For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Rekha Joshi
  • Female
Share on Facebook MySpace

Rekha Joshi's Friends

  • vinay tiwari
  • SAURABH SRIVASTAVA
  • यशोदा दिग्विजय अग्रवाल
  • coontee mukerji
  • Savitri Rathore
  • बृजेश नीरज
  • Tushar Raj Rastogi
  • Meena Pathak
  • आशीष नैथानी 'सलिल'
  • ajay yadav
  • PHOOL SINGH
  • saroj sharma
  • tejwani girdhar
  • Ranveer Pratap Singh
  • राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
 

Rekha Joshi's Page

Profile Information

Gender
Female
City State
Faridabad Haryana
Native Place
Amritsar
Profession
Lecturer in Physics[retired]
About me
I am a writer,write in Hindi and English

Rekha Joshi's Blog

हाँ मै चोर हूँ [लघु कथा ]

फैक्ट्री के आफिस के सामने एक लम्बी सी कार  आ कर रुकी और भुवेश बाबू आँखों पर काला चश्मा चढ़ा कर आफिस में अपना काला बैग रख कर वह किसी मीटिग के लिए चले गए, जब वह वापिस आये तो उनके बैग में से किसी ने पचास हजार रूपये निकाल लिए थे। आफिस के सारे कर्मचारियों को पूछताछ के लिए बुलाया गया, सबकी नजरें सफाई कर्मचारी राजू पर टिक गई क्योकि उसे ही भुवेश बाबू के कमरे से बाहर आते हुए देखा गया था। अपनी निगाहें नीची किये हुए राजू के अपना गुनाह कबूल कर लिया और मान लिया कि वह ही चोर है, पुलिस आई और राजू को पकड़…

Continue

Posted on August 27, 2013 at 1:00pm — 19 Comments

आशा की नवकिरण

आशा की इक नवकिरण

भर देती है संचार तन में

पंख पखेरू बन के ये मन

भर लेता है ये ऊँची उड़ान

जा पहुंचा है दूर गगन पर

पीछे छोड़ के चाँद सितारे

छू रहा है सातवाँ आसमां

गीत गुनगुनाये धुन मधुर

रच  रहा है हर पल नवीन 

सृजन निरंतर रहा है कर

झंकृत करता तार मन के

बन  जाता मानव  महान 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Posted on May 31, 2013 at 8:41pm — 5 Comments

नवगीत

 मत तोड़ फूल को शाख से

झूमते झूलते संग हवा के

हिलोरें ले रही शाखाओं पर 

सज रहें ये खिले खिले पेड़

बहने दो संगीतमय लहर

यही तो गीत है जीवन का 

....................................

 रहने दो फूल को शाख पर 

वहीँ खिलने और झड़ने दो 

बिखरने दो इसे यूं ही यहाँ 

आकुल है भूमि चूमने इसे 

महकने दो आँचल धरा का 

सृजन होगा नवगीत यहाँ 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Posted on April 22, 2013 at 4:33pm — 15 Comments

लहराती चांदनी

मै हूँ धरती

आसमान पे चाँद

साथ साथ है

....................

शीतल तन

लहराती चांदनी

छटा बिखरी

...................

ठंडी हवाएं

जल रहा बदन

तड़पा जाती

.................

स्नेहिल साथ

अंगडाई प्यार की

बहार आई

..................

रात की रानी

दुधिया चांदनी है

महके धरा

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Posted on March 23, 2013 at 11:21pm — 4 Comments

Comment Wall (27 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 10:12am on May 6, 2013, यशोदा दिग्विजय अग्रवाल said…

आभार

अभिनन्दन

At 1:53pm on February 27, 2013, Meena Pathak said…

शुक्रिया रेखा जी 

At 8:18pm on February 22, 2013, बृजेश नीरज said…

आपने मुझे मित्रता योग्य समझा इसके लिए आपका आभार!

At 4:30pm on December 8, 2012, श्रीराम said…

 आपका बहुत बहुत धन्यवाद

At 9:59pm on September 25, 2012, tejwani girdhar said…

shukriya

At 9:35am on September 22, 2012, लोकेश सिंह said…

आदरणीया आपका सादर अभिवादन ,सराहना के लिए हृदय से आभार ,

At 11:01am on September 10, 2012, SANDEEP KUMAR PATEL said…

आदरणीया रेखा जी सादर प्रणाम
ग़ज़ल को पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार

At 8:33am on August 20, 2012, tejwani girdhar said…

आपका स्वागत है

At 10:07am on July 28, 2012, Vasudha Nigam said…

आदरणीय रेखा जी बहुत आभार आपका मेरी कविता के भाव समझ कर उत्साहवर्धन करने के लिए 

At 11:49pm on July 5, 2012, SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR said…

रेखा जी सदा स्वागत है  आप का मित्रता बनी रहे हम भी आप सब से सीखते चलें यही चाह है 

आभार 
भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण  
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"स्वागतम"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a discussion

पटल पर सदस्य-विशेष का भाषयी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178 के आयोजन के क्रम में विषय से परे कुछ ऐसे बिन्दुओं को लेकर हुई…See More
6 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, यक़ीन मानिए मैं उन लोगों में से कतई नहीं जिन पर आपकी  धौंस चल जाती हो।  मुझसे…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय मैं नाम नहीं लूँगा पर कई ओबीओ के सदस्य हैं जो इस्लाह  और अपनी शंकाओं के समाधान हेतु…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय  बात ऐसी है ना तो ओबीओ मुझे सैलेरी देता है ना समर सर को। हम यहाँ सेवा भाव से जुड़े हुए…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय, वैसे तो मैं एक्सप्लेनेशन नहीं देता पर मैं ना तो हिंदी का पक्षधर हूँ न उर्दू का। मेरा…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, मैंने ओबीओ के सारे आयोजन पढ़ें हैं और ब्लॉग भी । आपके बेकार के कुतर्क और मुँहज़ोरी भी…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन, ' रिया' जी,अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया आपने, विद्वत जनों के सुझावों पर ध्यान दीजिएगा,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन,  'रिया' जी, अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया, आपने ।लेकिन विद्वत जनों के सुझाव अमूल्य…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल का आपका प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा, बंधु! वैसे आदरणीय…"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई "
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदाब, 'अमीर' साहब,  खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने ! और, हाँ, तीखा व्यंग भी, जो बहुत ज़रूरी…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service