!!! पाठशाला बेमुरव्वत !!!
लोग मन को जांचते हैं,
भांप कर फिर काटते हैं।।
जब किसी का हाथ पकड़ें,
बेबसी तक थामते हैं।
धूप में बरसात में भी,
छांव-छतरी झांकते हैं।
दोस्तों से दुश्मनी जब,
रास्ते ही डांटते हैं।
छोड़ते हैं दर्द विषधर
बालिका को साधते हैं।
आज गरिमा मर चुकी जब,
गीत - कविता भांपते हैं।
जिंदगी में शोर बढ़ता
रिश्ते सारे सालते हैं।
पाठशाला…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 10, 2013 at 10:22pm — 20 Comments
आशिक के दिल की ख्वाहिशो अरमान हैं आँखें ।
कुछ दिन से ये लगता है, परेशान हैं आँखें ॥
Added by Anil Chauhan '' Veer" on September 10, 2013 at 10:10pm — 12 Comments
बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
मिलजुल के जब कतार में चलती हैं चींटियाँ
महलों को जोर शोर से खलती हैं चींटियाँ
मौका मिले तो लाँघ ये जाएँ पहाड़ भी
तीखी ढलान पे न फिसलती हैं चींटियाँ
रक्खी खुले में यदि कहीं थोड़ी मिठास हो
तब तो न उस मकान से टलती हैं चींटियाँ
पुरखों से जायदाद में कुछ भी नहीं मिला
अपने ही हाथ पाँव से पलती हैं चींटियाँ
शायद कहीं मिठास है मुझमें बची हुई
अक्सर मेरे बदन पे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 10, 2013 at 8:47pm — 29 Comments
एक बार फिर
इकट्ठा हो रही वही ताकतें
एक बार फिर
सज रहे वैसे ही मंच
एक बार फिर
जुट रही भीड़
कुछ पा जाने की आस में
भूखे-नंगों की
एक बार फिर
सुनाई दे रहीं,
वही ध्वंसात्मक धुनें
एक बार फिर
गूँज रही फ़ौजी जूतों की थाप
एक बार फिर
थिरक रहे दंगाइयों, आतंकियों के पाँव
एक बार फिर
उठ रही लपटें
धुए से काला हो…
ContinueAdded by anwar suhail on September 10, 2013 at 8:34pm — 10 Comments
एक पुरानी रचना को कुछ गेय बनाने का प्रयास किया है। देखें, कितना सफल रहा।
इन नयनों में आज प्रभू
आकर यूं तुम बस जाओ
जो कुछ भी देखूं मैं तो
एक तुम ही नजर आओ
धरती-नभ दूर क्षितिज में
ज्यों आलिंगन करते हैं
मैं नदिया बन जाऊं तो
तुम भी सागर बन जाओ
वह सूरत दिखती उसको
जैसी मन में सोच रही
सब तुमको ईश्वर समझें
मेरे प्रियतम बन जाओ
देर भई अब तो कान्हा
मत इतना तुम…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on September 10, 2013 at 7:30pm — 18 Comments
गरूर से उठा ये सर मैं झुकाऊ कैसे ?
अपनी यादों से उसके साए मिटाऊं कैसे ?
गुजरा है जिंदगी का हर पल उसी के पहलूँ में !
उसकी साँसों की महक को मैं भुलाऊं कैसे ?
शिकवा रहा है उसको मेरे न मनाने का यारो ,
मालुम नही ये फन मुझे उसको ये बताऊँ कैसे ?
बड़ा बेगैरत होकर निकला हूँ उसके कूंचे से मैं ,
फिर उससे मिलने उसी दर पे मैं जाऊं कैसे ?
दिलके अरमानो की किश्ती तो तूफ़ान में बह गयी ,
अब टूटी पतवार को साहिल पे लाऊं कैसे ?
