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राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २८

कहाँ चले जाते हैं लोग करीब आके. किधर मुड़ जाती है राह आँखों से ओझल होके. क्या होता है उनका जो अब अपनी वाबस्तगी में नहीं. धूप जो अभी अभी पूरे एअरपोर्ट पे बिखरी थी, कहाँ गुम हो गई. इक उदासी भरी धुन जो बज रही था, वो क्या कह के चुप हो गई.

 

लाउंज की खाली-खाली कुर्सियां, और कुछ कुर्सियों में सिमटे सिकुड़े लोग, कहाँ जा रहे हैं ये लोग, कौन इनका इंतज़ार करता होगा और किस जगह पे. हम इनसे फिर कभी मिलेंगे भी या नहीं और मिले भी तो कैसे जान पायेंगे. दिन यूँ आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रहा है जैसे…

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Added by राज़ नवादवी on July 31, 2012 at 5:56pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २७

कुछ उदासियों के चेहरे होते हैं जो जब हंसते हैं तो और भी रुलाते हैं! कुछ खामोशियाँ बाजुबां होती हैं, जो जब बोलती हैं तो दिल की गहराइयों में लहरें उठती हैं, कुछ ख़याल टहलते हैं गिर्दोपेश में कि उनके मानी को सरापा पढ़ा जा सकता है. कोई दिन पपीहे की तरह गाता है गोया बारिश की फुहारों ने समूची कायनात को इक मजलिसेमूसीकी बना दिया हो, कोई रात आके सिरहाने खडी़ हो जाती है मानो मेरे काँधे पे सर रख के दो आंसूं रो लेना चाहती हो. कुछ लोग ज़हन में यूँ बस जाते हैं गोया कोई बीती निस्बतों का नेस्तेनाबूद न होने…

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Added by राज़ नवादवी on July 31, 2012 at 5:30pm — No Comments

कह मुकरिया

कह मुकरने की कुछ कोशिशें...

(1)

वो डोले दुनिया मुसकाए।

पवन बसन्ती झूमे गाये।

बिन उसके जग खाली खाली,

क्या सखी साजन? ना हरियाली।

 …

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Added by Sanjay Mishra 'Habib' on July 31, 2012 at 3:30pm — 5 Comments

करमजली



"करमजली"



गुलाबो की अम्मा

बचपन में ही छोड़ गयी थी

बचपन क्या १ दिन की थी

१ दिन की थी तभी

छोड़ गयी थी

इस करमजली को

ममत्व मर कैसे गया

उसकी माँ का…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 31, 2012 at 12:39pm — 1 Comment


सदस्य कार्यकारिणी
माहिया

माहिया  (12,10,12)

(1)

अम्बर पे बदरी है

देखो आ जाओ 

तरसे मन गगरी है 

(२)

सागर में नाव चली 

बिन तेरे कुछ भी 

चीजें लगती न भली  

 (३)

 चुनरी पे  नौ बूटे 

सुन तकते- तकते 

कहीं डोरी  न  टूटे 

 (४)

सूरज सिन्दूरी  ना 

मिल न सके कोई   

इतनी भी दूरी ना 

(५)

मैं माँ घर जाउंगी 

 पैर पकड़ लेना

वापस नहीं आउंगी  

 

Added by rajesh kumari on July 30, 2012 at 10:00pm — 10 Comments

अनमोल खजाना

याचना है सांथियों मुझको राह दिखाना 
मकसद जिंदगी का मुझको भी बतलाना 
 

जिंदगी  का मकसद,किस राह पर है चलना 
तक़दीर में पाने को, क्या लिखा है मिलना 
 
अतीत की यादों को दिल में बसाता इंसान है 
अतीत के गहरे जख्म छुपा लेता…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 30, 2012 at 9:00pm — 4 Comments

मुझे चाहिए ऐसी ही रौशनी

"मुझे चाहिए ऐसी ही रौशनी "



लिखता हूँ

जो मन करता है

दिमाग की नशें नहीं खींचता

जोर आजमाइश कर कुछ नहीं निकलता

सिवाए तेल के

अब कोल्हू का बैल तो हूँ नहीं

मोती तो गहराई में होते हैं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 30, 2012 at 2:00pm — 3 Comments

स्याही

"स्याही"



पता है तुम्हे

तुम जानती हो

तुम हर्फ़ हर्फ़ की रूह हो

गलत कुछ भी नहीं

सफाह तुम बिन तन्हा है

खाली है, कोरा है

धूल जम चुकी है

डायरी में…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 30, 2012 at 1:08pm — No Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २३

ख़ुदाकी जलाई शम्मा तो कबसे रौशन है

कोई है तो खुद अपनी दानाई चिल्मन है

 

कुछ किताबें, कपड़े, एक तोशक, तकिया

और तेरी फुर्कतसे चरागाँ मेरा नशेमन है

 

न होता इश्क तो हुस्न की कद्र क्या थी

आशिकों को दीवाना कहना पागलपन है

 

क्यूँ भला पूछें हम बगलगीरों के मसाइल

अपना-अपना घर अपना-अपना आँगन है  

 

हुए खानाखराब इश्कमें फिरेहैं खानाबदोश

रहलेवें हैं हम जिस शह्रमें जैसा चलन है

 

मौत किस तरहा मुश्कबूसी…

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Added by राज़ नवादवी on July 29, 2012 at 8:30pm — No Comments

जीवन

जीवन





जीवन

तुम हो 

 एक अबूझ पहेली,

न जाने फिर भी

क्यों लगता है

तुम्हे बूझ ही लूंगी.

पर जितना तुम्हे

हल करने की

कोशिश करती हूँ,

उतना ही तुम

उलझा देते हो.

