For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वर्षा के दो रूप (मदन छंद या रूपमाला पर मेरा पहला प्रयास )

(हर पंक्ति में २४ मात्राएँ ,१४ पर यति अंत में गुरु लघु (पताका) २१२२ ,२१२२ ,२१२२ ,२१   संशोधित मदन छंद )

घनन घन बरसे बदरिया ,झूमती हर  डाल|

भीगता आँचल धरा का  ,जिंदगी खुश हाल|   

प्यास फसलों की बुझी अब, आ गए त्यौहार- 

राग मेघ मल्हार सुन-सुन, हृदय झंकृत तार||

 

हैं बरसते घन घुमड़ कर, दामिनी दहलाय|  

चरमराकर वृक्ष गिरते, पत्र फट फट जाय|  

इक परिंदा देख रोए, कित गया  घर  बार- 

गाँव सब डूबे गले तक,   त्राहिमाम पुकार||

     ******

Views: 608

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 25, 2012 at 11:22pm

राजेशकुमारी जी

                   सादर. वर्षा ऋतू पर सुन्दर छंद. बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 25, 2012 at 4:52pm

हार्दिक आभार डा .प्राची 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 25, 2012 at 2:48pm

बहुत खूबसूरत रूपमाला छंद आदरणीया राजेश कुमारी जी... हार्दिक बधाई

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 25, 2012 at 1:39pm

आपका स्वागत है आदरेया राजेश कुमारी जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 25, 2012 at 1:27pm

अम्बरीश जी आपके सुझाव सर आँखों पर सच में इन संशोधनों से गेयता निखर गई है 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 25, 2012 at 1:25pm

भ्रात अरुण जी, यह कुछ भी तो कठिन नहीं! वरन बहुत आसान है ...यदि आप चाहें तो आप भी रूपमाला छंदों पर हाथ आजमा सकते हैं ! सस्नेह

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 25, 2012 at 1:19pm

धन्यवाद आदरेया राजेश कुमारी जी, आपने मेरे सुझाव का मान रखा! अभी भी इन छंदों में कुछ सुधार अपेक्षित है अतः इनमें शिल्प सम्बन्धी सुधार हेतु सुझाव प्रेषित है !

//घनन घन बरसे बदरिया ,झूमती हर  डाल

भीगता आँचल धरा का  ,जिंदगी खुश हाल   

बुझ गई प्यास फसलों की ,कृषक के त्यौहार 

मेघ मल्हार सरिता सुन ,झंकृत ह्रदय तार ||//

 

घनन घन बरसे बदरिया ,झूमती हर  डाल|

भीगता आँचल धरा का  ,जिंदगी खुश हाल|   

प्यास फसलों की बुझी अब, आ गए त्यौहार- 

राग मेघ मल्हार सुन-सुन, हृदय झंकृत तार||

 

// उमड़ -घुमड़ कर घन बरसे ,दामिनी दहलाय  

चरमराकर गिर गए वृक्ष ,फट गए पत्र पाय 

इक परिंदा देख रोए ,   कित गया  घर  बार 

गाँव सब डूबे गले तक,    त्राहिमाम पुकार  ||//

 

हैं बरसते घन घुमड़ कर, दामिनी दहलाय|  

चरमराकर वृक्ष गिरते, पत्र फट फट जाय|  

इक परिंदा देख रोए, कित गया  घर  बार- 

गाँव सब डूबे गले तक,   त्राहिमाम पुकार||

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 25, 2012 at 12:10pm

हार्दिक आभार अरुण शर्मा  जी छंद सराहने के लिए  

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2012 at 11:44am

आदरेया मुझे भ्राताश्री अम्बरीश जी की तरह ज्ञान नहीं है, परन्तु मुझे पढ़ कर बहुत अच्छी लगी आपकी रचना. बधाई

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 25, 2012 at 9:22am

आपका हार्दिक स्वागत है ! शुभकामनाएं !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service