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!!! नवगीत !!!

!!! नवगीत !!!



अब तो आजा मीत मेरे, पलकें हो गई नम।

गीत में यूं दर्द छिपें हैं, सासें हो गई गर्म।।

जीवन इक पल का लगता है,

दिन लगता इक वर्ष।

रातें तारों जैसी लगती है,

अनगिनती हर पल।।..... अब तो आजा.....

तुम बिन सूनी सब गलियां,

सूना लगता है उपवन।

जलघट बिन पनघट जाती हूं,

छलक-छलक जाता यौवन।।..... अब तो आजा ...

अखिंयां राह बिछी फूलों संग,

बगिया हैं बौराए सब।

प्राण उड़-उड़ जाते पत्तों से,

रूक जाती…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 10, 2013 at 7:29pm — 10 Comments

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना

 

 

उन्मुक्त हो मुक्त गगन में,

छेड़ू मैं कोई तान प्यारी,

मधुर रस भरी प्रेम की,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

 

गाएँगे सब पशु-पक्षी ,

आ जायेंगे तुम्हारे साथी भी,

बहेगी निःस्वार्थ प्रेम की गंगा,

क़ृष्ण तुम बंसी बजाना ।

 

भक्ति रस घुलेगा हवाओं में,

पहुँचेगा वृंदावन की गलियाँ,

नाचेगी सब गोपियाँ वहाँ…

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Added by akhilesh mishra on May 10, 2013 at 6:00pm — 18 Comments

नवगीत ::: नेता काटें ‘मोटा माल’

सामयिक मुद्दों पर एक नवगीत ...

 

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

साम्यवाद के पक्ष में

जितने दावे थे

सब ख़ारिज हैं…

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Added by वीनस केसरी on May 10, 2013 at 3:00pm — 24 Comments

वहशी लोग

गंदी नाली के कीड़े है ये वहशी लोग
जो रात –दिन पनप रहे है किसी   
गटर के गंदे पानी में.
छि: घिन्नता से भर रहा है मन
खिज रहा है इसकी दुर्गन्ध से
साँस भी लेना दुश्वार हुआ है
इस अमानवीय माहौल में…
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Added by POOJA AGARWAL on May 10, 2013 at 11:00am — 8 Comments

गजोधर भाई, आप तो शराब नहीं पीते थे!/ जवाहर

मैं शाम को अपने घर पर बैठा टी वी देख रहा था. टी वी के एक न्यूज़ चैनल पर सामयिक विषयों पर गरमा गरम बहस चल रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो गजोधर भाई थे.

मैने कहा – "आइये !"

उन्होंने कहा – "आज यहाँ नहीं बैठूंगा. चलिए कहीं बाहर चलते हैं."

मैंने कहा- "ठीक है चलेंगे. आइये पहले चाय तो पी लें. फिर चलते हैं."

उन्होंने कहा – "चलिए न बाहर ही चाय पीते हैं."

मैं उनके साथ हो लिया. चाय के दुकान जिसमे अक्सर हमलोग बैठकर चाय पीते थे, वहाँ न रुक कर गजोधर भाई के साथ और…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on May 10, 2013 at 4:30am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
भारत-तीर्थ

भारत तीर्थ

 (कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता से क्षमायाचना सहित कुछ पंक्तियों का हिन्दी भावानुवाद)

ओ मेरे मन जागो जागो

पुण्य तीर्थ में धीरे,

भारत के जन-मानस के

सागर तीर में.

यहाँ खड़े कर बाहु प्रसारित

नर-नारायण को नमन करुँ मैं,

उदार छन्द में परम आनन्द से,

उनका आज वंदन करुँ मैं.

ध्यानमग्न है यह धरती -

नदियों की माला जपती,

यहीं नित्य दिखती है मुझको

पवित्र यह धरणी रे…

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Added by sharadindu mukerji on May 10, 2013 at 12:50am — 6 Comments

सूखा

सूखा !

मही मधुरी कब से तरस रही ,

बुझी न कभी एक बूँद से तृषा ,

घनघोर घटाएँ लरज लरज कर ,

आयी और बीत चली प्रातृषा .

ईख की जड़ में दादुर बैठे ,

आरोह अवरोह में साँस चले ,

पानी की अहक लिये जलचर ,

ताल हैं शुष्क सबके प्राण जले .

