी को भेजा घर वालों ने

तसले भरके जो ढोया उस गिट्टी का रंग पीला था

 

वंश बेल आगे करने को उनको इक बेटा जरूरी था

बेटी को मिला जहर दिया उस घुट्टी का रंग पीला था

 

लगन्वेदी का हर कर्त्तव्य वचन समझ निभाया था

आग में मेरा बदन जला उस भट्टी का रंग पीला था 

निधि 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 521

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 23, 2015 at 1:19pm

इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया निधि जी 

Comment by kanta roy on July 23, 2015 at 12:37pm
बेहद भावुक कर गई ये पीला रंग । पीले रंग में रंगी हुई नारी जीवन की करूण गाथा । जितने जीवन जीती है सबमें ही यहीं पीला रंग कहीं ना कही देखने में जरूर आता है । महलों से लेकर झोपड़ियों तक ये भठ्ठी सुलगती रहती है इसी पीले से रंग की ताप लिए । बहुत ही सुंदर और संवेदनशील रचना हुई है आदरणीय निधी अग्रवाल जी । बधाई
Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 10:32pm

मार्मिक  प्रस्तुति ,एक स्त्री के दुःख का अच्छा चित्रण किया है आपने आ. Nidhi Agrawal जी |

Comment by Samar kabeer on July 22, 2015 at 6:30pm
मोहतरमा निधि अग्रवाल जी ,आदाब,बहुत ही मार्मिक ग़ज़ल कही है आपने,दाद क़ुबूल करें ।
लेकिन दूसरे ,पाँचवें और छटे शैर में क़ाफ़िये ग़लत हो गए हैं,मतले में मिट्टी-चिट्ठी यानी ज़ेर वाले क़ाफ़िये हैं और दूसरे, पाँचवे और छटे शैर में ज़बर वाले क़ाफ़िये हैं जैसे पट्टी-भट्टी ,देख लीजियेगा ।
Comment by Nidhi Agrawal on July 22, 2015 at 4:55pm

आदरणीय राहुल जी.. आपका बहुत बहुत शुक्रिया .. नारीनामा हमेशा ही भावुक कर देता है 

Comment by Nidhi Agrawal on July 22, 2015 at 4:54pm

आदरणीय मनोज कुमार जी बहुत बहुत धन्यवाद. जी हाँ आप ही ने पढ़ा है .. भाव विभोर हूँ आपकी प्रतिक्रिया से 

स्नेह बनाये रखें 

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 22, 2015 at 4:14pm
आदरणीया Nidhi जी आँखें नम हो गयी मन भावुक है। बहुत सुन्दर
Comment by मनोज अहसास on July 22, 2015 at 3:34pm
प्रणाम करता हूँ
तहे दिल से बधाई देता हूँ
इतनी मर्मस्पर्शी रचना
इतने खूब सूरत अहसास
सबसे पहले इस मंच पर शायद मैंने ही इस रचना को पढ़ा है
मै भावविभोर हूँ
भावों पर
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service