दिल तडपता है…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 10, 2013 at 5:09pm — 5 Comments
दिल की धड़कन को कुछ तो आराम हो जाए,
मेरे दिल की वादियों में तेरी जिंदगी की शाम हो जाए,
न हो हासिल कुछ भी अगर इस मोहब्बत में मुझे ,
तो खुदा करे की तू मेरे नाम से बदनाम हो जाए!
वक़्त भर ही देगा वो जख्म जो मिले है मुझे तेरी चाहत में ,
बर्बाद ही हो गया हूँ मैं तेरी झूठी मोहब्बत में ,
इससे ज्यादा और मिलना भी क्या था इस उल्फत में ,
सजदे किये थे मैंने तेरे लिए खुदा की इबादत में ,
वक़्त की आँधियों में तू कहीं गुमनाम हो जाए…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 10, 2013 at 4:00pm — 7 Comments
मन के उपजे कुछ हाइकू आपके समक्ष --
१
मन के भाव
शांत उपवन में
पाखी से उड़े .
२
उड़े है पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड है खाली ।
३
मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।
४
सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।
५
मै का से कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।
६
मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली…
ContinueAdded by shashi purwar on September 10, 2013 at 1:30pm — 16 Comments
वन नन्दन था वय षोडश कंचन देह लिए चलती वह बाला
शुचि स्वर्ण समान लगे शुभ केश व चन्द्र प्रभा सम वर्ण निराला
नृप एक वहीं फिरता मृगया हित यौवन देख हुआ मतवाला
वह नेत्र मनोहर मादक थे मदमस्त हुआ न गया मधुशाला
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 10, 2013 at 1:00pm — 25 Comments
!! आओ बैठे बात करे !!
कुछ तुम्हारे कुछ हमारे आओ बँया जज्बात करे ।
आओ बैठे बात करे, आओ बैठे बात करे ।
गुजर गये जो लम्हे प्यारे, आओ उनको याद करे ।
आओ बैठे बात करे, आओ बैठे बात करे ।
क्या याद है वो माली काका, जिसके आम चुराया करते थे ।
क्या याद है वो अब्बू चाचा, जिसकी भेड छुपाया करते थे ।
क्या याद है…
ContinueAdded by बसंत नेमा on September 10, 2013 at 12:30pm — 17 Comments
सुनो ,
व्यर्थ गई तुम्हारी आराधना !
अर्घ्य से भला पत्थर नम हो सके कभी ?
बजबजाती नालियों में पवित्र जल सड़ गया आखिर !
मैं देव न हुआ !
सुनो ,
प्रेम पानी जैसा है तुम्हारे लिए !
तुम्हारा मछ्लीपन प्रेम की परिभाषा नहीं जानता !
मैं ध्वनियों का क्रम समझता हूँ प्रेम को !
तुम्हारी कल्पना से परे है झील का सूख जाना !
मेरे गीतों में पानी बिना मर जाती है मछली !
(मैं अगला गीत “अनुकूलन” पर लिखूंगा !)
सुनो…
ContinueAdded by Arun Sri on September 10, 2013 at 11:30am — 23 Comments
ऐंड़ा पेड़ा खाय लें, लेढ़ा जूठन खात |
टेढ़े-मेढ़े साथ में, टेढ़े-टेढ़े जात |
टेढ़े-टेढ़े जात, जात में पूछ बढ़ाये |
खेड़े बेड़े नात, मात त्यौरियाँ चढ़ाए |
टाँय टाँय पर फुस्स, कहीं कुछ नहीं निबेड़ा |
रहा स्वयं ही ठूस, भरे घर रविकर-ऐंड़ा ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 10, 2013 at 11:01am — 7 Comments
वो देश जहाँ नारी महिमा, सदियों से गायी जाती है ।
Added by Anil Chauhan '' Veer" on September 10, 2013 at 9:00am — 19 Comments
जल-प्रलय
कुदरती कहर
नष्ट जीवन !!
कटते वन
प्रदूषित नदियाँ
विनाशलीला !!
लालची जन
प्राकृतिक आपदा
दोषी है कौन !!
दंगा-फसाद
मजहबी दीवार
यही है धर्म !!