पथिक राह चले बहे स्वेदकण ,

पथतरू* से प्यास बुझाए मजबूरन , * traveller’s tree

दूर कोई आवाज़ बुलाए कल् कल्…

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Added by coontee mukerji on May 9, 2013 at 10:30pm — 14 Comments

माँ तुम मेरी सहेली हो

माँ तुम अबूझ पहेली हो 
माँ तुम मेरी सहेली हो 

स्नेह की  डोर से बंधी 

ममता की…
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Added by दिव्या on May 9, 2013 at 3:30pm — 12 Comments

सुविधा

सुविधा 
बेटा तुम्हारी माँ की तबियत ठीक नहीं है तुम्हे देखना चाहती है .पिता ने फोन पर बेटे से गुजारिश सी की।
हाँ पापा मुझे भी माँ को देखने आना है अगले हफ्ते दो छुट्टी हैं उसमे आने की सोच रहा था लेकिन रिजर्वेशन नहीं मिल रहा है।बेटे ने अपनी मजबूरी…
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Added by Kavita Verma on May 9, 2013 at 1:02pm — 9 Comments

माँ

बहुत ख़ुशनसीब हैं

हम लोग

हमारे सिर पर

हाथ है माँ का

क्योंकि

माँ का आँचल

हर छत से ज़्यादा

मज़बूत होता है

सुरक्षित होता है…

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Added by नादिर ख़ान on May 9, 2013 at 1:00pm — 12 Comments

इम्तिहान

इश्क के इम्तिहान से सनम यूँ  घबरा गया,

छोड़ कर सागर मे कश्ती खुद किनारे आ गया ....



डूबने की चाहत उसे थी इश्क के दरियाओं मे ,…

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Added by Roshni Dhir on May 9, 2013 at 12:30pm — 16 Comments

दरख्त

जाओ तुमको तुम्हारे हाल पे

मेने छोड़ दिया

तुमको इससे ज्यादा में और

दे भी क्या सकता था ...

देखो इस सूखे दरख्त को जिसने

बहुत फल खिलाये थे .. पर…

आज यहाँ परिंदा भी अपना

घोसला नहीं बनाता…

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Added by Amod Kumar Srivastava on May 9, 2013 at 12:08pm — 6 Comments

ग़ज़ल : चोरी घोटाला और काली कमाई

बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

चोरी घोटाला और काली कमाई,

गुनाहों के दरिया में दुनिया डुबाई,

निगाहों में रखने लगे लोग खंजर,

पिशाचों ने मानव की चमड़ी चढ़ाई,

दिनों रात उसका ही छप्पर चुआ है,

गगनचुम्बी जिसने इमारत बनाई,

कपूतों की संख्या बढ़ेगी जमीं पे,

कि माता कुमाता अगर हो न पाई,

हमेशा से सबको ये कानून देता,

हिरासत-मुकदमा-ब-इज्जत रिहाई,

गली मोड़ नुक्कड़ पे लाखों…

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Added by अरुन 'अनन्त' on May 9, 2013 at 12:00pm — 12 Comments

कुरुक्षेत्र.......

शाम ढले खड़ा था खिड़की पर,

अपने इतिहास से वर्तमान...

का संगम कराने....…

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Added by KAVI DEEPENDRA on May 9, 2013 at 7:30am — 6 Comments

उम्मीद के चमन में सांसों सी हैं दुआएं।

उम्मीद के चमन में सांसों सी हैं दुआएं।

सुख दुःख दो शिलाएं, इक आए इक जाए।।

हम दोस्त है सभी के

क्यों दुश्मनी निभाएं

सुन्दर भाव संवारें,

अन्तर्मन व्यथाएं ।।1उम्मीद के---



फूलों औ कलियों से

सुगन्धित हैं दिशाएं

अपनी ही आस्था से

बस प्यार को बढ़ाएं।।2 उम्मीद के---



मौसम आये जाये

खुशबहार-पतझड़ से

सुजन में खिन्नता है

दुर्जन खिल खिलाएं।।3 उम्मीद के---



कुछ शहंशाह ऐसे

जो मुल्क बेचते हैं

रोते उदास…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2013 at 9:26pm — 16 Comments

भिखारन की निष्ठा

भिखारन की निष्ठा

मेरे घर के करीब भिखारियों का एक परिवार रहता था. चार बच्चे और पति – पत्नी. सुबह तड़के ही सभी घर से निकल जाते और गोधूली बेला तक सभी वापस आ जाते.

