=====ग़ज़ल======
जो पता हो गये निशाने सब
तीर आने लगे चलाने सब
आँख खोली सुबह हक़ीकत ने
ख्वाब टूटे मेरे सुहाने सब
उनकी मासूम अदा देखें जो
थाम लेते हैं दिल दीवाने सब
कितनी तारीफ मैं करूँ उनकी
कम ही लगते हैं ग़ज़लो गाने सब
उनके दीदार जब हुए जाना
क्यूँ भटकते हैं उनको पाने सब
दौरे रुखसत में दोस्त आए हैं
बस जनाज़ा मेरा उठाने सब
झूठ आया है सामने अब तो
जान पाए…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2013 at 12:07pm — 9 Comments
कॉंग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की उस टिपण्णी पर ऐतराज़ जताया है की सी बी आई को 'तोता' क्यों कहा? यहाँ दिग्गी राजा का कहना सही लगता है की सुप्रीम कोर्ट को टिपण्णी करने के बजाय फैसला देकर जवाबदेही तय करना चाहिए. दरअसल पिछले कुछ समय से आम जनता भी महसूस कर रही है की कोर्ट की सरकारों को दी जाने वाली बार-बार लताड़ का नतीजा आखिर क्या निकलता है. इससे तो आम सन्देश ये भी जा रहा है की कोर्ट द्वारा सख्त टिप्पणियों को करने के बाद भी देश में भ्रष्टाचार, जघन्य अपराधों में कोई कमी नहीं आ…
ContinueAdded by dinesh solanki on May 14, 2013 at 7:10am — 2 Comments
आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है
अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।
ख़ून बेमक़सद बहाये, आदमी क्या चीज़ है,
आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।
धूप आई, बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,
ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।
कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,
रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।
अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,
सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 12:39am — 18 Comments
बन गया हूँ भिखारी ,लगी थी प्रेम बीमारी !
थोड़ी दया दिखाकर ,मुझको बचाइये !
मुझको ऐसा निचोड़ा ,अब कहीं का ना छोड़ा !
जान बच जाय ऐसी ,युक्ति तो बताइए !!
माना गलती हो गयी ,थोड़ी देर कर गया !
बालक समझकर ,कष्ट से उबारिये !
कान पकड़कर अब ,माफ़ी…
Added by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:47pm — 10 Comments
Added by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:47pm — 16 Comments
चांद सितारे
चुप से हैं।
रात
घनेरी छाई है।।
तेज घनी
दुपहरिया में
अब अंगार बरसते हैं।
तपती
बंजर धरती…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on May 13, 2013 at 6:00pm — 32 Comments
मेरे हित
सच है मां तुमने
केवल जन्नत
मांगी थी
सच कहना पर
कब बहना हित
कोई मन्नत
मांगी थी ?
सदा-सर्वदा
तेरा पूजन
रहा पिता या
मेरे नाम
बहना का पर
रहा हमेशा
एक वहीं
सबका श्रीराम
सच कहना
कब उसकी खातिर
कितनी चौखट
लांघी थी
सदा सर्वदा
मेरी खातिर
दुआ नहीं क्या
मांगी थी ?
और सास बन
तुमने ही…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on May 13, 2013 at 5:21pm — 12 Comments
सखि,चैत्र गया अब ताप बढ़ा।
धरती चटकी सिर सूर्य चढ़ा।
ऋतु के सब रंग हुए गहरे।
जल स्रोत घटे जन जीव डरे।
फिर भी मन में इक आस पले।
सखि पाँव धरें चल नीम तले।
इस मौसम में हर पेड़ झड़ा।
पर, मीत यही अपवाद खड़ा।
खिलता रहता फल फूल भरा।
लगता मन मोहक श्वेत हरा।
भर दोपहरी नित छाँव मिले।
सखि झूल झुलें चल नीम तले।
यह पेड़ बड़ा सुखकारक है।
यह पूजित है वरदायक है।
अति पावन प्राणहवा…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on May 13, 2013 at 8:46am — 21 Comments
Added by Veena Sethi on May 12, 2013 at 12:30pm — 9 Comments
!!! गजल !!!
