For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2018 Blog Posts (127)

कैसा और कहां? (लघुकथा)

".. और सुनाओ, कैसे हो? हाउ आss यूss?"



"मालूम तो है न! ठीक-ठाक हूं!"



"ओके, मैं भी! लेकिन यह तो बताओ कि सब कुछ अच्छा ही है या अच्छा है सब कुछ 'ठोक-ठाक' के!"



"जानती तो हो ही तुम! घूम रहा हूं तुम्हारी तरह! लेकिन फ़र्क है!"



"फ़र्क! किस तरह का!"



"मेरा घूमना तुम्हारी तरह प्राकृतिक या ब्रह्मंड वाला कक्षा-चक्रीय नहीं है! मैं वैश्वीकरण के कारण घूम रहा हूं; यायावर सा हो गया हूं मैं!"



"हां, जानती तो हूं ही मैं भी!"



"तो…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 30, 2018 at 8:26pm — 3 Comments

माँ की बहू (लघुकथा)

रवि और गीता फर्स्ट ईयर से ही एक दूसरे को पसंद करते थे अतः उनमे दोस्ती हो गई और बाद में प्यार परवान चढ़ा। फाइनल ईयर तक आते आते उन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। रवि को गीता में उसका भावी जीवन साथी दिखता था। रवि ने गीता को अपने दिल के मंदिर में बैठा लिया था। वो तो सपने भी देखने लगा कि गीता ही उसकी और उसके मां बाप की देखभाल करेगी और उसकी गरीबी उन दोनों के बीच नही आएगी।

रवि मिडिल क्लास फैमिली से था और गीता एक फैक्ट्री के मालिक की बेटी थी।

फाइनल ईयर के एग्जाम शुरू होने वाले थे। रवि…

Continue

Added by Rajesh Mehra on April 30, 2018 at 6:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल...आँख से लाली गई ना पांव से छाले गये-बृजेश कुमार 'ब्रज'

2122 2122 2122 212

दर्द दिल के आशियाँ में इस क़दर पाले गये

आँख से लाली गई ना पांव से छाले गये

रोटियों से भूख की इतनी अदावत बढ़ गई

पेट में सूखे निवाले ठूंस के डाले गये

इस क़दर उलझे हुये हैं आलम-ए-तन्हाई में

मकड़ियां यादों की चल दी भाव के जाले गये

मुफ़लिसी की आँधियाँ थीं याद के थे खंडहर

नीव भी कमजोर थी सो टूट सब आले गये

ख़्वाब की आँखों से 'ब्रज' घटती नहीं हैं दूरियां

बात दीगर है सभी पलकों तले पाले गये…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2018 at 4:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल नूर की - आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को

आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को

खैर जो भी हो, मुहब्बत से निभाना मुझ को.

.

जीत कर मुझ से, मुझे जीत नहीं पाओगे

हार कर ख़ुद को है आसान हराना मुझ को.

.

मैं भी लुट जाने को तैयार मिलूँगा हर दम

शर्त इतनी है कि समझें वो ख़ज़ाना मुझ को.

.

आप मिलियेगा नए ढब से मुझे रोज़ अगर

मेरा वादा है न पाओगे पुराना मुझ को.

.

ओढ़ लेना मुझे सर्दी हो अगर रातों में

हो गुलाबी सी अगर ठण्ड, बिछाना मुझ को.

.

मुख़्तसर है ये तमन्ना कि अगर जाँ निकले…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 10:42am — 26 Comments

जाति-पाति पूछे हर कोई

  जाति-पाती पूछे हर कोई

“हो गईल चन्दवा क शादी |” पत्नी मोबाईल कान से लगाए मेरी तरफ देखते हुए बोली

मैं दफ्तर से लौटा तो समझ गया की पत्नी जी अपनी माता से फ़ोन पर लगी पड़ी हैं |मैंने बिना कोई रूचि दिखाए अपना बैग रखा और हाथ-मुँह धोने चला गया |

थोड़ी देर बाद पत्नी चाय लेकर आई और सामने बैठ गयी |मैं समझ गया कि वो मुझे कुछ बताने के लिए बेताब है और यह भी कि यह चंदा के विषय में है पर सिद्ध-पुरुष की तरह मैं प्लेट से कचरी उठाकर खाने लगा और अपने व्हाट्सएप्प को…

Continue

Added by somesh kumar on April 29, 2018 at 5:26pm — 4 Comments

हमे साँचे में ढाला जा रहा है

1222 1222 122

बड़ी  मुद्दत   से  टाला  जा  रहा  है ।

किसी  का  जुल्म  पाला  जा  रहा है ।। 1

मुझे   मालूम  है  वह   बेख़ता   थी ।

किया बेशक  हलाला  जा  रहा  है ।।2

लगीं हैं बोलियां फिर जिस्म पर क्यूँ ।

यहाँ  सिक्का उछाला  जा  रहा  है ।।3

कहीं  मैं   खो  न  जाऊं  तीरगी  में ।

मेरे  घर   से  उजाला  जा  रहा  है ।।4…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 29, 2018 at 4:30pm — 7 Comments

राज़ की बातें (लघुकथा)

 "आज कुछ बदलाव सा लग रहा है हर बात में, क्या बात है? सब कुछ मेरी पसंद का!"


