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एक नवगीत--सूर्य देवा...

सूर्य देवा, लाँघना कुछ सोचकर,

इस गाँव की चौखट। 

 

बढ़ रहे तेवर तुम्हारे,

सिर चढ़े वैसाख में।

भू हुई बंजर चला जल,

भाप बन आकाश में।

देव! है स्वागत तुम्हारा,

ध्यान हो लेकिन हमारा,

बाँध लेना प्रथम अपनी आग सी,

किरणों की बिखरी लट।

 

मौन हैं प्यासे दुधारू 

खूँटियों से द्वंद है।

हलक सूखे हैं, नज़र में

याचना की गंध है।

शेष जल यदि तुम निगल लो,

गागरी उदरस्थ कर लो,

अन्नपूर्णा किस…

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Added by कल्पना रामानी on May 21, 2013 at 1:00pm — 16 Comments

अपने अपने हिस्से का पानी

हम अपने अपने हिस्से का पानी लिए जिए जा रहें है...

देह में मचलता हुआ, लहू में बहता हुआ

और लोग जो अपनों के साथ हर सुख दुःख मे ढल जाते हैं  

हर उस आकार में जिसमें

उस घडी उनका अपना उन्हें होना देखना चाहता है

वह उनके लिए पानी सा हो जातें है .......

तो है न यह अपनों का संसार|

फिर तुम मैं

कहाँ .... दो किनारों से

अपने अपने हिस्से के पानी के साथ बढते हुए, उन्हें थामे हुए|

कभी न मिलने के लिए|

और मैं हर…

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Added by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on May 21, 2013 at 12:30pm — 15 Comments

व्यंग्य

मैने नेता ज़ी से पूछा-
चरित्र किसे कहते हैं?
नेता जी बोले- आप भी कमाल करते हैं
मैं और चरित्र
हो पूरे विचित्र
जब तक रहा चरित्र से वास्ता
ढूँढे नही मिला विधान सभा का रास्ता
 

Added by aditya chaturvedi on May 21, 2013 at 12:12pm — 9 Comments

वरो माँ

जागृत भारत को कर दूँ मुझमे पुरुषार्थ अपार भरो माँ
मन्त्र महार्णव मन्त्र महोदधि विस्मृत हैं यह ध्यान धरो माँ
छन्द जपे मम मानव तो तुम मन्त्र समान प्रभाव करो माँ
दिव्य अलौकिक बात कहूँ मम लेखन को इस भांति वरो माँ
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 21, 2013 at 9:30am — 8 Comments

!!! गजल !!!

!!! गजल !!!
वज्न- 2122, 1212, 22

ऐ खुदा शहर की अदा क्या है।
आज बन्दा लुटा बता क्या है।।

दिल ने आहट सुना जवां जैसे।
तुम न आए अगर दुवा क्या है।।

जां में उल्फत सनम कसम खाये।
रब न मंजिल यहां मिला क्या है।।

शहर जल कर धुआं-धुआं नभ तक।
फिर न जाने सुबह हुआ क्या है।।

हम मिलेंगे वहां जहां ’सत्यम’।
अब तो नफरत भुला खता क्या है।।

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 21, 2013 at 9:01am — 19 Comments

क्लीवत्व नदी बहती

सुनो बली है भारत भू अन्याय नहीं किंचित सहती

सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

सच मानो हर मन में हमको क्रान्ति जगाना आता है

पाक बंग या चीन सरीखों को समझाना आता है

सत्य धर्म की रक्षा में हैं प्राण दान भी दे देते

तुष्ट करे रणचंडी को वो चक्र चलाना आता है

वक्र दृष्टि हो जाये हम पर जो वो दृष्टि नहीं रहती

सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

राष्ट्रवाद बलवान बड़ा है तभी सुनो यह देश टिका

पर…

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Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 20, 2013 at 6:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल - मंडी से आढ़त तक सबकी पर्ची कटी हुई !

ग़ज़ल - 

कुछ होनी कुछ अनहोनी का मेला  ही तो है ,

ये जीवन क्या माटी का एक ढेला ही तो है ।

साँसों की झीनी चादर पर रिश्तों के गोटे ,

भीड़ में भी होकर  हर शख्स अकेला ही तो है ।

इस घर से उस घर तक जाने में रोना हँसना ,

सब कुछ गुड्डे गुड़ियों का एक खेला ही तो है ।

सुख दुःख का संगम तट ये तन और सारा जीवन ,

आशाओं  उम्मीदों का एक रेला ही तो है ।

सूली ऊपर सेज पिया की छूने को तत्पर…

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Added by Abhinav Arun on May 20, 2013 at 3:58pm — 24 Comments

!!! नव गीत !!!

