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यह रोज़ ही की बात है

जब रात गए,

शबनम की बरसात हुआ करती है-

पात पात रात भर

वात बहा करती है,

चोरी छिपे मैंने भी देखा है

दोनों को,

जब रात से प्रभात की

मुलाक़ात हुआ करती है -

मैं तो बस दर्शक हूँ

यह एक तसवीर है.

(2)

रात की लज्जा,

चहारदीवारी के साये में,

मेरे आंगन में छुपे

कलियों के आंचल में

सिमट-सिमट जाती है -

लेकिन वह सूरज

अनायास मेरे घर की

प्राचीर को लांघ कर,

फूलों के पराग में,

अपनी किरणों को टाँगकर

आखरी बूँदों को भी

आहोश में लेता है-

मुझे  लगने लगता है

रात का अब अंत है

और,

यही उसकी तक़दीर है,

मगर,

यह मात्र एक तसवीर है.

(3)

फिर शाम हुआ करती है.

सुर्ख सा चेहरा लिये,

बादलों के आड़ में

सूरज जा छिपता है.

क्षितिज की दहलीज पर

आहट सी होती है-

शर्मीली रात,

अभिसारिका रात,

मेरे बाग की कलियों को

थपथपाने आती है.

उसके आँसुओं की

टप-टप आवाज़,

मेरे दिल की

नयी धड़कन बन जाती है.

एक प्रश्न सा उठता है -

कैसा यह नीर है

यह कैसी तसवीर है?

(4)

कुछ प्रकाश सा होता है,

रात का हर अंग अब

गुनगुनाने लगता है.

छुपकर मैं देखता हूँ,

तारों के झुरमुट से

एक चेहरा हँसता है-

अरे!!

यह तो मुखौटा है,

चाँदनी की बाँह थामे

सूरज फिर से लौटा है.

(5)

अब जानता हूँ -

रात नहीं रोती है,

प्यार नहीं सोता है,

शबनम तो मोती है

उजाला क्यों होता है.

क्यों पथिक के पथ पर रात

दामन फैलाती है,

क्यों किसीके छूने पर

यूँ सिहरित हो जाती है.

झूठे सारे बंधन हैं,

झूठी यह प्राचीर है,

सच तो है,

जीवन एक सुंदर तसवीर है

(6)

डोलती हुई नैया है

डोलते अरमान हैं,

उठती हुई लहरों में

दिल की,

मीठी परछाईँ है -

यह एक तसवीर है.

(7)

बीते हुए,

धधकते हुए कल पर,

आज के रूठे हुए

आवारा गगन के पर्दे पर,

मेरी हथेली पर,

खीँची गयी लकीरों का अवलम्बन लिये

मेरी तक़दीर है -

यह भी तसवीर है.

(8)

ज़िंदगी के गली-कूचे से

उठती  हुई आवाज़ें,

विचारों को हर मोड़ पर

मोड़ देती हुई आवाज़ें,

मेरे थके हुए कदमों को

पुकारती आवाज़ें -

तुम्हारे निर्वाक होठों पर आकर

थरथरा रही हैं .....

यह अंतिम तसवीर है.

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Comment

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Comment by Sonam Saini on May 10, 2013 at 3:14pm

बेहद खुबसूरत रचना आदरणीय शरदिंदु  मुखर्जी जी .. बधाई

Comment by विजय मिश्र on May 10, 2013 at 12:46pm
जीवन की तस्वीरों का एक प्यारा सा एल्बम है आपकी यह कविता .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on May 10, 2013 at 1:26am

मैं आप सभी महानुभावों को नमन करता हूँ मुझे कविता के साथ बाँधे रखने के लिये....प्रशंसा और सकारात्मक टिप्पणी की मजबूत डोर से. विशेषकर आ. सौरभ जी और श्रद्धेय विजय निकोर जी के संवेदनशील मन को ये पंक्तियाँ भा गयीं, इससे अपार प्रसन्नता मिली. आ. श्री रक्ताले तथा आ. लाडीवाला जी का आभार जो उन्होंने इस प्रस्तुति की गहनता को परखा. भाई श्री कुंदन सिंह जी ने आशा जगायी कि आज के युवाओं में अप्रत्यक्ष भावनाओं को समझने और जानने की इच्छा और क्षमता दोनो है. मैं नहीं, मेरी कल्पना, मेरी लेखनी धन्य हो गयी. सविनय आभार.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 9, 2013 at 1:28pm

रात के प्रभात से मुलाक़ात की तस्वीर से होठों पर आकर थरथराती अंतिम तस्वीर तक सुन्दर कलम चली है 

आपकी आदरणीय शरदिंदु मुखर्जी | सुन्दर भाव लिए रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे 

Comment by vijay nikore on May 9, 2013 at 12:31am

 

रात की तस्वीर के माध्यम आपने ज़िन्दगी के पहलुओं का, और

अकेलेपन से जूझने का बड़ा जीवंत और काव्यमय वर्णन दिया है।

ऐसी रचनाएँ मुझ जैसे संवेदनशील को कहीं भीतर तक छू जाती हैं।

ऐसी अभिव्यक्ति के लिए बधाई, आदरणीय शरदिंदु जी।

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2013 at 8:53pm

रात के कई बिम्ब ले कर रची गयी बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Kundan Kumar Singh on May 8, 2013 at 10:49am

आदरणीय शरदिन्दु जी। मुझे इस कविता के भाव और चित्रण का अध्ययन काफी रहस्यमय प्रतीत हुआ। बिंबो की कल्पना शानदार और बेजोड़ है। हार्दिक बधाई।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2013 at 8:37am

आ0 शरदिन्दु जी,   अतिसुन्दर भाव, सुन्दर लय और एक अपनापन, आत्मोद्गार सुन्दर अभिव्यक्ति सजीव चित्रण है।   इन सारी तस्वीरों में कौन सी तस्वीर और कौन सा यर्थात जीवन दोनों को अलग अलग  करना मुश्किल है।   शुभकामनाओ सहित हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 8, 2013 at 12:28am

यह सही है कि शब्द-चित्र का उकेरा जाना सरल प्रयास नहीं है. आदरणीय शरदिन्दुजी, आपके सभी चित्र कल्पना और सचाई को संतुलन में बाँधे हुए हैं. गहरी रात की गोद में निपट अकेलापन कैसे जीवित हो उठता है यह किसी संवेदनशील व्यक्ति केलिए सदा से भावनात्मक रहा है. यह भाव-दशा सापेक्ष हुआ करती है,

प्रस्तुत हुए शब्द-चित्रों के इन विन्दुओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय

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