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बच्चे ने पूछा - दादी, आप भगवन को प्यारी कब होंगी ? बूढी दादी बोली-बेटा,भगवान् की पूजा करना ही अपने हाथ में है,बाकी सब भगवान पर है | बच्चे ने फिर पूछा- दादी आप "टै" कब बोंलेगी ? दादी कुछ देर विस्मय से बच्चे को गुहारती रही,फिर सोच कर बोंली- सौरभ बेटे "टै" बोलने से क्या होता है ? चल तू कहता है तो अभी ही बोल लेती हूँ -टै | इस पर सौरभ बोंला - दादी. रात को माँ पापा से कह रहा था कि आप नयी कार कब खरीदोंगे | मम्मी-पापा बात कररहे थे कि दादी के पास बहुत सारा धन है | पर जब वह "टै" बोल जायेगी तब ही अपने को उसका धन मिल सकेगा |और तब ही नयी कार खरीद कर लायेंगे | तब तक तो हमें कार लाने के लिए इन्तजार ही करना पडेगा |

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 5, 2012 at 4:41pm
वाह वाह श्री संजय मिश्र हबीब साहेब आपने तो एक और इस  विषय पर 
जाने माने कवी अशोक चक्रधर की काव्यमय रचना पढने को उपलब्ध करदी 
-हार्दिक धन्यवाद 
Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on August 5, 2012 at 3:43pm

सुन्दर कथा... यह भी एक अजब संयोग है....

टें बोल दो न!

बच्चे ने रट लगा दी,

बार बार कहे-

दादी!

टें बोलकर दिखाओ!

दादी भी अड़ गयी-

क्यों बोलूं पहले ये बताओ?

आखिरकार बच्चे ने राज खोला

मासूमियत से बोला-

कल रात जब

मैं झूटमूट सो रहा था,

तब पापा ने

मम्मी से कहा था-

कि अम्मा जब

टें बोलेंगी तो

खूब सारे रुपये मिलेंगे,

फिर हम

ये घर बेच के

दूसरा घर ले लेंगे.

किसी तरह

दादी ने रोक लिया रोना,

बच्चा जिद करता रहा-

अब तो टें बोल दो ना...!!!  (अशोक चक्रधर)

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 5, 2012 at 3:34pm

श्री अरुण शर्मा 'अनंत' और अशोक कुमार राकताले जी 

आप जैसे साहित्य प्रेमी को रचना सुन्दर लगी,मेरा उत्साहवर्धन 
हुआ, हार्दिक धन्यवाद |
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 5, 2012 at 3:16pm

बेहद सुन्दर रचना सर बहुत-२ बधाई

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2012 at 11:55pm

आदरणीय

            सादर नमस्कार, समझ नहीं आता आजकल लोगों को बुजुर्गों के टें बोलने का इंतजार क्यूँ  रहता है पैसा हो तब भी ना हो तब भी. सुन्दर लघु कथा.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 4, 2012 at 9:41pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय रेखा जोशीजी  -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 4, 2012 at 6:01pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी और योग राज प्रभाकर जी, आप दोनों की सुझावात्मक टिप्पणी अच्छी लगी | कहानी में बच्चे सौरभ के माता-पिता पर निश्चित रूप से कही अडौस-पडौस का अथवा संगत का असर ही होगा, जो कहानी में परिलक्षित नहीं होता, आपका यही आशय है अथवा कुछ और, कृपया मार्ग दर्शन करे | लघु कथा पढ़कर सुझाव देने और होंसला बढ़ने के लिए हार्दिक आभार |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 4, 2012 at 4:57pm

विषय वस्तु संतोषजनक है  किन्तु कथ्य और शिल्प दोनों ही स्तरों पर अभी भी बहुत कसावट की गुंजायश है, इस सन्दर्भ में  आदरणीय सौरभ पांडे जी के इशारों को समझे. बहरहाल लघुकथा रोचक है और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है जिसके लिए हार्दिक साधुवाद. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2012 at 1:54pm

ऐसे विचार दादी ने पापा को या नानी ने माँ को तो नहीं ही दिये होंगे. फिर यह कैसे संसृत हुआ ? विचारणीय है.

इस लघुकथा के लिये सादर बधाई, आदरणीय लक्ष्मणजी. रचनाओं की कसावट के प्रति सतत संवेदनशील रहना होगा.

Comment by Rekha Joshi on August 4, 2012 at 1:45pm

आदरणीय लक्ष्मण जी ,सादर नमस्ते ,इस रंग बदलती दुनिया में अपनों की ही नीयत ठीक नही ,बहुत बढ़िया लघु कथा ,बधाई 

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