गीतिका छंद
[प्रत्येक पंक्ति 14-12 की यति से कुल 26 मात्रा होती है तथा प्रत्येक पंक्ति की तीसरी, दसवीं, सत्रह्वीं और चौबिसवीं मात्रा लघु ही होती हैं]
शारदे मां वर्ण-व्यंजन में प्रचुर आसक्ति दो।
शब्द-भावों में सहज रस-भक्ति की अभिव्यक्ति दो।।
प्रेम का उपहार नित संवेदना से सिक्त हो।
हर व्यथा-संघर्ष में भी क्रोध से मन रिक्त हो।।1
वृक्ष सा जीवन हमारा हो नदी सी भावना।
तृप्त ही करते रहें निश-दिन यही है…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 2, 2015 at 8:00pm — 5 Comments
लड़कियाँ होती अगर
उड़हूल के फूलों की तरह
और तोड़ ली जाती
बिन खिले
अधखिले
खिल जाती फिर भी
समय के साथ
पर लड़कियाँ तो होती हैं
गुलाब की तरह
नीरज कुमार नीर /
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neeraj Neer on August 2, 2015 at 11:15am — 13 Comments
खोल रखे है मैंने
खिड़कियाँ और सभी दरवाजे
भीतर आते हैं
धूप , चाँदनी ,
निशांत समीर ,
दोपहर के गरम थपेड़े ,
पूस की शीत लहर ,
बरखा बूंदे
तमस, प्रकाश
पुष्प सुवास, उमसाती गँधाती अपराह्न की हवा
और सभी कुछ
अपनी मर्जी से
और अक्सर उतर आता है
खाली आकाश भी
बस तुम नहीं आती
कितने बरस बीत गए
पर तुम नहीं आती
खोल रखे होंगे
तुमने भी शायद
खिड़कियाँ और दरवाजे
..... नीरज कुमार…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 2, 2015 at 8:59am — 12 Comments
Added by दिनेश कुमार on August 2, 2015 at 6:30am — 13 Comments
“आज फ्रेंडशिप डे है मगर ये डिसिप्लिन साला!....... सेलिब्रेट भी नहीं कर सकते.”
“आर्मी लाइफ है ब्रदर.”
“सुना, अमेरिका में ईराक पर हमले का अमेरिकी सैनिकों के साथ-साथ सिविलियन भी विरोध कर रहे है.”
“हाँ यार...... इतने पावरफुल देश की सेना में डिसिप्लिन ही नहीं है क्या?”
“अच्छा.... अगर इन्डियन आर्मी पाकिस्तान पर हमला करें तो क्या यहाँ भी विरोध होगा?”
“ अबे गद्दारों जैसी बात मत कर.......हमारा देश, राष्ट्रभक्तों का देश हैं. इसकी बुनियाद में…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 2, 2015 at 3:49am — 34 Comments
लखिया रामनारायण पाठक की पुत्री थी. रामनारायण पाठक पेशेवर शिक्षक थे, पर लक्ष्मी की उसपर विशेष कृपा नहीं थी. परिवार के भरण-पोषण के बाद वे बमुश्किल ही कुछ जोड़ पाते थे. उसकी आमदनी तो वैसे दस हजार मासिक थी, लेकिन खर्च भी कम कहां था ? हाथ छोटा कर वह जो भी जोड़ता पत्नी की दवा-दारू में सब हवन हो जाता था. उसका परिवार बहुत बड़ा नहीं था. वे लोग गिने-चुने चार सदस्य थे – दो लड़कियां और अपने दो. बड़ी लड़की लखिया आठ वर्ष की थी और छोटी मित्रा पांच की. उसकी पत्नी भगवती खूब धरम-करम करती किंतु, अपने…
ContinueAdded by Govind pandit 'swapnadarshi' on August 1, 2015 at 11:30pm — 10 Comments
कविता (हास्य)
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तत्व ज्ञान -न रहो अनजान
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बीबी संग जब जाय बाजार
हथ बंधन बढ़िया है हथियार
चलो बीच सड़क दायें न बाएं
पिघलो नही लाख वो चिल्लाएं
बीबी के आगे किसकी चलती
बाहों में वो नागिन सी पलती
मियां होशियार अपने को माने
तब घोटाले में भिजवाती थाने
मानो बात तुम देखो गाइड
वहीदा ने जब मारी साइड
देती ज्ञान मेरा नाम जोकर
न रही वो कभी किसी की होकर
मौलिक / अप्रकाशित
प्रदीप…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 1, 2015 at 9:30pm — No Comments
Added by kanta roy on August 1, 2015 at 9:30pm — 12 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on August 1, 2015 at 6:00pm — 9 Comments
वातानुकूलित कक्ष में बैठकर
तुम करते हो
देश के लिए
देश की जनता के लिये
अच्छे दिन लाने के लिये
जी –तोड़ काम
पर काम किसे कहते है
तुम नहीं जानते
और यदि जानते हो
तो आ जाओ साथ
हो जांए आपस में दो-दो हाथ
मैं एक ओर
चलाता हूँ कुदाल
दूसरा छोर
मेरे भाई तू संभाल
देखते है किसका
है पसीना लहू बनता
देश मेरे दोस्त
लफ्फाजी से नहीं चलता
कोई खेत सोना
यूँ ही नहीं…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2015 at 5:30pm — 1 Comment
२१२२ ११२२ ११२२ २२
मैं तो दीवाना हूँ मुझको न जलाओ ऐसे
मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे
चांदनी रात में ऐ चाँद यूं छत पे आकर
मेरे सोये हुए अरमाँ न जगाओ ऐसे
रेत पे जैसे निशाँ क़दमों के बैसे ही सही
दिल से धुंधली मेरी यादें न मिटाओ ऐसे
अब्र-ए- जुल्फ में खुद को यूं छुपा लेते हो
मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे
तुम समंदर ए गुहर हो ये सभी को है पता
पर न आँखों के गुहर अपने लुटाओ ऐसे
बिन…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2015 at 2:30pm — 11 Comments
2122 2122 2122 212
किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए,
दी सजा दुनियां ने हमको सारे अरमां मर गए |
कब तलक खारिज ये होगी हक परस्तों की ज़मीं,
महके गुलशन तो समझना कातिलों के सर गए |
बंदिशें अब बेटियों पर, आसमां को छू रहीं,
किस तरह बदला ज़माना, बरसों पीछे घर गए |
प्यार की, हर पाँव से, अब बेड़ियाँ कटने लगीं,
नफरतों में, जुल्फों से, अब फूल सारे झर गए |
लुट रही अस्मत चमन की, कागज़ी घोड़े यहाँ,…
Added by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 1:00pm — 13 Comments
खुद को देशभक्त समझने वाले राम ने रहीम से कहा, “तुमने देशद्रोह किया है।”
रहीम ने पूछा, “देशद्रोह का मतलब?”