थका देते हो.

पर मैंने भी ठाना है;

जितना तुम उलझाओगे ,

उतना तुम्हे

हल करने में;

मुझे आनद आएगा.

और

इसी तरह देखना;

एक दिन

तुम मेरे

हो…

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Added by Veena Sethi on July 29, 2012 at 6:35pm — 1 Comment

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २२

मैं पैदा ही हुआ हूँ दर्द  को जीने के लिए

जैसे लहरें बनींहैं जाँकश सफीनेके लिए

 

मुझको क्या गिजा चाहिए जीने के लिए

तुम्हारा गम काफी है पूरे महीने के लिए  

 

कुछ तो चाहिए दिलको गम दवा या दारु

इकअदद आब काफी नहींहै पीने के लिए 

 

क्यूँ बढ़ालीहैं हमने अपनी सब ज़रुरीयात

बढ़ीहुई तंख्वाह चाहिए हर महीने के लिए  

 

मैं भटकता हुआ दरिया हूँ समंदर है कहाँ

कोई ठहराव चाहिए तामीरेनगीने के लिए

 

अपनी…

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Added by राज़ नवादवी on July 29, 2012 at 11:50am — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २६

बैंगलोर शहर से चिंतामणि, (जिला चिक्काबल्लापुर) और फिर वहाँ से कोलार तक का कार का सफर. ऊँचे नीचे खेत खलिहानों में तस्वीर सा चस्पां कर्नाटका सूबे का देहाती जीवन, छोटी छोटी पहाडियों के पसेमंज़र साफ़ सुथरे घरों की कतारें, और बीच बीच में आते जाते गाँव कसबे- सब कुछ बहुत ही दिलकश था. ताड़ और नारियल के दरख्त खेतों में अपनी मह्वियत में खड़े थे और नज़र भर भर कर सब्जियत के साये नज़रों में तहलील हो रहे थे. मैं सोच रहा था लोग गाँवों को छोड़ शहरों की ओर क्यूँ जाते हैं. दूर खलिहानों से बहके आती खुनक हवाएं…

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Added by राज़ नवादवी on July 29, 2012 at 11:20am — No Comments

चाय

"चाय "



आज सुबह उठा तो सोचा चाय बना लूं

पानी लिया

श्याही सा

हर्फ़ हर्फ़

चाय के दाने

तैरने लगे

एहसासों की चीनी डाल

चढ़ा दिया पतीली को…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 29, 2012 at 9:48am — No Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
राज कुँवरी (रूपमाला छंद)

रूप चंदा चाँदनी सम , चाँद भी शरमाय .
ठुमक ठुम ठुम ठुमक चलना , अंगना गुंजाय .
ओढ़ चूनर राज कुँवरी , झूमती इतराय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .
 
तोतली बोली करे है , प्रेम की बरसात .
दुख सभी के सब हरे है , हो निशा या प्रात .
नयन की भाषा पढ़े है , नयन से हर्षाय .
मत करो रे पाप मानव , भ्रूण गर्भ गिराय .
 
भ्रूण जो कन्या गिराएं , घर बनें वीरान .
संस्कृति और सभ्यता…
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Added by Dr.Prachi Singh on July 28, 2012 at 5:30pm — 13 Comments

राखी .

मानो तो रूह क़ा नाता है जी ये राखी

न मानो कच्चा धागा है जी ये राखी .

 

जो राखी को दम्भ-आडम्बर मानते हैं ;

उन का मन भी तो अपनाता है ये राखी .

 

बहना के मन से उपजी हर इक दुआ है ये ;

भाई-बहन से बंधवाता है ये राखी .

 

सभ्य समाज की नींव के पत्थर नातों का…

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Added by DEEP ZIRVI on July 27, 2012 at 7:00pm — 1 Comment

कुछ और शे'र

प्यार से मुझको, अनमोल नगीना दे दो,

जिंदगी को बस , इक और महीना दे दो,



हम जितना उनको देख मुस्कुराते चले गए,

वो उतना ही दिल कसम से दुखाते चले गए,



हुस्न की फिर से, कुछ अदाएं ढूंढ़ लाया हूँ,

आज अपनी खातिर, सजाएं ढूंढ़ लाया हूँ.....…



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Added by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 4:25pm — 10 Comments

पल्लू

"पल्लू"



मुख

मलीन हो रहा है

तेज नष्ट भ्रष्ट

मुझे छोड़ दिया न

तुमने

गोरी के पल्लू ने

धीरे से कानों में कहा

देखो सब घूर रहे हैं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 3:56pm — 6 Comments

किताबें

"किताबें "

 

किताबें

खटखटा रही हैं

दरवाजे दिमाग के

लायी हैं कुछ

सवाल कुछ जबाब

छू रहीं है

दिल को…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 3:13pm — 5 Comments

मैं शून्य का उपासक हूँ

मैं शून्य का उपासक हूँ

मुझे मेले में भी सब अकेले लगते हैं

इसीलिए सबसे मिल के हँस बोल लेता हूँ

न जाने हंगाम के हंगामे में

कब मुझे मेरा इष्ट (खुदा) मिल जाए

मुकम्मल रास्ते इख्तियार करता हूँ

मंजिल तक जाने के लिए…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 27, 2012 at 2:42pm — 4 Comments

शायद मैं नहीं रहा

दोस्त ....दोस्त वो नहीं रहा,

दिल के मारे, दिल नहीं रहा,



बहता पानी, आँख में नमी,

सागर छूटा, अब नहीं रहा,

धड़कन धीमी, और हो गयी,

काबू खुद पर, जो नहीं रहा,

अब बस तेरा, इंतज़ार है,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 2:04pm — 6 Comments

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