नींद कहीं फिर आ ना जाए , डर लगता है,
ख्वाब वही फिर आ ना जाए, डर लगता है ।
सावन सा वो बरस रहा है मन आँगन में ,
मौसम कहीं बदल ना जाए, डर लगता है…
Added by ARVIND BHATNAGAR on September 13, 2013 at 3:00pm — 21 Comments
मरा कौन ?
कही पे हिन्दू मरता है ।
कही मुसलमान मरता है ।।
चले जब तलवार नफरत की ।
तो बस इंसान मरता है ॥
कही पर घर जलता है ।
कही मकान जलता है ॥
मगर इन लपटो से मेरा ।
प्यारा हिन्दुस्तान जलता है ॥
न कुछ हासिल तुम्हे होगा ।
न कुछ मेरा भला होगा ।
दरख्तो पे जो बैठे है ।
बस गिद्धो का भला होगा ॥
कही मन्दिर पे है पाँबन्दी ।
कही मस्जिद पे पहरा है…
ContinueAdded by बसंत नेमा on September 13, 2013 at 12:00pm — 19 Comments
१२२२...१२२२
नज़र दर पर झुका लूँ तो
मुहब्बत आज़मा लूँ तो
तेरी नज़रों में चाहत का
समन्दर मैं भी पा लूँ तो
बदल डालूँ मुकद्दर भी
अगर खतरा उठा लूँ तो
सियह आरेख हाथों का
तेरे रंग में छुपा लूँ तो
तेरी गुम सी हर इक आहट
जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो
तुम्हारे संग जी लूँ मैं
अगर कुछ पल चुरा लूँ तो
न कर मद्धम सी भी हलचल
मैं साँसों को…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 13, 2013 at 9:30am — 55 Comments
ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
इल्म की रोशनी नहीं होती ,
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती |
एक कोना दिया है बच्चों ने ,
और कुछ बेबसी नहीं होती |
रंग आये कि सेवई आये ,
तनहा कोई ख़ुशी नहीं होती |
दिल के टूटे से शोर होता है ,
ख़ामुशी ख़ामुशी नहीं होती |
सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,
दिल में भी सादगी नहीं होती |
माँ के आँचल से दूर हैं बच्चे ,
बाप से बंदगी नहीं होती…
ContinueAdded by Abhinav Arun on September 13, 2013 at 5:30am — 44 Comments
बाज़ार
संजीदे संगीन ख़यालों-ख़वाबों भरा बाज़ार
उसमें मेरी ज़िन्दगी, सब्ज़ी की टोकरी-सी।
कुछ सादी सच्चाईयाँ भरीं उस टोकरी में,
प्यार के कच्चे-मीठे-कड़वे झूठों का भार,
चाकलेट के लिए वह छोटे बचकाने झगड़े,
शैतानी भी, और बचपन के खेल-खिलवाड़।
भीड़ में भीड़ बनने की थी बेकार की कोशिश,
बनावटी रंगों की बेशुमार बनावटी सब्ज़ियाँ,
मफ़्रूज़ कागज़ के फूल यह असली-से लगते,
थक गया हूँ अब इनसे इस…
ContinueAdded by vijay nikore on September 13, 2013 at 1:30am — 16 Comments
हमने घर की दीवारों में
जीवन की इक आस सजायी
रत्ती-रत्ती सुबह बटोरी
टुकड़ा-टुकड़ा साँझ संजोई
इस चुभती तिमिर कौंध में
दीपों की बारात सजायी
तिनका-तिनका भाव बटोरे
टूटे-फूटे सपन संजोये
साँसों की कठिन डगर पे
आशा ही दिन-रात सजायी
भूख सहेजी, प्यास सहेजी
सोती-जगती रात सहेजी
यूँ चलते, गिरते-पड़ते
कितनी टूटी बात सजायी
तेरे हाथों के स्पर्शों ने
इन होठों…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on September 12, 2013 at 11:00pm — 30 Comments
बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
सत्ता की गर हो चाह तो दंगा कराइये
बनना हो बादशाह तो दंगा कराइये
करवा के कत्ल-ए-आम बुझा कर लहू से प्यास
रहना हो बेगुनाह तो दंगा कराइये
कितना चलेगा धर्म का मुद्दा चुनाव में
पानी हो इसकी थाह तो दंगा कराइये
चलते हैं सर झुका के जो उनकी जरा भी गर
उठने लगे निगाह तो दंगा कराइये
प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें
रधिया करे निकाह तो दंगा…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 12, 2013 at 10:57pm — 33 Comments
भाव दिल के
क्रमबद्ध सजाये
बनी कविता !!