"ये मत सोचना जानूं कि देश के बदलाव के साथ ख़ुद को बदल रही हूं!  दरअसल तुम्हारी गोली मुझे अंदर तक घायल कर गई, कल रात!"


इतना कह कर पत्नि ने शरमाते हुए पति की लिखी नई ग़ज़ल वाली पर्ची उसके सीने वाली बायीं जेब में डाल दी!


(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 29, 2018 at 3:30pm — 6 Comments


मुख्य प्रबंधक
ग़ज़ल (गणेश जी बागी)

करनी है जब मन की साहब
क्यों पूछे हो हमरी साहब ।

पानी भरने मैं निकला हूँ
ले हाथों में चलनी साहब ।

पढ़े फ़ारसी तले पकौड़े
किस्मत अपनी अपनी साहब ।*

आटा से डाटा है सस्ता
सब माया है उनकी साहब ।*

शौचालय का मतलब तब ही
जन जब खाए रोटी साहब ।

नही सुरक्षित घर में बेटी
धरम-करम बेमानी साहब ।

सच्ची सच्ची बात जो बोले
आज वही है 'बाग़ी' साहब ।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

*संशोधित

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 29, 2018 at 2:30pm — 23 Comments

ग़ज़ल(मुहब्बत में धोका उठाने चले हैं ) -

(फ ऊलन -फ ऊलन-फ ऊलन-फ ऊलन )



मुहब्बत में धोका उठाने चले हैं।

हसीनों से वह दिल लगाने चले हैं।

सज़ा जुर्म की वह न दे पाए लेकिन

मेरा नाम लिख कर मिटाने चले हैं।

लगा कर त अस्सुब का आंखों पे चश्मा

वो दरसे मुहब्बत सिखाने चले हैं ।

अदावत भी जिनको निभाना न आया

वो हैरत है उल्फ़त निभाने चले हैं ।

बहुत नाम है ऐबगीरों में जिनका

हमें आइना वो दिखाने चले हैं ।

अचानक इनायत न उनकी हुई है

वो…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 29, 2018 at 12:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल -- शीशा-ए-दिल से गर्द हटाने की बात कर // दिनेश कुमार

221---2121---1221---212

.

तू मुश्किलों को धूल चटाने की बात कर

तूफ़ाँ में भी चराग़ जलाने की बात कर

.

तू मीरे-कारवाँ है तो ये फ़र्ज़ है तिरा

भटके हुओं को राह दिखाने की बात कर

महफ़िल में जब बुलाया है मुझ जैसे रिन्द को

आँखों से सिर्फ़ पीने पिलाने की बात कर

.

ऐशो-तरब की चाह भी कर लेना बाद में

पहले उदर की आग बुझाने की बात कर

.

मुद्दत से मुन्तज़िर हूँ तिरा ऐ सुकूने-दिल

ख़्वाबों में ही सही कभी आने की बात कर

.

बस पैरहन…

Continue

Added by दिनेश कुमार on April 29, 2018 at 6:30am — 18 Comments

रोगी मन का शब्दों से उपचार नहीं होने वाला

चाहे जितने लेख लिखें हम

और लिखें कितनी कविता

नहीं समझ आती कामी को

अब कोई भी मर्यादा



रोगी मन का शब्दों से

उपचार नहीं होने वाला

सद्गुण , संस्कार के बिन

उद्धार नहीं…

Continue

Added by Usha Awasthi on April 28, 2018 at 7:30pm — 9 Comments

बुजुर्ग हमारे पराली नही होते...........[सामजिक सरोकार]

बुजुर्ग यानि हमारे युवा घर की आधुनिकतावाद की दौड़ में डगमगाती इमारत के वो मजबूत स्तम्भ होते हैं जिनकी उपस्थिति में कोई भी बाहरी दिखावा नींव को हिला नही सकता.उनके पास अपनी पूरी जिन्दगी के अनुभवों का पिटारा होता हैं जिनके मार्ग दर्शन में ये नई युवा पीढ़ी मायावी दुनिया में भटक नही सकती,लेकिन आज के दौर में बुजुर्गों को बोझ समझा जाने लगा हैं.उनकी दी हुई सीखे दकियानूसी बताई जाती हैं .ऐसा ही मैंने एक लेख में पढ़ा था जिसमे बुजुर्गों को पराली की संज्ञा दी गई.पराली वो होती…

Continue

Added by babitagupta on April 28, 2018 at 4:46pm — 7 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212

बेबस पे और जुल्म न ढाने की बात कर।

गर हो सके तो होश में आने की बात कर ।।

.

क्या ढूढ़ता है अब तलक उजड़े दयार में ।

बेघर हुए हैं लोग बसाने की बात कर ।।

.

खुदगर्ज हो गया है यहां आदमी बहुत ।

दिल से कभी तो हाथ मिलाने की बात कर ।।

.

