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॥एक औरत॥

खुले शहरों में मेरी मुस्कराहट अदा है।
बंद शहरों में हमारी अदा ही कजा है॥
खुले शहरों में भी खिलखिलाना मना है।
यही सवाल मेरा इसकी क्या वजा है॥
यूं तो मेरे चाम से मुहब्बत है सबको।
फिर छोटा सा ये क्यों मेरा आसमां है॥
यह तो मुझे बताओ दिल पे हाथ रखकर।
तेरे खुदा से बदतर क्या मेरा खुदा है॥
क्या उसी गुम खुदा की मैं कुदरत नहीं।
गर मेरा नहीं तो क्या तुम्हारा पता है॥
दोगली दुनिया से हम और क्या कहें।
हर सुबूत पेश फिर भी पूछता कहां है॥

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 23, 2012 at 7:44pm — 2 Comments

गजल

छोड़ देना मत मुझे मेरे खुदा मझधार में.

सर झुकाए हूँ खडा मैं तेरे ही दरबार में.

राह में बिकते खड़े हैं मुल्क के सब रहनुमा,

रोज ही तो देखते हैं चित्र हम अखबार में.

देश की गलियाँ जनाना आबरू की कब्रगाह,

इक इशारा है बहुत क्या क्या कहें…

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Added by Sanjay Mishra 'Habib' on July 23, 2012 at 7:00pm — 7 Comments

श्रावणी हाइकू.

फिर लो आया

झीनी फुहारें लाया

सावन आया.

:

लो फूल खिले

कलियाँ भी…

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Added by Ashok Kumar Raktale on July 23, 2012 at 2:09pm — 6 Comments

‘मुग्ध नयनों से निहारे’

मदन-छंद या रूपमाला

****************************************

है मदन यह छंद इसका, रूपमाला नाम.

पंक्ति प्रति चौबीस मात्रा, गेयता अभिराम.

यति चतुर्दश पंक्ति में हो, शेष दस ही शेष,

अंत गुरु-लघु या पताका, रस रहे अवशेष..

****************************************

चाँदनी का चित्त चंचल, चन्द्रमा चितचोर.

मुग्ध नयनों से निहारे, मन मुदित मनमोर.

ताकता संसार सारा, देख मन में खोट.  

पास सावन की घटायें, चल…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on July 23, 2012 at 1:30pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
रचयिता

झींगुर की रुन झुन

रात्रि में घुंघरू का

मुगालता देती हैं

बदरी की चुनरी चंदा पर

घूंघट का आभास कराती है

नीर भरी छलकती गगरी

सागर का छलावा देती हैं

अल्हड शौख किशोरी

के गुनगुनाने का

भ्रम पैदा करते हैं

बारिश की टिप- टिप

संगीत सुधा बरसाती हैं

दामिनी की चमक

श्याम मेघों की गर्जना

विरहणी के ह्रदय की

चीत्कार बन जाती है

अन्तरिक्ष में सजनी साजन

के मिलन की कल्पनाएँ

मिलकर करती हैं जो…

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Added by rajesh kumari on July 23, 2012 at 1:00pm — 8 Comments

इक तरफ - इक तरफ

इक तरफ सुन्दर, जग-जमाना,

इक तरफ लुटता, मैं खज़ाना,

इक तरफ प्याला, है मदहोश,

इक तरफ लब, मेरे खामोश,

इक तरफ बिजली, हैं बादल,

इक तरफ आशिक, मैं पागल,

इक तरफ सागर, है गहरा,

इक तरफ खाली, मैं ठहरा,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 23, 2012 at 11:22am — No Comments

दुख से अपना गहरा नाता

दुख से अपना गहरा नाता,

सुख तो आता है, और जाता.

दुख ही अपना सच्चा साथी,

हरदम ही जो साथ निभाता.



जब से जग में आंखें खोली,

सुनी नहीं कभी मीठी बोली.

दिल को तोड़ा सदा उसी ने,

जिसको भी समझा हमजोली.



