मुझे जलाओ पीडानल में, उस सीमा तक,
जिस पर अहंकार मरता है,
अभिमान आहें भरता है,
बाकि न कुछ द्वेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
हे देव ! काट दो बंधन सारे ,
एक नहीं सब होवें प्यारे ,
न इर्ष्या का अवशेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
चिंता छोड़ करें सब चिंतन
सुखमय हो जाए हर जीवन
उन्नति देश करे
और नहीं कुछ शेष रहे।
"मौलिक व अप्रकाशित"
शब्द्कार : आदित्य कुमार
Added by Aditya Kumar on August 18, 2013 at 5:00pm — 9 Comments
शज़र
मेरे सीने में कोई प्यासा शज़र, अब तक है,
उसके अंदाज़ में मौसम का असर, अब तक है|
उसको मंज़िल मिली, वो चैन से सोने को गया,
मेरे हिस्से मे कोई तन्हा सफ़र ,अब तक है|
वो नही, नींद नही, फिर भी मैं खुश हूँ, गोया,
उसकी मासूम दुआओं का असर अब तक है|
उसकी ख्वाहिश कहीं मुट्ठी में बंद रेत ना हो,
मेरे अहसास में पैबस्त ये डर अब तक है|
मुझ से पूछा है कई बार, ढलते सूरज ने ,
यूँ तो 'शेखर' है तेरा नाम,…
Added by ARVIND BHATNAGAR on August 18, 2013 at 1:30pm — 5 Comments
Added by Admin on August 18, 2013 at 12:00pm — 14 Comments
पहचान
हटा कर धूल जब देखा अतीत के आईने ने हमको,
उसने भी न पहचाना और अनजान-सा देखा हमको,
सालों बाद हमसे पूछे बहुत सवाल पर सवाल उसने,
हर सवाल के जवाब में हमने नाम तुम्हारा था दिया।
ऐसा…
ContinueAdded by vijay nikore on August 18, 2013 at 11:30am — 28 Comments
(आज से करीब ३२ साल पहले)
लगता है मुझे कोई बीमारी हो गई है. परसों पिताजी डॉक्टर के पास ले गए थे. नाक से बार बार खून आने लगा है. मां ने कहा है कि कुछ दिन मुझे नियमित रूप से दवा खानी होगी.
कल रात दवा खाई थी. नींद आ रही थी मगर आँख नहीं लग रही थी. देर रात बिस्तर पे करवटें बदलता रहा और सोचता रहा कि कब स्वस्थ होऊंगा. सुबह पौने छः बजे आँख खुली. ज़बरन बिस्तर से उठा, एक मदहोशी सी छाई थी. अकस्मात गुड्डी दादी के साथ हुई दुर्घटना ने सारे आलस्य को काफूर कर दिया. वो घर की…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 18, 2013 at 11:21am — 7 Comments
!!! प्याज मंहगे आ गए !!!
बह्र- 2122 2122 2122 212
पत्थरों के शहर में ये जीव कैसे आ गए।
लोभ है सत्ता से इनको होड़ करके आ गए।।1
श्वेत पोशाकों में सजते, खून से लथपथ सने।
रोज मरते सत से राही, कंस जब से आ गए।।2
धर्म बीथीं भी हिली है, भू कपाती हलचलें।
भाई से भाई लड़े हैं, जाति जनने आ गए।।3
नफरतों की आग फैली, द्वेष फलते पीढि़यां।
अम्न जिंदा जल रही है, घी गिराने आ गए।।4
वक्त ने हमको पढ़ाया,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 18, 2013 at 7:32am — 26 Comments
ग़ज़ल –
गिरते गिरते संभलता रहा रात भर ,
मैं था टूटा बिखरता रहा रात भर |
उसके रुखसार का चाँद दामन में था ,
चांदनी में निखरता रहा रात भर |
मुझको मंजिल नहीं बस सफ़र चाहिए ,
दो कदम चल ठहरता रहा रात भर |
गो कि पलकें उठीं आईना हो गयीं ,
आईनों में संवरता रहा रात भर |
था हकीकत या सपना यही सोचकर ,
अपनी ऊँगली कुतरता रहा रात भर |
अर्श तक मैं चढ़ा उंगलियाँ थामकर…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 18, 2013 at 5:30am — 17 Comments
फासलों की
हर पर्त को चीरते
चंद शब्द...
जिनका चेहरा,
कभी दिखाई ही नहीं देता..
आखिर देखूँ भी तो क्यों ?
लुका छिपी में उलझाते मुखौटे !
जिनकी आवाज,
कभी सुनायी ही नहीं देती..
आखिर सुनूँ भी तो क्यों ?
कृत्रिमता में गुँथे बंधित अल्फाज़ !
