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पर्दे शर्म के सारे तार-तार हो गए हैं .

बेख़ौफ़ हो गए हैं ,बेदर्द हो गए हैं ,

हवस के जूनून में मदहोश हो गए हैं .

चल निकले अपना चैनल ,हिट हो ले वेबसाईट ,

अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .

पीते हैं मेल करके ,देखें ब्लू हैं फ़िल्में ,

नारी का जिस्म दारू के अब दौर हो गए हैं .

गम करते हों गलत ये ,चाहे मनाये जलसे ,

दर्द-ओ-ख़ुशी औरतों के सिर ही हो गए हैं .

उतरें हैं रैम्प पर ये बेधड़क खोल तन को ,

कुकर्म इनके मासूमों के गले हो गए हैं .

आती न शरम इनको मर्दानगी पे अपनी ,

रखवाले की जगह गारतगर हो गए हैं .

आये कभी है पूनम ,छाये कभी सनी है ,

इनके शरीर नोटों की अब रेल हो गए हैं .

कानून की नरमी ही आज़ादी बनी इनकी ,

दरिंदगी को खुले ये माहौल हो गए हैं .

मासूम को तडपालो  ,विरोध को दबा लो ,

जो जी में आये करने में ये सफल हो गए हैं .

औरत हो या मरद हो ,झुठला न सके इसको ,

दोनों ही ऐसे जुर्मों की ज़मीन हो गए हैं .

इंसानियत है फिरती अब अपना मुहं छिपाकर ,

परदे शरम के सारे तार-तार हो गए हैं .

''शालिनी'' क्या बताये अंजाम वहशतों का ,

बेबस हों रहनुमा भी अब मौन हो गए हैं .

[मौलिक व् अप्रकाशित ]

शालिनी कौशिक 

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Comment by shalini kaushik on May 15, 2013 at 11:57pm

THANKS TO DINESH JI ,KEVAL JI,ASHOK JI .

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 15, 2013 at 8:26pm

परिस्थितियों की पीड़ा को दर्शाती सुन्दर रचना आदरणीया शालिनी जी. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2013 at 9:22am

आ0 शालिनी जी, सुप्रभात! ‘औरत हो या मरद हो, झुठला न सके इसको!
दोनों ही ऐसे जुर्मों की ज़मीन हो गए हैं।
इंसानियत है फिरती अब अपना मुहं छिपाकर,
परदे शरम के सारे तार.तार हो गए हैं।‘...... बहुत ही सुन्दर...कटु सत्य!!! बधाई स्वीकारें, सादर,

Comment by dinesh solanki on May 15, 2013 at 8:17am

वेदना के साथ बहुत आक्रोश है, आपकी कविता में. ये ज़ज्बा और अभिव्यक्ति भी ज़रूरी है. 

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 11:56pm

thanks a lot yatindr pande ji and ram shiromani pathak ji .

Comment by yatindra pandey on May 13, 2013 at 11:35pm

kya baat hai mam saty vachn

Comment by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:23pm

sundar rachana shalini g

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 8:26pm

thanks pradeep ji 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2013 at 4:36pm

saty kaha aapne 

sundar gajal 

saadr badhai 

adarniyaa jii 

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 10:05am

aabhar jawahar ji meri abhivyakti ke marm par vichar karne ke liye .

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