जिम्मेदारी का बहुत सा,

बोझ उठाया कांधे पर.

जिसको भी दिया सहारा.

मार चला वो ही ठोकर.





तेरा मेरा कभी न सोचा,

सारे जग को अपना माना.

अपनी खुशियों से बढ़कर,

औरों की खुशियों को जाना.



हाय नियति! फ़िर भी… Continue

Added by Pradeep Bahuguna Darpan on July 23, 2012 at 10:29am — No Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
वक़्त (कुछ दोहे)

वक़्त (कुछ दोहे)

**************************************************
वक़्त चिरैया उड़ रही , नित्य क्षितिज के पार l 
राग सुरीले छेड़ती , अपने पंख पसार ll
**************************************************
वक़्त परिंदा बाँध ले , बन्ध न ऐसो कोय l
थाम इसे जो उढ़ चले , जीत उसी की होय ll
**************************************************
बीते पल की थाप पर , मूरख नीर बहाय l
खुशियों को ढूँढा…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 23, 2012 at 10:00am — 30 Comments

नाग पंचमी का त्यौहार है बाबाजी

फिर सावन का सोमवार है बाबाजी

फिर पूजा है, मन्त्रोच्चार है बाबाजी



आज हमारे जन्म दिवस के मौके पर

नाग पंचमी का त्यौहार है बाबाजी



सुबह सवेरे जल्दी उठ कर स्नान करूँ

घरवाली का ये विचार है बाबाजी



बीवी को वश में करने का मन्तर दो

विनती तुम से बार बार है बाबाजी



वोटर का दुःख उसे दिखाई न देगा

जब तक वो  कुर्सी सवार है बाबाजी



उम्मीदों पर बार बार जो वार करे

वही सही उम्मीदवार  है बाबाजी



जूतों की…

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Added by Albela Khatri on July 23, 2012 at 10:00am — 8 Comments

हिसाब

हिसाब ना माँगा कभी 

अपने गम का उनसे 

पर हर बात का मेरी वो 

मुझसे हिसाब माँगते रहे ।

जिन्दगी की उलझनें थीं 

पता नही कम थी या ज्यादा 

लिखती रही मैं उन्हें और वो 

मुझसे किताब माँगते रहे ।

 

काश ऐसा होता जो कभी 

बीता लम्हा लौट के आता 

मैं उनकी चाहत और वो 

मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।

 

कुछ सवाल अधूरे  रह गये 

जो मिल ना सके कभी 

मैंने आज भी ढूंढे और वो 

मुझसे जवाब माँगते…

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Added by deepti sharma on July 22, 2012 at 7:39pm — 18 Comments

आठ कह-मुकरियां

दांत भींच कर उसे दबाऊं

फिर भी उसको रोक न पाऊं

निकले बाहर लगती फाँसी

क्या सखि खाँसी? नहिं रे हाँसी



कदम-कदम पर उसका  पहरा

आँख का…

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Added by Albela Khatri on July 22, 2012 at 6:00pm — 16 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
प्रीत के उपहार

प्रीत के उपहार

छंद रूपमाला (१४ +१० ) अंत गुरु-लघु ,समतुकांत
*****************************************************
झनक झन झांझर झनकती , छेड़ एक मल्हार .
खन खनन कंगन खनकते, सावनी मनुहार .
फहर फर फर आज आँचल , प्रीत का इज़हार .
बावरा मन थिरक चँचल , साजना अभिसार .
*****************************************************
धडकनें मदहोश पागल , नयन छलके…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 12:00pm — 21 Comments

हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर {नज्म/गीत}

==========नज्म/गीत ==========



हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर

इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर



पल पल भी मुश्किल से कटता है तुम बिन

इक पल भी इक साल सा लगता है तुम बिन

घडी का काँटा रुक रुक चलता है तुम बिन

सूरज चढ़ के  देर से…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 22, 2012 at 10:45am — 5 Comments