जिनके अर्थ,
कभी बूझने नहीं होते..
आखिर बूझूँ भी तो क्यों ?
सिर्फ भ्रमित करते से दृश्य तात्पर्य !
जबकि,
हृदय गुहा…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on August 18, 2013 at 12:00am — 39 Comments
सहरा में कहीं खो जायें न हम, आवाज़ हमें देते रहना ।
नयी राहों का नयी मंजिल का, आगाज़ हमें देते रहना ।
माना कि उदासी के सायें कभी हमको घेर भी लेते हैं ,
खुश रहकर जीने का अपना, अन्दाज़ हमें देते रहना ।
जब गिरने लगे ये तनहा मन घनघोर निराशा के तल में,
ऐसे में अपनी उल्फत की, परवाज़ हमें देते रहना ।
भावों की लहर जब उठती है, शब्दों के शहर बह जाते हैं ,
वो प्यार सहेजने को अपने, अल्फ़ाज़ हमें देते रहना ।
जो दिल में हमारे रहती…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 18, 2013 at 12:00am — 12 Comments
बह्र : मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन
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न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ
थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ
है मुझमें रौशनी, गर्मी नहीं पर
मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ
यकीनन संगदिल भी काट दूँगा
तो क्या जो बूँद हूँ धारा नहीं हूँ
सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?
मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ
हवा भरना तुम्हारा बेअसर है
मैं इक रोटी हूँ गुब्बारा नहीं हूँ
मेरी हर बात…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 17, 2013 at 10:08pm — 35 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
गुड्डी-गुड़ी गुमान में, ऊँची भरे उड़ान |
पेंच लड़ाने लग पड़ी, दुष्फल से अन्जान |
दुष्फल से अन्जान, जान जोखिम में डाली |
आये झँझावात, काट दे माँझा-माली |
लग्गी लेकर दौड़, लगाने लगे उजड्डी |
सरेआम लें लूट, गिरी माँझा बिन गुड्डी ||
Added by रविकर on August 17, 2013 at 2:43pm — 5 Comments
Added by Vindu Babu on August 17, 2013 at 9:27am — 17 Comments
अंतर मन…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 16, 2013 at 10:30pm — 18 Comments
Added by Neeraj Nishchal on August 16, 2013 at 8:42pm — 11 Comments
Added by इमरान खान on August 16, 2013 at 11:55am — 19 Comments
ख्वाबों की परिधि मे
आलते का इकरार सुनाई देता है
मौन रहती उस मृगनयनी के
आँखों से झंकार सुनाई देता है
कोतूहल के इस कोहरे मे
कस्तुरी संस्कार सुनाई देता है
सम्बोधन के अरुनिम मे
रुनझुन करता गान सुनाई देता है
हृदय के स्निग्ध लबों से
तरुवर का व्याख्यान सुनाई देता है
कोकिला के कुहुक मे
सम्बन्धों मे आन सुनाई देता है
बच्चे की किलकारी मे
माँ के गर्वित मन का भान सुनाई देता है
शिक्षक के सहपाठी बनने मे
विस्तृत होता…
Added by एल गुनेश्वर राव on August 16, 2013 at 11:17am — 10 Comments
तिरंगे को लहराता देख
लगता है
हम आज़ाद हैं
आज़ादी सापेक्ष होती है
आज़ाद हैं अंग्रेजों से
जिंदगी तो अब भी वैसी ही है
वही साँसें
वही चीथड़े
वहीं चाँद
टूटता तारा
वही कुआँ खोदना
फटी जेबें
वही बिवाइयाँ।
कहाँ बदला कुछ
राजाओं के रंग बदल गये
भाषा वही है
सत्ता का चेहरा बदलता है
चरित्र नहीं
आजादी का मतलब
निरंकुशता की समाप्ति तो…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on August 16, 2013 at 7:00am — 18 Comments
Added by Ravi Prakash on August 15, 2013 at 10:18pm — 7 Comments
अपनी इस ग़ज़ल के साथ सभी को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देता हूँ
आये लौट आज़ादी आज अपनी जवानी में ।
के फहरा दो तिरंगा फिर हवाओं की रवानी में ।
उड़ा दो फिर वही बादल आसमाँ में गुलालों के ,
गुलाबी रंग मिल जाए आज फिर आसमानी में ।
हिमालय की पनाहों में शहीदों को सलामी दे ,
कोई तो गीत गूँजेगा आज गंगा के पानी में ।
बनायें उनके सपनों का चलो आज़ाद भारत हम ,
जिन्होंने ख्वाब देखा था ये अपनी जिंदगानी में ।
आँखों…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 15, 2013 at 2:00pm — 19 Comments
गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर
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दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना
क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना
खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे
जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 15, 2013 at 8:00am — 33 Comments
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