मुश्किल से दिल मिले हैं बड़ी मिन्नतों के बाद ।

जब हो गया है प्यार निभाने की बात कर…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 28, 2018 at 9:00am — 5 Comments

उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया (तरही)

212 212 212 212

****************

उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,

एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया ।

ख़त दिया था जो कासिद ने उसका मुझे,

"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।

दरमियाँ ही रहा दूर होकर भी गर,

जाने फिर क्यूँ वो मुझसे ख़फ़ा हो गया ।

गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,

खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।

दर्द सीने में ऱख राज़ उगला जो वो,

यूँ लगा मैं तो बे-आसरा हो गया…

Continue

Added by Harash Mahajan on April 27, 2018 at 7:00pm — 13 Comments

परिवर्तन या अपवर्तन (लघुकथा)

"बेटा, फल के आने से वृक्ष तक झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा होता है! कह गए अपने तुलसीदास जी, समझे!" महाविद्यालय की कैंटीन में राजनीतिक गुफ़्तगु करते छात्र-समूह में से एक ने दूसरे की बात सुनकर हिदायत देने की कोशिश कर डाली!



"अबे, यह सब क़िताबों में ही रहने दे और आज की दुनिया की बात कर!" दूसरे छात्र ने चाट का दोना वेस्टबिन में डालते हुए कहा - "फल आने के अहंकार से संस्कार झुक जाते हैं, धनवर्षा के…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 27, 2018 at 8:15am — 4 Comments

मोहब्बत ...

मोहब्बत ...

गलत है कि 

हो जाता है 

सब कुछ फ़ना 

जब ज़िस्म 

ख़ाक नशीं 

हो जाता है 

रूहों के शहर में 

नग़्मगी आरज़ूओं की 

बिखरी होती 

ज़िस्म सोता है मगर 

उल्फ़त में बैचैन 

रूह कहाँ सोती है

मेरे नदीम 

न मैं वहम हूँ 

न तुम वहम…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 25, 2018 at 7:16pm — 10 Comments

द्वंद्व के ख़तरे (लघुकथा)

"लोकतंत्र ख़तरे में है!"

"कहां?"

"इस राष्ट्र में या उस मुल्क में या उन सभी देशों में जहां वह किसी तरह है!"

"अरे, यह कहो कि वही 'लोकतंत्र' जो कि कठपुतली बन गया है तथाकथित विकसितों के मायाजाल में!"

"हां, तकनीकी, वैज्ञानिकी विकास में या ब्लैकमेलिंग- व्यवसाय में!"

"सच तो यह है कि जो धरातल, स्तंभों से दूर हो कर‌ खो सा गया है कहीं आसमान में!"

"हां, दिवास्वप्नों की आंधियों में!"

"... और अजीबोग़रीब अनुसंधानों में!"

"भाई, इसी तरह यह क्यों नहीं कहते कि इंसानियत…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 25, 2018 at 7:00pm — 2 Comments

नारी अंतर्मन [कविता]

घर की सुखमयी ,वैभवता की ईटें सवारती,

धरा-सी उदारशील,घर की धुरी,

रिश्तों को सीप में छिपे मोती की तरह सहेजती,

मुट्ठी भर सुख सुविधाओं में ,तिल-तिल कर नष्ट करती,

स्त्री पैदा नही होती,बना दी जाती,

ममतामयी सजीव मूर्ति,कब कठपुतली बन…

Continue

Added by babitagupta on April 25, 2018 at 6:00pm — 4 Comments

अतुकांत

मैं लिख नहीं सकता l

मैं लिख नहीं सकता 

वाणी के पर खोलकर

अम्बुधि के उर्मिल प्रवाह पर

उत्कंठित भावभंगिमा से

नीरवता का भेदन करके

घन तिमिर बीच में बन प्रभा

मधुकरी सदृश गुंजित रव से

अविरल नूतनता भर देता

मैं लिख नहीं सकता l

भू अनिल अनल में 

उथल पुथल 

अनृत प्रवाद का मर्दन कर 

इतिवृत्तहीन विपुल गाथा

मुख अवयव से 

पुष्कल निनाद

हो अनवरुद्ध

झंकृत करता 

मैं…

Continue

Added by डॉ छोटेलाल सिंह on April 25, 2018 at 12:31pm — 7 Comments

ग़ज़ल नूर की- बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२ 

.

बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,

बहुत मुश्किल है ऐबों को मगर उस के निभा लेना.

.

नज़र मिलते ही उस का झेंप कर नज़रें चुरा लेना,

मचलती मौज का जैसे किसी साहिल को पा लेना.

.

बहुत वादे वो करता है मगर सब तोड़ देता है,

ये दावा भी उसी का है कि मुझ को आज़मा लेना.

.

मलंगों सी तबीयत है सो अपनी धुन में रहता हूँ   

पिये हैं रौशनी के जाम फिर ग़ैरों से क्या लेना.

.

मिलन होगा मुकम्मल जब मिलेगी बूँद सागर से…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 12:09pm — 14 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
16 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service