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माँ को आता सब कुछ सहना

घर लौटकर पूत विदेश से

माँ से बोला बड़े प्यार से, 

आया मै तुमको लेने माँ

यहाँ अकेली अब न रहना |

इस घर को अब बेच चलेंगे

खाली घर में भूत बसे माँ,

संग में मेरे अब तू रहना

उम्र नहीं यह तन्हा रहना |

उमडा उसपर माँ का प्यार,

बेच दिया सारा घरबार,

पोर्ट पर जाकर माँ से बोला-

माँ तू यहाँ पर बैठे रहना |

माँ बोली क्या बात है बेटा

पूत कहे कुछ बात नहीं है,

सामान की है जांच कराना,

माँ बोली जा, जल्दी आना…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 15, 2013 at 3:00pm — 15 Comments

!!! नवगीत !!!

!!! नवगीत !!!



नयनन के कोर से, ढरकि गये अंसुआं।

खारे जल बिन्दु भी, बन गये मोतियां।।

जीवन के रंग में,

गुलशन बसंत में-

पतझर के ढ़ंग से,

उजड़ गयी बगिया।1...खारे जल..

नयनन के नील में,

सागर सी झील मे-

रेशम की गेंद संग,

डूब गये छलिया।2...खारे जल..

कर्म के सफर में,

काटों के पथ पर,

नागों को मथ कर,

नाचे गउ चरइया।3....खारे जल..

धर्म की जीत को,

सत्यम के रीति को,

गीता के गीत को,…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2013 at 9:39am — 12 Comments

सुनो ऋतुराज

सुनो ऋतुराज!

मौसम बदलने और ईमान बदलने में फर्क होता है

ईमान बदलने और वक्त बदलने में फर्क होता है

लेकिन धरा के दरकने और ह्र्दय के दरकने में

कोई फर्क नहीं होता ..

क्योकि दोनो में निहित…

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Added by Gul Sarika Thakur on May 14, 2013 at 7:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल "दरमियाने इश्क जब दुश्वारियां आने लगीं"

 

दरमियाने इश्क जब दुश्वारियां आने लगीं

एक दूजे में नज़र सौ खामियाँ आने लगीं



मैं ये सोचे हूँ कि कोई याद मुझको भी करे  

तुम परेशां हो कि फिर से हिचकियाँ आने लगीं

 

माँ का दामन है या है मेरा बिछौना मखमली

गोद में जाते ही मीठी झपकियाँ आने लगी

 

हम अकेले रो रहे थे अपने दिल के जख्म पर

और हमारा साथ देने सिसकियाँ आने लगीं

 

इश्क के झोंके फरेबी खुश्बुओं से क्या मिले

“दीप” फिर नफ़रत भरी कुछ आँधियाँ आने…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2013 at 7:00pm — 5 Comments

वो कुछ ना कह पाती |

जब कली ही मुरझाने लगी ,  फूल कहाँ से आयेगा |
फिर निर्जन विरान मरूस्थल में , फूल कहाँ से लायेगा | 
सब तोड़ते रहेंगे कली ,  पौधा कौन बनाएगा  | 
वो दिन भी ऐसा आयेगा , जब गुलशन…
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Added by Shyam Narain Verma on May 14, 2013 at 4:23pm — 7 Comments

प्रवाह

हर रात

देखता हूं

एक नदी का सपना

जो भरती है

निर्मल धार

उष्‍ण अंतस की गहराई तक

नसों में बहते लावे

जिसके घने स्‍पर्श से

जीवंत हो उठते हैं

पर आंख खुलते ही

घबरा जाता हूं

जब देखता हूं

जलती रेत पर

फड़फड़ाते अंश को

और देह भी तब

भिनभिनाने लगती है

थके डैने थाम पंछी

भी तो सुस्‍ताते नहीं

और फिर

पन्‍नों पर दिखती है

दरिया की लकीरें

सिमटी हुई

इंच दर…

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Added by राजेश 'मृदु' on May 14, 2013 at 4:10pm — 12 Comments

आजादी का मतलब //कुशवाहा //......कहानी

आजादी का मतलब

 