तुकान्त लय
समान मात्रा गणना
बने मुुक्तक !!
तीन पंक्तियां
पंच सप्तम पंच
हाइकु शैली !!
विस्तृत भाव
भूमिकाबद्ध व्याख्या
बने कहानी !!
कम शब्दों में
दे सार्थक सन्देश
लघु कहानी !!
(मौलिक व अप्रकाशित)
प्रवीन मलिक ...
Added by Parveen Malik on September 12, 2013 at 9:30pm — 13 Comments
मौन !
ये कैसा मौन ?
अन्तर्मन में ,
कुछ टूटता सा ,
सुनाई देती जिसकी गूंज देर तक !
हर घटना पर छोड़ जाता कई यक्ष प्रशन !
आँखों में ये कैसा मौन ?
लबो पे ये कैसा मौन ?
दिल में बरछी की तरह गड़ता ,
तीर की तरह चुभता ये मौन ,
ये गवाह है एक बड़े विनाश का !
और जवाब है खुद ही अबूझ सवालों का ,
दिल की हर भावना से जुड़ा ,
मन के किसी कोने में पला ,
पल पल गहराता जाता,
ये कैसा अबूझ मौन ?
जो पहेली बन…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 12, 2013 at 4:30pm — 6 Comments
अविश्वास !
प्रश्नचिन्ह !
उपेक्षा ! तिरस्कार !
के अनथक सिलसिले में घुटता..
बारूद भरी बन्दूक की
दिल दहलाती दहशत में साँसे गिनता..
पारा फाँकने की कसमसाहट में
ज़िंदगी से रिहाई की भीख माँगता..
निशदिन जलता..
अग्निपरीक्षा में,
पर अभिशप्त अगन ! कभी न निखार सकी कुंदन !
इसमें झुलस
बची है केवल राख !
....स्वर्णिम अस्तित्व की राख !
और राख की नीँव पर
कतरा-कतरा ढहता
राख के घरौंदे…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 12, 2013 at 4:00pm — 25 Comments
टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |
अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |
रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |
परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||
.
*बेटी
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 12, 2013 at 2:00pm — 5 Comments
(1)
कन्या होती भाग्य से,रखना इसका मान
कन्या घर में आ रही, ले गौरी वरदान |
ले गौरी वरदान, आँगन कुटी मह्कावे,
घर आँगन चमकाय,कुसुम कलियाँ खिलजावे
शिक्षा का हो भान, बनावे शिक्षित सुकन्या
रखती मन में धैर्य,कष्ट सहती है कन्या
.
(2)
जन्मे बेटी भाग्य से, घर को दे मुस्कान
पालन -पौषन साथ ही, पावे शिक्षा ज्ञान |
पावे शिक्षा ज्ञान, समाज बने संस्कारी
नारी का हो मान, करे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 12, 2013 at 11:30am — 15 Comments
कुछ इस तरह से, मेरी ज़िन्दगी का पल गुज़रे ।
ह्रदय की पीर, मेरे आंसुओं में ढल गुज़रे ।।
तुझे मै देख के लिक्खूं , या सोच के लिक्खूं ।
कि तुझसे हो के, हर एक शेर हर ग़ज़ल गुज़रे ।।
यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को ।
पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे ।।
वो तेरा दर की जहाँ हम बिछड़ गए थे कभी ।
हो के हर रोज़ उसी दर से, ये पागल गुज़रे ।।
वो एक दिन की वीर खुशियों का सिकंदर था ।
ये एक दिन, की तेरे गम…
Added by Anil Chauhan '' Veer" on September 12, 2013 at 11:00am — 6 Comments
Added by Ravi Prakash on September 12, 2013 at 8:30am — 21 Comments
काम कैसे कठिन भला, हो करने की चाह ।
मंजिल छुना दूर कहां, चल पड़े उसी राह ।।
चल पड़े उसी राह, गहन कंटक पथ जावे ।
करे कौन परवाह, मनवा जो अब न माने ।।
जीवन में कुछ न कुछ कर, जो करना हो नाम ।
कहत ‘रमेश‘ साथी सुन, जग में पहले काम ।।
......................................
