| मानव जब दानव बन जाता , खो देता आचार विचार | |
| घूमता है जानवर जैसे , कुछ भी समझाये परिवार | |
| जान की परवाह ना करता , भूल जाता भरा संसार | |
| पाप का घडा जब भरता है , कोई ना मिले मददगार | |
| रात में जब लोग सो जाते , डकैत करते अत्याचार | |
| थाना पुलिस खोज ना पाते , हर दिन मचता हाहाकार | |
| सर्दी से बाहर ना निकलें , कोई ना मिले मददगार | |
| थाने आया तेज दरोगा , देख देख होता लाचार | |
| शाम देहाती वेश बनाय , जब देखने चला बाज़ार | |
| भीड़ में जब घूमते निकला , युवती देखा नयन पसार | |
| आकर सारा मांस खरीदी , चली मानो लगे बीमार | |
| लगा दरोगा उसके पीछे , देखें हम उसका घर बार | |
| युवती बस्ती में जा पँहुची , दरवाजा खोली घर आय | |
| उसके पड़ोस में जा ठहरा , बोला रात रहेंगें भाय | |
| दूर जाना है बहन के घर , बस सोने दो खाट बिछाय | |
| बाहर सोया नजर लगाये , देखें कब वो बाहर जाय | |
| सब सॊये जब घर से निकली , हाथ लिए सारा सामान | |
| दोनों हाथ थैला लटकाये , थाली में सारा पकवान | |
| देख शौच को चला दरोगा , लोटा ले बना मेहमान | |
| गन्ने खेत बीच जब घूसी , बबूल पेड़ चढ़ा बलवान | |
| चांदनी रात लगे सुहावन , देखा सब सोचा विस्तार | |
| लगी परोसन सबको भोजन , खाने आये पाँव पसार | |
| देख बीस पच्चीस मर्द को , उतर चला झट पट बटवार | |
| फोन किया सारे थानों को , माँग लाया पुलिस रखवार | |
| सुबह आ घेरे गन्ना खेत , भागने को बचा ना राह | |
| कितने पुलिस हो गए घायल , सब डकैत मरे बेपनाह | |
| पाया दरोगा कामयाबी , मरे डकैतों की ले आह | |
| वर्मा देख रोया या हँसा , सबने कहा गलत है राह | |
| श्याम नारायण वर्मा |
| (मौलिक व अप्रकाशित) |
Comment
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सादर, सुन्दर रचना काव्यमय कहानी की प्रस्तुति सादर बधाई स्वीकारें,
बहुत बहुत खूबसूरत रचना
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