रामगढ़ के जमींदार ठाकुर दानवीर सिंह जैसा उनका नाम था उसी के अनुसार उनका चरित्र एवं व्यवहार था। गरीब कन्याओं के विवाह में मदद करना, किसान की फसल नष्ट होने पर उसके परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी उठाना या कोई भी धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रम हो तो उसमें अपना पूरा सहयोग देना उनकी प्राथमिकता थी। अतिथियों का स्वागत करने में तो उनका कोई सानी नही था। अस्पताल, धर्मशाला, विद्यालय उनके द्वारा बनवाये गये साथ ही पशुओं के लिये चारागाह इत्यादि की व्यवस्था भी थी। गरीब…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 14, 2013 at 4:03pm — 10 Comments

ग़ज़ल - मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए !

ग़ज़ल -

ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ,

आदमी मजबूर है खुद को बदलने के लिए ।

सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,

अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।

हाथ में आका के देकर नोट की सौ गड्डियां ,

आ गये संसद में कुछ बन्दर उछलने के लिए ।

गुम गयीं…

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Added by Abhinav Arun on May 14, 2013 at 2:05pm — 55 Comments

ग़ज़ल - उसे देखे ज़माना हो गया है

ग़ज़ल
उसे देखे ज़माना हो गया है ,
मेरा बच्चा सयाना हो गया है । 
.
मेरा दिल गाँव में बसता है बेशक ,
शहर में आब - ओ - दाना हो गया है । 
.
तेरी पायल की रुनझुन बज रही माँ ,
तेरा लोरी सुनाना हो गया है । 
.
अकेला सच का परचम ढो रहा हूँ ,
मुकाबिल ये ज़माना  हो गया है…
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Added by Abhinav Arun on May 14, 2013 at 1:30pm — 21 Comments

ग़ज़ल "जो पता हो गये निशाने सब "

=====ग़ज़ल======

जो पता हो गये निशाने सब

तीर आने लगे चलाने सब

आँख खोली सुबह हक़ीकत ने

ख्वाब टूटे मेरे सुहाने सब

उनकी मासूम अदा देखें जो

थाम लेते हैं दिल दीवाने सब

कितनी तारीफ मैं करूँ उनकी

कम ही लगते हैं ग़ज़लो गाने सब

उनके दीदार जब हुए जाना

क्यूँ भटकते हैं उनको पाने सब

दौरे रुखसत में दोस्त आए हैं

बस जनाज़ा मेरा उठाने सब

झूठ आया है सामने अब तो

जान पाए…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2013 at 12:07pm — 9 Comments

सोच जनता की नहीं आपके आचरण की बदलनी होगी..

कॉंग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की उस टिपण्णी पर ऐतराज़ जताया है की सी बी आई को 'तोता' क्यों कहा? यहाँ दिग्गी राजा का कहना सही लगता है की सुप्रीम कोर्ट को टिपण्णी करने के बजाय फैसला देकर जवाबदेही तय करना चाहिए. दरअसल पिछले कुछ समय से आम जनता भी महसूस कर रही है की कोर्ट की सरकारों को दी जाने वाली बार-बार लताड़ का नतीजा आखिर क्या निकलता है. इससे तो आम सन्देश ये भी जा रहा है की कोर्ट द्वारा सख्त टिप्पणियों को करने के बाद भी देश में भ्रष्टाचार, जघन्य अपराधों में कोई कमी नहीं आ…

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Added by dinesh solanki on May 14, 2013 at 7:10am — 2 Comments

तरही ग़ज़ल--आपसे मिलकर ये जाना दोस्ती क्य चीज़ है।

आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है

अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।

ख़ून  बेमक़सद  बहाये, आदमी क्या चीज़ है,

आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।

धूप आई,  बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,

ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।

कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,

रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।

अपने-आपे में नहीं है,अब मेरा अपना शरीर,

सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़…

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Added by सूबे सिंह सुजान on May 14, 2013 at 12:39am — 18 Comments

प्रेम का कड़वा अनुभव ( घनाक्षरी छंद )

बन गया हूँ भिखारी ,लगी थी प्रेम बीमारी !

थोड़ी दया दिखाकर ,मुझको बचाइये !

मुझको ऐसा निचोड़ा ,अब कहीं का ना छोड़ा !

जान बच जाय ऐसी ,युक्ति तो बताइए !!