मौलिक अप्रकाशित (प्रथम प्रयास)
Added by रमेश कुमार चौहान on September 11, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
2122 1212 22
कुछ बहा पर बचा ज़रा भी है
जख़्म लेकिन, कही हरा भी है
जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर
प्यार से दिल मेरा भरा भी है
ख़्वाब ताबीर तक कहाँ पहुंचा
थक के हारा,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 10:00pm — 35 Comments
यादें
भूली बिसरी यादें ,
कुछ मिट गयी कुछ है अमिट,
एक पल मिल जाये तो संजो लूँ इन्हें ,
कुछ खुबसूरत
कुछ दर्द छेडती,
लबो पे मुस्कान सजाती यादें ,
जख्मो को उघाडती यादें ,
मन के किसी कोने में बसी यादें ,
जिंदगी का इम्तिहान बनी यादें ,
एक पल मिल जाए तो संजो लूँ इन्हें ,
कुछ में उभरता उसका अक्स ,
कुछ कोहरे सी छाई होशोहवास पे ,
खुद में खुशियाँ अपार लिए ,
कुछ गमो का एक संसार लिए ,
धुंधली सी…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 11, 2013 at 8:08pm — 5 Comments
(आज से करीब ३१ साल पहले)
किसी उदास दिन, किसी खामोश शाम, और किसी नीरव रात सा ये सफ़र मुझे बेचैन कर गया. रेल सरपट भागी जा रही थी और नज़ारे, खेत और खलिहान पीछे. दोपहर की वीरानगी में स्त्री-पुरुषों के साथ बच्चों को खेतों पे काम करते देख मन अजीब पीड़ा से भरता जा रहा था. गाड़ी भागती जा रही थी मगर बंजर दिखते खेत और पठारी एवं असमतल भूमि का कहीं अंत नहीं दिख रहा था. बैल हल का जुआ कंधे पे थामे, किसान अरउआ हाथ में पकड़े, औरतें और बालाएं हाथ में हंसिया लिए झुकी कमर, खामोशी, और निस्तब्धता…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 11, 2013 at 4:51pm — 6 Comments
१२२२ १२१२ १२१२ ११२
उठी जो पलकें तीर दिल के आर-पार हुआ
झुकी जो पलकें फिर से दिल पे कोइ वार हुआ
फकत जिसको मैं मानता रहा बड़ी धड़कन
नजर में जग की हादसा यही तो प्यार हुआ
गुलों को छू लें आरजू जवां हुई दिल में
लगा न हाथ था अभी वो तार –तार हुआ
हसीनों की गली में था बड़ा हँसी मौसम
मगर जो हुस्न को छुआ तो हुस्न खार हुआ
किया जो हमने झुक सलाम हुस्न शरमाया
नजर जो फेरी हमने हुस्न…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 11, 2013 at 9:00am — 14 Comments
मै आदमी हूँ
सम्बेदंशील हूँ
मुझे कई आदमी
कहलाए जाने वालों
ने छला है I
छाछ फूककर
पीता हूँ हर-बार
क्यों की मेरा मुह
दिखावे के गर्म दूध से जला है I I
कल्पनाओ का समंदर
मेरे मन में भी है
कुछ पाने की चाह में
जीवन की राह में तुमसे मिला है I I I
मुझे रोकना नहीं
टोकना नहीं तुम
बढने दो मेरे पैर
ये हमारी दुश्मनी बदल कर
दोस्ती का सिलशिला है I I I I
मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप कुमार तिवारी…
Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 11, 2013 at 12:59am — 12 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
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2011
2010
1999
1970
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