!!! नव गीत !!!



जन्नत सा खुशनुमा ये, लखनऊ है हमारा।



ये चमन है हमारा,

हम सुमन हैं सितारा

ये गोमती सुधारा,

मंगल करे हमारा

हम सादगी से जीते, इतिहास है हमारा।1 जन्नत सा...



नव रूप हो रहे हैं,

नवजात जन्म लेते

लम्बी चुप सी गलियां,

छत पर पतंग उड़ाते

पार हो रही नभ में ये, विकास है हमारा।2 जन्नत सा...



उलझन कभी न होती,

बसती रही कलोनी

बागों के दायरे भी,

सौन्दर्य को बढ़ाते

है नवाबी गवाही, चश्म सांस है…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 19, 2013 at 1:01pm — 14 Comments

ग़ज़ल "बह रही गंगा अजल से पापियों के वास्ते"

हो गये सब सर कलम कुछ रोटियों के वास्ते 

जैसे उगते हों शज़र बस आरियों के वास्ते 



दौरे वहशत पूछिए मत, बढ़ रही कैसी हवस 

है परेशां बाप अपनी बच्चियों के वास्ते 



कुछ निवाले छीन लेते हैं गरीबों से भले 

रोज़ दाना लाएं साहब मछलियों के वास्ते 

देश के रक्षक उगाते बेच कर ईमान अब 

नोट की फसलें सियासी इल्लियों के वास्ते 



दौर है रफ़्तार का, फुर्सत नहीं खुद के लिए 

व्यस्त हैं सब कागज़ी कुछ चिन्दियों के…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 19, 2013 at 11:18am — 33 Comments

सागर में सागर की खोज [गीत ]

समन्दर में बसी मछली, समन्दर ढूढ़ती है क्यों ।

जो उसके हर तरफ फैला, उसे ना देखती है क्यों ।

वो सागर से पूछती है, बता तेरा पता है क्या ।

बताये कैसे ये सागर, बताने को भला है क्या ।

जहाँ पर वो वही सागर ,नही ये सोचती है क्यों ।

समन्दर में बसी मछली............................|

ना जाने कौन सा सागर, लिए बैठी ख़यालों में ।

वो लहरों में भटकती है, फसा करती है जालों में ।

वो पल पल जी रही जिसमे, उसी को भूलती है क्यों…

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Added by Neeraj Nishchal on May 18, 2013 at 11:30pm — 6 Comments

चाँद बादल में छुपा [नज़्म]

चाँद बादल में छुपा,  परछाइयाँ भी खो गयीं ।

साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

चुप्पियों की बाढ़ आयी , सारे मेले बह गये ।

महफ़िलों की गोद में भी , हम अकेले रह गये ।

खामोश मेरे हाल पर , खामोशियाँ भी हो गयीं ।

साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

अब तो कोई दर्द कोई गम भी बाकी ना रहा ।

मेरी इस…

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Added by Neeraj Nishchal on May 18, 2013 at 11:00pm — 16 Comments

कंजूस

ठीक ही तो कहा उसने 
क्या दरिद्रों की तरह 
लम्हों के पीले पत्ते 
बटोरती हो और 
और कबाड़ी वाले की तरह 
टेर लगाए फिरती हो 
एहसासों के मोती चुगो 
और राज हंसिनी कहलाओ 
और मैं सोचती हूँ 
उसकी जेब से 
अपने हिस्से की 
अठननी चवन्नी 
झपट कर भाग खड़ी होऊं 
कंजूस एक एक पाई का 
हिसाब रखता है

Gul Sarika 

Added by Gul Sarika Thakur on May 18, 2013 at 9:30pm — 9 Comments

इक दीवाना मुसव्विर

"कुछ दिनों बाद

पूछेगी जब ये दुनिया मुझसे

हुआ क्या तेरी कलम को

क्यों रूठी है तुझसे वो

जबाब क्या दूँगा जानता नहीं…

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Added by Kedia Chhirag on May 18, 2013 at 7:30pm — 6 Comments