वज्न-2122, 2122, 2122, 212
तुम जो आये जिन्दगी में, बात सादर हो गयी।
जिन्दगी की सारी सरिता, आज सागर हो गयी।।
आपसी मत भेद भूले, कामना सच हैं नये।
बात रातों की करे तो, चांदनी कर हो गयी।।
हुस्न के जल्वे दिखे है, शाम शबनम की खुशी।
हम सफर जो साथ रहता, आंख कातर हो गयी।।
बन्दगी अब बन्दगी है, रंग - रंगत एक से।
आज फिर राधा-किशन है, बात सुन्दर हो गयी।।
आपकी ही बांसुरी में, गोपियों की लालसा।
राम का दर्शन…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 12, 2013 at 12:00pm — 28 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 12, 2013 at 7:17am — 8 Comments
"सावन की झम झम हो
पायल की छम छम हो
भीगा भीगा तन मन हो
कोई प्यार का सरगम हो
खोई खोई सी धड़कन हो
और तू मेरी…
Added by Kedia Chhirag on May 12, 2013 at 12:30am — 9 Comments
Added by yatindra pandey on May 11, 2013 at 10:30pm — 11 Comments
मैं कैसे सोऊँ ??
नौ माह का अंकुर पूर्ण हुआ
व्याकुल जग पंथ निहारता
गर्भ नाल में जब हुई पीड़ा
रक्त माँ- माँ कह पुकारता
मैं कैसे सोऊँ ?
जब बिस्तर उसका हुआ गीला
वो करवट करवट जागता
मुख ,उँगलियाँ मचलती वक्ष पर
पय उदधि हिलौरे मारता
मैं कैसे सोऊँ ?
रोटी का कौर लिए फिरती
वो नाक चढ़ा चिंघाड़ता
मैं कलम किताब दूँ हाथों…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 11, 2013 at 10:00pm — 16 Comments
Added by Kedia Chhirag on May 11, 2013 at 3:00pm — 7 Comments
माँ सचमुच माँ ही होती है,
उसके जैसी कोई और नहीं होती है।
वो हँसती है हमारे साथ ,
और हमारे साथ ही रोती है।
वो देती है तसल्ली दुःख में,
वो मुस्कराती है हमारे सुख में।
वो निराशा में नया सवेरा लाती है,
कष्ट में धीरज बंधाती है।
जब होता है कोई दुःख तो,
अक्सर माँ की याद आती है।
लगता है जैसे भाग कर,
उसके पास मैं चली जाऊँ।
और उसे अपने सारे दुखड़े,
अपने सारे दर्द कह सुनाऊँ।
जब आये कोई मुसीबत तो,मैं
उसकी गोद में सिमटकर छिप जाऊँ।
वो बचा ले…
Added by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:03pm — 4 Comments
बेख़ौफ़ हो गए हैं ,बेदर्द हो गए हैं ,
हवस के जूनून में मदहोश हो गए हैं .
चल निकले अपना चैनल ,हिट हो ले वेबसाईट ,
अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .
पीते हैं मेल करके ,देखें ब्लू हैं फ़िल्में ,
नारी का जिस्म दारू के अब दौर हो गए हैं .
गम करते हों गलत ये ,चाहे मनाये जलसे ,
दर्द-ओ-ख़ुशी औरतों के सिर ही हो गए हैं .
उतरें हैं रैम्प पर ये बेधड़क खोल तन को…
ContinueAdded by shalini kaushik on May 11, 2013 at 12:30am — 11 Comments
!!! नवगीत !!!
अब तो आजा मीत मेरे, पलकें हो गई नम।
गीत में यूं दर्द छिपें हैं, सासें हो गई गर्म।।
जीवन इक पल का लगता है,
दिन लगता इक वर्ष।
रातें तारों जैसी लगती है,
अनगिनती हर पल।।..... अब तो आजा.....
तुम बिन सूनी सब गलियां,
सूना लगता है उपवन।
जलघट बिन पनघट जाती हूं,
छलक-छलक जाता यौवन।।..... अब तो आजा ...
अखिंयां राह बिछी फूलों संग,
बगिया हैं बौराए सब।
प्राण उड़-उड़ जाते पत्तों से,
रूक जाती…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 10, 2013 at 7:29pm — 10 Comments
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना
उन्मुक्त हो मुक्त गगन में,
छेड़ू मैं कोई तान प्यारी,
मधुर रस भरी प्रेम की,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
गाएँगे सब पशु-पक्षी ,
आ जायेंगे तुम्हारे साथी भी,
बहेगी निःस्वार्थ प्रेम की गंगा,
क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।
भक्ति रस घुलेगा हवाओं में,
पहुँचेगा वृंदावन की गलियाँ,
नाचेगी सब गोपियाँ वहाँ…
ContinueAdded by akhilesh mishra on May 10, 2013 at 6:00pm — 18 Comments
सामयिक मुद्दों पर एक नवगीत ...
रो रो कर जनता बेहाल
नेता काटें ‘मोटा माल’
साम्यवाद के पक्ष में
जितने दावे थे
सब ख़ारिज हैं…
ContinueAdded by वीनस केसरी on May 10, 2013 at 3:00pm — 24 Comments
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