माना गलती हो गयी ,थोड़ी देर कर गया !

बालक समझकर ,कष्ट से उबारिये !

कान पकड़कर अब ,माफ़ी…

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Added by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:47pm — 10 Comments

चाँद उदास था ....



कल चाँद बहुत उदास था 
तारे भी थे बुझे बुझे
हवा भी थी रुकी…
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Added by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 6:47pm — 16 Comments

नवगीत/ रात घनेरी

चांद सितारे

चुप से हैं।

रात

घनेरी छाई है।।

 

तेज घनी

दुपहरिया में

अब अंगार बरसते हैं।

तपती

बंजर धरती…

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Added by बृजेश नीरज on May 13, 2013 at 6:00pm — 32 Comments

ये सच है मां

मेरे हित

सच है मां तुमने

केवल जन्‍नत

मांगी थी

सच कहना पर

कब बहना हित

कोई मन्‍नत

मांगी थी ?

सदा-सर्वदा

तेरा पूजन

रहा पिता या

मेरे नाम

बहना का पर

रहा हमेशा

एक वहीं

सबका श्रीराम

सच कहना

कब उसकी खातिर

कितनी चौखट

लांघी थी

सदा सर्वदा

मेरी खातिर

दुआ नहीं क्‍या

मांगी थी ?

और सास बन

तुमने ही…

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Added by राजेश 'मृदु' on May 13, 2013 at 5:21pm — 12 Comments

नीम तले--वर्णिक छंद सवैया पर आधारित एक गीत

 

सखि,चैत्र गया अब ताप बढ़ा।

धरती चटकी सिर सूर्य चढ़ा।

ऋतु के सब  रंग हुए गहरे।

जल स्रोत घटे जन जीव डरे।

फिर भी मन में इक आस पले।

सखि पाँव धरें चल नीम तले।

 

इस मौसम में हर पेड़ झड़ा।

पर, मीत यही अपवाद खड़ा।

खिलता रहता फल फूल भरा।

लगता मन मोहक श्वेत हरा।

भर दोपहरी नित छाँव मिले।

सखि झूल झुलें चल नीम तले।

 

यह पेड़ बड़ा सुखकारक है।

यह पूजित है वरदायक है।

अति पावन प्राणहवा…

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Added by कल्पना रामानी on May 13, 2013 at 8:46am — 21 Comments

माँ तुम्हारा वो एहसास----- कविता

 

माँ तुम्हारा वो एहसास 

माँ

                    

 तुम मेरी…

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Added by Veena Sethi on May 12, 2013 at 12:30pm — 9 Comments

!!! गजल !!!

!!! गजल !!!

वज्न-2122, 2122, 2122, 212



तुम जो आये जिन्दगी में, बात सादर हो गयी।

जिन्दगी की सारी सरिता, आज सागर हो गयी।।



आपसी मत भेद भूले, कामना सच हैं नये।

बात रातों की करे तो, चांदनी कर हो गयी।।



हुस्न के जल्वे दिखे है, शाम शबनम की खुशी।

हम सफर जो साथ रहता, आंख कातर हो गयी।।



बन्दगी अब बन्दगी है, रंग - रंगत एक से।

आज फिर राधा-किशन है, बात सुन्दर हो गयी।।



आपकी ही बांसुरी में, गोपियों की लालसा।

राम का दर्शन…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 12, 2013 at 12:00pm — 28 Comments

भारतीय सनातन संस्कृति का ह्रास

साँस लेता हूँ जब

उठती है कसक सीने में

ज्वार उठता है

ज्वाला धधकती है

दब जाता हूँ मैं

राख के ढेर तले

सनातन संस्कृति की राख

दिखलाई देते हैं

संस्कृति के भग्न अवशेष

अटक जाती हैं साँसें

अवसान देखकर

सनातन संस्कृति का



समृद्ध संस्कृति थी कभी

भारतीय सनातन संस्कृति

सम्भाल नहीं पाए

भारतीय भाग्य विधाता

आक्रमणकारी आए विदेशी

रौंदने लगे पैरों तले

भारतीय सनातन संस्कृति

हूण आए, कुषाण आए

यमनी भी… Continue

Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 12, 2013 at 7:17am — 8 Comments

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