करें इश्क और रखें फिर भी दिल पे काबू ,क्या कहें

"करें इश्क और रखें फिर भी दिल पे काबू ,क्या कहें

बतलाएँ क्या कैसा रूप है तेरा कैसी है तू ,क्या कहें

डूबे कजियारी आँखों में तेरे तो जी ली ज़िन्दगी सारी

अज़ब है ये आशिकी भी…

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Added by Kedia Chhirag on May 18, 2013 at 7:30pm — 6 Comments

फेरीवाला

ये लो चाँद-सितारे ले लो

जगमगाती यादों के तारे ले लो

ज़िन्दगी कों हँसकर जीने कों…

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Added by POOJA AGARWAL on May 18, 2013 at 10:32am — 11 Comments

खनिकर्मी

कोयला खदान की

आँतों सी उलझी सुरंगों में

पसरा रहता अँधेरे का साम्राज्य



अधपचे भोजन से खनिकर्मी

इन सर्पीली आँतों में

भटकते रहते दिन-रात

चिपचिपे पसीने के साथ...



तम्बाकू और चूने को

हथेली पर मलते

एक-दूजे को खैनी खिलाते

सुरंगों में पिच-पिच थूकते

खानिकर्मी जिस भाषा में बात करते हैं

संभ्रांत समाज उस भाषा को

असंसदीय कहता, अश्लील कहता...



खदान का काम खत्म कर

सतह पर आते वक्त

पूछते अगली शिफ्ट के कामगारों से

ऊपर का…

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Added by anwar suhail on May 17, 2013 at 9:30pm — 8 Comments

आज हमे दोनों वक़्त खाना मिल जायेगा

बंज़र होती धरती

किसान बे-हाल है

सोच रहा है इस बार भी पानी मिलेगा

मेरी फसल को या नही

या गुजरे कई सालो जैसा ही

ये साल है .........

सोच रहा है ......

क्या कम होगा .......?????…

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Added by Sonam Saini on May 17, 2013 at 4:30pm — 18 Comments

हास्य कविता

पत्नी बोली अजी सुनते हो

मुनुवा बहुत मिट्टी ख़ाता है

मैने कहा- ये असली राष्ट्र- निर्माता है

क्यूँ घबराती हो डियर

आगे चलकर बनेगा एंजीनियर

आज मिट्टी खा रहा है

कल गिट्टी खाएगा

परसों न जाने कितने पुल सड़क, बाँध और बड़ी- बड़ी परियोजनाओं

को चट कर जाएगा

राष्ट्र की मुख्य धारा मे शामिल हो जाएगा

सच्‍चे अर्थों मे यही विकास पुरुष कहलाएगा

तुम्हारा सुंदरी करण कराएगा

और मेरी नय्या पार लगाएगा

सच कहता हूँ मैं लड़का बहुत काम आएगा…





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Added by aditya chaturvedi on May 17, 2013 at 12:00pm — 16 Comments

जब दर्द गुजरता हो दिल से [नज़्म]

जब दर्द गुजरता हो दिल से , वो पल नज़दीक भी होने दो |

जब छोड़ के जाएँ लोग मुझे , अब वो तकलीफ भी होने दो |

तूफ़ान मै सारे सह जाऊं , बहने दो अगर मै बह जाऊं |

अब ये परवाह नही मुझको , मै मिटूँ या बाकी रह जाऊं |

न रोको मेरे इन अश्कों को बीती यादों को धोने दो |

जब दर्द गुजरता हो दिल से.........................|

सब सहकर भी…

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Added by Neeraj Nishchal on May 17, 2013 at 11:00am — 12 Comments

आओ फिर बटवारा कर लो......

अब जो तुम ना लोटोगे तो

आओ फिर बटवारा कर लो

तुम अपने दिल से जो चाहो

वो सभी सोगातें रख लो....

 

हाँ मैं दोषी नहीं फिर भी चलो

मेरी गवाही तुम ले लो

गिनाते थे जो ऐब मुझ को

वो तुम अब लिख के दे दो.....

 

भर के रखे तुम्हारे लिए

अरमानो के पैमाने जो

जाते हुए उनका अंतिम

संस्कार खुद से कर दो

अब भी कोई बता दो

शर्त रखते हो तो

इस वक़्त उसे भी

आखिरी सलामी दे दो....

 

सूखे फूलो…

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Added by Priyanka singh on May 17, 2013 at 2:00am — 27 Comments

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