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अपने अपने हिस्से का पानी

हम अपने अपने हिस्से का पानी लिए जिए जा रहें है...

देह में मचलता हुआ, लहू में बहता हुआ

और लोग जो अपनों के साथ हर सुख दुःख मे ढल जाते हैं  

हर उस आकार में जिसमें

उस घडी उनका अपना उन्हें होना देखना चाहता है

वह उनके लिए पानी सा हो जातें है .......

तो है न यह अपनों का संसार|

फिर तुम मैं

कहाँ .... दो किनारों से

अपने अपने हिस्से के पानी के साथ बढते हुए, उन्हें थामे हुए|

कभी न मिलने के लिए|

और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर

देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर

और किनारे जो कही भी अलग नहीं

समान्तर नहीं

वर्तुलाकार में एक साथ चलते और मिलते हुए

और उस सागर में होते हो तुम और तुम्हारा प्रतिबिम्ब

एक घूंट मैं आचमन कर लेती हूँ

बाकी से खुद को भिगो देती हूँ .................  ~nutan~

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Comment

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Comment by वेदिका on June 26, 2013 at 2:16am

सुंदर बिम्बों को लेकर रची गयी रचना … वाह सुंदर सुंदर!

बधाई आदरणीया नूतन जी! 

Comment by Priyanka singh on June 14, 2013 at 9:46pm

 सुंदर.....बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 6, 2013 at 2:05pm

kya imagination hai ..wah  meri taraf se hardik badhayee sweekarein 

Comment by MAHIMA SHREE on June 6, 2013 at 12:13am

और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर

देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर

और किनारे जो कही भी अलग नहीं

समान्तर नहीं

वर्तुलाकार में एक साथ चलते और मिलते हुए

और उस सागर में होते हो तुम और तुम्हारा प्रतिबिम्ब

एक घूंट मैं आचमन कर लेती हूँ

बाकी से खुद को भिगो देती हूँ .................  

वाह !! बहुत ही सुंदर .. बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 31, 2013 at 11:41pm

प्रिय सखी नूतन जी आपकी इस रचना पर अभी अभी ध्यान  गया, बहुत ही सुन्दर बिम्बों में गुंथे भाव दिल तक पंहुच गए बहुत सुन्दर वाह वाह बहुत बधाई आपको |

Comment by Yogendra Singh on May 30, 2013 at 8:22pm

बहुत सुंदर तथा मार्मिक अहसास से पिरोयी हुई कविता ॥ 

Comment by vijay nikore on May 30, 2013 at 7:10am

आदरणीया नूतन जी:

 

//

और मैं हर रोज एक अंजुली में पानी को भर

देख लेती हूँ किनारे को भिगोता हुआ एक सम्पूर्ण सागर

और किनारे जो कही भी अलग नहीं

समान्तर नहीं//

आपकी कविताएँ मार्मिक भाव से भरपूर हैं,

अत: अच्छी लगती हैं।

 

हार्दिक बधाई।

विजय निकोर

Comment by coontee mukerji on May 29, 2013 at 3:22pm

बहुत ही सुंदर रचना जिसका हर शब्द अनुभवों के स्याही में डूबी हुई है .नुतन जी , आपकी लेखनी की कोई सानी नहीं...सादर / कुंती .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 28, 2013 at 9:07am

अतुकांत शैली में रचित यह रचना अपने उच्च बिम्ब और मजबूत कथ्य से बरबस ध्यान खींचती है, अच्छी और भाव प्रधान अभिव्यक्ति पर बधाई आदरणीया डॉ नूतन गैरोला जी । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 24, 2013 at 8:45am

बिंम्ब के धागों से स्नेह को बांधती सुन्दर रचना आदरणीया नूतन जी सादर बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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