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ग़ज़ल - ज़िन्दगी में तुम्हारी लहर मैं पिया

212 212 212 212

 

छोड़ दूँ अब कुंवारा नगर मैं पिया

काट लूँ सँग तुम्हारे सफर मैं पिया

 

मन न माने मगर क्या बताऊँ तुम्हें

साथ दोगे चलूंगी सहर मैं पिया

 

पंखुड़ी खिल गयी राग पाकर कहीं

बेज़ुबां अब न खोलूं अधर मैं पिया

 

मौत का गम नहीं साथ तुम हो मेरे   

मुस्करा के पियुंगी जहर मैं पिया

 

अब तुम्हारे सिवा कुछ न चाहूंगी मैं

दिल मिलाओ मिलाऊं नज़र मैं पिया

 

दूर से देखकर आज रुकना नहीं

साथ आओ तो पाऊँ शिखर मैं पिया

 

भावना में कहीं बह न जाऊं “निधि”

जिंदगी में तुम्हारी लहर मैं पिया

निधि 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 1:30am

अभ्यासरत रहे..  शुभकामनाएँ.  तकनीकी दोष दूर होने लगेंगे.

एक बात :

आपका नाम यदि ’निधि’ है तो इसे ’निधी’ न उच्चारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 1, 2015 at 7:32pm

बहुत अच्छी सुन्दर भावपूर्ण ग़ज़ल लिखी है निधि जी ,आ० गिरिराज जी की बात पर गौर करें बाकी सभी अशआर बढ़िया हुए हैं दिल से बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2015 at 2:20pm

आदरणीया ग़ज़ल  खूब अच्छी  कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको । इस मिसरे की तक्तीअ फिर से कर लीजियेगा ॥

काट लूँ सँग तुम्हारे सफर मैं पिया

 

Comment by kanta roy on June 27, 2015 at 1:29pm
भावना में कहीं बह न जाऊं “निधि”
जिंदगी में तुम्हारी लहर मैं पिया........ वाह !!! समर्पण भाव में लिखी हुई ये रचना दिल को छू कर निकल गई आदरणीया निधी जी ... बेहद सोम्य और मधुर लिखी है आपने ... बधाई
Comment by narendrasinh chauhan on June 25, 2015 at 3:07pm

खूब सुन्दर रचना

Comment by मनोज अहसास on June 25, 2015 at 2:24pm
बहुत खूबसूरत
और भावपूर्ण
सादर

कृपया ध्यान दे...

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