राम ने शब्दकोश खोला, देशद्रोह का अर्थ देखा और बोला, “देश या देशवासियों को क्षति पहुँचाने वाला कोई भी कार्य।”
बोलने के साथ ही राम के चेहरे का आक्रोश गायब हो गया और उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे किसी ने उसे बहुत बड़ा धोखा दिया हो। न चाहते हुए भी उसके मुँह से निकल गया, “हे भगवान! इसके अनुसार तो हम सब....।”
रहीम के होंठों पर मुस्कान तैर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 1, 2015 at 12:30pm — 35 Comments
पूरा घर सम्हालती बेटियाँ क्यों ससुराल आते ही
ऐसी लापरवाह हो जाती हैं कि चूनर आग पकड़ लेती है
खिलखिलाती बेटियाँ क्यों इतनी अवसन्न हो जाती हैं
कि ज़हर खा लेती हैं या पंखे से झूल जाती हैं
जिनके लिये आँसू बस रूठने का सबब हुआ करते थे
अब वे बेटियाँ हँसते हुए भी क्यों रो देती हैं
धर्म कर्म रीति नीति की बातें बहुत होती हैं
हर मंदिर में सुबह सवेरे देवी पूजित होती है
फिर क्यों उन्हीं बंद द्वारों के पीछे
लालच की वेदी पर निर्दोष हवि होती…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on August 1, 2015 at 11:30am — 9 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 1, 2015 at 9:38am — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 1, 2015 at 8:30am — 6 Comments
1222--1222—1222--1222 |
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लगे बोली सियासत में, भला आम-आदमी का क्या? |
निजाम-ए-मुल्क जो कह दे मगर इस अबतरी का क्या? |
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अगर दो वक़्त की… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 5:00am — 26 Comments
सरसी मिलिन्दपाद छन्द ।
१६,११ पदान्त में (२१ गुरु,लघु)अनिवार्य
आज गुरुपूर्णिमा पर आदरणीय ओबीओ मंच को समर्पित ।
.
हे जीवन पथ के निर्माता,तुम पे है अभिमान।
तुम ही मात-पिता हो मेरे,तुम ही हो भगवान।
तुम ने दीप ज्ञान का देकर,किया बडा आभार ।
जन्मों जनम तक भी न उतरे,तेरा ये उपकार।
ब्रह्मा,विष्णु,महेश,मुरारी,गुरु चरणों में राम।
तन,मन,धन,सब कुछ अर्पण कर,करूं गुरुवर प्रणाम ।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Rahul Dangi Panchal on July 31, 2015 at 10:30pm — 8 Comments
''सुनो बंटी के पापा , काहे इतना विलाप करते हो। ''
''बंटी की माँ .... तुम्हें क्या पता ,पिता के जाने से मेरे जीवन का एक अध्याय ही समाप्त हो गया। ''
'' मैं आपके दुःख को समझ सकती हूँ। मुझे भी पिता जी के जाने का बहुत दुःख है लेकिन धीरज तो रखना पड़ेगा। आप यूँ ही विलाप करते रहेंगे तो उनकी आत्मा को चैन कहाँ मिलेगा। '' धर्मपत्नी ने ढाढस देते हुए कहा।
''वो तो ठीक है बंटी की माँ … लेकिन आज पिता के गुजर जाने से न केवल मेरे सिर से वटवृक्ष की छाया चली गयी बल्कि ऐसा लगता है मेरा जीवन की…
Added by Sushil Sarna on July 31, 2015 at 8:00pm — 6 Comments
२१२ २१२२ २१२२
आग पर आप भी इक दिन चलेंगे
मेरे अहसास जब तुम में उगेंगे
.
फूल सा तन महकने ये लगेगा
याद में रातदिन जब दिल जलेंगें
.
चाँद सा रूप निखरेगा सुनहरा
इश्क की धूप में गर जो तपेंगें
.
आइना बातें भी करने लगेगा
यूँ घड़ी दो घड़ी पे गर सजेंगे
.
रातभर रतजगे आँखें करेंगी
सुबहों-शाम आप भी रस्ता…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 31, 2015 at 7:48pm — 6 Comments
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