तुम भीतर तक भर जाओगे बाबाजी

मेहनत से यदि डर जाओगे बाबाजी

जीवन में क्या कर पाओगे बाबाजी



रोते रोते आये  जैसे दुनिया में

वैसे ही तुम घर जाओगे बाबाजी



बाइक पर मोबाइल से मत बात करो…

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Added by Albela Khatri on July 22, 2012 at 10:30am — 18 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २५

तशवीशात के अजीमुश्शान महल में जैसे खो गया हूँ. हज़ार रास्ते, मगर कौन सही है, दीवारें जो दिख रहीं हैं वो आँखों का धोखा तो नहीं. दरीचों में समाया मंज़र शायद वहम हो. जगह जगह फिक्रों के फानूस टंगे हैं, अज़ीयतों के जौहर से दरोदीवार आरास्ता हैं. दूर कहीं आँगन में अंदेशों के आबशार से बह रहे हैं, बगीचे खौफ के दरख्तों से गुंजान और उलझनों के टिमटिमाते चरागों से शबिस्ताँ रौशन है. गलियारों में कशीदगी के कालीन बिछे हैं, कफेपा से जिनपे दिल की शोरीदगी के नक्श उभर आए हैं. बैठकखानों में मखफी सायों की मजलिस…

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Added by राज़ नवादवी on July 21, 2012 at 8:00pm — 4 Comments

हम गीले थे

वो कोमल थे, वो कंटीले थे,

आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,

रास्ते फूलों के, पथरीले थे,

जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,

ढहे पेंड़ों से, पत्ते ढीले थे,

बिखरे हम, कर उसके पीले थे,

नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 21, 2012 at 5:30pm — 7 Comments

खिलौना........लघुकथा.

रेंजर साहब की पत्नी आगन में बैठकर अपने तीन साल के बेटे को खिला रही थी.सामने के पेड़ पर एक बंदरिया अपने छोटे से बच्चे को छाती से  चिपकाए इधर-उधर कूद-फांद रही थी.बेटे की नज़र उस बंदरिया और उसके बच्चे पर पड़ी.वाह माँ से जिद करने लगा कि उसे खेलने के लिये बंदर का बच्चा चाहिए. माँ ने पिता के आने के नाम पर बेटे को बहलाए रखा.लंच पर रेंजर साहब आये.आते ही पत्नी ने फ़रमाया :
'मुन्ने को सामने के पेड़ पर रहने वाली बंदरिया का बच्चा खेलने के लिये चाहिए".
"इतनी सी बात…
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Added by AVINASH S BAGDE on July 21, 2012 at 1:00pm — 12 Comments

ऐ मेरे सजन

============= गीत =============



मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन

मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन



सुबहो शाम, रात दिन, याद मुझे आ रहे

वो बिताये पल सुहाने नैनों में समा रहे

खिल रहे नए पुष्प, मन की वाटिका में गा रहे

तुमसे ही चलती हैं साँसे तुमसे है जीवन, ऐ मेरे सजन



मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन

मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन



छा रहे है मेघ घने आपकी ही प्रीत के…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 12:28pm — 8 Comments

लगता इसकी मति गई मारी बाबाजी

नीयत हो यदि साफ़ हमारी बाबाजी

नियति भी तब लगेगी प्यारी बाबाजी



पुस्तक, सी डी और  दवायें बेच रहे

सन्त नहीं, वे  हैं व्यापारी बाबाजी



कोई किसी का सगा नहीं है दुनिया में…

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Added by Albela Khatri on July 21, 2012 at 11:00am — 19 Comments

मुक्तिका "सावन"

मुक्तिका "सावन"

मेघों का गर्जन है सावन
बूंदों का अर्पण है सावन

हरियाली चहुँ ओर बिखेरे
कितना मन रंजन है सावन

दीनों की छत से टप टप स्वर
दुःख का अनुरंजन है सावन

शीतल बूंद गिरे जब तन पर
अतिशय तप भंजन है सावन

छेड़े धुन मल्हार पवन जब
मीठा स्वर गुंजन है सावन

"दीप" सजे सब मंदिर देखो
भोले का पूजन है सावन

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 9:00am — 3 Comments

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