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भारतीय सनातन संस्कृति का ह्रास

साँस लेता हूँ जब
उठती है कसक सीने में
ज्वार उठता है
ज्वाला धधकती है
दब जाता हूँ मैं
राख के ढेर तले
सनातन संस्कृति की राख
दिखलाई देते हैं
संस्कृति के भग्न अवशेष
अटक जाती हैं साँसें
अवसान देखकर
सनातन संस्कृति का

समृद्ध संस्कृति थी कभी
भारतीय सनातन संस्कृति
सम्भाल नहीं पाए
भारतीय भाग्य विधाता
आक्रमणकारी आए विदेशी
रौंदने लगे पैरों तले
भारतीय सनातन संस्कृति
हूण आए, कुषाण आए
यमनी भी आए
पहुँचाते रहे नुकसान
राजा बने भारतीय प्रजा के
अपनी संस्कृति लागू की
पर उन्होँने नहीं मिटाई
भारतीय सनातन संस्कृति
और फिर वे घुल गये
भारतीय समाज में
जैसे घुलती है
शक्कर पानी में
नुकसान किया बहुत
पर फिर भरपाई भी की

फिर आए तुर्क, मंगोल
और मुगल आक्रमणकारी
संग लाए अपने तबाही
लूटा सनातनियों को
मारकाट किया
तबाही फैलाई भारत में
ललनाओं को नोंचा-खसोटा
फायदा उठाया
सनातनियों में फैली
अहिंसा की प्रवृति और
आपसी फूट का
एकता नहीं थी
लङते थे राजा आपस में
जिसके साथ बेटी ब्याहते
उसी राज्य पर हमला करते
इनकी महत्त्वाकाँक्षा ले डूबी
भारतीय सनातन संस्कृति

सनातन संस्कृति के अवशेषों पर
खङी की जाने लगी
आयातित अरबी संस्कृति
स्वार्थी मिले अरबोँ से
खुद भी धर्म-भ्रष्ट हुए
प्रजा को भी धर्म-भ्रष्ट किया
मन्दिर टूटे गुरुकुल टूटे
धर्म पर तलवारें चलीं
मन्दिरों पर मस्जिदें बनी
गुरूकुलों पर मदरसे बने
महलों में मकबरे बने
फिर ह्रास हुआ बहुत
भारतीय सनातन संस्कृति का

कुछ सदियाँ बीत गई
पश्चिम में व्यापार जगा
व्यापारी आए व्यापार करने
कच्चा माल श्रम देखकर
जीब लपलपाई व्यापारियों की
माल कमाया
मजदूर रखे
काम करवाने सिपाही रखे
छोटे कस्बे पर कब्जा किया
फिर बङे क्षेत्र पर अधिकार किया
कमजोरियों को समझा
आपसी फूट का लाभ उठाया
दो राजाओँ को लङवाया
तीसरा फायदा खुद उठाया
इसी तरह कब्जा जमाया
पूरे भारतवर्ष पर
अपनी शिक्षा लागू की
पश्चिमी संस्कृति थोपी
अरबी संस्कृति अपने साथ
कपङों संग बुरका लायी
अँग्रेज संस्कृति अपने साथ
कपङा उतार मात्र औरत लायी
व्यावसायिक शिक्षा और अँग्रेजी शिक्षा नें
नैतिक पतन सुनिश्चित किया
नौकरी लाए
पर बेरोजगारी भी लाए
पैसा और इज्जत लाए
पर गरीबी भी लाए
तकनीक लाए
पर रोजगार नहीं लाए
ह्रास किया
सनातन संस्कृति का

पाश्चात्य संस्कृति थोपी
प्रबुद्ध नागरिक भी
झुनझुना थाम बैठे
मिथ्या को सत्य समझ बैठे
सुन्दर घर को तोङकर
हवेली की सोचने लगा
समृद्ध संस्कृत को छोङकर
असमृद्ध अँग्रेजी पढने लगा
माँ बाप को छोङकर
बॉस की सुनने लगा
सनातन संस्कृति छोङकर
पाश्चात्य संस्कृति अपनाने लगा
घर की पूरी रोटी छोङकर
पङोस की आधी चुपङी खाने लगा
आखिर कब तक
ह्रास होता रहेगा
मिटती रहेगी अपनों के हाथों
रौंदी जाएगी पैरों तले
अपने ही लोगों द्वारा
अनदेखा करते रहेंगे
अपने ही लोग
भारतीय सनातन संस्कृति का
आखिर कब तक?
आखिर कब तक?
- सतवीर वर्मा 'बिरकाळी'

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Comment

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Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 16, 2013 at 6:29pm
आदरणीय श्रीराम जी, आदरणीय शालिनी कौशिक जी, आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी, आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाहा जी, आदरणीय राम शिरोमणी पाठक जी, आदरणीय केवल प्रसाद जी, आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी,
आप सबने रचना को पसंद किया इसके लिए आभार। रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देकर आपने रचना को सार्थक कर दिया है। आभार आप सभी रचनाकारों का।
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 15, 2013 at 8:46pm

संस्कृति के बार बार दमित होने की पीड़ा को शब्द देती सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय सतवीर वर्मा जी.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2013 at 9:51pm

आ0 विरकाळी जी,..‘माँ बाप को छोङकर
बॉस की सुनने लगा
सनातन संस्कृति छोङकर
पाश्चात्य संस्कृति अपनाने लगा
घर की पूरी रोटी छोङकर
पङोस की आधी चुपङी खाने लगा‘ अतिसुन्दर प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:13pm

सुन्दर रचना।बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2013 at 4:20pm

आखिर कब तक
ह्रास होता रहेगा
मिटती रहेगी अपनों के हाथों
रौंदी जाएगी पैरों तले
अपने ही लोगों द्वारा
अनदेखा करते रहेंगे
अपने ही लोग
भारतीय सनातन संस्कृति का
आखिर कब तक?
आखिर कब तक?

यक्ष प्रश्न. 

बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 13, 2013 at 7:35am

आखिर कब तक
ह्रास होता रहेगा
मिटती रहेगी अपनों के हाथों
रौंदी जाएगी पैरों तले
अपने ही लोगों द्वारा
अनदेखा करते रहेंगे
अपने ही लोग
भारतीय सनातन संस्कृति का
आखिर कब तक?
आखिर कब तक?

जब तक हम सभी सोये रहेंगे 

विदेशी संस्कृति में खोये रहेंगे!

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 12:22am

सार्थक रचना। सादर,

Comment by श्रीराम on May 12, 2013 at 7:46pm

सुन्दर अभिवक्ति ...

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