एक दिन क्या हुआ कि पति और बच्चे तो आ गये लेकिन भिखारन को आने में देर हो गयी . उसके आते आते रात के आठ बज गये. सभी भूखे थे. अतः भिखारन ने जल्दी से चावल की हांडी चूल्हे पर रख दी. चावल जब पक गया तो उसने अपने पति और बच्चों को पहले खिला दिया. बाद में जब वह खाने बैठी तो देखा हांडी में चावल के साथ एक छिपकली भी पक गयी है. भिखारन के…

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Added by coontee mukerji on May 8, 2013 at 12:00pm — 9 Comments

कुछ खरी खोटी....कुण्डलिया

कुणडलिया

----



लाख दवायें कर रहे, कम ना होता रोग

लिखा शास्त्र मे है यही, सबसे उत्तम योग

सबसे उत्तम योग, रोग यह दूर भगाता

ह्रदयों मे उत्साह , बदन मे फुर्ती लाता

स्वस्थ वही हैं आज, योग जो करते जायें

काम करे जो योग, करे नहि लाख दवायें

----

बात बनाना है कला, बात सही यह जान

भागदौड की जिंदगी, आता हरदम काम

आता हरदम काम, मुसीबत दूर भगाता

मुश्किल जो हैं काम, उसे यह सहज बनाता

कहते हैं कविराय, पडा उसको पछताना

सीख सका नहि आज, अभी तक… Continue

Added by manoj shukla on May 8, 2013 at 10:30am — 14 Comments

डमरू घनाक्षरी



32 वर्णो का डमरू दण्डक ‘‘ल सब‘‘ अर्थात इसके बत्तीसों वर्ण लघु होते है।



‘‘कमल नमन कर तमस शमन कर, उजस उरन भर हरष सकल नर।

अपजस हर मन सब रस तन भर, कलश सगर सम हृदय तरल कर।।

हलधर मत कह जन मन भय डर, भग कर लठ लय तड़ तड़ तब मर।

हलधर जय जय भगवन छत धर, मन भय हर-हर भजन करत तर।।‘‘

भावार्थ- कमल आदित्य के समान ही समस्त तिमिर को नष्ट करने वाला, हृदयों मे उल्लास, ओज और सभी प्राणियों में हर्ष का संचार करके दुःखों और सारी विकृतियों को दूर करने वाला है। यह शुभ…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2013 at 8:00am — 12 Comments

कलम

ईश्वर ने चाहे मुझको 

खुशियाँ कम दे दी ,

मगर अच्छा किया कि

हाथ में मेरे कलम दे दी .

जब भी आँसू बहे आँखों से

शब्द बन के उतर जाते  .

होती न गर कलम हाथ में 

कैसे ग़म ये निकल पाते ,

थोड़ी सी मिली खुशियों में 

ज़हर बनके घुल जाते  .

हम घुट-घुट कर कबके 

यहाँ पर मर जाते  ,

इतना सारा ज़हर पीके हम           

भला कैसे फिर जी पाते .

इसी कलम ने ज़हर निकाला 

जब-जब दर्द ने डंक मारे ,

इसी कलम की…

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Added by POOJA AGARWAL on May 7, 2013 at 9:30pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तस्वीर

यह रोज़ ही की बात है

जब रात गए,

शबनम की बरसात हुआ करती है-

पात पात रात भर

वात बहा करती है,

चोरी छिपे मैंने भी देखा है

दोनों को,

जब रात से प्रभात की

मुलाक़ात हुआ करती है -

मैं तो बस दर्शक हूँ

यह एक तसवीर है.

(2)

रात की लज्जा,

चहारदीवारी के साये में,

मेरे आंगन में छुपे

कलियों के आंचल में

सिमट-सिमट जाती है -

लेकिन वह सूरज

अनायास मेरे घर की

प्राचीर को लांघ…

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Added by sharadindu mukerji on May 7, 2013 at 9:30pm — 9 Comments

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