कौम से प्यार
मानवता समाप्त
खून सवार !!
कुर्सी का खेल
देशभक्ति विलुप्त
दोषी को बेल !!
(मौलिक व अप्रकाशित)
प्रवीन मलिक .....
Added by Parveen Malik on September 10, 2013 at 7:30am — 14 Comments
तज़्मीन-- किसी अन्य शायर के शेर पर, शेर से पहले तीन पंक्तियाँ नई इस तरह से जोडना कि वे पंक्तियाँ उसी शेर का अविभाज्य अंग लगें। मैं डा. सत्य प्रकाश तफ़्ता ज़ारी के दो शेरों पर दो तज़्मीन पेश कर रहा हूँ। गौर फरमाईयेगा।
1.
जिन्दगी सुन्दर बगीचा फूल,चुन
कह रहे कुछ ख़्वाब तेरे,उनको सुन
तेरे अन्दर बज रही संगीत धुन-------सूबे सिंह सुजान
हो सके ग़ाफिल। अगर तू उसको सुन,
तेरे अन्दर जो तेरी आवाज़ है।। -----डा. सत्य प्रकाश तफ़्ता…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on September 9, 2013 at 11:00pm — 13 Comments
देवों में जो पूज्य प्रथम है, सबके शीघ्र सँवारे काम।
मंगल मूरत गणपति देवा, है वो पावन प्यारा नाम।
भक्ति भरा हर मन हो जाता, भादों शुक्ल चतुर्थी पर,
सुंदर सौम्य सजी प्रतिमा से, हर घर बन जाता है धाम।
भोग लगाकर पूजा होती, व्रत उपवास किए जाते,
गणपति जी की गाई जाती, आरति मन से सुबहो शाम।
चल पड़ती जब सजकर झाँकी, ढ़ोल मँजीरे साथ लिए,
झूम उठता यौवन मस्ती में, और सड़क पर लगता जाम।
फिर फिर से हर साल…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on September 9, 2013 at 8:30pm — 11 Comments
2122 1212 22
धूप हमको निचोड़ देती है ,
ठंड घुटने सिकोड़ देती है ।
पत्तियों को बड़ी शिकायत है,
ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं।
चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,
जाने क्यूँ राह मोड़…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 9, 2013 at 7:00am — 19 Comments
घर में शामो सहर पड़ी बेटी
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Sushil Thakur on September 9, 2013 at 12:00am — 11 Comments
जाने क्या क्या लोग कहेंगे , किस किस को समझाओगे ,
जिसको वफ़ा समझते हो, उस गलती पर पछताओगे ।
हँसते चेहरे ,सुंदर चेहरे , कितने भोले - भाले चेहरे ,
इस तिलिस्म में पड़े अगर तो , बाहर न आ पाओगे ।
आसमान में उड़ो परिंदे , पंखों पर विश्वास करो ,
इस से ज्यादा खिली धूप और खुली हवा कब पाओगे ।
भींगी पलकें , उतरे चेहरे , वो सपनो का गाँव , गली ,
पीछे मुड़ के नहीं देखना, पत्थर के हो जाओगे ।
चलो उठो दो चार कदम ही , उस…
ContinueAdded by ARVIND BHATNAGAR on September 8, 2013 at 9:30pm — 16 Comments
१ २ २ १ २२ १ २ २ १ २ २
अभी जो यूँ सपनो में आने लगें हे /
वो अनहोनी बातें बताने लगें हे /
पता उनके सच का कहाँ झूठ का हे,
जो हर बात पे छटपटाने लगें हे /
चलों नाम लिख दे जरा साथ उन के ,
यहाँ आते जिन को जमाने लगें हे,/
जो दिन बीत जाये दुबारा ना आये ,
कई राज दिल को लुभाने लगें हे /
यूँ शोलों की खातर जलेंगे नहीं हम ,
अँधेरों में दीये जलाने लगें हे /
"मौलिक व…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on September 8, 2013 at 5:00pm — 8 Comments
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